ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने अनुरोध किया है कि विपक्षी को आदेशित किया जाऐ कि वह परिवादी द्वारा देय अवशेष धनराशि की नियमानुसार गणना करके उसे सुविधाजनक किशतों में जमा करने का परिवादी को अवसर प्रदान करें और आवश्यक औपचारिकताऐं पूरी कर विवादित भवन का स्वामित्व दस्तावेज परिवादी के पक्ष में निष्पादित करें। क्षतिपूर्ति की मद में 40,000/- रूपया और परिवाद व्यय की मांग अतिरिक्त की गयी है।
- परिवाद कथनों के अनुसार परिवादी के आवेदन पर विपक्षी ने परिवादी को रामगंगा विहार फेस-2, मुरादाबाद में भवन सं0-4, एच0आई0जी0 आवंटित किया जिसकी कीमत 6,46,000/- (छ: लाख छियालीस हजार) थी। आवंटित भवन के मूल्य का भुगतान किश्तों में किया जाना था। एक शर्त यह भी थी कि यदि परिवादी ने किश्तों की अदायगी में विलम्ब किया तो विपक्षी परिवादी से ब्याज लेगा। दिनांक 10/3/1997 को विपक्षी द्वारा परिवादी को आवंटित भवन का कब्जा दे दिया गया। कब्जा लेने के उपरान्त काफी पैसा लगाकर परिवादी ने उसे रिहायश योग्य बनाया। परिवादी ने भवन का मूल्य विपक्षी को किश्तों में किया, किन्तु कुछ किश्तों के भुगतान में विलम्ब हो गया। परिवादी को विपक्षी का एक पत्र दिनांकित 05/4/2006 प्राप्त हुआ जिसमें उल्लेख किया गया कि परिवादी द्वारा जमा की गयी राशि को समायोजित करते हुऐ परिवादी 16,57,833/- रूपया (सोलह लाख सत्तावन हजार आठ सौ तैंतीस) एम0डी0ए0 के कोष में दिनांक 20/4/2006 तक जमा कर दे अन्यथा परिवादी को आवंटित भवन किसी अन्य को आवंटित कर दिया जाऐगा। उक्त पत्र प्राप्त होने पर परिवादी ने अपने एक प्रतिनिधि को विपक्षी के कार्यालय में भेजकर मांगी जा रही अवशेष धनराशि का विवरण उपलब्ध कराने का अनुरोध किया, किन्तु विपक्षी ने विवरण देने से इन्कार कर दिया। परिवादी के अनुसार विपक्षी का उक्त कृत्य मनमाना है, भवन परिवादी के प्रयोग में है आवंटन निरस्त करने का विपक्षी को कोई अधिकार नहीं है। वह अवशेष धनराशि ब्याज सहित परिवादी से प्राप्त कर सकता है। परिवादी का कथन है कि विपक्षी के कृत्य सेवा में कमी की श्रेणी में आते हैं। विपक्षी कोई सुनवाई करने को तैयार नहीं है अत: परिवादी को यह परिवाद योजित करने की आवश्यकता हुई। परिवादी ने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐे जाने की प्रार्थना की।
- विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-15/1 लगायत 15/4 दाखिल किया गया। प्रतिवाद पत्र में परिवादी को परिवाद में उल्लिखित भवन (जिसे आगे सुविधा की दृष्टि से विवादित भवन कहा गया है) आवंटित किया जाना और दिनांक 10/3/1997 को इस भवन का कब्जा परिवादी को दिया जाना तो स्वीकार किया गया है किन्तु परिवाद में विपक्षी पर लगाऐ गऐ आरोपों से इन्कार किया गया है। अतिरिक्त कथनों में कहा गया है कि इस फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी को विवादित भवन दिनांक 21/11/1996 को आवंटित किया गया था जिसका मूल्य परिवादी द्वारा ब्याज रहित 3 मासिक किश्तों में किया जाना था। परिवादी को अवगत करा दिया गया था कि निर्धारित अवधि में भुगतान न किऐ जाने की दशा में परिवादी को 21 प्रतिशत की दर से ब्याज का भुगतान करना होगा और ब्याज की दर तथा भुगतान की अवधि बढ़ाने अथवा आवंटन निरस्त करने का अधिकार एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष को होगा। भवन का कब्जा दिऐ जाते समय कब्जा पत्र में यह स्पष्ट उल्लेख था कि अवशेष धनराशि परिवादी एक माह में जमा करेगा, किन्तु परिवादी ने