प्रकरण क्र.सी.सी./14/315
प्रस्तुती दिनाँक 17.11.2014
मुकेश कुमार आ. नीलकंठ, उम्र 23 वर्ष, निवासी-ग्राम छाटा-पोस्ट देवादा, तहसील पाटन, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
सुशील मिश्रा (एम.डी.) आई.आई.टी.एम.फायर इंजीनियरिंग कालेज, प्रथम तल, घंटाघर चैक, निहारिका रोड, कोरबा (छ.ग.) 495677
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 24 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय माडयूलर रोजगार परक कौशल प्रमाण पत्र दिलाये जाने, परिवादी को अनावेदक से प्लेसमेंट असिस्टेन्स करवाये जाने, मानसिक परेशानी के रूप में 80,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने अनावेदक संस्थन में शिक्षण सत्र 2012-13 में नियमित छात्र के रूप में एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स हेतु दि.29.10.2012 को प्रवेश लिया। परिवादी द्वारा उक्त शिक्षण सत्र में 23,700रू. शुल्क का किश्तों में भुगतान किया। अनावेदक द्वारा उक्त संस्था में प्रवेश के इच्छुक छात्रों के लिए 100 प्रतिशत प्लेसमेंट असिस्टेंस कराये जाने एवं उत्तीर्ण छात्रों को श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय माडयूलर रोजगार परक कौशल प्रमाण पत्र प्रदान करने का वचन भी दिया था। परिवादी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ, परंतु परिवादी को आज दिनांक तक श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रमाण पत्र नहीं दिया गया और ना ही परिवादी को प्लेसमेंट असिस्टेन्स कराया गया है। परिवादी द्वारा अनावेदक से बार-बार मौखिक मोबाइल के माध्यम से निवेदन किया गया, कि प्रमाण पत्र दिये जाये या राशि 23,700रू. वापस की जावे, परंतु अनावेदक ने ऐसा न कर टाल मटोल करते रहे। परिवादी, अनावेदक संस्था के नियमों के अनुसार दि.30.04.2012 से 30.05.2013 तक रायपुर नगर निगम अग्नि शमन विभाग, टिकरापारा में प्रशिक्षण प्राप्त किया है। अनावेदक द्वारा उक्त प्रमाण पत्र एवं प्लेसमेंट असिस्ट नहीं कराये जाने तथा राशि 23,700रू. वापस नहीं जाने पर परिवादी द्वारा अनावेदक को अधिवक्ता द्वारा नोटिस प्रेषित की गयी। इस तरह अनावेदक द्वारा किया गया उक्त कृत्य अवैधानिक एवं अनुचित व्यवहार व्यापार की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अनावेदक से श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय माडयूलर रोजगार परक कौशल प्रमाण पत्र दिलाये जाने, परिवादी को अनावेदक से प्लेसमेंट असिस्ट करवाई जाये, मानसिक परेशानी के रूप में 80,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक द्वारा जवाबदावा मुख्यतः इस आधार पर प्रस्तुत किया गया है कि अनावेदक ने प्लेसमेंट असिस्टेन्स की बात कही थी, प्लेसमेंट गारंटी की बात नहीं कही थी और वह भी उक्त अभिकथित कोर्स को सफलतापूर्वक पूर्ण कर लेने के पश्चात्। परिवादी को अनेकांे बार प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेने के लिए सूचना दी गई, परंतु परिवादी आज तक उक्त प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया है, जबकि परिवादी जब प्रमाण पत्र अनावेदक को प्राप्त नहीं हुआ था तब से मांग किया था, वैसे भी परिवादी को पर्याप्त प्लेसमेंट असिस्टेन्स दिया गया, परंतु परिवादी को भिलाई या उसके आसपास में जाॅब चाहिए थी जो कि दिलाया जाना अनावेदक के लिए मुश्किल था। अनावेदक अभी भी परिवादी के जिंदल, रायगढ़ इत्यादि स्थानों पर नौकरी दिलवा सकता है।
