Uttar Pradesh

Muradabad-II

CC/897/1994

Smt. Rajni jain - Complainant(s)

Versus

M.D.A - Opp.Party(s)

08 Mar 2018

ORDER

      परिवाद प्रस्‍तुतिकरण की तिथि: 14-11-1994   

                                              निर्णय की तिथि: 08.03.2018

कुल पृष्‍ठ-8(1ता8)

न्यायालय जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद

उपस्थिति

श्री पवन कुमार जैन, अध्‍यक्ष

                      श्री सत्‍यवीर सिंह, सदस्‍य

परिवाद संख्‍या-897/1994  

1-श्रीमती रजनी जैन प‍त्‍नी श्री सर्वोदय कुमार जैन।

2-श्रीमती पुष्‍पा जैन पत्‍नी श्री विनोद कुमार जैन।

निवासीगण पटपट सराय नीम की प्‍याऊ, गंज, मुरादाबाद।              …....    ...परिवादीगण

बनाम

1-उपाध्‍यक्ष मुरादाबाद विकास प्राधिकरण, मुरादाबाद।

2-सचिव मुरादाबाद विकास प्राधिकरण, मुरादाबाद।..                  ...................विपक्षीगण

 (श्री पवन कुमार जैन, अध्‍यक्ष द्वारा उद्घोषित)

