SAKAND KUMAR SHUKLA filed a consumer case on 26 May 2014 against M P E B SEONI in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/30/2014 and the judgment uploaded on 16 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक- 30-2014 प्रस्तुति दिनांक-04.04.2014
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
उपयोगकत्र्ता, स्कंद कुमार षुक्ला, आत्मज
स्वर्गीय श्री बेनी प्रसाद षुक्ला, षिक्षित
बेरोजगार-निवासी-षहीदवार्ड, पुरानी पानी
टंकी रोड, सिवनी, तहसील व जिला
सिवनी (म0प्र0)।....................................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
(1) सहायक यंत्री, (षहर) मध्यप्रदेष पूर्व क्षेत्र,
विधुत वितरण कम्पनी लिमिटेड, सिवनी,
तहसील व जिला सिवनी (म0प्र0)।
(2) न्यूषकित बुक डिपो बड़ामि काम्प्लेक्स षाप
नंबर-13 सिवनी (म0प्र0)।...................अनावेदकगणविपक्षीगण।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 26-05-2014 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसके द्वारा उपयोग किये जा रहे घरेलू विधुत कनेक्षन के माह जून-2013 की एम0पी0 आनलार्इन सुविधा से भुगतान की गर्इ राषि 990-रूपये आगे के अन्य बिलों में समायोजन न करने के कारण, अनावेदक से वापस दिलाये जाने और हर्जाना दिलाये जाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी के मकान का घरेलू विधुत कनेक्षन क्रमांक-1584412-64-19-3024360000 परिवादी के पिता के नाम पर है, जिनकी मृत्यु हो चुकी है और परिवादी उक्त सर्विस कनेक्षन का उपयोगकत्र्ता है। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-अनावेदक क्रमांक-1 विधुत कम्पनी द्वारा, उपभोक्ताओं की सुविधा हेतु सिवनी षहर में विभिन्न लोगों को एम0पी0 आनलार्इन सुविधा, बिल जमा कराये जाने हेतु प्रदान की है और परिवादी ने न्यूषकित बुक डिपो, सिवनी में आनलार्इन सुविधा प्राप्त कर, माह जून-2013 के विधुत बिल की राषि 990-रूपये का भुगतान दिनांक-16.07.2013 को किया था, जिसका भुगतान क्रमांक-10011555 और रसीद क्रमांक-एम0एस0बी0 1348648880 है। यह भी विवादित नहीं कि-उसके पष्चात अगला बिल माह जुलार्इ-2013 का परिवादी को जो प्राप्त हुआ, उसमें पिछला बकाया के रूप में 989.84-रूपये और माह जुलार्इ का देयक 635-रूपये दर्षाते हुये, कुल-1625-रूपये की मांग उक्त बिल दिनांक- 04 अगस्त-2013 के माध्यम से की गर्इ और परिवादी द्वारा, अनावेदक को अवगत करा दिया है, तो दिनांक-20.08.2013 को अनावेदक की ओर से 635-रूपये अदा करने हेतु मूल बिल में निर्देष कर दिया गया, तो परिवादी ने 635-रूपये का भुगतान कर दिया। यह भी विवादित नहीं है कि-उसके पष्चात भी माह अगस्त-2013 का जो बिल दिनांक-8 सितम्बर-2013 अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा जारी किया गया, उसमें वर्तमान देयक राषि 706-रूपये और पिछला बकाया 984.94-रूपये इस तरह कुल-1691- रूपये और विलम्ब भुगतान पर अधिभार सहित, 1708-रूपये की मांग दर्षार्इ गर्इ है। और यह भी विवादित नहीं कि-एम0पी0 आनलार्इन के माध्यम से जमा की गर्इ माह जून-2013 के बिल की राषि का आगामी बिलों में समायोजन न दर्षाये जाने पर, परिवादी की ओर से दिनांक-18.12.2013 को अनावेदक क्रमांक-1 को लिखित आवेदन भी दिया गया, तब भी उक्त राषि का समायोजननिराकरण, दावा पेष होने तक भी नहीं किया गया।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-माह जून-2013 के देयक की राषि में-से 90-रूपये का एम0पी0 आनलार्इन से अनावेदक क्रमांक-2 के माध्यम से भुगतान कर दिये जाने के बावजूद, उक्त राषि माह जुलार्इ के देयक में गलत रूप से पिछला बकाया दर्षार्इ गर्इ, जिसकी षिकायत पर, अनावेदक क्रमांक-1 ने उक्त देयक में सुधार कर दिया, पर माह अगस्त-2013 के आगामी बिल में पुन: माह-जून-2013 के देयक की राषि बकाया होना दर्षाया गया, जो कि-परिवादी ने उक्त 990-रूपये की देयक की राषि आगामी बिलों में समायोजित किये जाने या देयक राषि की मांग अनावेदक से किया, पर अनावेदक द्वारा कोर्इ ध्यान न दिये जाने पर, दिनांक-18.12.2013 को लिखित आवेदन भी दिया था, फिर भी अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी को राहत नहीं पहुंचार्इ गर्इ। अत: सेवा में की गर्इ कमी बाबद 10,000-रूपये हर्जाना दिलाने व उक्त जमा राषि 990- रूपये वापस दिलाने या आगामी बिलों में समायोजित कराने का अनुतोश चाहा गया है।
