Uttar Pradesh

Muradabad-II

CC/101/2012

Hazi. Liyakat Ali - Complainant(s)

Versus

M.D.A - Opp.Party(s)

14 Dec 2017

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum -II
Moradabad
 
Complaint Case No. CC/101/2012
 
1. Hazi. Liyakat Ali
R/o Moh. Rohna Kasba, Tehsil & Distt. Rampur
...........Complainant(s)
Versus
1. M.D.A
M.D.A Office Kanth Road Moradabad
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. P.K Jain PRESIDENT
 HON'BLE MR. Satyaveer Singh MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 14 Dec 2017
Final Order / Judgement

          परिवाद प्रस्‍तुतिकरण की तिथि: 18-7-2012  

                                                  निर्णय की तिथि: 14.12.2017

कुल पृष्‍ठ-7(1ता7)

न्यायालय जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद

उपस्थिति

श्री पवन कुमार जैन, अध्‍यक्ष

                      श्री सत्‍यवीर सिंह, सदस्‍य

परिवाद संख्‍या-101/2012  

हाजी लियाकत अली पुत्र स्‍व. श्री मौ. उस्‍मान निवासी मौहल्‍ला-रोहना कस्‍बा व तहसील टांडा, जिला रामपुर।                                 …..परिवादी

बनाम

1-मुरादाबाद विकास प्राधिकरण मुरादाबाद द्वारा संयुक्‍त सचिव/उपाध्‍यक्ष।

2-श्री आर.के. जायसवाल संपत्ति अधिकारी, मुरादाबाद विकास प्राधिकरण मुरादाबाद।                                                                      

                                                   ….......विपक्षीगण

 (श्री पवन कुमार जैन, अध्‍यक्ष द्वारा उद्घोषित)