एक माह में अवशेष धनराशि जमा नहीं की। विवादित भवन की अवशेष धनराशि जमा न करने के कारण एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष ने दिनांक 15 फरवरी, 2005 को विवादित भवन का परिवादी के पक्ष में आवंटन निरस्त कर दिया और परिवादी द्वारा जमा धनराशि जब्त कर ली। परिवादी की ओर से आवंटन पुर्नजीवित करने हेतु दिनांक 31/3/2006 को एक प्रार्थना पत्र विपक्षी के कार्यालय में प्रस्तुत किया गया था जिसके प्रत्युत्तर में परिवादी को अवगत कराया गया कि विवादित भवन का तत्समय मूल्य 20,88,500/- रूपया (बीस लास अठ्ठासी हजार पॉंच सौ) है जिसमें परिवादी द्वारा जमा धनराशि का समायोजन करते हुऐ अवशेष 16,57,833/- रूपया दिनांक 20/4/2006 तक परिवादी प्राधिकरण के कोष में जमा कराऐ तदोपरान्त ही भवन को पुर्नजीवित किया जाना सम्भव होगा, किन्तु परिवादी ने नियत तिथि तक उक्त धनराशि जमा नहीं की। विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र में इस आरोप से भी इन्कार किया है कि परिवादी अथवा उसका कोई प्रतिनिधि भुगतान का विवरण मांगने हेतु विपक्षी के कार्यालय में आया था और उन्हें विवरण देने से इन्कार किया गया था। अन्त में यह अभिकथन करते हुऐ कि परिवादी ने स्वयं आवंटन की शर्तों का उल्लंघन किया और अवसर दिऐ जाने के बावजूद अवशेष धनराशि जमा नहीं की, ऐसी दशा में विवादित भवन का आवंटन निरस्त किया गया और ऐसा करके विपक्षी ने कोई त्रुटि नहीं की परिवाद को विशेष व्यय सहित खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गई।
- परिवादी ने सूची कागज सं0-4/1 के माध्यम से विवादित भवन का कब्जा दिऐ जाने विषयक पत्र दिनांकित 10/3/1997 एवं आवंटन निरस्त होने के उपरान्त आवंटन को पुर्नजीवित करने हेतु दिऐ गऐ परिवादी के आवेदन के उत्तर में एम0डी0ए0 के उप सचिव द्वारा परिवादी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 5 अप्रैल, 2006 की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया है। विपक्षी की ओर से सूची कागज सं0-17/1 द्वारा विवादित भवन के आवंटन आदेश दिनांकित 21/11/1996, परिवादी द्वारा विपक्षी को लिखे गऐ पत्र दिनांक 27/12/2005 एम0डी0ए0 के उप सचिव द्वारा परिवादी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 19/1/2005, एम0डी0ए0 के उप सचिव द्वारा परिवादी को आवंटन निरस्त किऐ जाने की सूचना का पत्र दिनांकित 17/2/2005, परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि के स्टेटमेन्ट की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया, यह प्रलेख पत्रावली के कागज सं0- 17/2 लगायत 17/7 हैं।
- परिवादी की ओर से साक्ष्य में उसके पैरोकार असलम खान ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0- 21/1 लगायत 21/4 दाखिल किया। विपक्षी की ओर से साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-23/1 लगायत 23/4 प्रस्तुत किया जिसके साथ अवशेष धनराशि जमा किऐ जाने की असमर्थता विषयक परिवादी के पत्र तथा परिवादी द्वारा जमा धनराशि के स्टेटमेन्ट और विवादित भवन के आवंटन आदेश की फोटो प्रतियों को संलग्नक के रूप में दाखिल किया गया है, यह प्रपत्र कागज सं0-23/5 लगायत 23/8 हैं। परिवादी के पैरोकार मौ0 असलम खान ने रिज्वाइंडर शपथ पत्र कागज सं0-26/1 लगायत 26/2 दाखिल किया।
