Final Order / Judgement | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने अनुरोध किया है कि विपक्षी को आदेशित किया जाय कि वह परिवादी को आवंटित भवन के निर्धारित मूल्य से अतिरिक्त धनराशि अंकन 43,500/- रूपया और अतिरिक्त ब्याज अंकन 1,06,500/- रूपया वापिस लेवें और ऐसा न करने पर नोटिस दिनांकित 7/10/2014 निरस्त किया जाय। आवंटन निरस्त न किऐ जाने तथा क्षतिपूर्ति की मद में 50,000/- रूपया और अधिवक्ता फीस 10,000/-रूपया दिलाऐ जाने के अनुतोष परिवादी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
- संक्षेप में परिवादी के कथन इस प्रकार है कि दिनांक 06/7/2013 को विपक्षी द्वारा की गई नीलामी में नया मुरादाबाद योजना के अन्तर्गत परिवादिनी को एक भवन सं0- MMIG GF/House No. 16B-3G आवंटित किया गया था। आवंटन पत्र के अनुसार भवन की कीमत 8,91,500/- थी। परिवादी ने दिनांक 28/6/2013 को 44,575/- रूपये और दिनांक 27/9/2013 को 2,24,000/- रूपया इस प्रकार कुल 2,68,575/- रूपया विपक्षी के कार्यालय में जमा किऐ तभी विपक्षी ने परिवादी के भवन के सामने पोस्ट मार्टम हाउस बनाना शुरू कर दिया। विरोध के बावजूद विपक्षी ने पोस्ट मार्टम हाउस नहीं हटाया। मजबूर होकर आवंटियों द्वारा एक सोसाइटी के माध्यम से पोस्ट मार्टम हाउस के सम्बन्ध में मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के समक्ष एक रिट याचिका सं0-25124 वर्ष 2014 दायर की। याचिका में पारित निर्णय दिनांकित 02/5/2014 के अनुसार विपक्षी ने अब पोस्ट मार्टम हाउस स्थानान्तरित करने का निर्णय लिया है। पोस्ट मार्टम हाउस के स्थानान्तरण को देखते हुऐ परिवादी भवन की शेष धनराशि नियमानुसार जमा करने को तैयार हो गया। इसी मध्य विपक्षी के कार्यालय से एक नोटिस दिनांकित 07/10/2014 परिवादी को प्रेषित किया गया जिसमें भूतल भवन की कीमत 8,91,500/-रूपये के स्थान पर 9,35,000/-रूपया और ब्याज की मांग की गई। परिवादी के अनुसार यदि पोस्ट मार्टम हाउस नहीं बनता तो परिवादी शेष धनराशि समय से अदा कर देता। परिवादी ने दिनांक 20/11/2014 को एक पत्र प्रेषित करके विपक्षी से मांग की, कि वह परिवादी से अकारण अधिक धनराशि और ब्याज न ले, किन्तु नोटिस मिलने के बावजूद विपक्षी ने कोई कार्यवाही नहीं की बल्कि परिवादी को एक नया नोटिस इस आशय का भेज दिया कि परिवादी ने यदि अतिरिक्त धनराशि और ब्याज अदा नहीं किया तो उसका आवंटन निरस्त कर दिया जायेगा। परिवादी का अग्रेत्तर कथन है कि विपक्षी ने अभी तक उक्त भवन में बिजली, ड्रेनेज, सड़क, पानी, बिजली के खम्भे और वायरिंग का प्रबन्ध नहीं किया। रास्ता भी अभी निश्चित नहीं है इसके बावजूद निर्धारित मूल्य से अधिक धनराशि और ब्याज की मांग विपक्षी द्वारा किया जाना विधि विरूद्ध है। परिवादी के अनुसार विपक्षी के कृत्य सेवा में कमी हैं और परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है। उसने विपक्षी को कानूनी नोटिस भी भिजवाया इसके बावजूद परिवादी के अनुरोध स्वीकार करने के लिए विपक्षी तैयार नहीं है। परिवादी ने यह कहते हुऐ कि मजबूरन उसे यह परिवाद योजित करना पड़ा, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष स्वीकार किऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवाद के समर्थन में परिवादी ने अपना शपथ पत्र कागज सं0-3/4 प्रस्तुत किया।
- परिवाद के साथ परिवादी द्वारा विपक्षी को भेजे गऐ कानूनी नोटिस दिनांकित 20/11/2014 ,2,24,000/-रूपया एवं 44,575/-रूपया विपक्षी के खाते में जमा किऐ जाने की रसीदों, आवंटन आदेश, विपक्षी की ओर से प्राप्त पत्र दिनांकित 07/10/2014 तथा पत्र दिनांकित 22/10/2014 तथा भवनों को प्राप्त करने हेतु विपक्षी की पंजीकरण पुस्तिका की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/6 लगायत 3/17 हैं।
- विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-5/1 लगायत 5/4 दाखिल हुआ जिसमें दिनांक 06/7/2013 को हुऐ लाटरी ड्रा में परिवादी के पक्ष में भवन सं0- MMIG GF/House No. 16B-3 G आवंटित होने तथा इस आवंटन की सूचना आवंटन पत्र सं0-31 ए0एल0टी0-1/2013 दिनांकित 3/8/2013 द्वारा परिवादी को दिया जाना तो स्वीकार किया गया है, किन्तु शेष परिवाद कथनों से इन्कार किया गया। विपक्षी की ओर से अग्रेत्तर कथन किया गया कि आवंटन आदेश में परिवादी को यह भी सूचित किया गया था कि भवन का अनुमानित क्षेत्रफल 60 वर्ग मीटर है जिसकी अनुमानित कीमत 8,91,500/-रूपया होती है। परिवादी से अपेक्षा की गई थी कि दिनांक 31/8/2013 तक 2,24,000/-रूपया परिवादी जमा करे शेष धनराशि चार त्रैमासिक ब्याज रहित किश्तों में परिवादी को जमा करनी थी। आवंटन पत्र में किश्तों का स्वरूप, कुल किश्तों की संख्या, प्रथम किश्त की देय तिथि, किश्त की धनराशि आदि के सम्बन्ध में भी स्पष्ट उल्लेख कर दिया गया था और यह उल्लेख कर दिया गया था कि निर्दिष्ट अवधि में भुगतान न किऐ जाने पर 18 प्रतिशत की दर से दण्डात्मक ब्याज लगेगा और ब्याज की दर बढ़ाने, भुगतान की अवधि बढ़ाने अथवा आवंटन को निरस्त करने का अधिकार उपाध्यक्ष, मुरादाबाद विकास प्राधिकरण के पास सुरक्षित है। आवंटन पत्र की शर्त सं0-4 में यह भी स्पष्ट कर दिया गया था कि यदि किन्हीं कारणों से अधिगृहीत भूमि का प्रतिकर मूल्य बढ़ जाता है तो बढ़े हुऐ मूल्य का आवंटी को भुगतान करना होगा। परिवादी ने आवंटन पत्र में उल्लिखित नियम व शर्तों का अनुपालन नहीं किया और विधिवत् किश्तों का भुगतान नहीं किया ऐसी दशा में परिवाद चलने योग्य नहीं है। विपक्षी की ओर से अग्रेत्तर कथन किया गया कि पोस्ट मार्टम हाउस परिवादी के भवन के सामने नहीं है। भवन की कीमत बढ़कर 9,35,000/-रूपया हो गई है जिसके सम्बन्ध में परिवादी को पत्र भेजा गया और उससे धनराशि जमा करने का अनुरोध किया गया, किन्तु परिवादी ने शेष धनराशि जमा नहीं की। विपक्षी द्वारा विकास कार्य किऐ जा चुके हैं, विधुत आपूर्ति का कार्य परिवादी को स्वयं करना है। फोरम द्वारा न तो भवन की कीमत के सम्बन्ध में कोई निर्णय दिया जा सकता है और न ही किसी पोस्ट मार्टम हाउस को बन्द करने का आदेश फोरम द्वारा दिया जा सकता। बढ़ी हुई कीमत सम्बन्धी मामला पालिसी मेटर है, फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। उक्त कथनों के आधार पर परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गई।
- परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-6/1 लगायत 6/3 दाखिल किया जिसके साथ उसने आवंटित भवन और लोकेलिटी के फोटोग्राफ, अंकन 49,990/- रूपया जमा करने की रसीद दिनांकित 01/1/2015,अंकन 15,410/- रूपया जमा करने की रसीद दिनांकित 01/1/2015 तथा अंकन 19,025/- रूपया जमा करने की रसीद दिनांकित 15/12/2014 की नकलें बतौर संलग्नक दाखिल किऐ, यह संलग्नक पत्रावली के कागज सं0-6/4 लगायत 6/6 हैं।
- विपक्षी की ओर से एम0डी0ए0 के संयुक्त सचिव श्री कमलेश सचान का साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-7/1 लगायत 7/3 दाखिल किया गया।
- परिवादी ने अतिरिक्त साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-9/1 दाखिल किया जिसके साथ उसने लोकेलिटी के तथा मकान के फोटोग्राफ, दैनिक समाचार पत्र (हिन्दुस्तान) के 6 अगस्त, 2015 के अंक, आर0टी0आई0 के अधीन विपक्षी के जन सूचना अधिकारी से मांगी गई सूचना दिनांकित 25/5/2015 और विपक्षी की ओर से प्राप्त उसका उत्तर दिनांकित 07/7/2015 दाखिल किया गया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-9/1 लगायत 9/13 हैं।
- विपक्षी की ओर से अतिरिक्त साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-10/1 लगायत 10/2 दाखिल हुआ।
- परिवादी ने अतिरिक्त साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-12 के माध्यम से पोस्ट मार्टम हाउस के सम्बन्ध में मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के समक्ष योजित रिट याचिका में पारित निर्णय की नकल दाखिल की, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-13/1 लगायत 13/6 हैं।
- हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि विपक्षी की नया मुरादाबाद योजना के अन्तर्गत नीलामी में परिवादी को परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित मकान आवंटित हुआ था। पत्रावली में परिवादी द्वारा दाखिल आवंटन पत्र कागज सं0-3/7 के अनुसार आवंटित भवन का अनुमानित मूल्य 8,91,500/- रूपया था। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार यधपि आवंटन पत्र में आवंटित भवन का मूल्य 8,91,500/- दर्शाया गया है इसके बावजूद भवन का मूल्य 9,35,000/- बताते हुऐ परिवादी से बढ़ी हुई धनराशि अंकन 43,500/-रूपया विपक्षी द्वारा मांगी जा रही है जो सर्वथा अनुचित है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी कथन है कि विपक्षी द्वारा परिवादी से दण्ड ब्याज के रूप में 1,06,500/- रूपया अतिरिक्त मांगे जा रहे है जिसका कोई औचित्य नहीं है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षी ने आवंटन आदेश के बाद परिवादी के भवन के सामने पोस्ट मार्टम हाउस का निर्माण करना शुरू कर दिया है जिसका परिवादी सहित अन्य आवंटियों ने विरोध किया, किन्तु पोस्ट मार्टम हाउस का निर्माण बन्द नहीं किया गया, मजबूरन परिवादी और अन्य आवंटियों ने एक सोसाईटी बनाकर पोस्ट मार्टम हाउस के निर्माण को मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में रिट याचिक सं0-25124 वर्ष 2014 के माध्य से चुनौती दी। मा0 उच्च न्यायालय ने याचिका में दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त अपने निर्णयादेश दिनांकित 2/5/2014 में पोस्ट मार्टम हाउस के निर्माण को अवैध एवं उत्तर प्रदेश अर्बन प्लानिंग एण्ड डवलपमेंट एक्ट,1973 के प्राविधानों के विरूद्ध मानते हुऐ पोस्ट मार्टम हाउस को हटाऐ जाने के निर्देश दिऐ। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि मा0 उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद अभी तक पोस्ट मार्टम हाउस को हटाया नहीं गया। उनका कथन है कि परिवादी द्वारा अवशेष धनराशि का भुगतान न करना अकारण नहीं है ऐसी दशा में परिवादी से दण्ड ब्याज नहीं वसूला जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आवंटित भवन और उसकी लोकेलिटी में विपक्षी ने ड्रेनेज, सड़क, पानी, बिजली इत्यादि का भी प्रबन्ध नहीं किया है इस दृष्टि से भी विपक्षी दण्ड ब्याज वसूलने के अधिकारी नहीं हैं।
- विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार आवंटन आदेश में परिवादी को आवंटित भवन का जो मूल्य दर्शाया गया है वह भवन का ‘’ अनुमानित मूल्य ’’ है। आवंटन आदेश में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि भवन का मूल्य 8,91,500/- रूपया ही रहेगा। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार आवंटित भवन का मूल्य विपक्षी द्वारा बढ़ाया जा सकता है अपने इस तर्क के समर्थन में उन्होंने मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली की संतोष कुमार वाजपेयी बनाम रजिस्ट्रेशन यू0पी0 हाउसिंग एण्ड डवलपमेंट कौंसिल, 2014 (1) सी0पी0आर0 पृष्ठ-355 (एन0सी0) की निर्णयज विधि का अबलम्व लिया। दण्ड ब्याज के सम्बन्ध में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने पत्रावली में अवस्थित आवंटन पत्र कागज सं0-3/7 में उल्लिलिखत शर्त सं0-2 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया और कहा कि परिवादी ने चूँकि आवंटन पत्र में उल्लिखित शर्तों के अनुसार किश्तें जमा नहीं कीं, ऐसी दशा में विपक्षी को परिवादी से दण्ड ब्याज लेने का अधिकार है। परिवादी को आवंटित भवन जिस लोकेलिटी में स्थित है उसमें सड़क, पानी, बिजली इत्यादि की सुविधाओं की बाबत परिवादी पक्ष की ओर से उठाई गई आपत्तियों के सन्दर्भ में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने कहा कि सड़क और विधुतीकरण का काम लगभग पूरा हो चुका है, आवंटित आवास में बिजली की व्यवस्था आवंटी को स्वयं करनी है, उन्होंने अग्रेत्तर यह तर्क देते हुऐ कि आवंटित भवन के मूल्य का निर्धारण पालिसी मैटर है जिसमें फोरम को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, परिवाद को विशेष व्यय सहित खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
