जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
रित्विक षर्मा पुत्र डा. श्री मनमोहन जी षर्मा, नाबालिग जरिए वाद मित्र प्राकृतिक संरक्षक पिता डा. श्री मनमोहन जी षर्मा, निवासी लक्ष्मीनारायण विहार काॅलोनी, अजमेर रोड, मदनगंज-किषनगढ, जिला-अजमेर ।
- प्रार्थी
बनाम
एम.एस.एस. पब्लिक स्कूल जरिए अध्यक्ष, मित्र निवास, किषनगढ ।
- अप्रार्थी
परिवाद संख्या 331/2014
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री महेष अग्रवाल, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री रमेष धाभाई, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः-28.03.2016
प्रार्थी ( जो इस परिवाद में आगे चलकर उपभोक्ता कहलाएगा) ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम , 1986 की धारा 12 के अन्तर्गत अप्रार्थी (जो इस परिवाद में आगे चलकर अप्रार्थी विद्यालय कहलाएगा) के विरूद्व संक्षेप में इस आषय का पेष किया है कि उसके पुत्र रित्विक षर्मा ने अप्रार्थी विद्यालय में कक्षा 9 तक षिक्षा प्राप्त की और कक्षा 10वीं की पढाई हेतु माॅं भारती सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, कोटा में प्रवेष लेने के उद्देष्य से उसने अप्रार्थी विद्यालय के यहां दिनांक 28.3.2014 को स्थानान्तरण प्रमाण पत्र प्राप्त करने हेतु जरिए रसीद संख्या 11098 रू. 150/- जमा कराए । जब वह दिनांक 31.3.2014 को टी.सी. लेने अप्रार्थी विद्यालय गया तो उसे अप्रेल,2014 से जून, 2014 तक की फीस राषि रू. 5500/- जमा कराने के लिए चालान देते हुए निर्देष दिया कि उक्त राषि बैंक में जमा करवाते हुए चालान की रसीद अप्रार्थी विद्यालय में जमा करावे तब ही टी.सी. दी जावेगी । जबकि उसने अपने पुत्र की सम्पूर्ण फीस जमा करा दी थी । उपभोक्ता ने अपने पुत्र के भविष्य को मद्देनजर रखते हुए मजबूरन उक्त राषि जमा कराई । तत्पष्चात् उसे टी.सी उपलब्ध कराई तब जाकर उसने अपने पुत्र का कोटा स्थित विद्यालय में प्रवेष दिलाया । उसने अप्रार्थी विद्यालय द्वारा वसूल की गई राषि लौटाने बाबत् अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 21.7.2014 को नोटिस भी दिया । नोटिस प्राप्त होने पर अप्रार्थी ने उसका जवाब दिनांक 31.7.2014 को देते हुए रू. 5500/- जरिए डी.डी. उपभोक्ता को भिजवाई । किन्तु उसे हुई मानसिक क्षतिपूर्ति की राषि रू. 90,000/- अदा नहीं की गई । उसने परिवाद प्रस्तुत करते हुए अप्रार्थी विद्यालय द्वारा अवैध रूप से उक्त राषि वसूलने को सेवा में कमी बतलाते हुए परिवाद में वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में उपभोक्ता ने स्वयं का षपथपत्र पेष किया है ।
2 अप्रार्थी विद्यालय ने जवाब प्रस्तुत करते हुए उपभोक्ता के पुत्र का उनके विद्यालय की कक्षा 9 में षैक्षणिक वर्ष 2013-14 में अध्ययनरत होना व इसके बाद टी.सी. हेतु आवेदन किए जाने के तथ्य को स्वीकार करते हुए आगे दर्षाया है कि उपभोक्ता के पुत्र की अप्रेल,14 से जून, 14 के अन्तिम क्वार्टर की फीस बकाया होने के कारण उपभोक्ता से उक्त क्वार्टर की फीस राषि कन्सेषन करते हुए राषि रू. 5500/- जमा करवाए जाने के लिए चालान जारी किया गया था । उपभोक्ता ने उक्त राषि स्वेच्छा से जमा करा दी थी।