निर्णय

  1. इस परिवाद के माध्‍यम से परिवादीगण ने यह अनुतोष मांगा है कि परिवादी-1 एवं परिवादी-2 को आवंटित भवन संख्‍या क्रमश: बीएल-86 तथा बीएल-108 का आवंटन निरस्‍त किये जाने संबंधी विपक्षीगण के पत्र दिनांकित 19-9-1994 निरस्‍त किये जायें  और यदि ऐसा संभव न हो तो विपक्षीगण को आदेशित किया जाये कि वे प्रश्‍नगत योजना में अथवा किसी अन्‍य योजना में भवन सं.-बीएल-86 एवं बीएल-108 के स्‍थान पर परिवादीगण को अन्‍य भवन पुरानी कीमत के आधार पर आवंटित करके उनका कब्‍जा परिवादीगण को दिलाऐं। विकल्‍प में परिवादीगण ने यह भी अनुतोष मांगा है कि यदि भवन किसी भी अवस्‍था में आवंटित किया जाना संभव नहीं हो पाऐं तो परिवादीगण द्वारा जमा की गई धनराशि 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित उन्‍हें वापस दिलायी जाये। अग्रेत्‍तर परिवादीगण का यह भी अनुरोध है कि दिनांक 16-8-1991 से अवशेष किस्‍तों पर विपक्षीगण किसी प्रकार का ब्‍याज उनसे वसूल न करें।   
  2. संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादीगण आपस में देवरानी-जेठानी हैं। विपक्षीगण द्वारा घोषित आवासीय योजना के अन्‍तर्गत आवासीय पंजीकरण हेतु वर्ष 1982 में उन्‍होंने पृथक-पृथक क्रमश: दो-दो हजार रूपये विपक्षीगण के कार्यालय में जमा कराये थे। काफी समय तक परिवादीगण को आवासीय सुविधा उपलब्‍ध नहीं करायी गई। लम्‍बे अन्‍तराल के पश्‍चात वर्ष 1985, 1988 एवं पुन: 1991 में विपक्षीगण ने अल्‍प आय वर्ग के दो मंजिला भवन आवंटित करने हेतु परिवादीगण से सहमति मांगी। परिवादीगण ने हर बार विपक्षीगण को अपनी सहमति से अवगत कराया। दिनांक 25-7-1991 के पत्रों द्वारा विपक्षीगण ने सोनकपुर में अल्‍प आय वर्ग के दो मंजिल भवन आवंटित करने हेतु परिवादीगण से पुन: सहमति मांगी गई, जिसपर परिवादीगण ने स्‍वेच्‍छा से अपनी सहमति से विपक्षीगण को अवगत करा दिया। आवासों का आवंटन ड्रा द्वारा दिनांक 05-8-1991 को होना था। दिनांक 05-8-1991 को निर्धारित समय एवं स्‍थान पर परिवादीगण ने उपस्थित होकर ड्रा में भाग लिया। सार्वजनिक रूप से हुए ड्रा में परिवादी-1 श्रीमती रजनी जैन के नाम आवास सं.-बीएल-74 निकला। ड्रा से पूर्व दिनांक 03-8-1991 को एक प्रार्थना पत्र के माध्‍यम से परिवादीगण ने विपक्षीगण से यह अनुरोध किया था कि परिवादीगण को बराबर अथवा ऊपर-नीचे के आवास आवंटित कर दिये जायें क्‍योंकि वे हिन्‍दू अविभाजित परिवाद की सदस्‍य हैं और इस प्रार्थना पत्र पर विचारोपरान्‍त दिनांक 05-8-1991 को ही परिवादी-1 को आवंटित आवास सं.-बीएल-74 के ऊपरी मंजिल पर स्थित भवन सं.-बीएल-74/1 परिवादी-2 को आवंटित कर दिया गया किन्‍तु विपक्षीगण ने अनुचित दबाव में आकर परिवादीगण का उक्‍त प्रार्थना पत्र दिनांकित 03-8-1991 पत्रावली से हटवा दिया। परिवादीगण को जैसे ही इसकी जानकारी हुई तो उन्‍होंने दिनांक 16-8-1991 को एक प्रार्थना पत्र देकर विरोध किया और विपक्षी-1 से आवश्‍यक जांच कर न्‍याय की प्रार्थना की परन्‍तु विपक्षीगण ने इसपर कोई कार्यवाही नहीं की। दिनांक 26-8-1991 को विपक्षी-2 ने परिवादी-1 व परिवादी-2 को क्रमश: भवन सं.-बीएल-86 और बीएल-108 आवंटित कर दिये। ऐसा करके विपक्षीगण ने मनमाने तरीके से परिवादीगण के पक्ष में पूर्व में हुए आवंटन में फेरबदल कर दिया, जिसका उन्‍हें कोई अधिकार नहीं था। विपक्षीगण ने कार्यालय अभिलेखों में भी हेराफेरी की। परिवादीगण का यह भी आरोप है कि उन्‍हें पूर्व में आवंटित भवन सं.