Madhya Pradesh

Seoni

CC/30/2013

PRAMOD KHANDELWAL - Complainant(s)

Versus

MADHYA PRADESH GARHA NIRMAD MANDAL - Opp.Party(s)

28 Jun 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
 प्रकरण क्रमांक-30-2013                                 प्रस्तुति दिनांक-27.02.2013


समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

प्रमोद खण्डेलवाल, पिता श्री सत्यनारायण
खण्डेलवाल, उम्र लगभग 50 वर्श, व्यवसाय
बिजनेस, वर्तमान पता-द्वारा-अषोक कपूर,
एफ.सी.आर्इ. रोड, कस्तूरवा वार्ड, सिवनी
(म0प्र0)।......................................................................आवेदक  परिवादी।


                :-विरूद्ध-:  
                
मध्यप्रदेष हाउसिंग बोर्ड, (उपसंभाग सिवनी),
द्वारा-सहायक यंत्री,
पता-वेनगंगा काम्पलेक्स, बस स्टेण्ड, सिवनी
(म0प्र0)।.........................................................................अनावेदक विपक्षी।    

                
                 :-आदेश-:
    
     (आज दिनांक- 28/06/2013     को पारित)

द्वारा-अध्यक्ष:-

(1)        परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, हाउसिंग बोर्ड कालोनी, मंगलीपेठ, क्षेत्र सिवनी में निर्मित एम.आर्इ.जी. भवन क्रमांक-10 का भौतिक आधिपत्य व हर्जाना अनावेदक हाउसिंग बोर्ड से दिलाये जाने हेतु पेष किया है।
(2)         मामले में अनावेदक-पक्ष की ओर से कोर्इ लिखित जवाब परिवाद का पेष नहीं। 
(3)        संक्षेप में परिवाद का सार यह है कि-परिवादी ने इस जिला उपभोक्ता फोरम में परिवाद क्रमांक-052012 पेष किया था, जिसमें परिवादी के पक्ष में और अनावेदक तथा अन्य के विरूद्ध आदेष पारित किया गया था, उक्त आदेष के पष्चात परिवादी ने, अनावेदक से संपर्क कर, भवन के भौतिक आधिपत्य की मांग किया व अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक-11.08.2012 को एक लिखित पत्र भी अनावेदक व उसके वरिश्ठ अधिकारियों को जारी कराया, जो उन्हें प्राप्त हुआ, लेकिन परिवादी को भवन का आधिपत्य नहीं दिया गया, तो इस संबंध में अनावेदक के वरिश्ठ अधिकारियों से फोन पर संपर्क किया, लेकिन अनावेदक और उसके वरिश्ठ अधिकारी जो पूर्व मामले में पक्षकार थे, उनके विरूद्ध आदेष हुआ, इसलिये अनावेदक द्वारा जानबूझकर परिवादी को परेषान करने के लिए मकान का आधिपत्य नहीं दे रहा है और परिवादी को 4,500-रूपये के किराये के मकान में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जो कि-पूर्व प्रकरण के अपने जवाब में अतिरिक्त कथन की कणिडका-9 में यह स्वीकार किया गया था कि-दिनांक-13.12.2009 को परिवादी के पक्ष में रजिस्ट्री कर दी गर्इ है और उसे भवन का कब्जा सौप दिया गया है। और इसी तरह अनावेदक के पूर्व जवाब व दस्तावेजों के अनुसार यह कहा गया कि-दिनांक-31.12.2010 को परिवादी को आधिपत्य आदेष जारी कर दिया गया है। और उक्त संबंध में उत्तरदाता, हाउसिंग बोर्ड की नियमषर्त यह है कि-आधिपत्य और कब्जा आदेष होने के सात दिन के पूर्व भी यदि उपभोक्ता भौतिक कब्जा नहीं लेता है, तो यह मान लिया जाता है कि-उसने कब्जा ले-लिया है, जबकि-उक्त सबके विपरीत अनावेदक द्वारा, परिवादी को उक्त भवन का कब्जा नहीं दिया जा रहा है और भवन में अपना ताला अनावेदक ने डाल रखा है, जिससे भवन की हालत जर्जर होती जा रही है और उसकी कोर्इ देखरेख, मेन्टेनेंस में जानबूझकर अनावेदक द्वारा लापरवाही बरती जा रही है, जो कि-दिनांक-05.09.2012 को अनावेदक व उसके वरिश्ठ अधिकारियों को नोटिस दिये जाने पर भी कोर्इ कार्यवाही नहीं की गर्इ।
(4)        अनावेदक-पक्ष की ओर से मौखिक आपतित यह की गर्इ है कि-सहायकयंत्री, हाउसिंग बोर्ड की ओर से न्यायालयीन कार्यवाही करने हेतु सक्षम प्राधिकारी नहीं है, उसके मार्फत हाउसिंग बोर्ड को पक्षकार बनाया जाना अनुचित है और उक्त भवन के अलाटमेन्ट की कार्यवाही विज्ञापन व अधिसूचना निकालने से लेकर विक्रय-पत्र का निश्पादन व पंजीयन और कब्जा अंतरित करने का आदेष व निर्देष करने की कार्यवाही संपतित अधिकारीकार्यपालन अधिकारी करने के लिए ही सक्षम है और सहायकयंत्री उनके अधिनस्थ कर्मचारी है, जो कि-परिवादी ने कब्जा प्राप्त हेतु सिविलवाद भी पूर्व से संपतित अधिकारी, बालाघाट व उपायुक्त हाउसिंग बोर्ड वृत्त, जबलपुर व हाउसिंग बोर्ड आयुक्त, भोपाल को भी पक्षकार बनाकर पेष कर रखा है और राजीनामा के आधार पर कब्जा लेने की सहमति भी परिवादी व हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों के बीच हो चुकी है। 
(5)        तब मामले में सर्वप्रथम विचारणीय प्रष्न यह है कि:-
        क्या पेष परिवाद जो हाउसिंग बोर्ड उपसंभाग, सिवनी 
        जरिये सहायकयंत्री के विरूद्ध जो पेष हुआ है, वह 
        संधारणीय है?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-

