द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष
- इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने अनुतोष मॉंगा है कि विपक्षी को आदेशित किया जाऐ कि परिवादी को आवंटित भूखण्ड सं0 ए-2/116, आशियाना सेक्टर-2 एरिया 200 वर्ग मीटर से सम्बन्धित अतिरिक्त भूमि एरिया 130.07 वर्ग मीटर को पुरानी दर अर्थात् 1600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से परिवादी को दें। इस अतिरिक्त भूमि पर देय राशि पर ब्याज की अदायगी से मुक्त किऐ जाने की भी परिवादी ने प्रार्थना की। परिवादी ने अतिरिक्त यह भी अनुतोष मॉंगा कि वर्ष,1999 से अब तक निर्माण की लागत बढ़ जाने के कारण क्षतिपूर्ति की मद में परिवादी को विपक्षी से 18,00,000- रूपया (अठ्ठारह लाख) अतिरिक्त दिलाऐ जाऐ।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी के आवेदन पर आशियाना सेक्टर-2, मुरादाबाद स्थित 200 वर्ग मीटर का एक भूखण्ड सं0 ए-2/116 (जिसे इस निर्णय में विवादित भूखण्ड से सम्बोधित किया गया है) 1600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से विपक्षी ने परिवादी को आवंटित किया था। आवंटन आदेश दिनांक 15/3/1999 का है तथा आवंटन का पत्रांक 772/ मु0वि0प्रा0(सम0अ0) है। परिवाद ने आवंटित भूखण्ड की रजिस्ट्री के सम्बन्ध में विपक्षी एवं उसके कर्मचारियों से अपने रामपुर के पते पर अनेकों बार जानकारियॉं चाहीं तो परिवादी को बताया गया कि आपको आवंटित भूख्ण्ड कार्नर का है जिसमें अतिरिक्त भूमि है उसकी नापतौल अभी शेष है, नापतौल के बाद परिवादी को पत्र द्वारा सूचित कर दिया जाऐगा। परिवादी से यह भी कहा गया कि इस सम्बन्ध में विपक्षी के कार्यालय में बार- बार आने की उसे आवश्यकता नहीं है। परिवादी के अनुसार जब उसे आवंटित भूखण्ड के सम्बन्ध में विपक्षी की ओर से कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई तो दिनांक 2 दिसम्बर, 2004 को एन0ओ0सी0 प्राप्त करने हेतु विपक्षी के कार्यालय में गया तो परिवादी को पत्र दिनांकित 218/मु0वि0प्रा0सम0अनु0 2004 प्राप्त करा दिया गया जिसमें बढ़ी हुई दर से भूमि का भुगतान किऐ जाने के निर्देश थे। परिवादी ने बढ़ी हुई दर का विरोध करते हुऐ तत्काल एक पत्र विपक्षी के कार्यालय में दिया। परिवादी ने अग्रेत्तर कथन किया कि विपक्षी एवं उसके कर्मचारियों ने जानबूझकर आवंटित भूखण्ड और बढ़ी हुई 130.07 वर्ग मीटर की भूमि के सम्बन्ध में सूचना परिवादी को उसके रामपुर के पते पर नहीं दी और सूचना रामपुर के स्थान पर मुरादाबाद के पते से भेजी गयी ऐसी दशा में परिवादी बढ़ी हुई दर से भुगतान करने का उत्तरदायी नहीं है इसके लिए विपक्षी और उसके कर्मचारी ही जिम्मेदार हैं। परिवादी ने आवंटित भूखण्ड के सम्बन्ध में सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन दिनांक 28/9/2006 को जानकारी मांगी तो विपक्षी ने 30/11/2006 को जानबूझकर आधी अधूरी सूचनाऐं दीं। मजबूरन परिवादी ने राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया तब विपक्षी से सूचनाऐं लेकर 01/06/2007 को राज्य आयोग द्वारा परिवादी को सूचनाऐं उपलब्ध करायी गयी। सूचना में विपक्षी द्वारा यह स्वीकार किया गया कि गलत पते पर सूचनाऐं भेजने में विपक्षी के लिपिक की जिम्मेदारी थी। परिवादी का अग्रेत्तर कथन है कि दिनांक 12/6/2007 के पत्र द्वारा विपक्षी की ओर से परिवादी को सूचित किया गया