-बीएल-74 व बीएल-74/1 अन्‍य व्‍यक्तियों को दिनांक 16-8-1991 को प्रार्थना पत्र लेकर आवंटित किये गये, इन लोगों को दिनांक 05-8-1991 को हुए सार्वजनिक ड्रा में ये भवन आवंटित नहीं हुए थे। परिवादीगण का अग्रेत्‍तर कथन है कि विपक्षीगण ने उनके शिकायती पत्र दिनांकित 16-8-1991 पर निरन्‍तर स्‍मृति पत्र दिये जाने के बावजूद कोई निर्णय नहीं लिया, जिस कारण परिवादीगण पत्र दिनांकित 12-8-1991/26-8-1991 द्वारा मागे गये क्रमश: दस-दस हजार रूपये विपक्षीगण के कोष में जमा नहीं करा सकीं। विपक्षीगण ने एक ओर परिवादीगण के शिकायती पत्र दिनांकित 16-8-1991 पर न तो कोई निर्णय लिया और न ही कोई कार्यवाही की, वहीं दूसरी ओर दस-दस हजार रूपये की जो मांग उन्‍होंने परिवादीगण से की थी, उसपर देय ब्‍याज की निरन्‍तर मांग की जाने लगी, जो नितान्‍त अनुचित थी क्‍योंकि शिकायती पत्र पर निर्णय न लेना और उसमें विलम्‍ब करने का दोष विपक्षीगण का था। परिवादीगण ने अग्रेत्‍तर कथन किया कि आवंटित आवासों के सापेक्ष परिवादी-1 भिन्‍न-भिन्‍न तिथियों में दिनांक 10-7-1992 तक अंकन-19734/-रूपये तथा परिवादी-2 दिनांक 05-9-1992 तक अंकन-20900/-रूपये विपक्षीगण के कोष में जमा कर चुकी थीं। परिवादीगण के अनुसार उनके शिकायती पत्र दिनांकित 16-8-1991 पर विपक्षीगण द्वारा कोई सुनवाई नहीं किये जाने के कारण मजबूरन परिवादीगण उन्‍हें आवंटित आवास सं.-बीएल-86 एवं बीएल-108 का कब्‍जा लेने और विपक्षीगण के कोष में वांछित धनराशि जमा करने को तैयार हो गईं। इस हेतु जब उन्‍होंने इन भवनों का अवलोकन किया तो पाया कि वे रहने योग्‍य नहीं हैं, उनमें अत्‍यन्‍त घटिया सामग्री का उपयोग किया गया है, जगह-जगह जमीन बैठ गई है। प्‍लास्‍टर आदि टूटे हैं और निर्माण कार्य भी अपूर्ण है। परिवादीगण ने वर्ष 1994 में विपक्षी-1 को संपूर्ण स्थिति से अवगत कराते हुए निर्धारित विशिष्टियों के अनुसार इन भवनों को ठीक कराने की मांग की किन्‍तु विपक्षीगण ने हठधर्मिता दिखाते हुए कोई सुनवाई नहीं की और परिवादीगण पर दबाव डाला कि उसी हालत में भवनों का कब्‍जा लें और अन्‍तत: पृथक-पृथक पत्र दिनांकित 19-9-1994 द्वारा परिवादीगण के पक्ष में हुए आवंटनों को निरस्‍त कर दिया। परिवादीगण के अनुसार विपक्षीगण के उक्‍त कृत्‍य मनमाने हैं, जो स्थिर रहने योग्‍य नहीं है। परिवादीगण ने उक्‍त कथनों के आधार पर परिवाद में अनुरोधित अनुतोष स्‍वीकार किये जाने की प्रार्थना की।
  3. यह परिवाद परिवादीगण ने आवंटन निरस्‍तीकरण के लगभग 3 माह में ही दिनांक 14-11-1994 को फोरम के समक्ष योजित कर दिया था। दिनांक 20-12-1996 को परिवादीगण की अनुपस्थिति में यह परिवाद खारिज हो गया। इसके पुनर्स्‍थापन हेतु प्रकीर्ण वाद सं.-07/1997 योजित हुआ। उक्‍त प्रकीर्ण वाद दिनांक 17-5-1999 को खारिज हो गया। परिवादीगण ने माननीय राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष अपील सं.-1661/1999 योजित की, जो दिनांक 07-4-2017 को निर्णीत हुई। माननीय राज्‍य आयोग के निर्णय की प्रति पत्रावली का कागज सं.-12/1 लगायत 12/3 है। माननीय राज्‍य आयोग ने आदेशित किया कि ‘’अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला फोरम-द्वतीय, मुरादाबाद द्वारा प्रकीर्ण वाद सं.-07/1997 में पारित प्रश्‍नगत आदेश दिनांकित 17-5-1999 अपास्‍त करते हुए प्रस्‍तुत प्रकरण जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रतिप्रेषित किया जाता है कि वह उभयपक्ष को साक्ष्‍य एवं सुनवाई का समुचित अवसर प्रदान करते हुए मामले का गुणदोष के आधार पर यथाशीघ्र करना सुनिश्चित करे।‘’
  4. माननीय राज्‍य आयोग द्वारा अपील में पारित निर्णयादेश की प्रति प्राप्‍त होने पर रिकार्ड रूम से पत्रावली तलब की गई। उपाध्‍यक्ष, मुरादाबाद विकास प्राधिकरण, मुरादाबाद को फोरम के पत्र दिनांकित 04-10-2017 के द्वारा इस परिवाद के पुनर्स्‍थापित होने और सुनवाई हेतु निर्धारित तिथि की सूचना भेजी गई। इस पत्र की नकल पत्रावली का कागज सं.-14 है। विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता उपस्थित हुए।
  5. परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता ने परिवाद में संशोधन हेतु संशोधन प्रार्थना पत्र कागज सं.-15/1 लगायत 15/3 प्रस्‍तुत किया, जो स्‍वीकार हुआ, परिवाद में संशोधन किया गया।
  6. परिवाद खारिज होने से पूर्व दिनांक 20-02-1996 को विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं.-6/1 लगायत 6/2 प्रस्‍तुत हुआ था, जिसमें उन्‍होंने यह कथन किया कि परिवादीगण ने आवास आवंटन से पूर्व आपस के करीबी रिश्‍तों की कोई जानकारी विपक्षीगण को नहीं दी, यहां तक कि दिनांक 05-8-1991 को हुए ड्रा के समय भी उन्‍होंने यह जानकारी नहीं दी कि वे पास-पास भवनों का आवंटन चाहती हैं, परिवादीगण को ड्रा में क्रमश: भवन सं.-बीएल-86 एवं बीएल-108 आवंटित हुए थे, भवन सं.-बीएल-74 अतुल कुमार भटनागर को उस ड्रा में आवंटित हुआ था। दिनांक 12-02-1992 को संपन्‍न ड्रा में भवन सं.-बीएल-74/1 श्रीमती नीलम रस्‍तौगी को आवंटित हुआ। परिवादीगण को आवंटित भवनों के बारे में कई बार देय धनराशि भुगतान करने का अवसर दिया गया किन्‍तु उन्‍होंने अवशेष धनराशि का भुगतान नहीं किया, अन्‍तत: दिनांक 19-9-1994 को उनके आवंटन निरस्‍त कर दिये गये। विपक्षीगण की ओर से यह कहते हुए कि अपनी गलतियों के लिए परिवादीगण स्‍वयं दोषी हैं, परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
  7. परिवाद पुनर्स्‍थापित होने के पश्‍चात परिवादीगण की ओर से संशोधन द्वारा परिवाद में जो तथ्‍य समाविष्‍ट किये गये, उनमें परिवादीगण ने यह उल्‍लेख किया कि परिवादीगण का परिवाद निष्‍फल करने के उद्देश्‍य से विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र में यह तो उल्‍लेख किया कि आवास सं.-बीएल-74 एवं बीएल-74/1 अन्‍य लोगों को आवंटित कर दिये गये हैं किन्‍तु उनके नाम उन्‍होंने स्‍पष्‍ट नहीं किये, अन्‍य लोगों को की गई आवंटन संबंधी कार्यवाही पूर्ण रूप से अवैध है और उक्‍त कार्यवाही निरस्‍त होने योग्‍य है।
