जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 440/2000 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-12.06.2000
परिवाद के निर्णय की तारीख:-19.09.2022
1- Ram Anand Tewari s/o Late Shri Ram Naresh Tewari and Resident of 9/Kaushalpuri (as datailed balow)
2- Smt. Madhu Tewari, W/o Ram Anand Tewari, both resident of 9/Kaushalpuri P.O. Malesey Mau (Gomti Nagar) Lucknow (U.P.)
.............Complainants.
VERSUS
kaushalpuri cooparative Housing Society Ltd. through it secretary, Shri Thakur singh Manral . ...........Oooisute partiey.
परिवादी के अधिवक्ता: परिवादी स्वयं ।
विपक्षी के अधिवक्ता: श्री जी0सी0 जोशी।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
मा0 राज्य आयोग के आदेश दिनॉंक 06.06.2017 के तहत प्रस्तुत परिवाद रिमाण्ड होकर प्राप्त हुआ, जिसमें इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश को निरस्त किया गया तथा यह कहा गया कि गुणदोष के आधार पर विपक्षी को साक्ष्य का अवसर प्रदान करते हुए निर्णय करें।
रिमाण्ड के बाद विपक्षी को सूचना दी गयी। पक्षकार उपस्थित आये। पक्षकारों द्वारा कहा गया कि उन्हें कोई भी साक्ष्य नहीं देना है। विपक्षी की ओर से कुछ दस्तावेज साक्ष्य दाखिल किये गये।
परिवादीगण का संक्षेप में कथानक यह है कि
1. परिवादीगण ने प्रस्तुत परिवाद धारा 12 उपभोक्ता संरक्षयक्ष अधिनियम 2019 के अन्तर्गत आवासीय भूखण्ड संख्या 09 व 9 अ सखरा नम्बर 673 भरवारा लखनऊ से क्रय किये जाने हेतु विपक्षी के यहॉं दिनॉंक 28.09.1994 को 10,000.00 रूपये अग्रिम धनराशि एवं सदस्यता शुल्क जमा किया। भूखण्ड 09 एवं 09 अ जिनका क्षेत्रफल 3200, व 3200 वर्गफिट 64,000.00 रूपये हर प्रति भूखण्ड विक्रय मूल्य पर विपक्षी द्वारा परिवादीगण को बेचने हेतु अनुबन्ध दिनॉंक 02.10.1994 को हुआ था जिसमें शेष धनराशि 59000.00 रूपये एवं 58060.00 रूपये परिवादीगण द्वारा जनवरी 1995 में भुगतान करने के लिये विपक्षीगण से आपसी सहमति हुई थी, परन्तु विपक्षीगण ने दिनॉंक 24.11.1994 को भूखण्ड की समस्त बकाया धनराशि जमा करने के लिये नोटिस दिया गया, जिससे परिवादीगण को बहुत पीड़ा हई और कष्ट भी हुआ, परन्तु परिवादीगण को भूखण्ड की आवश्यकता के कारण पूरी धनराशि दिनॉंक 04.01.1995 तक विपक्षीगण के बीच में हुई सहमति के कारण किश्तों के रूप में जमा कर दिया तथा भूखण्ड का कब्जा लेने हेतु अनुरोध किया। परन्तु विपक्षीगण द्वारा उन्हें भूखण्ड का कब्जा नहीं दिया गया और भूखण्ड का कब्जा देकर दिनॉंक 08.02.1995 को परिवादीगण के नाम विपक्षीगण द्वारा रजिस्ट्री निस्पादित करा दी गयी। परन्तु विपक्षीगण द्वारा विक्रय विलेख की प्रति आज तक नहीं दी गयी।
2. परिवादीगण का कथानक है कि विपक्षीगण द्वारा जितने क्षेत्रफल का कब्जा पहले दिया गया था उसे बदल दिया गया जिसके कारण पहले दिये गये कब्जे के आधार पर परिवादीगण द्वारा किये गये निर्माण को तोड़कर पुन: निर्माण कराया गया। शासन द्वारा, सहकारी समितियों द्वारा विक्रय किये गये भूखण्ड और उन पर किये गये निर्माण कार्यों को अनियमित करार देते हुए उस किये गये निर्माण कार्य को गिराने का विज्ञापन समाचार पत्रों में प्रकाशन कराया। उसके बाद विपक्षीगण द्वारा एक दिन रात में परिवादीगण के भवन से संबंधित रजिस्ट्री के प्रपत्र परिवादीगण की बाउन्ड्री में फेक गये जिसके आधार पर ही यह तथ्य सामने आया कि परिवादीगण से जो कीमत विपक्षीगण ने ली है उस मूल्य पर रजिस्ट्री न करके 32000.00 रूपये भूखण्ड का मूल्य रजिस्ट्री में प्रदर्शित कर दिया जो विपक्षीगण के स्तर पर सेवा में त्रुटि है।