निर्णय

  1. इस परिवाद के माध्‍यम से परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षीगण को आदेशित किया जाये कि वे भूखण्‍ड सं.-एचआईजी-168 एकता विहार रामपुर तिराहा योजना मुरादाबाद का विक्रय पत्र परिवादी के पक्ष में नियमानुसार निष्‍पादित करें। मानसिक एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति की मद में दो लाख रूपये और 15000/-रूपये परिवाद व्‍यय की मद में अतिरिक्‍त मांगे हैं। 
  2. संक्षेप में  परिवाद कथन  इस  प्रकार हैं परिवादी के पिता मौ. उस्‍मान ने प्रश्‍गनत भूखण्‍ड विपक्षीगण से आवंटित कराया था। आवंटी मौ. उस्‍मान ने आवंटन संबंधी समस्‍त औपचारिकतायें पूर्ण कर दीं, उसने समस्‍त धनराशि भी जमा कर दी थी। दिनांक 06-11-2007 को आवंटी का स्‍वर्गवास हो गया। मरने से पहले उसने प्रश्‍नगत भूखण्‍ड की पंजीकृत वसीयत परिवादी के पक्ष में निष्‍पादित कर दी थी। वसीयत के आधार पर परिवादी इस भूखण्‍ड का एक मात्र स्‍वामी हुआ। दिनांक 16-02-2012 को परिवादी ने वसीयत के आधार पर अपना नाम दर्ज कराने हेतु विपक्षीगण के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत किया, साथ में उसने अपना शपथपत्र और वारिसान प्रमाण पत्र की छायाप्रतियां भी लगायीं। दिनांक 27-3-2012 और 29-3-2012 को परिवादी ने अख़बार में प्रकाशन हेतु अपेक्षित धनराशि और फ्रीहोल्‍ड चार्जेज भी अदा किये। अख़बार में प्रकाशन के बाद किसी भी व्‍यक्ति ने प्रश्‍नगत भूखण्‍ड पर परिवादी का नाम दर्ज किये जाने में कोई आपत्ति प्रस्‍तुत नहीं की। परिवादी ने बयनामा हेतु स्‍टाम्‍प भी विपक्षीगण के निर्देश पर खरीद लिये, इस सब के बावजूद विपक्षीगण ने परिवादी के पक्ष में बयनामा निष्‍पादित नहीं किया और टाल-मटोल करते रहे। परिवादी ने विपक्षीगण को कानूनी नोटिस भी दिलवाया किन्‍तु उसका भी असर नहीं हुआ। परिवादी ने यह कहते हुए कि विपक्षीगण के कृत्‍य सेवा में कमी के द्वयोतक हैं, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाये जाने की प्रार्थना की।
  3. परिवाद के साथ परिवादी द्वारा अख़बार में आपत्तियां आमंत्रित किये जाने हेतु प्रकाशन के लिए जमा की गई धनराशि की रसीद, फ्रीहोल्‍ड चार्जेज जमा करने की रसीद, अख़बार में हुए प्रकाशन, मूल आवंटी मौ. उस्‍मान के वारिसों का वारिसान प्रमाण पत्र, मूल आवंटी द्वारा परिवादी के पक्ष में निष्‍पादित वसीयत, समय-समय पर परिवादी द्वारा विपक्षीगण को बयनामा निष्‍पादन हेतु प्रेषित पत्र, मूल आवंटी के मृत्‍यु प्रमाण पत्र, प्रश्‍नगत भूखण्‍ड के सापेक्ष विपक्षीगण के कार्यालय में समय-समय पर जमा की गई धनराशि की रसीदात की छायाप्रतियों को दाखिल किया गया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-3/6 लगायत 3/28 हैं।
  4. विपक्षीगण की ओर से विपक्षी-1, मुरादाबाद विकास प्राधिकरण(एमडीए) ने अपना प्रतिवाद पत्र कागज सं.-8/1 लगायत 8/5 दाखिल किया, जिसमें यह तो स्‍वीकार किया कि परिवादी के पिता मौ. उस्‍मान के पक्ष में 200 वर्ग मीटर का प्रश्‍गनत भूखण्‍ड एमडीए द्वारा आवंटित किया गया था किन्‍तु शेष परिवाद कथनों से इंकार किया गया। विशेष कथनों में कहा गया कि मूल आवंटी मौ. उस्‍मान द्वारा आवंटन पत्र दिनांकित 30-8-1999 एवं उसके उपरान्‍त प्रेषित पत्रों में वांछित औपचारिकतायें पूरी नहीं की। परिवादी ने फर्जी वसीयत तैयार की है। यह वसीयत मुसलिम कानून के विपरीत है। परिवादी ने किसी सक्षम न्‍यायालय से प्रोबेट प्रमाण पत्र भी हासिल नहीं किया। प्रतिवाद पत्र में अग्रेत्‍तर कथन किया गया कि विपक्षीगण ने भूखण्‍ड पर नाम परिवर्तन से संबंधित प्रक्रिया के संबंध में परिवादी को केवल अवगत कराया था। परिवादी ने स्‍वस्‍तर से निर्णय लेते हुए अनापत्ति हेतु स्‍वयं प्रकाशन कराया और शीघ्रता दिखाते हुए बयनामे हेतु स्‍टाम्‍प खरीद लिये। विपक्षी-2 को गलत पक्षकार बताते हुए और यह कहते हुए कि मूल आवंटी मौ. उस्‍मान के सभी वारिसान को परिवादी ने पक्षकार नहीं बनाया है, परिवाद को सव्‍यय खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