कि उसे आवंटित भूखण्ड का पुर्ननियोजन कर दिया गया है जबकि बढ़े हुऐ क्षेत्रफल को पुर्ननियाजित करने का न तो परिवादी ने निवेदन किया था और न ही बढ़ी हुई अतिरिक्त भूमि लेने से इन्कार किया था। कथित पुन: नियोजन एक षडयन्त्र के तहत किया गया। दिनांक 27/7/2007 को परिवादी ने सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन पुन: सूचनाऐं आवंटित भूखण्ड के सम्बन्ध में विपक्षी से मांगी जिसमें परिवादी को विरोधाभाषी सूचनाऐं उपलब्ध करायीं गई। परिवादी का कथन है कि उसने 200 वर्ग मीटर भूमि का कुल भुगतान 3,27,000- रूपया (तीन लाख सत्ताईस हजार) 1600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से वर्ष 1999 में ही कर दिया था यदि समय पर उसे बढ़ी हुई भूमि के एरिया की बाबत सूचना विपक्षी द्वारा उपलब्ध करा दी जाती तो वह उसी दर पर बढ़ी हुई भूमि का भी भुगतान कर देता, किन्तु विपक्षी और उसके कर्मचारियों की गलती से समय पर परिवादी को उसकी सूचना नहीं मिली। विपक्षी के कर्मचारियों की चॅूंकि गलती और लापरवाही है अत: परिवादी बढ़ी हुई दर से अतिरिक्त भूमि का भुगतान करने का उत्तरदायी नहीं है। परिवादी का यह भी कहना है कि वर्ष 1999 से अब तक निर्माण लागत चॅूंकि अत्याधिक बढ़ गयी है अत: परिवाद में अनुरोधित क्षतिपूर्ति भी उसे विपक्षी से दिलायी जाऐ। उसने परिवाद में अनुरोधित सभी अनुतोष दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-6/1 लगायत 6/4 प्रस्तुत हुआ। प्रतिवाद पत्र में परिवादी के आवेदन पर उसे विवादित भूखण्ड आवंटित किया जाना और भूखण्ड का कार्नर पर स्थित होना तो स्वीकार किया गया, किन्तु परिवाद में विपक्षी और उसके कर्मचारियों पर लगाऐ गऐ आरोपों से इन्कार किया गया। अतिरिक्त कथनों में कहा गया कि आवंटन के उपरान्त लीज प्लान आने पर ज्ञात हुआ कि परिवादी को आवंटित भूखण्ड में 130.07 वर्ग मीटर अतिरिक्त भूमि है और इस प्रकार कार्नर के इस भूखण्ड का कुल एरिया 303.07 वर्ग मीटर है। अतिरिक्त एरिया के सम्बन्ध में परिवादी को जो पत्र भेजे गऐ उनमें भूलवश रामपुर के स्थान पर मुरादाबाद अंकित हो गया जिसकी बजह से परिवादी को उक्त पत्र प्राप्त नहीं हो पाऐ। पत्र प्राप्त होने पर परिवादी ने 200 वर्ग मीटर भूमि आवंटित किऐ जाने का प्रस्ताव किया था और शासनादेशों के अनुसार अतिरिक्त भूमि क्रय करने को चँकि वह तैयार नहीं था इस कारण आवंटित भूखण्ड का पुन:नियोजन करके परिवादी को 200 वर्ग मीटर का भूखण्ड आवंटित किया गया। विपक्षी की ओर से अग्रेत्तर कहा गया कि भूखण्ड का नियोजन एक नीतिगत विषय है जिसके अधीन विपक्षी को पुन: नियोजन का पूरा अधिकार है। परिवादी अतिरिक्त भूमि पर शासनादेशों की व्यवस्था के विपरीत कम कीमत पर भूखण्ड पाने का अधिकारी नहीं है। विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया कि अतिरिक्त भूमि की जानकारी परिवादी को वर्ष 2004 में हो गयी थी और परिवाद उसने वर्ष 2010 में योजित किया जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानों के अनुसार कालबाधित है। उपरोक्त कथनों के आधार पर परिवाद सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गयी है।