3. विपक्षी द्वारा परिवाद पत्र के अधिकांश कथनों को इनकार करते हुए कथन किया गया कि विपक्षी कौशलपुरी सहकारी आवास समिति लि0 निबन्धन संख्या 1435 जनपद लखनऊ उ0प्र0 सहकारी समिति अधिनियम-1965 की धारा 12 (2) के तहत पंजीकृत समिति है। समिति अपने सदस्यों की आवश्यकता हेतु भूमि क्रय करती है, और उसे बिना लाभ हानि के सहकारिता के आधार पर अपने सदस्यों को भूखण्डों के रूप में वितरित करती है। समिति के पास किसी भी प्रकार का कोई कोष न होने की कारण समिति अपने सदस्यों को आवश्यक सुविधा उपलब्ध कराने हेतु सामूहिक आधार पर विकास व्यय प्राप्त करती है जिसका उल्लेख विक्रय विलेख में उल्लिखित है। विकास व्यय का प्रबन्धन भी आठ सदस्यीय प्रबन्ध समिति द्वारा किया जाता है जिसकी पूर्वानुमति एवं सहमति समिति के सदस्यों द्वारा दी जाती है, किसी सदस्य द्वारा विकास व्यय न दिये जाने की स्थिति में चॅूंकि समिति के पास कोई वैधानिक अधिकार नहीं होता है जिस कारण सदस्यों से विकास व्यय प्राप्त न होने की स्थिति में विकास कार्य बाधित होते हैं या विकास कार्य शून्य हो जाते हैं।
4. विपक्षी का कथन है कि श्री रामानन्द तिवारी को वर्ष 1994 में ग्राम-भरवारा, पर0 तहसील व जिला लखनऊ स्थित भूमि खसरा संख्या 673 में भूखण्ड संख्या 09 क्षेत्रफल 3200 वर्गफीट 20.00 रूपये प्रतिवर्ग फिट की दर से विकसित भूखण्ड विक्रय किया जाना था। श्री रामानन्द तिवारी ने उक्त भूखण्ड संख्या 09 के मद में 110.00 रूपये सदस्यता एवं अंशधन तथा 5,000.00 रूपये भूखण्ड की मद में दिनॉंक 28.09.1994 को रसीद संख्या 1756 द्वारा नकद अग्रिम रूप में दिया तथा रसीद संख्या 1806 द्वारा 50,000.00 रूपये चेक के रूप में दिया था।
5. श्रीमती मधु तिवारी ने भूखण्ड संख्या 9-ए की मद में 110.00 रूपये सदस्यता एवं अंशधन तथा 5031.00 भूखण्ड की मद में दिनॉंक 28.09.1994 को रसीद संख्या 1755 द्वारा नकद अग्रिम के रूप में दिया तथा दिनॉंक 04.01.1995 को रसीद संख्या 1805 द्वारा 60,000.00 रूपये चेक के रूप में दिया था। भूखण्डों के आवंटन के समय मूल्य 10.00 रूपये प्रति वर्गफीट निर्धारित था तथा 10.00 रूपये प्रतिवर्ग फिट विकास व्यय लिया जाना प्रस्तावित था, किन्तु भूखण्डों के बैनामे के समय तक विकास कार्य पूर्ण न होने के कारण सदस्यों को रजिस्ट्री 10.00 रूपये प्रति वर्गफिट की दर की गयी और 10.00 रूपये वर्गफीट की दर से लिया जाने वाला विकास व्यय सदस्यगणों को वापस कर दिया गया।
6. श्री रामानन्द तिवारी द्वारा दिनॉंक 16.02.1995 को भूखण्ड का मूल बैनामा एवं अतिरिक्त धनराशि 23,000.00 मात्र प्राप्त कर समिति द्वारा बनाये गये खाते में हस्ताक्षर कर प्राप्त किया। श्रीमती मधु तिवारी द्वारा भी 33,000.00 रूपये खाते में हस्ताक्षर कर प्राप्त किया। परिवादीगणों द्वारा 60,000.00 रूपये रसीद संख्या 1805 तथा 50,000.00 रूपये 1806 कुल रूपये 1,10,000.00 रूपये जमा किया गया था। दिनॉंक 08.02.1995 को परिवादी एवं परिवादी की पत्नी के नाम अविकसित भूखण्डों का पंजीकृत बैनामा कर दिया। परिवादी ने अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला देकर दोनों बैनामों का स्टाम्प शुल्क 16,000.00 एवं 1480.00 रूपये विधिक शुल्क कुल 17,480.00 रूपये दे पाने में असमर्थता व्यक्त की तथा उक्त धनराशि दिनॉंक 19.05.1995 तक जमा करने का आश्वासन दिया, जिसे आज तक भुगतान नहीं किया गया है।