  5. परिवादी ने अपना साक्ष्‍य शपथपत्र कागज सं.-10/1 लगायत 10/8 दाखिल किया, इसके साथ उसने पूर्व में परिवाद के साथ दाखिल प्रपत्रों को बतौर संलग्‍नक पुन: दाखिल किया। ये संलग्‍नक पत्रावली के कागज सं.-10/9 लगायत 10/43 हैं।
  6. विपक्षी-1 की ओर से एमडीए के संयुक्‍त सचिव श्री कमलेश सचान का शपथपत्र कागज सं.-11/1 लगायत 11/5 दाखिल हुआ।
  7. प्रतिउत्‍तर में परिवादी ने प्रतिउत्‍तर शपथपत्र कागज सं.-13/1 लगायत 13/9 दाखिल किया।
  8. परिवादी की ओर से लिखित बहस दाखिल की गई।
  9. विपक्षीगण एमडीए की ओर से लिखित बहस दाखिल नहीं हुई।
  10. हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
  11. पक्षकारों के मध्‍य इस बिन्‍दु पर कोई विवाद नहीं है कि परिवादी के पिता मौ. उस्‍मान के आवेदन पर विपक्षी-1 द्वारा पत्र दिनांकित 30-8-1999 के माध्‍यम से उन्‍हें परिवाद के पैरा-1 में उल्लिखित 200 वर्ग मीटर का भूखण्‍ड आवंटित किया गया था। परिवादी का कथन है कि उसके पिता का स्‍वर्गवास दिनांक 06-11-2007 को हो गया, मरने से पूर्व उन्‍होंने एक पंजीकृत वसीयत निष्‍पादित की थी, जिसमें प्रश्‍गनत भूखण्‍ड की वसीयत उन्‍होंने परिवादी के पक्ष में की। परिवादी के अनुसार परिवादी के पिता अपने जीवनकाल में भूखण्‍ड के सापेक्ष समस्‍त धनराशि जमा कर चुके थे।
  12. परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने परिवाद कथनों, परिवादी के साक्ष्‍य शपथपत्र एवं उसके प्रतिउत्‍तर शपथपत्र की ओर हमारा ध्‍यान आकर्षित करते हुए तर्क दिया कि आवंटित भूखण्‍ड का पूरा मूल्‍य जमा कर दिये जाने तथा अन्‍य अपेक्षित सभी औपचारिकतायें पूरी कर दिये जाने के बावजूद एमडीए ने परिवादी के पक्ष में भूखण्‍ड का बयनामा निष्‍पादित नहीं किया और ऐसा कृत्‍य करके उन्‍होंने सेवा में कमी की। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता ने प्रतिउत्‍तर में कहा कि आवंटी ने आवंटन पत्र दिनांकित 30-8-1999 तथा उसके पश्‍चात एमडीए द्वारा प्रेषित पत्रों में वांछित औपचारिकतायें पूरी नहीं कीं, परिवादी ने वसीयत फर्जी तैयार की, जो मुस्लिम कानून के विरूद्ध है, परिवादी ने सक्षम न्‍यायालय से प्रोबेट नहीं ली, परिवाद में मौ. उस्‍मान के समस्‍त वारिसान को पक्षकार नहीं बनाया गया है तथा परिवादी एमडीए का उपभोक्‍ता नहीं है। उक्‍त तर्कों के आधार पर परिवाद को सव्‍यय खारिज किये जाने की प्रार्थना की गई है।
  13. पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य सामग्री एवं अभिलेखों के तथ्‍यात्‍मक विश्‍लेषण और मूल्‍यांकन के आधार पर हम इस मत के हैं कि विपक्षीगण की ओर से उठायी गईं उपरोक्‍त आपत्तियां निराधार हैं। विपक्षीगण की ओर से यह तो कहा गया कि आवंटी ने आवंटन पत्र दिनांक 30-8-2017 तथा उसके उपरान्‍त आवंटी को प्रेषित पत्रों में जिन औपचारिकताओं को पूरा करने की अपेक्षा आवंटी से की गई थी, उन्‍हें परिवादी पक्ष द्वारा पूरा नहीं किया गया किन्‍तु कौन-सी औपचारिकतायें पूरी होनी रह गई थीं, इसका खुलासा विपक्षीगण नहीं कर पाये। परिवादी ने अपने प्रतिउत्‍तर शपथपत्र कागज सं.