- इस परिवाद के लम्बित रहने के दौरान परिवादी ने दिनांक 25/10/2013 को शपथ पत्र से समर्थित प्रार्थना पत्र कागज सं0-40 इस फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया जिसमें यह अवगत कराते हुऐ कि परिवादी की अनुपस्थिति में विवादित भवन पर विपक्षी ने अपना ताला लगा दिया है, विपक्षी के ताले को हटवाने और फोरम के आदेश की अवमानना हेतु विपक्षी के अधिकारियों को दण्डित किऐ जाने का अनुरोध किया गया जिसके जबाब में एम0डी0ए0 की ओर से लिखित आपत्तियां कागज सं0-43/1 लगायत 43/2 दाखिल की गयी जिसमें कहा गया कि फोरम द्वारा दिनांक 20/6/2006 को पारित एकपक्षीय अन्तरिम निषेधज्ञा आदेश उपभोक्ता संरक्षण रेगूलेशन, 2005 के रेगूलेशन सं0-17 के अनुसार 45 दिन बाद स्वत: समाप्त हो गया था क्योंकि इस अन्तरिम आदेश के विरूद्ध विपक्षी की आपत्तियां सुनकर 45 दिन में निपटाई नहीं गयी थी ऐसी दशा में विपक्षी ने विधि विरूद्ध कोई कार्य नहीं किया। विवादित भवन को सील किऐ जाने विषयक एम0डी0ए0 के आदेश दिनांकित 13/6/2013 की प्रति 43/3 भी आपत्तियों के साथ दाखिल की गयी।
- हमने दिनांक 31/3/2005 को निर्देशित किया था कि परिवादी के उक्त प्रार्थना पत्र कागज सं0-40 का निस्तारण इस परिवाद के अन्तिम निर्णय के समय किया जाऐगा अत: प्रार्थना पत्र 40 का निस्तारण इस निर्णय में आगे किया जा रहा है।
- परिवाद में बहस हेतु 15/5/2015 की तिथि निर्धारित थी उस तारीख को परिवादी की ओर से बहस हेतु कोई उपस्थित नहीं हुऐ। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित हुऐ। हमने विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी और पत्रावली का अवलोकन किया।
- परिवादी को आवंटित भवन के आवंटन आदेश की फोटो प्रति पत्रावली का कागज सं0-17/2 है। यह आवटन आदेश दिनांक 21/11/1996 का है जिसमें उल्लेख है कि परिवादी द्वारा आवेदन के समय जमा की गयी पंजीकरण राशि को समायोजित करते हुऐ भवन के मूल्य की अवशेष राशि उसे 1,07,667/- रूपये मासिक की दर से 3 किशतों में प्राधिकरण कार्यालय में जमा करनी होगी। प्रथम किश्त दिसम्बर, 1996 में देय थी। परिवादी ने परिवाद के पैरा सं0-6 में स्वयं यह स्वीकार किया है कि किश्तों के भुगतान में उससे विलम्ब हुआ है। पत्रवली में अवस्थित उप सचिव एम0डी0ए0 के पत्र दिनांकित 19/1/2005 (कागज सं0-17/4) के अवलोकन से प्रकट है कि अवशेष धनराशि जमा करने हेतु परिवादी को वर्ष, 2004 तक निरन्तर पत्र भेजे गऐ किन्तु उसने अवशेष धनराशि जमा नहीं की। बावजूद इसके परिवादी को ब्याज सहित अवशेष धनराशि जमा करने हेतु दिनांक 31/1/2005 तक का समय दे दिया गया। परिवादी ने 31/1/2005 तक भी अवशेष धनराशि जमा नहीं की तब एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष के आदेश दिनांक 15/2/2005 द्वारा परिवादी का आवंटन आदेश निरस्त कर दिया गया और इसकी सूचना परिवादी को पत्र दिनांकित 17/2/2005 (कागज सं0-17/5) द्वारा भेज दी गयी। परिवादी को कब्जा 10/3/2007 को इस शर्त के साथ दिया गया था कि एक माह में वह बकाया धनराशि प्राधिकरण के कोष में जमा करेगा जैसा कि पत्रावली में अवस्थित पत्र कागज सं0-4/2 से प्रकट है। परिवादी ने अनेक अवसर दिऐ जाने के बावजूद अवशेष धनराशि जमा नहीं की। वर्ष 2005 में परिवादी ने अवशेष धनराशि जमा करने में असमर्थता व्यक्त करते हुऐ अपनी जमा राशि के रिफन्ड की भी प्रार्थना उपाध्यक्ष एम0डी0ए0 से की थी जैसा कि कागज सं0-17/3 से प्रकट है। पत्रावली में अवस्थित उप सचिव एम0डी0ए0 के पत्र दिनांकित 5 अप्रैल, 2006 (कागज सं0- 4/3) से प्रकट है कि भवन आवंटन निरस्तीकरण के आदेश को पुर्नजीवित करने हेतु परिवादी ने एम0डी0ए0 को पत्र लिखा था जिस पर तत्समय आगणित अवशेष धनराशि जमा करने का परिवादी