ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम से परिवादिनी ने अनुरोध किया है विपक्षी को आदेशित किया जाऐ कि वह परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित मकान का बयनामा परिवादिनी के पक्ष में निष्पादित करे। मानसिक कष्ट की मद में 10,000/- रूपया तथा परिवाद व्यय की मद में 5000/- रूपया परिवादिनी ने अतिरिक्त मांगा है।
- परिवाद कथन संक्षेप में इस प्रकार हैं कि रामगंगा विहार, फेस-1, मुरादाबाद स्थित मकान एच0आई0जी0 सं0- ए-39 परिवादिनी को आवंटित हुआ था। परिवादिनी ने समस्त धनराशि का भुगतान विपक्षी को कर दिया और विपक्षी ने मकान का भौतिक कब्जा परिवादिनी को दे दिया। विपक्षी की ओर से परिवादिनी से अवैध धन की मांग किऐ जाने के कारण परिवादिनी ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) मुरादाबाद के न्यायालय में मूल वाद सं0-189/2002 दायर किया जो दिनांक 28/3/2007 को परिवादिनी के पक्ष में निर्णीत हुआ। एम0डी0ए0 ने इस निर्णय के विरूद्ध जिला जज, मुरादाबाद के समक्ष अपील सं0-52/2007 योजित की। उक्त अपील खारिज हुई और सिविल जज (सीनियर डिवीजन) मुरादाबाद का निर्णय पुष्ट हुआ। परिवादिनी ने अग्रेत्तर कथन किया कि उसकी जानकारी के अनुसार एम0डी0ए0 ने मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के समक्ष सेकेण्ड अपील दायर नहीं की है। विपक्षी ने अपने पत्र दिनांक 21/7/2009 के माध्यम से 7,22,775/- रूपये की परिवादिनी से अवैध मांग की। परिवादिनी ने विपक्षी से बार-बार अनुरोध किया कि उसकी ओर कोई पैसा बकाया नहीं है और उसके पक्ष में बयनामा निष्पादित किया जाऐ, किन्तु विपक्षी सुनवा नहीं हुऐ। परिवादिनी द्वारा विपक्षी को भेजे गऐ नोटिस के उत्तर में परिवादिनी को बताया गया कि मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष सेकेण्ड अपील दायर कर दी गई है जो लम्बित है। परिवादिनी ने अपने पत्र दिनांक 26/3/2012 के माध्यम से बयनामा निष्पादित करने का विपक्षी से पुन: अनुरोध किया, किन्तु न तो विपक्षी ने बयनामा निष्पादित किया और न ही अभिकथित रूप से मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के समक्ष योजित किया जाना बताई गई अपील का कोई विवरण परिवादिनी को उपलब्ध कराया। परिवादिनी के अनुसार विपक्षी के कृत्य सेवा में कमी के अन्तर्गत आते हैं उसने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष विपक्षी से दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवाद के साथ परिवादिनी ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) मुरादाबाद द्वारा मूल वाद सं0-189/2002 में पारित निर्णय, अपर जिला जज, कोर्ट नं0-4, मुरादाबाद द्वारा अपील में पारित निर्णय दिनांकित 15/9/2009, एम0डी0ए0 की ओर से 7,22,775/- रूपया जमा करने हेतु परिवादिनी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 21/7/2009, एम0डी0ए0 के वाइस चैयरमैन को बैनामा निष्पादित करने हेतु भेजे गऐ पत्र दिनांक 05/12/2009, पत्र दिनांक 29/1/2012, पत्र दिनांक 26/3/2012, विपक्षी की ओर से परिवादिनी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 29/3/2012, एम0डी0ए0 के जनसूचना अधिाकरी से आर0टी0आई0 के अधीन सूचना मांगे जाने विषयक परिवादिनी के पत्र दिनांक 16/6/2012, 10/- रूपये के पोस्टल आर्डर तथा आर0टी0आई0 का प्रार्थना पत्र भेजे जाने की डाकखाने की रसीद की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/3 लगायत 3/23 हैं।
- विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-11/1 लगायत 11/5 दाखिल हुआ। प्रतिवाद पत्र में परिवादिनी को परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित मकान आवंटित होना तथा इस आवास के सन्दर्भ में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) मुरादाबाद के न्यायालय द्वारा मूल वाद सं0-189/2002 में निर्णय पारित होना और उसके विरूद्ध सिविल अपील सं0-52/2007 में निर्णय पारित होना तो स्वीकार किया गया है, किन्तु शेष कथनों से इन्कार किया गया है। विपक्षी की ओर से अगेत्तर कथन किया गया कि परिवादिनी से अवैध धन की कोई मांग नहीं की गई उससे विधिवत् धनराशि की मांग की गई थी जो उसने जमा नहीं की। अग्रेत्तर कथन किया गया कि अपर जनपद न्यायाधीश कोर्ट नं0-4, मुरादाबाद द्वारा अपील सं0-52/2007 में पारित निर्णय के विरूद्ध उत्तरदाता विपक्षी ने मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के समक्ष सेकेण्ड अपील सं0- 1278/2009 योजित कर दी है जो विचाराधीन है। उक्त अपील में परिवादिनी जानबूझकर उपस्थित नहीं हो रही है। मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष अपील के विचाराधीन रहते परिवादिनी के पक्ष में प्रश्नगत भवन का बयनामा निष्पादिन करना सम्भव नहीं है। अतिरिक्त यह भी कथन किया गया कि विवाद प्रश्नगत भवन की कीमत से जुड़ा है जो पालिसी मेटर है इसके सन्दर्भ में जिला फोरम को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। उपरोक्त कथनों के आधार पर और यह कहते हुऐ कि विपक्षी ने सेवा प्रदान करने में कोई कमी अथवा लापरवाही नहीं की है, परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवादिनी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-12/1 लगायत 12/3 दाखिल किया। विपक्षी की ओर से एम0डी0ए0 के संयुक्त सचिव श्री कमलेश सचान ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र दाखिल किया जो पत्रावली का कागज सं0-13/1 लगायत 13/4 है। परिवादिनी ने रिज्वाइंडर शपथ पत्र कागज सं0- 14/1 लगायत 14/3 प्रस्तुत किया।