-13 के पैरा-5 में यह स्‍पष्‍ट कथन किया है कि आवंटी ने आवंटन पत्र दिनांकित 30-8-1999 का पूर्ण पालन कर दिया था, ऐसी स्थिति में विपक्षीगण से अपेक्षित था कि वे स्‍पष्‍ट रूप से इंगित करते कि कौन-सी औपचारिकतायें पूरी होने से रह गयी हैं किन्‍तु उनके द्वारा उसे स्‍पष्‍ट न किया जाना दर्शाता है कि वास्‍तव में आवंटन पत्र में उल्लिखित सभी औपचारिकतायें परिवादी पक्ष द्वारा पूरी की जा चुकी थीं। आवंटन पत्र के अतिरिक्‍त कौन-सा पत्र आवंटी अथवा परिवादी को विपक्षी एमडीए ने भेजा, उसकी भी कोई नकल पत्रावली में दाखिल नहीं की गई है, ऐसी दशा में यह माने जाने का कारण है कि दिनांक 30-8-1999 के उपरान्‍त आवंटी अथवा परिवादी को विपक्षीगण ने कथित रूप से औपचारिकतायें पूरा करने विषयक कोई पत्र नहीं भेजा।
  14. आवंटी द्वारा परिवादी तथा अपने अन्‍य पुत्रों तथा पुत्रियों के पक्ष में दिनांक 25-6-2007 को जो पंजीकृत वसीयत निष्‍पादित की गई थी, उसकी प्रति परिवादी के साक्ष्‍य शपथपत्र का संलग्‍नक-1 है, इसके द्वारा प्रश्‍नगत भूखण्‍ड की वसीयत आवंटी ने परिवादी के पक्ष में की है, ऐसा इसमें उल्‍लेख है। आवंटी ने अपने सभी पुत्रों एवं पुत्रियों के पक्ष में कुछ न कुछ वसीयत जरूर किया है। एमडीए की ओर से ऐसा कोई कथन नहीं किया गया, ऐसे कौन-से कारण हैं, जिनके आधार पर वे इस वसीयत को फर्जी होना अथवा मुसलिम कानून के विरूद्ध होना अभिकथित कर रहे हैं। श्रीदेवी आदि बनाम जयराजा सेठी आदि (2005)2 एससीसी पृष्‍ठ-784 की निर्णयज विधि में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि वसीयत को धोखे अथवा अनुचित दबाव देकर निष्‍पादित करा लिये जाने संबंधी आरोप जिसके द्वारा लगाये जा रहे हैं, उक्‍त आरोपों को सिद्ध करने का उत्‍तरदायित्‍व उसी व्‍यक्ति का होगा। इस निर्णयज विधि के दृष्टिगत एमडीए का उत्‍तरदायित्‍व था कि वे वसीयत को फर्जी होना सिद्ध करते किन्‍तु वह ऐसा नहीं कर पाये। ऐसी दशा में वसीयत को धोखे से निष्‍पादित करा लेने अथवा उसे मुसलिम कानून के विरूद्ध निष्‍पादित करा लिया जाना प्रमाणित नहीं होता है।
  15. इंडियन सक्‍सेशन एक्‍ट,1925 की धारा-213 में वसीयत का प्रोबेट सक्षम न्‍यायालय से प्राप्‍त करने की व्‍यवस्‍था है किन्‍तु यह व्‍यवस्‍था किसी मुसलमान द्वारा की गई वसीयत के मामले में लागू नहीं होती, ऐसा धारा-213 में प्रावधानित है। धारा-213 की उक्‍त व्‍यवस्‍था के दृष्टिगत प्रश्‍गनत मामले में आवंटी द्वारा की गई वसीयत का प्रोबेट लेने की परिवादी को कोई आवश्‍यकता अथवा बाध्‍यता नहीं है। तत्‍संबंधी विपक्षी एमडीए का तर्क स्‍वीकार किये जाने योग्‍य नहीं है। एमडीए की ओर से एक तर्क यह भी दिया गया कि आवंटी मौ. उस्‍मान के सभी वारिसान को परिवाद में पक्षकार नहीं बनाया गया है, अतएव परिवाद पोषणीय नहीं है। यह तर्क भी विपक्षीगण के लिए सहायक नहीं है। स्‍वीकृत रूप से फोरम के समक्ष परिवाद की कार्यवाहियां समरी प्रकृति की हैं। इन कार्यवाहियों में तकनीकी दृष्टिकोण अपनाकर मामलों को निस्‍तारित करना अपेक्षित नहीं है। एमडीए प्रश्‍गनत वसीयत द्वारा वसीयत की गई संपत्तियों का लाभार्थी नहीं था। वसीयत की गई संपत्ति में अन्‍यथा भी उसका कोई हिस्‍सा नहीं बनता। ऐसी दशा में समस्‍त वारिसान को परिवाद में पक्षकार न बनाये जाने विषयक विपक्षीगण की आपत्ति औचित्‍यहीन दिखायी देती है। परिवादी ने यह परिवाद योजित करने से पूर्व एमडीए के संयुक्‍त सचिव के समक्ष प्रस्‍तुत अपने बन्‍ध पत्र एवं शपथपत्र, जिनकी नकल पत्रावली के कागज सं.-10/17 एवं 10/19 हैं, में यह स्‍पष्‍ट कथन किया है कि यदि वसीयत के आधार पर प्रश्‍गनत भूखण्‍ड का नामान्‍तरण उसके पक्ष में कर दिये जाने पर किसी प्रकार का कोई विवाद उठता है तो उसके लिए परिवादी स्‍वयं जिम्‍मेदार होगा और उक्‍त विवाद के फलस्‍वरूप एमडीए को यदि कोई क्षति होती है, उसकी पूर्ति भी परिवादी करेगा। परिवादी द्वारा सशपथ किये गये उक्‍त कथनों के आलोक में आवंटी के समस्‍त वारिसान को परिवाद में पक्षकार न बनाये जाने विषयक एमडीए की ओर से उठायी गई आपत्ति हमारे विनम्र अभिमत में पुन: औचित्‍यहीन हो जाती है।