  8. परिवादीगण ने परिवाद के साथ सूची कागज सं.-3/5 के माध्‍यम से 46 प्रपत्र दाखिल किये। पत्र कागज सं.-3/7 व 3/8 परिवादीगण द्वारा आवास पंजीकरण हेतु जमा कराये गये क्रमश: दो-दो हजार रूपये के पंजीकरण प्रमाण पत्र हैं, कागज सं.-3/9 व 3/10 मूल रसीदें हैं। वर्ष 1985, 1988 तथा 1991 में विपक्षीगण की ओर से आवास आवंटन के लिए सहमति देने हेतु परिवादीगण को लिखे गये पत्र एवं परिवादीगण द्वारा उनके सापेक्ष आवंटन हेतु दी गई सहमति हैं, ये प्रपत्र कागज सं.-3/11 लगायत 3/20 हैं, कागज सं.-3/21 व 3/22 परिवादीगण द्वारा जमा कराये गये क्रमश: छ:-छ: हजार रूपये की रसीदें हैं, कागज सं.-3/23 अप्रैल 1991 में होने वाले आवंटन हेतु परिवादी-1 से सहमति हेतु लिखा गया पत्र तथा कागज सं.-3/24 इस हेतु परिवादी-1 द्वारा प्रेषित सहमति पत्र है, कागज सं.-3/25 अंकन-10,000/-रूपये का मांग पत्र है, इसके सापेक्ष परिवादी-1 व 2 द्वारा 10-10 हजार रूपये जमा कराये जाने की रसीदें कागज सं.-3/26 व 3/27 हैं, कागज सं.-3/28 व 3/29 दिनांक 05-8-1991 को होने वाले ड्रा के सूचना पत्र हैं, कागज सं.-3/30 दिनांक 03-8-1991 को मुरादाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्‍यक्ष को परिवादीगण द्वारा प्रेषित पत्र है, जिसमें दोनों परिवादीगण को पास-पास भवन आवंटित करने का अनुरोध किया गया है, कागज सं.-3/31 व 3/32 दिनांक 16-8-1991 को परिवादी-1 द्वारा विपक्षीगण को प्रेषित शिकायत पत्र है, कागज सं.-3/35 तथा 3/35ए परिवादीगण को आवास सं.-बीएल-86 और बीएल-108 आवंटित किये जाने की सूचना है, कागज सं.-3/38 परिवादी-1 के पति द्वारा प्रेषित शिकायत‍ पत्र है, कागज सं.-3/37 व 3/41 परिवादी-1 व 2 को लीज रेंट जमा करने हेतु भेजे गये पत्र हैं, कागज सं.-3/45 लगायत 3/50 परिवादीगण पक्ष द्वारा भवन आवंटन में अभिकथित गड़बड़ी किये जाने विषयक शिकायत पत्र हैं, कागज सं.-3/51 व 3/52 एमडीए की ओर से परिवादीगण को भेजे गये पत्र हैं, जिनमें ब्‍याज सहित शेष धनराशि की मांग की गई है, इन पत्रों पर परिवादी-1 व 2 की ओर से की गई आपत्ति कागज सं.-3/53 व 3/54 हैं, कागज सं.-3/55 व 3/56 द्वारा परिवादीगण के आवंटन निरस्‍त किये जाने विषयक पत्र हैं।
  9. परिवादीगण की ओर से संयुक्‍त साक्ष्‍य शपथपत्र कागज सं.-17/1 लगायत 17/7 दाखिल हुआ।
  10. विपक्षीगण की ओर से न तो कोई उपस्थित हुआ और न ही कोई साक्ष्‍य दाखिल हुआ।
  11. हमने परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
  12. पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों से इस बिन्‍दु पर कोई विवाद नहीं है कि विपक्षीगण की आवासीय योजना के अन्‍तर्गत आवास आवंटन के लिए दोनों परिवादीगण ने वर्ष 1982 में क्रमश: दो-दो हजार रूपये विपक्षीगण के कोष में जमा कराये थे। दिनांक 05-8-1991 को हुए ड्रा में परिवादीगण के नाम उनकी सहमति से ड्रा में शामिल किये गये, परिवादीगण ने उक्‍त ड्रा में भाग भी लिया। परिवादीगण को दिनांक 05-8-1991 को संपन्‍न हुए ड्रा में आवास भी आवंटित हुए। विवाद इस बात का है कि परिवादीगण के अनुसार इस ड्रा में परिवादनी-1 को आवास सं.-बीएल-74 तथा परिवादनी-2 को आवास सं.-बीएल-74/1 आवंटित हुए थे। जबकि विपक्षीगण के अनुसार आवास सं.-74 एवं 74/1 परिवादीगण को आवंटित नहीं हुए बल्कि उन्‍हें क्रमश: आवास सं.-बीएल-86 तथा बीएल-108 आवंटित हुए थे। विपक्षीगण के प्रतिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण ने मांग पत्र के अनुरूप ब्‍याज सहित मांगी गई क्रमश: दस-दस हजार रूपये की धनराशि चूंकि प्राधिकरण के कोष में जमा नहीं की, अत: पृथक-पृथक पत्र दिनांकित 19-9-1994 द्वारा उनके आवंटन विपक्षीगण ने निरस्‍त कर दिये। अब देखना यह है कि क्‍या दिनांक 05-8-1991 को संपन्‍न हुए ड्रा में परिवादनी-1 को आवास सं.