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RAHUL GYAN AGRAWAL filed a consumer case on 30 Apr 2013 against M. P. HOUSING BOARD in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/09/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक- 09-2013 प्रस्तुति दिनांक-02.01.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
राहुल ज्ञान अग्रवाल, वल्द एम0पी0
अग्रवाल, निवासी-हाउसिंग बोर्ड कालोनी
सिविल लार्इन, बैतूल गंज बैतूल जिला
बैतूल (म0प्र0)।.....................................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
प्रापर्टी आफिसर (संपतित अधिकारी)
एम0पी0 हाउसिंग बोर्ड डिवीजन
बालाघाट (म0प्र0)।................................................अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक-30/04/2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसे विक्रय हेतु आबंटित एच.आर्इ.जी.-2 के फलैट को बुरी हालत का पुराना मकान होना कहते हुये, उसी मूल्य पर, नवीन निर्मित फलैट दिलाये जाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) मामले में अनावेदक की ओर से कोर्इ जवाब पेष नहीं, इसलिए कोर्इ भी तथ्य स्पश्टत: स्वीकृत तथ्य नहीं है।
(3) परिवाद का सार यह है कि-मंगलीपेठ, सिवनी में हाउसिंग बोर्ड के स्वामित्व के एच.आर्इ.जी.-2 के नवीन निर्मित फलैट मूल्य 6,98,000-रूपये, रकबा 180 वर्गमीटर में निर्माण सहित क्रय किये जाने के लिए परिवादी ने दिनांक-22.12.2006 को पंजीयन राषि 69,800-रूपये जमा कर, फलैट बुक किया था, जो कि-षेश राषि एकमुष्त निर्मित भवन प्रदान करते समय अदा की जानी थी और भवन निर्माण के पष्चात भवन का आधिपत्य लिये जाने हेतु परिवादी को सूचित किया गया, तो परिवादी ने फलैट का सत्यापन करने पर पाया कि-वह पुराना भवन है, बुरी हालत में है, जिसका प्रतिवाद अनावेदक से किये जाने पर, उसने नवीन फलैट निर्मित कर, देने का वचन दिया था, परिवादी ने उक्त फलैट जो अलाट किया जा रहा है, वह खराब सिथति में होना और पुराना होने की आपतित दिनांक-25.05.2007 के अपने पत्र के द्वारा, अनावेदक को प्रेशित की थी और दिनांक-13.08.2007 को सहायक इंजीनियर को भी पत्र लिखकर सूचित किया था, जिनका कोर्इ उत्तर न देते हुये दिनांक-10.12.2007 और दिनांक-24.05.2008 को अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी को यह अवगत कराया गया कि- परिवादी द्वारा चाही गर्इ सहायता उसे प्रदान नहीं की जा सकती और विस्तृत विवरण देने से इंकार कर दिया, तो परिवादी ने पुन: 05.07.2007 को पत्र लिखकर अवगत कराया कि-परिवादी को संपूर्ण परिसिथतियों से अवगत कराया जाये, पर अनावेदक के द्वारा उसका कोर्इ जवाब नहीं दिया गया, फिर दिनांक-24.05.2008 को अनावेदक द्वारा परिवादी को पत्र प्रेशित किया गया, जिसमें फलैट की प्रस्तावित कीमत 1,00,000- रूपये परिवादी के सहमति के बिना एकपक्षीय रूप से बढ़ा दी गर्इ थी, तो अनावेदक का उक्त निर्णय अनुचित व विधि-विरूद्ध है और परिवादी के द्वारा लिखे गये पत्रों का कोर्इ उत्तर नहीं दिया गया और तत्पष्चात दिनांक-25.03.2009 को अनावेदक द्वारा, परिवादी को उसके द्वारा जमा की गर्इ पंजीयन राषि में-से 17,450-रूपये कम कर, षेश राषि 52,3550-रूपये का चेक वापस कर दिया गया, जो अनावेदक द्वारा अपनार्इ गर्इ अनुचित प्रथा है। और परिवादी ने भी उक्त चेक तत्काल अनावेदक को वापस कर दिया था। इस तरह पूरी पंजीयन राषि अनावेदक के पास ही जमा है।
(4) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या परिवाद विहित समय-सीमा में होकर,
संधारणीय है?