- परिवाद के साथ परिवादी ने जो शपथ पत्र प्रस्तुत किया है उसके साथ उसने विवादित भूखण्ड के पंजीकरण के आवेदन, आवंटन आदेश दिनांकित 15/3/1999, परिवादी द्वारा एम0डी0ए0 के सचिव को प्राप्त कराऐ गऐ पत्र दिनांकित 02/12/2004, एम0डी0ए0 के उप सचिव के पत्रांक 218/ मु0वि0प्रा0/ सम0अनु0 2004 दिनांकित 02/12/2004, परिवादी द्वारा विपक्षी के सचिव को दिऐ गऐ पत्र दिनांकित 17 फरवरी, 2005, सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन परिवादी द्वारा एम0डी0ए0 के जन सूचना अध्किारी को दिऐ गऐ प्रार्थना पत्र दिनांकित 28/9/2006, एम0डी0ए0 के जन सूचना अधिकारी द्वारा दिनांक 30/11/2006 को सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन परिवादी को उपलब्ध करायी गयी सूचना, राज्य सूचना आयोग, लखनऊ के समक्ष परिवादी द्वारा की गयी अपील दिनांकित 02/12/2006, राज्य सूचना आयोग द्वारा परिवादी को उपलब्ध करायी गयी सूचनाऐं दिनांक 01/6/2007, परिवादी द्वारा विपक्षी के जन सूचना अधिकारी को भेजे गऐ पत्र 07/6/2007, जन सूचना अधिकारी द्वारा परिवादी को भेजे गऐ उत्तर दिनांक 12/6/2007, विपक्षी के जन सूचना अधिकारी को परिवादी द्वारा भेजे गऐ पत्र दिनांकित 27/7/2007, इस पत्र के उत्तर में विपक्षी के जन सूचना अधिकारी द्वारा परिवादी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 18/8/2007 की नोटरी द्वारा प्रमाणित प्रतियों को दाखिल किया है, यह प्रपत्र क्रमश: संलग्नक ए-1 लगायत संलग्नक-13 हैं।
- - परिवादी द्वारा दाखिल संलग्नक ए/9 के साथ विपक्षी की ओर से परिवादी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 01-5-2004, विपक्षी के सम्पत्ति प्रभारी द्वारा उपमहानिरीक्षक स्टाम्प को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 10-9-2003, विपक्षी के सहायक अभियन्ता द्वारा परिवादी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 22/8/2003, विपक्षी के जौन प्रभारी सम्पत्ति द्वारा परिवादी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 3/5/2003, जौन प्रभारी सम्पत्ति द्वारा परिवादी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 3 फरवरी, 2003, सहायक अभियन्ता एम0डी0ए0 द्वारा परिवादी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 22/11/2002 तथा एम0डी0ए0 की ओर से परिवादी को भेजे गऐ पत्र दिनांकित 23/8/2001 की फोटो प्रतियों को भी दाखिल किया गया है। उपरोक्त प्रपत्र कागज संख्या- 3/10 लगायत 3/30 हैं
- परिवादी ने साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0 8/1 लगायत 8/5 प्रस्तुत किया। विपक्षी की ओर से एम0डी0ए0 के संयुक्त सचिव श्री प्रदीप कुमार सिंह ने साक्ष्य शपथ पत्र 10/1 लगायत 10/4 दाखिल किया। प्रत्युत्तर में परिवादी ने रिज्वाइंडर शपथ पत्र 13/1 लगायत 13/3 दाखिल किया।
- साक्ष्य दाखिल होने के उपरान्त एम0डी0ए0 के विधि अधिकारी श्री पी0पी0 सिंह ने शपथ पत्र 18/1 लगायत 18/3 प्रस्तुत किया जिसके साथ 4 संलग्नक कागज सं0 18/4 लगायत 18/10 भी दाखिल किऐ गऐ। विधि अधिकारी श्री पी0पी0 सिंह ने इस शपथ पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष के आदेश दिनांक 14/1/2012 द्वारा विवादित भूखण्ड का परिवादी के पक्ष में आवंटन निरस्त कर दिया गया है। इस शपथ पत्र के जबाब में परिवादी ने अपना शपथ पत्र 19/1 लगायत 19/3 दाखिल किया जिसके साथ सूची कागज सं0-20 द्वारा 5 अभिलेख भी परिवादी ने दाखिल गिऐ जो पत्रावली के कागज सं0-20/1 लगायत 20/5 हैं।०
- दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी लिखित बहस दाखिल की।
- हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को विस्तार से सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है परिवादी के आवेदन पर एम0डी0ए0 ने उसे 1600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से 200 वर्ग मीटर का एक भूखण्ड आशियाना, सेक्टर-2 में आवंटित किया था। आवंटन आदेश 15 मार्च, 1999 का है जो पत्रावली का कागज सं0-3/12 है। इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है कि परिवादी को आवंटित भूखण्ड कार्नर का था और जब मौके पर प्लाटिंग की गयी तो परिवादी को आवंटित इस भूखण्ड का एरिया बढ़ गया और उसमें 130.07 वर्ग मीटर की वृद्धि हो गई इस प्रकार यह भूखण्ड कुल 330.07 वर्ग मीटर का हो गया। परिवादी के अनुसार दिनांक 02/12/2004 को जब एन0ओ0सी0 लेने हेतु वह विपक्षी के कार्यालय में गया तो उसे अवगत कराया गया कि उसे आवंटित भूखण्ड में 130.07 वर्ग मीटर अतिरिक्त भूमि है और इस अतिरिक्त भूमि, कार्नर, फ्री होल्ड आदि मदों में 31/12/2004 तक 4,66,800/- रूपया उसे अतिरिक्त जमा करने होगे और जब वह यह अतिरिक्त राशि जमा कर देगा तभी उसे बैं कसे ऋण लेने हेतु एन0ओ0सी0 दी जा सकेगी।
11 – परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि दिनांक 02/12/2004 से पूर्व विपक्षी ने उसे कभी भी यह सूचना नहीं दी कि उसे आवंटित भूखण्ड में 130.07 वर्ग मीटर भूमि बढ़ गई है और इसका भुगतान उसे 1600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर के स्थान पर 2600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से करना होगा। पत्रावली में अवस्थित विपक्षी के पत्र कागज सं0- 3/20 लगायत 3/26 को इंगित करते हुऐ परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने जोर देकर कहा कि यधपि आवंटन हेतु परिवादी के आवेदन पत्र कागज सं0- 3/10 और आवंटन आदेश कागज सं0- 3/12 में स्पष्ट रूप से परिवादी का रामपुर का पता अंकित है इसके बावजूद उक्त पत्रों को रामपुर न भेजकर रामपुर के स्थान पर मुरादाबाद लिखकर भेजा गया जिस कारण उनमें से कोई भी पत्र परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ। विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र के पैरा सं0-16 में यह स्वीकार किया भी है कि परिवादी को आवंटित भूखण्ड में 130.07 वर्ग मीटर अतिरिक्त भूमि होने की सूचना परिवादी को भूलवश ‘’ रामपुर के स्थान पर मुरादाबाद ‘’ लिखकर प्रेषित की गयी थी।
12 – परिवादी ने दिनांक 02/12/2004 को एम0डी0ए0 कार्यालय से पत्र कागज सं0 3/14 प्राप्त होने पर तत्काल 02/12/20004 को ही एम0डी0ए0 के सचिव को सम्बोधित अपने पत्र कागज सं0- 3/13 में यह कथन किया कि चूँकि अतिरिक्त 130.07 वर्ग मीटर भूमि की कोई सूचना उसे एम0डी0ए0 से प्राप्त नहीं हुई है अत: अतिरिक्त भूमि का मूल्य 2600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से मांगे जाने पर उसे आपत्ति है। उसने अपने पत्र दिनांकित 17/2/2005 कागज सं0- 3/15 में इस अतिरिक्त भूमि का मूल्य पुराने रैट अर्थात् 1600/- प्रति वर्ग मीटर की दर से निर्धारित करने का अनुरोध किया। अतिरिक्त भूमि की सूचना परिवादी को 02/12/2014 तक न मिलने में विपक्षी के कर्मचारियों का दोष है परिवादी का इसमें कोई दोष नहीं है। पत्रावली में अवस्थित अभिलेखों से प्रकट है कि परिवादी का यह अनुरोध कि अतिरिक्त भूमि का मूल्य उससे पूराने रैट अर्थात् 1600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से लिया जाऐ, विपक्षी की ओर से स्वीकार नहीं किया गया बल्कि निरन्तर उसे समय-समय पर बढ़ी हुई दर से अतिरिक्त भूमि का मूल्य अदा करने विषयक पत्र भेजे जाते रहे। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अतिरिक्त भूमि की सूचना मिलने में चूँकि देर विपक्षी की ओर से हुई अत: परिवादी बढ़ी हुई दरों पर अतिरिक्त भूमि का मूल्य अदा करने का उत्तरदायी नहीं है। उनका यह भी तर्क है कि एम0डी0ए0 की हठधर्मिता के कारण कभी भी परिवादी के पक्ष में भूखण्ड का बैयनामा नहीं हो पाया और परिवादी आवंटित भूखण्ड का निर्माण प्रारम्भ नहीं कर सका यह भी कहा गया कि निर्माण लागत में वर्ष 1999 के सापेक्ष कई गुना वृद्धि हो गयी है जिस कारण उसे 18,00,000/- रूपया निर्माण लागत के अन्तर की मद में क्षतिपूर्ति के रूप में विपक्षी से दिलायी जाऐ।
13 - प्रत्युत्तर में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने पत्रावली में अवस्थित शासनादेश दिनांकित 20/11/1999 (कागज सं0-18/7 लगायत 18/10) की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया और तर्क दिया कि परिवादी को बढ़ी हुई अतिरिक्त भूमि का मूल्य इस शासनादेश के प्रस्तर-15 में दी गयी गाइड लाइन के अनुसार करना होगा। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार इस गाइड लाइन में उल्लेख है कि यदि लीज प्लान प्राप्त होने पर भूमि की मात्रा आवंटित क्षेत्रफल से बढ़ती है तो बढ़े हुऐ क्षेत्रफल में आवंटित क्षेत्रफल से 10 प्रतिशत अधिक तक पुरानी दर से तथा उसके अतिरक्त बढ़े हुऐ क्षेत्रफल की नई दर लगायी जाऐगी। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार इस गाइड लाइन से इतर परिवादी का यह अनुरोध कि बढ़ी हुई 130.07 वर्ग मीटर का मूल्य भुगतान वह 1600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की पुरानी दर से ही करेगा, विपक्षी द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता। अग्रेत्तर विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने हमारा ध्यान पत्रावली में अवस्थित पत्र कागज सं0- 3/28, 18/4 एवं 18/6 की ओर आकर्षित किया और कहा कि दिनांक 12 जून, 2007 के पत्र द्वारा परिवादी को अवगत करा दिया गया था कि उसे आवंटित भूखण्ड का पुन:नियोजन कर दिया गया है और अब वह 200 वर्ग मीटर भूमि की रजिस्ट्री करा सकता है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी कहा कि एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष ने अपने आदेश दिनांक 14/1/2012 से परिवादी के आवंटन आदेश को निरस्त कर दिया है क्योंकि परिवादी ने बार-बार सूचना देने के बावजूद अतिरिक्त भूमि का मूल्य प्राधिकरण कोष में जमा नहीं किया। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार आवंटन चॅूंकि अब निरस्त हो चुका है अत: परिवादी को कोई अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता और परिवाद खारिज होने योग्य है।
14- विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी कथन है कि एम0डी0ए0 ने पत्र दिनांकित 02/12/2004 (कागज सं0-3/14) द्वारा परिवादी से अतिरिक्त भूमि का तत्ससमय का मूल्य एवं आनुषांगिक खर्चें मांगे थे। यह पत्र परिवादी को प्राप्त हो गया जैसा कि पत्र संख्या- 3/13 से प्रकट है। इस प्रकार परिवादी को वाद का कारण 02/12/2014 को उत्पन्न हो गया था। परिवाद दिनांक 24/12/2010 को दायर किया गया। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानों के अनुसार कालबाधित है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने उक्त तर्क का प्रतिवाद किया और कहा कि परिवादी को उत्पन्न वाद हेतुक कन्टीन्यूई कॉज आफ एक्शन है जो परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि पर जीवित था तथा उसके उपरान्त भी जारी रहा, जैसा कि पत्रावली में उपलब्ध पत्राचार और विशेष रूप से विपक्षी के पत्र दिनांक 30/11/2011 (कागज सं0-18/4) और पत्र दिनांकित 14/3/2012 (कागज सं0-18/6) से प्रकट है। हम परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों से सहमत हैं। विपक्षी के पत्र कागज सं0-18/4 में अन्य के अतिरिक्त यह उल्लेख है कि परिवादी अतिरिक्त भूमि को आवंटन की दर पर दिऐ जाने हेतु बराबर लिख रहा है। इस पत्र में परिवादी को अन्तिम अवसर देते हुऐ भूमि का इस पत्र में उल्लिखित मूल्य अदा करने को कहा गया। पत्र दिनांकित 14/3/2012 में दिनांक 14/1/2012 को परिवादी के आवंटन को निरस्त कर दिऐ जाने का उल्लेख है। कहने का आशय यह है कि परिवादी को उदभूत वाद हेतुक परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि तो क्या उसके उपरान्त इस परिवाद के लम्बन काल में भी जीवित रहा और इस प्रकार यह परिवाद कालबाधित नहीं है।
14 – विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने निम्नलिखित निर्णयज विधियों का अबलम्व लिया और तर्क दिया कि परिवादी ने चॅूंकि मांगी जा रही धनराशि अदा नहीं की अत: परिवाद खारिज कर दिया जाना चाहिऐ।
(।) कटक डबलपमेंट आथर्टी बनाम सौभाग्य चन्द्र विषवाल,।।। (2008) सी0पी0जे0 पृष्ठ-23,….(मा0 राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उड़ीसा)
(।।) जगदीश गुरनान बनाम लखनऊ डवलपमेंट आथर्टी, । (2010) सी0पी0जे0
पृष्ट- 265 (एन0सी0) (मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई
दिल्ली)
(।।।) म्यूनिस्पिल बोर्ड टोडर सिंह बनाम गोपाल लाल शर्मा, 2013 (4)
सी0 पी0 आर0 पृष्ट- 474 (एन0सी0) (मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली)
उपरोक्त निर्णय विधियां वर्तमान मामले में विपक्षी के लिए सहायक नहीं है। उपरोक्त क्रमांक सं0-1 पर उल्लिखित कटक डवलपमेन्ट आथर्टी की निर्णय विधि में किश्तों की राशि जमा न होने में परिवादी की गलती पायी गयी थी जब कि वर्तमान मामले में परिवादी की कोई गलती नहीं है। क्रमांक सं0-2 पर उल्लिखित जगदीश गुरनान का मामला भवन आवंटन से सम्बन्धित था जिसमें निर्माण लागत का आंकलन भवन निर्माण के बाद किया जाना था। परिवादी ने निर्माण लागत पर विवाद किया और धनराशि जमा नहीं की। वर्तमान मामले के तथ्य भिन्न हैं। उक्त निर्णयज विधि में भवन निर्माण लागत के ऑंकलन का विवाद था जबकि इस परिवाद में विवाद इस बात का है कि विपक्षी की गलती के बावजूद परिवादी से बढ़ी दरों पर भूमि का मूल्य मॉंगा जा रहा है जिससे परिवादी सहमत नहीं है। क्रमांक सं0-3 में उल्लिखित टोडर सिंह की निर्णय विधि में तथ्य यह थे कि परिवादी ने नीलामी में पाप्त भूमि की अवशेष देय नीलामी राशि अदा नहीं की थी जब कि वर्तमान मामले में तथ्य भिन्न हैं। यहॉं बढ़े हुऐ क्षेत्रफल का मूल्य जमा न होने में परिवादी का कोई दोष नहीं था। इस प्रकार उपरोक्त कोई भी निर्णयज विधि चॅूंकि वर्तमान मामले के तथ्यों पर लागूनहीं होती अत: वे विपक्षी की कोई सहायता नहीं करती।