-74 एवं परिवादनी-2 को आवास सं.-74/1 आवंटित हुए थे और क्‍या अभिलेखों  में हेराफेरी कर परिवादनी-1 को आवास सं.-74 के स्‍थान पर आवास सं.-बीएल-86 तथा परिवादनी-2 को आवास सं.-74/1 के स्‍थान पर आवास सं.-बीएल-108 आवंटित होना गलत तरीके से दर्शाया गया और परिवादीगण की और से इस हेराफेरी के संदर्भ में दिये गये शिकायती पत्र दिनांकित 16-8-1991 एवं तद्क्रम में विपक्षीगण को प्रेषित अनुस्‍मारकों पर कोई कार्यवाही नहीं करके विधि विरूद्ध तरीके से उनके आवंटन विपक्षीगण ने निरस्‍त कर दिये थे।
  13. इस बिन्‍दु पर पक्षकारों के मध्‍य कोई विवाद नहीं है कि परिवादनी-1 व 2 को दिनांक 05-8-1991 को संपन्‍न हुए ड्रा में आवास आवंटित हुए थे। पत्र दिनांकित 03-8-1991 जो पत्रावली का कागज सं.-3/30 है, के द्वारा परिवादीगण ने विपक्षी-1 से आग्रह किया था कि दिनांक 05-8-1991 को होने वाले ड्रा में उन्‍हें बराबर-बराबर अथवा ऊपर-नीचे के आवास आवंटित कर दिये जायें। परिवादीगण के अनुसार पत्रावली में अवस्थित शिकायती पत्र दिनांकित 16-8-1991(कागज सं.-3/31 एवं 3/32) के अवलोकन से परिवादीगण के ये कथन पुष्‍ट होते हैं कि उन्‍हें दिनांक 05-8-1991 को संपन्‍न हुए ड्रा में क्रमश: आवास सं.-74 एवं 74/1 आवंटित हुए थे। पत्रावली में अवस्थित पत्र कागज सं.-3/35 एवं 3/35ए से प्रकट है कि परिवादीगण को आवंटित आवास सं.-74 एवं 74/1 के स्‍थान पर आवास सं.-बीएल-86 तथा बीएल-108 आवंटित होना दर्शाने के लिए विपक्षीगण के कार्यालय में हेराफेरी की गई थी। इन पत्रों के अवलोकन से प्रकट है कि यदि ये पत्र दिनांक 12-8-1991 को विपक्षीगण के कार्यालय से भेजे जा चुके थे तो इन्‍हीं पत्रों को पुन: इनके पत्रांक बदलकर दिनांक 26-8-1991 को भेजे जाने का क्‍या औचित्‍य था, यह स्‍पष्‍ट नहीं है। कदाचित परिवादीगण के ये आरोप पुष्‍ट होते हैं कि ये सारी हेराफेरी परिवादीगण के पक्ष में आवंटित आवास सं.-74 एवं 74/1 के स्‍थान पर उन्‍हें आवास सं.-बीएल-86 और बीएल-108 दर्शाने के उद्देश्‍य से की गई थी। एक बात यह भी उल्‍लेखनीय है कि विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र के पैरा-5 में उल्‍लेख किया है कि आवास सं.-74/1 दिनांक12-02-1992 को संपन्‍न हुए ड्रा में श्रीमती नीलम रस्‍तौगी को आवंटित किया गया था। अत: यदि श्रीमती नीलम रस्‍तौगी को आवास सं.-74/1 दिनांक 12-02-1992 को हुए ड्रा में आवंटित  हुआ था और विपक्षीगण के Stand को सही माना जाये तो स्‍पष्‍ट है कि दिनांक          05-8-1991 के ड्रा में यह आवास सं.-74/1 शामिल ही नहीं किया गया था और यदि ऐसा था तो विपक्षीगण को कारण स्‍पष्‍ट करना चाहिए था कि आवास सं.-74/1 दिनांक         05-8-1991 के ड्रा में शामिल क्‍यों नहीं किया गया। विपक्षीगण ने उक्‍त तथ्‍य स्‍पष्‍ट नहीं किया। ये परिस्थितियां इस संभावना को बल प्रदान करती हैं कि परिवादीगण को आवास सं.-74 एवं 74/1 के आवंटन को अभिलेखों में हेराफेरी करके बाद में अपनी सुवि‍धानुसार विपक्षीगण के स्‍तर से बदला गया था।