(4) जवाबदावा इस आशय का भी प्रस्तुत है कि जो राशि 23,700रू. फीस सोसायटी द्वारा लगाई गई है वह प्प्ज्ड थ्पतम म्दहपदममतपदह ब्वससमहम में पढ़ाई हेतु है, एस.डी.आई. कोर्स भारत सरकार द्वारा मुफ्त में कराया जाता है और फिर अनावेदक के एन.जी.ओ. आॅफिस में उक्त प्रमाण पत्र भेजा जाता है, जिसे प्राप्त करने परिवादी अनावेदक के कार्यालय में नहीं आया और असत्य आधारों पर दावा प्रस्तुत कर दिया है तथा स्वच्छ हाथों से न्याय मांगने नहीं आया है, अतः परिवादी का दावा हर्जाना के साथ खारिज किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय माडयूलर रोजगार परक कौशल प्रमाण पत्र प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 80,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि एनेक्चर डी.1 अनुसार ओकेशनल ट्रेनिंग का प्रमाण पत्र श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से जारी हुआ था, अनावेदक का तर्क है कि अनावेदक भारत सरकार की ओर से अधिकृत वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोवाइडर है तथा फायर इंजीनियरिंग कालेज, सावित्री मिश्रा शिक्षा समिति, कोरबा के माध्यम से चलता है और इस संबंध में में अनावेदक सफल विद्यार्थी को 100 प्रतिशत प्लेसमेंट असिस्ट प्रोवाईड करता है।
(8) अनावेदक का तर्क है कि उसने परिवादी को रायगढ़ के जिन्दल संस्था में नौकरी हेतु असिस्टेन्स दी थी, परंतु परिवादी ने रायगढ़ जाने से मना कर दिया।
(9) अनावेदक का यह भी तर्क है कि परिवादी दो कोर्सेस को अनावश्यक रूप से जोड़ने की कोशिश में है। फायर इंजीनियरिंग कोर्स अनावेदक के कालेज द्वारा चलाया जाता है और एस.डी.आई. कोर्स भारत सरकार द्वारा चलाया जाता है। फायर इंजीनियरिंग कोर्स अनावेदक के कालेज से दिया जाता है, उसका प्लेसमेंट असिस्टेन्स के संबंध में अनावेदक ने कहा था और प्लेसमेंट असिस्टेन्स भी दी थी। इस प्रकार परिवादी ने असत्य आधारों पर दावा प्रस्तुत किया है।
(10) प्लेसमेंट असिस्टेन्स देना ही अपने आप में भोले भाले छात्रों को दिग्भ्रमित करने का व्यवसायिक कदाचरण है।
(11) परिवादी जैसे छात्र ही ऐसे कोर्सेस तभी ज्वाइन करते हैं जब अनावेदक जैसी संस्थाएं उन्हें कोर्स के पश्चात् नौकरी का लालच देती हैं ’’जाॅब एसिस्टेन्स’’ शब्द से ही छात्र लालच में आकर ऐसे कोर्स ज्वायन करेगा और अनावेदक का यह कृत्य छात्रों को दिग्भ्रमित करेगा कि यदि वे अनावेदक संस्था से इस प्रकार का कोर्स करेंगे तो उन्हें नौकरी मिलेगी। किसी भी शैक्षणिक संस्था द्वारा नौकरी की गैरेन्टी के साथ कोर्स में एडमीशन दिलवाना और मोटी राशि वसूलना अपने आप में व्यवसायिक कदाचरण है।
(12) अनावेदक ने स्वयं ही स्वीकार किया है कि उसने सावित्री मिश्रा शिक्षण समिति के माध्यम से ’’प्प्ज्ड थ्पतम म्दहपदममतपदह ब्वससमहम’’ में सफल छात्रो को 100 प्रतिशत प्लेसमेंट असिस्टेन्स देना व्यक्त किया है, जिससे यही उत्प्रेरण निकलता है कि अनावेदक ने छळव् की आड़ में छात्रों को दिग्भ्रमित किया और लालच दिया कि वे प्लेसमेंट असिस्टेन्स नाम से दिग्भ्रमित हो, लालच में आये और एक बड़ी राशि देकर यह कोर्स ज्वाएन करें। इस संबंध में कि अनावेदक संस्था प्लेसमेंट असिस्टेन्स देगी, अनावेदक ने कोई भी दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है कि वह छात्रों के समक्ष किस प्रकार दृश्य या वस्तुतिथति समझाकर प्लेसमेंट असिस्टेन्स की बात कह रहा है तथा क्या ऐसा करने हेतु उसे सरकार से विधीवत् अनुमति