7. परिवादीगणों एवं विपक्षी समिति के मध्य कभी भी कोई वाद का कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। माननीय न्यायालय को उक्त मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। पर्याप्त न्यायशुल्क अदा नहीं किया गया है। परिवादीगण का परिवाद झूठे तथ्यों पर आधारित है, तथा मात्र धन वसूली एवं विकास व्यय से बचने हेतु उक्त परिवाद दाखिल किया गया है। परिवादीगण का परिवाद सव्यय खारिज किये जाने योग्य है।
8. विपक्षी द्वारा शपथ पत्र, रसीद, आवंटन पत्र, श्री रामानन्द, एवं श्रीमती मधु तिवारी को लिखे गये पत्र, आदि की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी हैं।
9. मैने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध तथ्यों, एवं साक्ष्यों का अवलोकन किया। यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवागण एवं विपक्षी द्वारा भूखण्ड संख्या 09 एवं 09 अ क्षेत्रफल 33 वर्गफिट और 64000.00 रूपये प्रति भूखण्ड पक्षकारों के बीच में अनुबन्ध दिनॉंक 02.10.1994 को हुआ था जिसमें विपक्षी को 59000.00 रूपये व 58969.00 रूपये दिये जाने के संबंध में सहमति हुई। सम्पूर्ण धनराशि दिनॉंक 04.01.1995 तक जमा कर दी गयी और विपक्षी द्वारा भूखण्ड का कब्जा दिनॉंक 08.02.1995 को निष्पादित कर दिया गया। विक्रय विलेख के परिशीलन से विदित है कि विपक्षी ने विक्रय किया।
10. जैसा कि विपक्षी का कथानक है कि जमीन की रजिस्ट्री करने के कारण उनको पैसे का भुगतान शेष किया गया है और श्रीमती मधु तिवारी पत्नी श्री रामानन्द तिवारी और रामानन्द तिवादी पुत्र श्री राम नरेश तिवारी को पैसे का भुगतान कर दिया गया है और उनके द्वारा उक्त पैसे के भुगतान के बाद हस्ताक्षर भी रजिस्ट्री में किये गये हैं। उक्त रजिस्ट्री की प्रतिलिपि भी रिमाण्ड के बाद आयी है।
11. यह परिवाद पत्र उपभोक्ता संरक्षण अधिनिम में दाखिल किया गया है। जहॉं तक सी0पी0सी0 के प्रावधान लागू होते हैं अर्थात परिवादी को ही यह साबित करना है कि उक्त धनराशि जैसा कि परिवाद पत्र में कहा है कि भुगतान विपक्षी द्वारा नहीं किया गया है। जबकि विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि दिनॉंक 16.02.1995 को मूल बयनामा एवं अतिरिक्त धनराशि 23000.00 रूपये समिति द्वारा बनाये गये खाते में हस्ताक्षर कर प्राप्त किया। इसी क्रम में श्रीमती मधु तिवारी द्वारा भी दिनॉंक 16.02.1995 को भूखण्ड का मूल बयनामा एवं अतिरिक्त धनराशि 35000.00 रूपये प्राप्त करके समिति द्वारा बनाये गये खाते में हस्ताक्षर करके प्राप्त किया गया।
12. विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी कहा गया कि विपक्षी ने वास्तव में कोई भुगतान किया है कि नहीं के संबंध में एक प्रमाण पत्र न्यायालय के समक्ष हस्त विशेषज्ञ के लिये दिया था। विपक्षी द्वारा प्रार्थना पत्र इस आशय से दिया गया था कि परिवादी के हस्ताक्षर के संबंध में विधि विज्ञान प्रयोगशाला से रिपोर्ट तलब की जाए जिस पर न्यायालय द्वारा दिनॉंक 15.15.2019 को आदेश पत्र में यह उल्लिखित किया गया कि परिवादी द्वारा स्वयं प्रमाण पत्र में कहा गया कि उनके दस्तखत हस्ताक्षर सही हैं और इनकार नहीं किया गया है, और यह कहा गया कि हस्ताक्षर का परीक्षण किये जाने की आवश्यकता नहीं है। इसका मतलब वे अपने हस्ताक्षर को मानते हें। उक्त प्रतिवेदन पत्र में जिसके तहत हस्ताक्षर कराये जाने के लिये प्रमाण पत्र विपक्षी द्वारा दिया गया है जिसमें 33000.00 रूपये की प्राप्ति एवं 23000.00 रूपये प्राप्ति के ऊपर इनके हस्ताक्षर पुष्टि के संबंध में था। जिसको इनके द्वारा हस्ताक्षर करना स्वीकार किया गया है। जब हस्ताक्षर स्वीकार किये गये हैं तो रजिस्टर के अवलोकन से विदित है कि श्रीमती मधु तिवारी एवं रामानन्द तिवारी द्वारा हस्ताक्षर किया गया है।
13. परिवादी द्वारा व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के समक्ष यह कहा गया कि हस्ताक्षर तो उनके हैं परन्तु उसमें जो लिखा गया है 35000.00 रूपये एवं 23000.00 रूपये की प्राप्ति के संबंध में वह उनका नहीं है। अब वास्तव में यह उनका था या नहीं इसे साबित करने का भार परिवादी के ऊपर है। उन्होंने यह कहा कि हस्ताक्षर तो मरे हैं, परन्तु जो लिखा है वह मैने नहीं लिखा। व्यक्तिगत रूप से परिवादी द्वारा यह ध्यान दिलाया गया कि वह पेशे से अधिवक्ता है। बहस के दौरान पढ़ाई किये जाने के संबंध में आयोग को सूचना दी। पर अधिवक्ता या पढे लिखे व्यक्ति द्वारा खाली स्थान छोड़कर दस्तखत करे यह कतई संभव नहीं है और अगर है तो कोई व्यक्ति दस्तखत नहीं करता।
14. किसी भी पढ़े लिखे व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं है कि किसी भी खाली स्थान पर अपना दस्तखत करे और दस्तखत को स्वीकार करने के उपरान्त भुगतान के संबंध में जब विशेषज्ञ की राय के लिये प्रार्थना पत्र दिया तो मना करना निश्चित ही परोक्ष रूप से यह सामान्य समझा जायेगा कि जो कन्टेन्टस इसमें लिखा है वह इनके द्वारा लिखा गया है।
15. अत: मेरे विचार से जो पैसे की मॉंग परिवादीगण द्वारा की जा रही है जैसा कि विपक्षी का कथानक है कि उसने भुगतान कर दिया है की बात में बल मिलता है। विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि परिवाद संस्थित किये जाने का कोई भी वाद कारण नहीं है। क्योंकि भूखण्डों का कब्जा वर्ष 1995 में प्रदत्त करा दिया गया है, और जनवरी, 1995 में विक्रय विलेख भी निष्पादित किया जा चुका है। वाद का कारण Bundle of facts होता है। पैसे का भुगतान दिनॉंक 16.02.1995 में किया गया है, जैसा कि रजिस्ट्री दिनॉंक 08.02.1995 को ही कर दी गयी है, और यह वाद दिनॉंक 16.02.2000 को संस्थित किया गया है। परिवाद पत्र के भी परिशीलन से विदित है कि वर्ष 1995 के बाद से कोई तस्करा नहीं किया गया है। अत: वाद का कारण मेरे विचार से उत्पन्न नहीं होता है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिसीमा अधिनियम से बाध्य है। निश्चित ही 1995 के बाद वर्ष 2000 में वाद संस्थित किया गया है और परिसीमा अधिनियम से मेरे विचार से वाद दायर किया गया है। अत: उपरोक्त विवेचना के आधार पर परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(सोनिया सिंह) (अशोक कुमार सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(सोनिया सिंह) (अशोक कुमार सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक-19.09.2022