अप्रार्थी विद्यालय का कथन है कि उपभोक्ता के पुत्र की समय समय पर परीक्षा लेते हुए परिणाम घोषित किया जाता रहा और इसी क्रम में यह मानते हुए कि उसका पुत्र नियमित अध्ययन करते हुए अपनी पढाई जारी रखेगा, इसी तथ्य को मद्देनजर रखते हुए अतिम क्वार्टर की फीस राषि बकाया होने के बाद भी उसकी 9 वीें कक्षा का परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया । किन्तु उपभोक्ता ने अपने पुत्र को अन्यत्र अध्ययन करवाने हेतु टीसी की मांग की इसलिए अंतिम क्वार्टर की फीस राषि बकाया होने के कारण उक्त राषि जमा करवाए जाने को कहा गया । इस प्रकार उन्होने उपभोक्ता से कोई राषि अवैध रूप से प्राप्त नहीं की है । उपभोक्ता ने प्र्रष्नगत जमा कराई गई फीस की राषि को लेकर अप्रार्थी विद्यालय के स्टाफ से झगडा करना ष्षुरू कर दिया । तब विद्यालय प्रषासन ने झगडे को निपटाने के उद्देष्य से प्रार्थी को रू. 5500/- लौटा दिए । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है ।
3. उपभोक्ता के विद्वान अधिवक्त ने बहस में प्रमुख रूप से तर्क प्रस्तुत किया कि उसके पुत्र की कक्षा 9 की पढाई माह-मार्च, 2014 में ही समाप्त हो चुकी थी जबकि अगले 3 माह अर्थात अप्रेल,मई व जून की समस्त फीस राषि रू. 5500/- अप्रार्थी विद्यालय ने जबरन प्राप्त किए तथा विरोध करने व नोटिस दिए जाने के पष्चात् उक्त राषि लौटा दी । किन्तु मानसिक क्षतिपूर्ति की राषि नहीं दी है व हुए मानसिक संताप के लिए उन्हें यह क्षतिपूर्ति की राषि दिलाई जानी चाहिए ।
4. विद्वान अधिवक्ता अप्रार्थी विद्यालय ने उपरोक्त तर्को का खण्डन करते हुए तर्क प्रस्तुत किया कि ष्षैक्षणिक सत्र जुलाई से जून प्रत्येक वर्ष रहता है तथा इसी अवधि की पूरी फीस प्रत्येक विद्यार्थी से ली जाती है । तथापि उपभोक्ता को अंतिम तिमाही की राषि लौटाई जा चुकी है व उपभोक्ता किसी अन्य मानसिक संताप की राषि को प्राप्त करने का हकदार कतई नहीं है ।
5. हमने परस्पर तर्क सुने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया ।
6. स्वीकृत रूप से उपभोक्ता के पुत्र ने अप्रार्थी विद्यालय में वर्ष 2013 में प्रवेष लिया तथा ष्षैक्षिक सत्र 2013-14 के लिए कक्षा 9 में भर्ती हुआ तथा विद्यालय की डायरी में अंकित सामान्य नियमों के नियम 10 के अन्तर्गत स्कूल की फीस 4 किष्तों में एक वर्ष के लिए जुलाई से लेकर जून तक 4 तिमाही की ली जानी थी । तदानुसार उपभोक्ता के पुत्र ने कक्षा 9 में माह- जुलाई, 2013 मेें प्रवेष लेते समय प्रथम तिमाही की राषि रू. 12,550/-, द्वितीय तिमाही की राषि रू. 7400/- व तृतीय तिमाही की राषि रू. 7400/- जमा करवाई है व प्रचलित नियमों के अनुसार चतुर्थ तिमाही की राषि अप्रेल से जून तक रू. 5500/- जो पूर्व निर्धारित थी, उपभोक्ता ने जमा करवाई है । इस प्रकार यदि एक षैक्षिक सत्र में 4 तिमाही की अवधि जुलाई से जून तक निर्धारित की जाकर इस अवधि की नियमित फीस अप्रार्थी विद्यालय ने मांगी है अथवा प्राप्त की है तो इसमें किसी प्रकार की अनियमितता नहीं की है तथा उसे सेवा में दोषी नहीं माना जा सकता । वैसे भी विद्यालय प्रषासन ने उपभोक्ता को उक्त फीस जरिए डी. डी. भिजवा दी है जिसे प्राप्त करना वह स्वीकार भी करता है । इन हालात में अप्रार्थी विद्यालय का किसी प्रकार का कोई सेवा दोष रहा हो, यह नहीं माना जा सकता । तदर्थ उपभोक्ता किसी प्रकार की मानसिक संताप की राषि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है ।
7. अंत में न्यायहित में अपेक्षा यह की जाती है कि उपभोक्ता उक्त अंतिम तिमाही की राषि अप्रार्थी विद्यालय को, उसकी सदाषयता का परिचय देते हुए लौटा देगा, यह बिन्दु व स्थिति हमारी राय में उपभोक्ता के विवेक पर छोडी जाती है । परिणामस्वरूप उपभोक्ता परिवाद अस्वीकार किया जाकर खारिज होने योग्य है ।
-ःः आदेष:ः-
8. उपभोक्ता का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 28.03.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष