(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 1170/2015
(जिला उपभोक्ता आयोग, द्धितीय आगरा द्वारा परिवाद संख्या- 35/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14-05-2015 के विरूद्ध)
ब्रह्म दत्त शर्मा पुत्र स्व0 दुर्गा प्रसाद, निवासी ग्राम नगला नाथू पोस्ट दिगनेर जिला आगरा।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
मैनेजिंग डायरेक्टर के०सी०ए० आइस एण्ड कोल्ड स्टोरेज दिगनेर शमशाबाद रोड, दिगनेर थाना शमशाबाद जिला आगरा।
.प्रत्यर्थी
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई उपस्थित नहीं।
दिनांक. 20-07-2022
माननीय सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह, द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या– 35 सन् 2012 ब्रह्म दत्त शर्मा बनाम प्रबन्ध निदेशक के०सी०ए० आईस एण्ड कोल्ड स्टोरेज शमशाबाद रोड, दिगनेर थाना जिला आगरा में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, द्धितीय आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 14-05-2015 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
2
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्गनत निर्णय एवं आदेश मनमाना, विधि विरूद्ध और क्षेत्राधिकार से परे है तथा गलत तथ्यों पर आधारित है। अपीलार्थी/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है और परिवाद चलने योग्य है। विद्वान जिला आयोग का यह निष्कर्ष कि परिवादी ने जमा आलू को निकालने के पश्चात परिवाद प्रस्तुत किया है, गलत है। विद्वान जिला आयोग ने प्रत्यर्थी/विपक्षी का पक्ष लिया है जो गलत है। विद्वान जिला आयोग ने मात्र अनुमान और कल्पना के आधार पर परिवाद खारिज किया है जो उचित नहीं है। अत: ऐसी स्थिति में माननीय राज्य आयोग से निवेदन है कि वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव को सुना तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
हमने पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों एवं विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया।
परिवादी का संक्षेप में कथन है कि वह एक सीधा-सादा काश्तकार है और अपने खेत में आलू की फसल पैदा करता है। परिवादी ने वर्ष 2010 में 450 पैकैट आलू का बीज अच्छे किस्म का विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में रखा था। परिवादी का 450 पैकेट आलू विपक्षी की लापरवाही के कारण सड़ गया था और विपक्षी ने परिवादी का 300 पैकेट आलू तो दे दिया परन्तु 150 पैकेट आलू के बावत कहा कि आपके आलू की भरपाई कर दी जाएगी। परिवादी द्वारा बार-बार कहने के बावजूद विपक्षी ने परिवादी के 150 पैकेट आलू का कोई हिसाब नहीं किया और यह आश्वासन देता रहा कि उसके 150 पैकेट आलू की
3
कीमत का भुगतान कर देंगे। वर्ष 2011 में पुन: 232 आलू के पैकेट विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में जमा कराए गये। परिवादी अगस्त 2011 में अपने 232 पैकेट
आलू को जब बेंचने के लिए गया तो कोल्ड स्टोरेज पर विपक्षी ने कहा कि उसका उक्त आलू 250/-रू० पैकेट के हिसाब से खरीद लेते हैं और 232 पैकैट आलू का मूल्य तथा पिछले 2010 के बकाए का भुगतान कर दिया जाएगा। परिवादी बार-बार विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज पर जाकर विपक्षी से अपने 232 पैकैट आलू तथा 150 पैकैट आलू के भुगतान की मांग करता रहा किन्तु विपक्षी द्वारा परिवादी को धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जिसे विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय के द्वारा खारिज कर दिया।
हमने विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय का परिशीलन किया।
विद्वान जिला आयोग ने सभी तथ्यों को देखते हुए यह कहा कि परिवादी ने उक्त 300 पैकेट आलू निकाले जाने के संबंध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। विद्वान जिला आयोग ने इस सम्बन्ध में यह पाया कि प्रस्तुत मामले में न केवल कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने से संबंधित विवाद है बल्कि स्टेटमेंट आफ एकाउंट का भी विवाद है। अपीलार्थी/परिवादी ने कहीं भी ऐसा कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया है जिससे यह स्पष्ट हो कि उसने निश्चित बोरी आलू कोल्ड स्टोरेज में रखे हों जिसका किराया दिया हो। यह भी स्पष्ट नहीं है कि आलू के पैकेट कब जमा किये गये और कब निकाले गये। यह मामला केवल अनुमान पर आधारित है। जो पक्ष न्यायालय के समक्ष आता है उसे अपने वाद को संदेह से परे सिद्ध करना होता है किन्तु इस मामले में ऐसा
4
कोई भी अभिलेख परिवादी की ओर से प्रस्तुत नहीं किया गया है जो विश्वसनीय हो। हमारी राय में विद्वान जिला आयोग ने समस्त तथ्यों का उचित ढंग से परिशीलन करने के पश्चात निर्णय पारित किया है जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती है तदनुसार वर्तमान अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक- 14-05-2015 की पुष्टि की जाती है।
उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।.
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज दिनांक- 20-07-2022 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित/दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।.
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
कृष्णा–आशु0
कोर्ट-2