14 – विपक्षी के विद्वान अध्विक्ता के तर्कों के जबाब में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने पत्र कागज सं0-3/28, 18/4 तथा 18/6 को पुन: इंगित किया। उनके साथ-साथ डाकखाने की रसीद की फोटोप्रति कागज सं0- 18/5 की ओर भी उन्होने हमारा ध्यान आकर्षित भी किया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार परिवादी ने अपने साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-18 के पैरा सं0-13 में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने आवंटित 330.07 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के पुन:नियोजन का एम0डी0ए0 से न तो निवेदन अथवा आग्रह किया और न ही कभी अतिरिक्त भूमि लेने से इन्कार किया। परिवादी के इस कथन में बल दिखाई देता है कि कथित पुन: नियोजन की कार्यवाही किसी षडयन्त्र के तहत की गयी है । पत्रावली पर ऐसा कोई अभिलिख विपक्षी की ओर से दाखिल नहीं किया गया जिसमें परिवादी ने पुन: नियोजन का आग्रह अथवा निवेदन विपक्षी से किया हो। विपक्षी की ओर से ऐसा भी कोई अभिलेख दाखिल नहीं किया गया जिसमें परिवादी ने अतिरिक्त 130.07 वर्ग मीटर भूमि लेने से इन्कार किया हो। यह भी उल्लेखनीय है कि विपक्षी के पत्र दिनांकित 30/11/2011 (कागज सं0-18/4) के दूसरे प्रस्तर में स्पष्ट उल्लेख है कि परिवादी ने कभी भी आवंटित क्षेत्रफल के पुन: नियोजन की सहमति एम0डी0ए0 को नहीं दी। एम0डी0ए0 ने पत्र दिनांक 30/11/2001 (18/4) में उल्लेख किया गया है कि यदि परिवादी 200 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की सीमा तक भूखण्ड लने का इच्छुक हो तो अपनी सहमति दिनांक 30/11/2011 तक दे दे अन्यथा यह माना जाऐगा कि परिवादी भूखण्ड लेने का इच्छुक नहीं है। इस पत्र में यह भी उल्लेख है कि निर्धारित तिथि अर्थात् 30/11/2011 के पश्चात् भूखण्ड का आवंटन निरस्त कर दिया जाऐगा। दिनांक 30/11/2001 के इस पत्र कागज संख्या- 18/4 का अवलम्ब लेकर दिनांक 14/1/2012 को एम0डी0ए0 के उपाध्यक्ष ने परिवादी का आवंटन रिनस्त कर दिया, ऐसा पत्र कागज सं0- 18/6 में लिखा है। पत्र कागज सं0- 18/4 जैसा कि हमने ऊपर कहा है कि दिनांक 30/11/2001 का है यह पत्र परिवादी के रामपुर के पते पर रजिस्ट्री से भेजा गया था। रजिस्ट्री उसी दिन अर्थात् 30/11/2011 को, की गयी जैसा कि डाकखाने की रसीद की नकल कागज सं0-18/5 से प्रकट है। हमारे विचारमें यह पत्र दिनांक 30/11/2011 को परिवादी के पास उसके रामपुर के पते पर रजिस्ट्री से पहुँचना सम्भव नहीं था। अत: इस पत्र कागज सं0-18/4 में परिवादी की सहमति 30/11/2011 तक मांगा जाना नि:तान्त हास्यास्पद दिखायी देता है। हमारे विनम्र अभिमत में इस पत्र कागज सं0-18/4 का अवलम्ब लेकर परिवादी के भूखण्ड का आवंटन निरस्त किया जाना मनमाना एवं दुर्भावनापूर्ण दिखाई देता है। परिवादी के आवंटन को निरस्त करने का आदेश हम किसी भी दृष्टि से स्थिर रहने योग्य नहीं पाते। पत्रावली में अवस्थित अभिलेखों, पत्राचार आदि के आधार पर हम यह निष्कर्षित करने में संकोच नहीं हैं कि यह एक ऐसा मामला है जिसमें परिवादी की लैश मात्र भी गलती नहीं थी सारी गलती एम0डी0ए0 के कर्मचारियों /अधिकारियों की थी इसके बावजूद परिवादी पर निरन्तर अतिरिक्त भूमि के समय-समय पर बढ़े हुऐ मूल्य के भुगतान करने का दबाब बनाया गया जो हमारे मत में मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के आलोक में उचित नहीं कहा जा सकता।