- यह सही है कि आवंटन पत्र कागज सं0-3/7 में आवंटित भवन का मूल्य 8,91,500/- रूपया ’’ अनुमानित मूल्य ‘’ है और विपक्षी द्वारा इस अनुमानित मूल्य के सापेक्ष परिवादी से भवन का मूल्य 9,35,000/- रूपया निर्धारित करते हुऐ 43,500/-रूपया अतिरिक्त धनराशि की मांग किया जाना मनमाना, स्वेच्छाचारी अथवा अकारण नहीं कहा जा सकता। परिवादी यह कहने का साहस नहीं कर पाया कि अकेले उसके भवन का मूल्य विपक्षी ने बढ़ाया है। भवन का मूल्य बढ़ा दिऐ जाने के बिन्दु पर विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा संतोष कुमार वाजपेयी की जिस निर्णयज विधि का अबलम्व लिया गया है वह वर्तमान मामले के तथ्यों पर पूरी तरह लागू होती है। ऐसी दशा में भवन का मूल्य बढ़ा दिऐ जाने सम्बन्धी परिवादी की आपत्ति निरर्थक है।
- जहॉं तक दण्ड ब्याज के रूप में 1,06,500/- रूपया की अतिरिक्त मांग का प्रश्न है इस सन्दर्भ में हमारा मत है कि मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के आलोक में विपक्षी द्वारा दण्ड ब्याज की मांग किया जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। कोई भी व्यक्ति रिहायशी कालोनी में आवास इसलिए लेता है कि वह सुकून से उसमें निवास कर सके, किन्तु यदि आवंटन के उपरान्त अचानक आवंटित भवन के सामने पोस्ट मार्टम हाउस बना दिया जाय तो वह सपरिवार कैसे उस आवास में सुकून से रह सकेगा आसानी से इसकी कल्पना की जा सकती है। मा0 उच्च न्यायालय के निर्णय के अवलोकन से प्रकट है कि विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष यह स्वीकार किया था कि इस पोस्ट मार्टम हाउस का निर्माण अवैध है। पोस्ट मार्टम हाउस हटा दिऐ जाने के सन्दर्भ में परिवादी द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत मांगी गई सूचना और उसका उत्तर पत्रावली में दाखिल है। विपक्षी की ओर से सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन जो उत्तर दिया गया है उससे प्रकट है कि दिनांक 07/7/2015 तक भी पोस्ट मार्टम हाउस हटाया नहीं गया था। इन परिस्थितियों में हमारे मत में परिवादी द्वारा शेष किश्तों की अदायगी समय से न करना अकारण और अनुचित नहीं कहा जा सकता। किश्तों की अदायगी समय से न हो पाना विपक्षी के कृत्यों की वजह से हुआ। विधि का यह स्थापित सिद्धान्त है कि किसी भी व्यक्ति को उसके स्वयं के अपकृत्यों का लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हमारे विनम्र अभिमत में परिवादी से विपक्षी द्वारा दण्ड ब्याज के रूप में 1,06,500/-रूपया की मांग करना अनुचित है। इसकी अदायगी न किऐ जाने के आधार पर परिवादी का आवंटन निरस्त किया जाना हमारे भी मत में युक्तियुक्त नहीं होगा।
- उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि विपक्षी द्वारा परिवादी से दण्ड ब्याज के रूप में 1,06,500/- रूपया की जो मांग की जा रही है वह निरस्त होने योग्य है जिसे एतद्द्वारा निरस्त किया जाता है। जहॉं तक आवंटित मूल्य के सापेक्ष परिवादी से 43,500/- रूपया की अतिरिक्त मांग का प्रश्न है इसे अनुचित नहीं माना जा सकता। परिवाद तदानुसार निस्तारित होने योग्य है।
विपक्षी द्वारा परिवादी से की गई दण्ड ब्याज के रूप में 1,06,500/- रूपये की धनराशि की मांग निरस्त की जाती है। विपक्षी को निषिध किया जाता है कि दएड ब्याज अदा न करने के आधार पर परिवादी का आवंटन निरस्त न करें। परिवादी विपक्षी से परिवाद व्यय की मद में 2500/- (दो हजार पांचसौ रूपया) अतिरिक्त पाने का अधिकारी होगा। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
09.08.2016 09.08.2016 09.08.2016 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 09.08.2016 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
09.08.2016 09.08.2016 09.08.2016 | |