(6)        परिवादी की ओर से परिवाद में दर्षाये इस जिला फोरम के प्रकरण क्रमांक-052012 के परिवाद व उसमें पारित आदेष दिनांक-25.05.2012 की कोर्इ प्रति पेष नहीं की गर्इ है, जिससे यह दर्षित होता कि- उक्त मामले में कौन-कौन लोग अनावेदक थे और क्या आदेष पारित हुआ था और जो प्रतियां उक्त कथित पूर्व मामले के अनावेदक क्रमांक-1 और 3 के जवाब की पेष की है, उससे यह दर्षित नहीं कि-अनावेदक क्रमांक-3 उक्त मामले में कौन सा पक्ष रहा है और जवाब की उक्त प्रति, प्रमाणित प्रति भी नहीं। इसी तरह उक्त पूर्व मामले के आदेष के विरूद्ध पेष अपील के अपील मैमो, स्थगन हेतु आवेदन-पत्र व धारा-5 मर्यादा अधिनियम के आवेदन की प्रतियां होना कही जाकर पेष की गर्इं हैं, वे भी प्रमाणित प्रतियां नहीं, मात्र टार्इपषुदा प्रतियां हैं, जिनमें कोर्इ हस्ताक्षर भी नहीं हैं, परिवादी के नाम दिनांक-13.12.2009 को विक्रय-पत्र की कोर्इ रजिस्ट्री की गर्इ, तो उसकी भी कोर्इ प्रति मामले में पेष नहीं, जिससे दर्षित होता की उक्त विक्रय-पत्र किसके द्वारा निश्पादित किया गया और परिवादी को भवन का आबंटन आदेष किसके द्वारा जारी किया गया था, विज्ञापन इष्तहार किसके द्वारा जारी किये गये थे और परिवादी ने विक्रय का मूल्य किस प्राधिकारी को अदा किया था, इस संबंध में कोर्इ दस्तावेज पेष नहीं किये गये। स्पश्ट है कि-क्योंकि उक्त सब कार्यवाही हाउसिंग बोर्ड के संपतित अधिकारी द्वारा की जाती है व उनके द्वारा ही की गर्इ है, इसलिए हाउसिंग बोर्ड के संभाग, बालाघाट को जरिये संपतित अधिकारी के पक्षकार जो बनाया जाना चाहिये था, वह न बनाकर, उक्त सब तथ्यों व सामगि्रयों को छिपाते हुये, सहायकयंत्री के विरूद्ध अनुचित-रूप से परिवाद पेष कर देने का तर्क अनावेदक-पक्ष का है, जो कि-इस संबंध में संपतित अधिकारी एवं कार्यपालनयंत्री के कार्य व अधिकार तथा उत्तरदायित्व बाबद नियम, जो गृह निर्माण मण्डल द्वारा नोटिफार्इड किये गये हैं, उसकी एक प्रति अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष की गर्इ है, जिससे यह स्पश्ट है कि-संपतित अधिकारी ही संपतित विक्रय बाबद समस्त विज्ञापन, अनुबंध, आवासीय भवनों व भूखण्डों का हस्तान्तरण व नामांतरण करने के लिए अधिकृत है और वह आबंटन समिति का सदस्यसचिव है तथा सक्षम प्राधिकारी के न्यायालय में प्रकरणों को दायर करने के लिए अधिकृत है।
(7)        ऐसे में जहां परिवादी ने विवाद, संपतित के हस्तान्तरण संबंधी पेष किया है और हस्तान्तरण हेतु हाउसिंग बोर्ड की ओर से अधिकृत प्राधिकारी, संपतित अधिकारी एवं कार्यपालनयंत्री है, वहीं विक्रय-पत्र लीज रीड अनुबंध-पत्र का निश्पादन करने के लिए प्राधिकृत है और हाउसिंग बोर्ड की ओर से न्यायालयीन कार्यवाही हेतु सक्षम प्राधिकारी हैं। तब न तो अंतरण करने व कब्जा देने के लिए सहायकयंत्री प्राधिकृत है, न ही सहायकयंत्री, मध्यप्रदेष हाउसिंग बोर्ड की ओर से प्रक्ररणों में कार्यवाही के लिए प्राधिकृत किया गया है और संपतित के हस्तान्तरण का मामला हाउसिंग बोर्ड के उपसंभाग व उसके सहायकयंत्री के प्राधिकार का नहीं। तो यह परिवाद किसी भी दृशिट से उचित पक्षकार के विरूद्ध पेष किया गया परिवाद नहीं है और इसलिए संधारणीय नहीं है। 