  16. एमडीए की ओर से यह भी आपत्ति उठायी गई है कि आवंटी के नाम प्रश्‍गनत आवंटन से पूर्व एकता विहार योजना में एक अन्‍य भूखण्‍ड भी है किन्‍तु ऐसे किसी भूखण्‍ड का विवरण विपक्षीगण द्वारा फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं किया गया है। यह माने जाने का कारण है कि आवंटी के पास उक्‍त आवंटन से पूर्व एकता विहार योजना में कोई अन्‍य भूखण्‍ड नहीं था।
  17. एमडीए की ओर से अंतिम आपत्ति यह उठायी गई है कि परिवादी एमडीए का ‘उपभोक्‍ता’ नहीं है। यह आपत्ति भी निरर्थक दिखायी देती है। उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम,1986 की धारा-2(1)(बी) में ‘परिवादी’ शब्‍द को परिभाषित किया गया है। इसमें अन्‍य के अतिरिक्‍त किसी मृत उपभोक्‍ता के विधिक प्रतिनिधियों को भी ‘परिवादी’ माना गया है। स्‍वीकृत रूप से परिवादी के पिता मौ. उस्‍मान एमडीए के उपभोक्‍ता थे, उनकी मृत्‍यु के उपरान्‍त उक्‍त धारा-2(1)(बी) की व्‍यवस्‍था के अनुसार परिवादी एमडीए का विधानत: उपभोक्‍ता है। अतएव विपक्षीगण की ओर से उठायी गई यह आपत्ति भी विपक्षीगण के लिए सहायक नहीं है।
  18. पत्रावली के अवलोकन से प्रकट है कि परिवादी ने अपने पक्ष में प्रश्‍गनत भूखण्‍ड का बयनामा निष्‍पादित कराने हेतु एमडीए के निर्देश पर फ्रीहोल्‍ड चार्जेज, यहां तक कि समाचार पत्र में प्रकाशन हेतु नोटिस का खर्च भी एमडीए में जमा कर दिया था, उसने स्‍टाम्‍प भी खरीद लिये थे। अख़बार में नोटिस का प्रकाशन होने के पश्‍चात किसी व्‍यक्ति की ओर से कोई आपत्ति भी प्राप्‍त नहीं हुई। इन सब तथ्‍यों को देखते हुए हम यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि एमडीए ने परिवादी के पक्ष में बैनामा निष्‍पादित क्‍यों नहीं किया और ऐसा न करके विपक्षीगण ने सेवा में कमी की है।
  19. उपरोक्‍त विवेचन के आधार पर हम इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे हैं कि परिवाद के    पैरा-1 में उल्लिखित भूखण्‍ड का नियमानुसार बैनामा एमडीए द्वारा परिवादी के पक्ष में निष्‍पादित कराने हेतु निर्देश दिया जाना न्‍यायोचित होगा। तद्नुसार परिवाद स्‍वीकार होने योग्‍य है।  
  20.  

     परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी-1 एमडीए को आदेशित किया जाता है कि विपक्षी-1 इस आदेश से एक माह के अंदर परिवाद के पैरा-1 में उल्लिखित भूखण्‍ड का नियमानुसार बैनामा परिवादी के पक्ष में निष्‍पादित कराये। विपक्षीगण अंकन-10,000/-रूपये क्षतिपूर्ति एवं अंकन-2500/-रूपये परिवाद व्‍यय भी परिवादी को अदा करें।

 

    (सत्‍यवीर सिंह)                                     (पवन कुमार जैन)

       सदस्‍य                                            अध्‍यक्ष

     आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्‍ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्‍यायालय में उद्घोषित किया गया।

 

   (सत्‍यवीर सिंह)                                      (पवन कुमार जैन)

      सदस्‍य                                            अध्‍यक्ष

दिनांक: 14-12-2017

 

 
 
[HON'BLE MR. P.K Jain]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Satyaveer Singh]
MEMBER

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