प्राप्त है? शैक्षणिक संस्थाओं का कार्य केवल छात्रों को पढ़ाई कराना एवं अच्छे संस्कार दिलाने का है और उन्हें विभिन्न सुन्दर सुन्दर शब्दों का उल्लेख कर बढ़ते हुए बेरोजगारी के परिवेश में छात्रों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने एवं नौकरी का लालच देकर मोटी-मोटी राशि वसूलने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अनावेदक इस संबंध में मौन है कि क्या उन्होंने प्लेसमेंट असिस्टेन्स हेतु सरकार से अनुमति प्राप्त की है। अपने छळव् के कार्यकलापों के विस्तृत विवरण संबंध दस्तावेज भी अनावेदक ने पेश नहीं किये हैं। यह सामाजिक चेतना का विषय है कि ऐसे छळव् की सतत् माॅनिटरिंग एवं स्क्रीनिंग बहुत आवश्यक है, जिससे वे जनसाधारण की भावनाओं, मजबूरियों का गलत फायदा न उठाएं एवं सहायता की आड़ में छात्रों की मोटी राशि वसूल न कर सकें।
(13) उपरोक्त विवेचना से हम यह निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदक ने परिवादी को अभिकथित कोर्स जब प्लेस्टमेंट के लालच में ज्वाइन कराके मोटी राशि फीस के रूप में प्राप्त कर अभिकथित कोर्स कराया की और इस प्रकार घोर व्यवसायिक कदाचरण किया और असत्य बचाव लिया कि परिवादी अपना प्रमाण पत्र ही लेने नहीं आया, जबकि परिवादी ने एनेक्चर-11 की अधिवक्ता माध्यम नोटिस भी दी है, जिसमें भी उल्लेख है कि परिवादी बार-बार अनावेदक के कार्यालय में जाकर प्रमाण पत्र मांगता रहा। अनावेदक ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि उसने परिवादी को वांछित प्रमाण पत्र देकर पावती प्राप्त की है। अनावेदक ने पावती संबंधी दस्तावेज पेश नहीं किये हैं।
(14) अनावेदक का तर्क है कि उसने परिवादी को जिन्दल, रायगढ़ में प्लेसमेंट असिस्टेन्स दी थी पर परिवादी ने इन्कार कर दिया, परंतु अनावेदक ने यह सिद्ध नहीं किया है कि इस संबंध मेे अनावेदक ने कोई अनुमति जिन्दल, रायगढ़ से प्राप्त की थी कि क्या उस संस्थान के द्वारा अनावेदक को इस प्रकार अधिकृत किया गया था। अनावेदक का यह कृत्य निश्चित रूप से यही सिद्ध करता है कि अनावेदक आज भी बढ़ती बेरोजगारी की स्थिति में छात्रों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है, यह सामाजिक चेतना का विषय है कि ऐसी शिक्षण संस्थाएं एवं छळव् पर अंकुश लगाया जाना आवश्यक है।
(15) उपरोक्त विवेचना से हम यह भी पाते हैं कि परिवादी को 100 प्रतिशत प्लेसमेंट असिस्टेन्स का आश्वासन दिया जाकर कोर्स ज्वायन कराने में और फिर नौकरी नहीं मिलने से परिवादी को मानसिक वेदना होना स्वाभाविक है, जिसके लिए स्वयं अनावेदक ही जिम्मेदार है, जिसके एवज में यदि परिवादी ने 80,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।
(16) उरोक्त स्थिति में हम परिवादी का परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार पातेे हैं कि अनावेदक ने परिवादी को श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय माडयूलर रोजगार परक कौशल प्रमाण पत्र प्रदान नहीं किया गया, फलस्वरूप प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है।
(17) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को शीघ्रातिशीघ्र श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय माडयूलर रोजगार परक कौशल प्रमाण पत्र प्रदान करे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 80,000रू. (अस्सी हजार रूपये) अदा करेे।
(स) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।