(8)        परिवादी द्वारा, अनावेदक एवं हाउसिंग बोर्ड के सम्पतित अधिकारी, बालाघाट संभाग, उपायुक्त वृत्त जबलपुर और आयुक्त, भोपाल व षासन को प्रतिवादी बनाकर दिनांक-29.10.2012 को पेष किये गये व्यवहारवाद की प्रति प्रदर्ष आर-2 और उक्त व्यवहारवाद के नियत तिथि 17.01.2013 का अनावेदक को प्राप्त संमंस (व्यवहारवाद क्रमांक-111ए 2012) प्रदर्ष आर-1 अनावेदक द्वारा पेष किया गया है, जो कि-परिवादी ने भी मामले में तर्क के दौरान दिनांक-18.06.2013 को यह स्वीकार किया है कि-उसने अक्टूबर-2012 में ही उक्त भवन का कब्जा दिलाये जाने हेतु सिविल न्यायालय में व्यवहारवाद पेष किया था, जो अभी लमिबत है। तो स्पश्ट है कि-सिविल न्यायालय में इसी अनुतोश हेतु व्यवहार के लमिबत रहते दिनांक-27.02.2013 को परिवादी के द्वारा यह परिवाद भी पेष कर दिया गया, जो कि-न्यायदृश्टांत-2013 (भाग-2) सी0पी0जे0 337 (राश्ट्रीय आयोग) स्टैण्डर्ड चार्टेड बैंक बनाम वीरेन्द्र राय एवं 1991 (भाग-1) सी0पी0जे0 330 (राश्ट्रीय आयोग) कोसवाल फायनआर्स बनाम एच.एम.टी. में दी गर्इ प्रतिपादनाओं से यह स्पश्ट है कि-जहां सक्षम सिविल न्यायालय में पक्षकारों के बीच इसी अनुतोश हेतु इसी विशय-वस्तु का व्यवहारवाद लमिबत हो, तो उसी विशय-वस्तु के संबंध में हर्जाना बाबद कोर्इ परिवाद उपभोक्ता फोरम द्वारा विचार नहीं किया जा सकता, तो इसलिए भी प्रस्तुत परिवाद इस जिला फोरम में संधारणीय नहीं। 
(9)        तब किसी भी तरह प्रस्तुत परिवाद इस फोरम में हाउसिंग बोर्ड के उपसंभाग, सिवनी जरिये सहायकयंत्री, मात्र को पक्षकार बनाकर जो पेष किया गया, वह संधारणीय नहीं और अन्यथा भी परिवादी द्वारा पूर्व से ही पेष सिविलवाद इसी विशय-वस्तु का लमिबत रहते, पेष परिवाद संधारणीय होना संभव नहीं।
(10)        तदानुसार विचारणीय प्रष्न को निश्कर्शित किया जाता है। और विचारणीय प्रष्न के निश्कर्श के आधार पर, प्रस्तुत परिवाद, उचित, आवष्यक पक्षकार के विरूद्ध पेष नहीं होने से एवं पूर्व से इसी विशय-वस्तु का व्यवहारवाद लमिबत होने से संधारणीय नहीं, इसलिए परिवाद संधारणीय न होकर निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।
            
       मैं सहमत हूँ।                                 मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
           सदस्य                                                   अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         

         (म0प्र0)                                                    (म0प्र0)

                        

 

 

 

        
            

 

 

 

 

 

 

 

 

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