को 20 अप्रैल, 2006 तक का अवसर दिया गया। पत्रावली पर ऐसा कोई प्रलेख उपलब्ध नहीं है जिससे प्रकट हो कि परिवादी ने अवशेष धनराशि जमा करने हेतु प्रदत्त अवसरों का लाभ उठाने का कोई सार्थक प्रयास किया हो। इसके विपरीत दिनांक 29/5/2006 को यह परिवाद योजित कर उसने विपक्षी के पत्र दिनांकित 5 अप्रैल, 2006 (कागज सं0-4/3) के माध्यम से मांगी जा रही धनराशि की गणना पर आपत्ति करते हुऐ उसका विवरण उपलब्ध कराने और धनराशि किशतों में जमा करने की अनुमति दिऐ जाने की मांग कर डाली। पत्रावली के अवलोकन से प्रकट है कि दिनांक 10/3/2013 को एम0डी0ए0 ने इस भवन पर अपना ताला लगाकर उसे बाहर से सील कर दिया क्योंकि परिवादी ने अवशेष धनराशि अवसर दिेऐ जाने के बावजूद एम0डी0ए0 के कोष में जमा नहीं की।
- विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि आवंटन आदेश कागज सं0-17/2 में उल्लिखित शर्तों के अनुरूप परिवादी ने अवशेष किश्तें जमा नहीं की। इस प्रकार उसने अदायगी की शर्तो का उल्लंघन किया। एम0डी0ए0 के विद्वान अधिवक्ता ने पत्रावली में अवस्थित पत्र कागज सं0-17/4 को भी इंगित किया और कहा कि वर्ष, 2004 तक निरन्तर परिवादी को अवशेष धनराशि ब्याज सहित जमा करने के अवसर दिऐ गऐ यहॉं तक कि आवंटन निरस्त होने के बाद निरस्तीकरण के आदेश को पुर्नजीवित किऐ जाने हेतु पुन: अवशेष धनराशि जमा करने का परिवादी को पत्र कागज सं0-4/3 द्वारा अवसर दिया गया किन्तु परिवादी ने अवशेष धनराशि जमा नहीं की।
- यधपि परिवादी की ओर से बहस हेतु कोई उपस्थित नहीं हुऐ किन्तु हमने परिवादी की ओर से दाखिल प्रपत्रों, परिवादी के पैरोकार असलम खान के साक्ष्य शपथ पत्र एवं रिज्वाइंडर शपथ पत्र आदि का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया। इन प्रपत्रों में परिवादी के पैरोकर द्वारा मुख्य रूप से 2 आपत्तियां उठायी गई। प्रथमत: तो उसकी आपत्ति यह है कि एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष को आवंटन निरस्त करने का अधिकार नहीं है और दूसरी मुख्य आपत्ति यह है कि एम0डी0ए0 21 प्रतिशत वार्षिक की दर से अवशेष राशि पर ब्याज नहीं ले सकता। यह दोनों आपत्तियां पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों से निरर्थक और आधारहीन पायी गयी हैं। भवन के आवंटन आदेश कागज सं0-17/2 की शर्त सं0-3 में स्पष्ट उल्लेख है कि निर्दिष्ट अवधि में भुगतान न किऐ जाने पर अगले 3 माह तक 21 प्रतिशत की दर से ब्याज लगेगा और उसके उपरान्त ब्याज की दर बढ़ाने का एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष को अधिकार होगा। शर्त सं0-3 में यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि भवन के आवंटन को निरस्त करने का अधिकार एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष के पास सुरक्षित है। परिवादी से निरन्तर अवशेष धनराशि की मांग की गयी उसके द्वारा अवशेष धनराशि जमा नहीं की गयी तब एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष के आदेश दिनांक 15-2-2005 द्वारा परिवादी को आवंटित भवन का आवंटन निरस्त किया गया ऐसा करके एम0डी0ए0 द्वारा किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं की गयी। आवंटन निरस्त किऐ जाने का आदेश और पत्र दिनांकित 05/4/2006 द्वारा अवशेष धनराशि 16,57,833/- रूपया की मांग परिवादी से किया जाना न तो मनमाना है और न ही इसे दुर्भावनापूर्ण कहा जा सकता है। अवशेष धनराशि निर्दिष्ट अवधि में जमा न करने के उपरान्त अवशेष धनराशि को किश्तों में अदा करने की अनुमति दिया जाना अथवा उसे अस्वीकार किया जाना नितान्त विपक्षी के क्षेत्राधिकार एवं विवेकाधीन है जिसके लिए फोरम से कोई दिशा निर्देश प्रसारित किऐ जाने का कोई औचित्य हम नहीं पाते।