(ब) क्या अनावेदक ने, परिवादी को नये मकान का
कब्जा प्रस्तावित न कर, अनुचित व्यापार-प्रथा
को अपनाया है?
(स) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(5) परिवादी के परिवाद में ही यह सिथति स्पश्ट है कि-उसके द्वारा फलैट का कब्जा प्राप्त करने से इंकार कर, विक्रय मूल्य की राषि अदा नहीं की गर्इ और तब दिनांक-25.03.2009 को अनावेदक द्वारा, पंजीयन राषि में-से 25 प्रतिषत राषि काटकर, षेश पंजीयन राषि का चेक परिवादी को प्रदान कर दिया और इस तरह अनावेदक ने भवन विक्रय करने से इंकार कर दिया, जो कि-उक्त दिनांक-25.03.2009 तक ही वाद-कारण परिवादी को उपलब्ध रहा है, यह परिवाद दिनांक-25.03.2009 से दो वर्श की अवधि के अंदर पेष नहीं हुआ, बलिक लगभग तीन वर्श दस माह के पष्चात पेष किया गया है। ऐसे में परिवाद समय-सीमा में होना नहीं पाया जाता है।
(6) परिवादी की ओर से जो प्रदर्ष सी-1 और सी-2 के दस्तावेज पेष हुये हैं, जिनसे यह प्रकट है कि-पूर्व में परिवादी ने जिला फोरम बैतूल में दिनांक-12.03.2010 को परिवाद पेष किया था, जो परिवादी को दिनांक-24.08.2012 को क्षेत्रीय-अधिकारिता के आभाव में वापस कर दिया, तो स्पश्ट है कि-उक्त परिवाद, परिवादी ने उक्त भवन कहां सिथत है यह तथ्य छिपाकर और उसके बैतूल के पते पर पत्राचार होने के अनुचित आधार दर्षाकर, उक्त जिला फोरम में पेष किया था, जो सदभाविक भूल नहीं रही है, इसलिए उक्त दो वर्श की अवधि के मुजरार्इ का कोर्इ लाभ पाने का परिवादी अधिकारी नहीं है। फलत: परिवाद समय-बाधित होने से संधारणीय होना नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(7) परिवादी की ओर से यह दर्षाने बाबद कि-अनावेदक के द्वारा, एच.आर्इ.जी.-2 का भवन का निर्माण कर, फिर उसका विक्रय किये जाने का कोर्इ प्रस्ताव वास्तव में रहा है, विज्ञापन व करार की कोर्इ षर्तों की प्रतियां परिवाद के आधार दस्तावेज के रूप में परिवादी ने पेष नहीं की है और जो प्रदर्ष सी-13 के बैंक चालान की प्रति पेष की है, वह मात्र पंजीयन फार्म प्राप्त करने के लिए 150-रूपये जमा किये जाने के संबंध में है। ऐसे में जहां कि-विज्ञापन और करार की षर्तें दर्षाने बाबद दस्तावेज परिवादी-पक्ष की ओर से पेष न कर, छिपा लिये गये, तो परिवादी यह स्थापित नहीं कर सका है कि-किसी निर्माणाधीन या भविश्य में निर्मित होने वाले भवन के विक्रय का कोर्इ प्रस्ताव रहा है।
(8) परिवाद के कणिडका-4 में जो अनावेदक द्वारा, परिवादी को फलैट का आधिपत्य प्राप्त कर लेने बाबद सूचना का उल्लेख है, उक्त संबंध में भी सूचना का पत्र जो परिवादी को प्राप्त हुआ वह पेष नहीं किया गया, बलिक परिवादी द्वारा जो पत्र अनावेदक को दिये जाने कहे जाते हैं, उनकी ही प्रतियां प्रदर्ष सी-4, सी-7, सी-8 और परिवादी द्वारा भेजे कहे जा रहे नोटिस की प्रति सी-9 पेष की गर्इ है, जो कि- स्वयं परिवादी द्वारा सी-4 के दिनांक-13.12.2006 के अनावेदक को पेष किये गये पत्र की प्रति में ही जो परिवादी ने उल्लेख किया है, उससे यह स्पश्ट होता है कि-भवन (फलैट) पूर्व से निर्मित रहा होना, परिवादी पंजीयन राषि जमा करते समय ही जानता था। और पंजीयन राषि जमा करने के पूर्व ही उसने उक्त फलैट का निरीक्षण भी किया था, इसलिए उक्त पत्र में यह वर्णित किया गया है कि-वह एच.