  14. पत्रावली में अवस्थित अभिलेखों से प्रकट है कि दिनांक 16-8-1991 से निरन्‍तर परिवादीगण अपनी शिकायतों के निराकरण हेतु विपक्षीगण को अनुस्‍मारक-पत्र भेजती रहीं किन्‍तु विपक्षीगण के स्‍तर से उक्‍त शिकायतों की जांच तक नहीं की गई बल्कि वर्ष 1994 में परिवादीगण से ब्‍याज सहित पैसे जमा करने को कहा गया। परिवादीगण द्वारा पत्र के माध्‍यम से यह कहने पर कि उनकी शिकायतों का निराकरण न करके मामले में विलम्‍ब विपक्षीगण के स्‍तर से हुआ है, अतएव परिवादीगण ब्‍याज अदा करने के उत्‍तरदायी नहीं हैं, विपक्षीगण ने पृथक-पृथक पत्र दिनांकित 19-9-1994 द्वारा परिवादीगण को आवंटित होना दर्शाये गये आवास सं.-बीएल-86 एवं बीएल-108 के आवंटन निरस्‍त कर दिये। प्रकटत: उक्‍त निरस्‍तीकरण को सही नहीं ठहराया जा सकता है।
  15. आवास सं.-बीएल-74, बीएल-74/1, बीएल-86 तथा आवास सं.-बीएल-108 अन्‍य लोगों को आवंटित किये जा चुके हैं, ऐसा पत्रावली के अवलोकन से प्रकट है और वे व्‍यक्ति जिन्‍हें ये आवास बाद में आवंटित कर दिये गये हैं, फोरम के समक्ष पक्षकार नहीं हैं। अत: उक्‍त आवास अब परिवादीगण को दिया जाना संभव दिखायी नहीं देता। मामले के तथ्‍यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए हमारे विनम्र अभिमत में परिवादीगण को पुरानी दरों पर उसी योजना अथवा अन्‍य किसी योजना में भवन आवंटन हेतु विपक्षीगण को निदेशित किया जाना न्‍यायोचित दिखायी देता है। यह भी न्‍यायोचित दिखायी देता है कि दिनांक         16-8-1991 के बाद से परिवादीगण से अवशेष धनराशि पर विपक्षीगण ब्‍याज भी वसूल करने के अधिकारी नहीं हैं, क्‍योंकि विलम्‍ब विपक्षीगण के स्‍तर से हुआ है और इसमें परिवादीगण का कोई दोष नहीं है। इसके अतिरिक्‍त परिवादीगण को अंकन-2500/-रूपये परिवाद व्‍यय भी विपक्षीगण से दिलाया जाना न्‍यायोचित होगा। तद्नुसार परिवाद स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।    

परिवादगण का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे इस आदेश से दो माह के अंदर परिवादनी-1 को आवास सं.-बीएल-86 एवं परिवादनी-2 को आवास सं.-बीएल-108 के स्‍थान पर उसी योजना में अथवा अन्‍य योजना में पुरानी कीमत के आधार पर भवन आवंटित करके उनका कब्‍जा परिवादीगण को देवें। विपक्षीगण दिनांक 16-8-1991 के बाद की अवधि हेतु परिवादीगण से अवशेष किस्‍तों पर किसी प्रकार का ब्‍याज भी वसूल न करें। इसके अतिरिक्‍त विपक्षीगण अंकन-2500/-रूपये परिवाद व्‍यय भी परिवादीगण को अदा करें।

 

                                             (सत्‍यवीर सिंह)                                                        (पवन कुमार जैन)

  •                                     सदस्‍य                                                                                       अध्‍यक्ष

आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्‍ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्‍यायालय में उद्घोषित किया गया।

 

                                          (सत्‍यवीर सिंह)                                                              (पवन कुमार जैन)

  •                                     सदस्‍य                                                                                        अध्‍यक्ष

दिनांक: 08-03-2018

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