- हमने दिनांक 31/3/2015 को आदेश पत्र में यह उल्लेख किया था कि परिवादी के प्रार्थना पत्र कागज सं0-40 का निस्तारण हम मामले के अन्तिम निर्णय के समय करेंगे अत: प्रार्थना पत्र कागज सं0-40 का निस्तारण भी हमारे द्वारा किया जाना वांछित है। इस प्रार्थना पत्र के विरूद्ध विपक्षी की आपत्तियां कागज सं0-43/1 लगायत 43/3 पत्रावली पर उपलब्ध हैं।
- प्रार्थना पत्र कागज सं0-40 के माध्यम से परिवादी की ओर से यह अनुरोध किया गया है कि परिवादी की अनुपस्थिति में प्रश्नगत भवन पर विपक्षी द्वारा लगाये गऐ ताले को हटवाया जाऐ और परिवादी को प्रश्नगत भवन से बेदखल करने से निषिध करने विषयक फोरम के आदेश दिनांक 20/6/2006 का उल्लंधन करने की बजह से विपक्षी के अधिकारियों को दण्डित किया जाऐ। अपनी आपत्तियों में विपक्षी ने अन्य के अतिरिक्त उपभोक्ता संरक्षण रेगूलेशन, 2005 के रेगूलेशन सं0-17 का अबलम्ब लिया और कहा कि दिनांक 20/6/2006 को पारित अन्तरिम निषेधाज्ञा आदेश चॅूंकि फोरम द्वारा 45 दिन के अन्दर विपक्षी के आक्षेप सुनकर निपटाया नहीं गया था अत: उक्त निषेधाज्ञा आदेश 45 दिन बाद स्वत: समाप्त हो गया था और इस कारण दिनांक 13/6/2013 को भवन पर ताला लगाकर एम0डी0ए0 के किसी अधिकारी/ कर्मचारी ने फोरम के आदेश की अवमानना नहीं की।
- परिवादी के प्रार्थना पत्र कागज सं0-40 के सन्दर्भ में हम ए0आई0आर0 1976 इलाहाबाद पृष्ठ-264, नगर महापालिका लखनऊ बनाम वेदप्रकाश के मामले में मा0 इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दी गयी विधि व्यवस्था का उल्लेख करना आवश्यक समझते हैं। इस निर्णयज विधि में मा0 इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि वाद खारिज हो जाने के बाद उसके पुर्नस्थपन पर अन्तरिम निषेधाज्ञा के आदेश स्वत: पुर्नजीवित नहीं होते। वर्तमान मामले में यह निर्णय विधि पूर्णतया लागू होती है। यह परिवाद परिवादी की अनुपस्थित में दिनांक 29/4/2011 को खारिज हो गया था। दिनांक 6/7/2011 को यह परिवाद पुर्न स्थापित हुआ। परिवाद खारिज होने के साथ ही अन्तरिम निषेधाज्ञा आदेश दिनांक 20-6-2006 समाप्त हो गया। परिवाद के पुर्नस्थापन पर यह निषेधज्ञा आदेश दिनांक 20/6/2006 स्वत: पुर्नजीवित नहीं हुआ। परिवादी ने इसे पुर्नजीवित नहीं कराया। नगर महापालिका लखनऊ की उपरोक्त निर्णयज विधि के अनुसार प्रश्नगत भवन पर ताला लगाये जाने की तिथि अर्थात् दिनांक 13/6/2013 को चॅूंकि अस्थायी निषेधाज्ञा आदेश दिनांक 20/6/2006 अस्तित्व में था ही नहीं अत: उसकी अवमानना का कोई प्रश्न नहीं था। हम इस सुविचारित मत के हैं कि परिवादी के प्रार्थना पत्र कागज सं0-40 में कोई बल नहीं है और यह अस्वीकृत होने योग्य है जिसे हम अस्वीकृत करते हैं।
15- उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि परिवाद खारिज होने योग्य है। परिवाद खारिज किया जाता है। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सदस्य सदस्य अध्यक्ष जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद 27.05.2015 27.05.2015 27.05.2015 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 27.05.2015 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सदस्य सदस्य अध्यक्ष जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद 27.05.2015 27.05.2015 27.05.201 | |