- परिवादिनी ने अपनी लिखित बहस कागज सं0-16 दाखिल की। विपक्षी की ओर से लिखित बहस दाखिल नहीं हुई।
- हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित आवास की पूरी धनराशि यधपि परिवादिनी द्वारा एम0डी0ए0 को अदा कर दी गई थी। इसके बावजूद पत्र दिनांकित 21/7/2009 (पत्रावली का कागज सं0-3/16) के माध्यम से 7,22,775/- रूपये की परिवादिनी से मांग की गई जो विधि विरूद्ध थी। विपक्षी की मांग के अनुरूप चॅूंकि परिवादिनी ने उक्त धनराशि एम0डी0ए0 में जमा नहीं की अत: उसके पक्ष में आवंटित उक्त भवन का बैनामा एम0डी0ए0 ने निष्पादित नहीं किया। परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि इसी विवाद के सम्बन्ध में उसने सिविल जज, (सीनियर डिवीजन) मुरादाबाद के न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया था जो परिवादिनी के पक्ष में निर्णीत हुआ। एम0डी0ए0 ने उक्त निर्णय के विरूद्ध जिला जज के यहॉं अपील की वह अपील भी खारिज हो चुकी है। इसके बावजूद भी विपक्षी ने परिवादिनी के पक्ष में बैनामा निष्पादित नहीं किया। परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार विपक्षी के कृत्य सेवा में कमी हैं। परिवादिनी को परिवाद में अनुरोधित अनुतोष विपक्षी से दिलाया जाना चाहिए।
- प्रत्युत्तर में एम0डी0ए0 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादिनी से अवैध धन की कोई मांग नहीं की गई, पत्र दिनांकित 21/7/2009 द्वारा परिवादिनी से जिस धनराशि की मांग की गई थी वह विधिवत् थी और सही थी। विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया कि अपर जिला जज कोर्ट नं0-4, मुरादाबाद द्वारा सिविल अपील सं0-52/2007 में पारित निर्णय दिनांकित 15/9/2009 के विरूद्ध मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के समक्ष एम0डी0ए0 ने सेकेण्ड अपील सं0-1278/2009 योजित कर दी है जो विचाराधीन है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष अपील के विचाराधीन रहते परिवादिनी को फोरम से कोई अनुतोष नहीं दिलाया जा सकता। उनका यह भी तर्क है कि मामला मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन होने के कारण इस फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं रहा है।
- (1991) । सी0पी0आर0 पृष्ठ-1, ओसवाल फाइन आर्टस बनाम एच0एम0टी0 मद्रस के मामले में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग,नई दिल्ली ने यह अवधारित किया है कि:-
“ When the matter was, thus, sub-Judice before the ordinary Civil Courts of the land, the Commissiom cannot and will not entertain any claim for compensation in respect of the Identical subject matter.” 11 - (1991) 1 सी0पी0आर0 पृष्ठ-52, स्पेशल मशीन्स टूलस बनाम पंजाब नेशनल बैंक के मामले में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली ने अवधारित किया है कि :- “ Where the subject matter of the complaint was sub-judice before the ordinary Civil Court a concurrent adjudication in respect of the same will not be conducted by the commission under the Act. The objection was not really on the ground of lack of jurisdiction but is one based on considerations of propriety and prudence keeping in view the necessity for avoidance of conflicting decisions and multiplicity of proceedings.” 12 - परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित आवास के सापेक्ष भवन के मूल्य की अदायगी का विवाद चॅूंकि मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष सेकेण्ड अपील में विचाराधीन है अत: उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं के दृष्टिगत वर्तमान परिवाद फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है। हमारे अभिमत में यह परिवाद उक्त आधार पर खारिज होने योग्य है। आदेश परिवाद खारिज किया जाता है। सदस्य अध्यक्ष - जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
11.12.2015 11.12.2015 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 11.12.2015 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। सदस्य अध्यक्ष - जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
11.12.2015 11.12.2015 | |