आर्इ.जी.-2 का उक्त मकान खरीदना चाहता है और इसलिए उसने यह भी लेख किया कि- सिवनी आफिस में हुर्इ चर्चा के अनुसार, मकान को कम्प्लीट कराने का कश्ट करें और जितनी राषि बकाया है, उसके संबंध में ऋण प्राप्त करने हेतु पत्र देने की व्यवस्था करें, ताकि भुगतान तत्काल किया जा सके।
(9) प्रदर्ष सी-4 के पत्र में जो संदर्भ-पत्र के रूप में षपथ- पत्र और आवेदन-पत्र का उल्लेख है, उनकी भी कोर्इ प्रतियां परिवादी की ओर से पेष नहीं की गर्इं और भवन को बहुत पुराना और खण्डहर होने की जो षिकायत सी-7 और सी-8 के द्वारा परिवादी ने किया था, इस संबंध में प्रदर्ष सी-6 के पत्र के द्वारा, अनावेदक के सहायकयंत्री ने उसे यह स्पश्ट अवगत करा दिया था कि-मकान 5-6 वर्श पुराना था और आवष्यकता न होने से साफ-सफार्इ नहीं करार्इ गर्इ है, जो कि- जब आधिपत्य दिया जायेगा, तब साफ-सफार्इ और पुतार्इ करार्इ जायेगी।
(10) ऐसे में कोर्इ नवीन फलैट निर्मित कर, परिवादी को विक्रय किये जाने का कोर्इ प्रस्ताव या षर्तें रही हो, ऐसा न परिवाद में कोर्इ तथ्यात्मक विषिश्ट वर्णन है और न ही इस बाबद कोर्इ तथ्यात्मक साक्ष्य पेष हुर्इ है।
(11) तब पंजीयन के पूर्व से ही निर्मित रहे उक्त भवन के एकमुष्त विक्रय किये जाने से अन्यथा कोर्इ प्रस्ताव, विज्ञापन या करार, नियम या षर्तें रही हों, ऐसा परिवादी स्थापित नहीं कर सका है। यह भी स्पश्ट है कि-परिवादी ने उसे पुराना खराब हालत का भवन होना कहकर, उसका विक्रय मूल्य अदा करने और आधिपत्य लेने से इंकार कर दिया, तब अनावेदक ने, परिवादी द्वारा जमा करार्इ गर्इ पंजीयन राषि का 25 प्रतिषत भाग काटकर, षेश राषि का चेक परिवादी को लौटा दिया, तो यह कार्यवाही ही किसी तरह अनुचित या नियम विरूद्ध रही है, यह परिवादी नहीं दर्षा सका है और परिवादी ने स्वयं इस संबंध में विज्ञापन की प्रति जानबूझकर पेष नहीं की है, ऐसे में परिवादी यह स्थापित नहीं कर सका है कि-अनावेदक ने, परिवादी के प्रति कोर्इ अनुचित प्रथा को अपनाया है या उसके प्रति कोर्इ सेवा में कमी किया है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(12) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर यह परिवाद स्वीकार योग्य न होने से और समय-बाधित होने के फलस्वरूप निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही- व्यय वहन करेंगे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
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(म0प्र0) (म0प्र0)
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