15 – आवंटन आदेश दिनांक 15/3/1999 का है। पत्रावली में अवस्थित एम0डी0ए0 के पत्र दिनांकित 23/8/2001 (कागज सं0-3/26) में परिवादी को आवंटित 130.07 वर्ग मीटर अतिरिक्त भूमि के मूल्य का आगण्न शासनादेश दिनांकित 20/11/1999 की गाइड लाइन सं0-15 के अनुसार किया गया था। स्वीकृत रूप से यह पत्र परिवादी के सही पते पर नहीं भेजा गया था और इस तथ्य को विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र और यहॉं तक की विपक्षी के विधि अधिकारी श्री प्रदीप कुमार सिंह ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-10 के पैरा सं0-15 में स्वीकार भी किया है। परिवादी को यह पत्र न मिलने में परिवादी का लैश मात्र भी दोष नहीं पाया गया है। अत: हम इस मत के हैं, जैसा कि एम0डी0ए0 के इस पत्र दिनांक 23/8/2001 कागज संख्या- 3/20 में आंकलित किया गया है, परिवादी से अतिरिक्त 130.07 वर्ग मीटर भूमि में से 20 वर्ग मीटर भूमि का मूल्य 1600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से और अवशेष 110.07 वर्ग मीटर भूमि का मूल्य 1800/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से लिया जाना चाहिऐ और इस राशि पर ब्याज अदा करने के लिए परिवादी को बाध्य नहीं किया जाना चाहिऐ। इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि वर्ष 1999-2000, के सापेक्ष अब निर्माण लागत में कई गुना बढ़ोत्तरी हो गयी है । परिवादी को आवंटन के कुछ समय पश्चात् यदि अतिरिक्त भूमि सहित आवंटित भूमि उपलब्ध हो जाती तो निश्चित रूप से उस समय आज की अपेक्षा निर्माण लागत काफी कम होती। हम से सुविचारित मत के हैं कि निर्माण लागत के अन्तर एवं विपक्षी के कर्मचारियों/ अधिकारियों के कृत्यों से हुऐ मानसिक कष्ट की मद में एकमुश्त 2,00,000/- रूपया (दो लाख) रूपया परिवादी को दिलाया जाना न्यायोचित एवं उपयुक्त होगा। तदानुसार परिवाद स्वीकार किऐ जाने योग्य है।
परिवादी आवंटित भूखण्ड के साथ लगी हुई 130.07 वर्ग मीटर अतिरिक्त भूमि में से 20 वर्ग मीटर भूमि का मूल्य 1600/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से तथा अवशेष 110.07 वर्ग मीटर भूमि का मूल्य 1800/- रूपया प्रति वर्ग मीटर की दर से विपक्षी को अदा करने का अधिकारी होगा। इस धनराशि पर परिवादी ब्याज अदा करने का उत्तरदायी नहीं होगा। विपक्षी से परिवादी क्षतिपूर्ति की मद में 2,00,000/- रूपया (दो लाख) पाने का अधिकारी होगा। परिवाद व्यय की मद में परिवादी विपक्षी से 2,500/-रूपया (दो हजार पाँच सौ) अतिरिक्त पाऐगा। पक्षकार अपनी-अपनी देय धनराशि आज की तिथि से एक माह में अदा करेगें। एम0डी0ए0 के सम्पत्ति प्रभारी के पत्र सं0- 481 (II) मु0वि0प्रा0 /सम0अनु0/ 2012 दिनांकित 14/3/2012 में उल्लिखित आवंटन निरस्तीकरण आदेश दिनांकित 14/1/2012 निरस्त किया जाता है।
(श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
26.05.2015 26.05.2015 26.05.2015
हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 26.05.2015 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया।
(श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
26.05.2015 26.05.2015 26.05.2015