(4) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, अनावेदक क्रमांक-2 के जवाब का सार यह है कि-अनावेदक क्रमांक-2 एम0पी0 आनलार्इन का कार्य करता है, जो कि-उपभोक्ता द्वारा दिये गये बिल की राषि को आनलार्इन जमा कर देता है और परिवादी द्वारा दी गर्इ राषि का भी अनावेदक क्रमांक-2 ने 26 जुलार्इ-2013 को अपने आनलार्इन चेक क्रमांक-05507042 के माध्यम से भुगतान कर दिया था, जिसकी रसीद भी दी गर्इ थी। इस तरह परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी अनावेदक क्रमांक-2 ने नहीं की है और परिवादी कोर्इ राषि पाने का अधिकारी है, तो उसके लिए अनावेदक क्रमांक-1 जिम्मेदार है, जो कि-अनावेदक क्रमांक-2 के विरूद्ध परिवाद संधारणीय नहीं है।
(5) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, अनावेदक क्रमांक-1 के जवाब का सार यह है कि-जून माह का बिल 990-रूपये जो अनावेदक क्रमांक-2 से एम0पी0 आनलार्इन के माध्यम से जमा किया गया था, उसकी रसीद दिखाने पर जुलार्इ माह के बिल में दर्षार्इ पिछली बकाया को हटाते हुये वास्तविक बिल 635-रूपये पटाने हेतु परिवादी को निर्देषित किया गया है, इस तरह परिवादी के प्रति कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है। और परिवादी को यह अवगत करा दिया गया था कि-एम0पी0 आनलार्इन द्वारा जमा उनके खाते से 990-रूपये की राषि कम नहीं हो पार्इ है और इस बाबद समुचित कार्यवाही का आष्वासन दिया गया था, जो कि-एम0पी0 आनलार्इन मध्यप्रदेष सरकार की व्यवस्था है, जिसके द्वारा सभी प्रकार के लेनदेन का भुगतान उपभोक्ताओं के द्वारा किया जाता है। और अनावेदक क्रमांक-1 के विधुत कम्पनी से एम0पी0 आनलार्इन का संबंध है, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 की संस्था द्वारा उपभोक्ताओं से संबंधित जानकारी आनलार्इन दर्षार्इ जाती है, जिसमें उपभोक्ताओं के द्वारा जमा किये गये बिल की राषि का विवरण होता है और एम0पी0 आनलार्इन के माध्यम से जमा किये जाने वाले देयक व प्रभार की राषि एम0पी0 आनलार्इन स्वयं उपभोक्ताओं के खातों में दर्ज कर, अनावेदक क्रमांक-1 के संस्था के खाते में पोसिटंग करती है, जिसके कारण उपभोक्ताओं के खातों में अपने आप उक्त राषि का विवरण दर्ज हो जाता है। इस प्रकार अनावेदक क्रमांक-1 की संस्था उपभोक्ताओं द्वारा आनलार्इन जमा राषि के संबंध में अलग से कोर्इ कार्यवाही नहीं कर सकती है। परिवादी द्वारा माह जून-2013 के बिल का जो एम0पी0 आनलार्इन के द्वारा, अनावेदक संस्था के माध्यम से उपभोक्ता के खाते में दर्ज नहीं किया गया, इस कारण परिवादी के बिल में उक्त राषि बकाया दर्ज हो गर्इ और परिवादी की षिकायत प्राप्त होने पर, अनावेदक क्रमांक-1 की संस्था द्वारा एम0पी0 आनलार्इन व अनावेदक क्रमांक-1 के डाटा संचालिक होते हैं, उनसे बार-बार फोन पर षिकायत की गर्इ, उसके पष्चात भी एम0पी0 आनलार्इन द्वारा, दिनांक-16.04.2014 तक परिवादी के द्वारा जमा 990-रूपये की राषि अनावेदक क्रमांक-1 की संस्था के खाते में दर्ज नहीं की गर्इ, तो एम0पी0 आनलार्इन द्वारा, दिनांक-17.04.2014 को परिवादी द्वारा जमा उक्त 990-रूपये की राषि उसके विधुत कनेक्षन के खाते में दर्ज करार्इ गर्इ है, तो उसके बाद वर्तमान में अपने-आप परिवादी के आगामी बिल खाते में 990-रूपये की उक्त राषि जमा हो गर्इ, इस तरह अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है। और इस तरह बिल में त्रुटि, मध्यप्रदेष सरकार की संस्था एम0पी0 आनलार्इन की त्रुटि के कारण हुर्इ है, जो कि-एम0पी0 आनलार्इन को पक्षकार न बनाये जाने से परिवाद पोशणीय नहीं है।
(6) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या एम0पी0 आनलार्इन को पक्षकार न बनाने से
परिवाद पोशणीय नहीं है?
(ब) क्या माह जून-2013 के देयक की राषि 990-
रूपये जो दिनांक-16.07.2013 को परिवादी ने
अनावेदक क्रमांक-2 से एम0पी0 आनलार्इन के
माध्यम से जमा करा दी थी, जो अनावेदक क्रमांक-
1 ने उक्त राषि माह जुलार्इ व अगस्त के बिलों
में बकाया दर्षाते हुये, आगे उसका समायोजन करने में
अनुचित विलंब कर, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी
की गर्इ है?
(स) क्या परिवादी, अनावेदक क्रमांक-1 से उक्त राषि
वापस पाने या आगामी बिलों में समायोजित कर पाने
व अनावेदकों से हर्जाना पाने का पात्र है?
(द) सहायता एवं व्यय?े
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7) स्वयं अनावेदक क्रमांक-1 के जवाब में यह स्वीकार किया गया है कि-एम0पी0 आनलार्इन मध्यप्रदेष सरकार की व्यवस्था है, जिसके द्वारा उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान किया जाता है और एम0पी0 आनलार्इन के संबंध मध्यप्रदेष पूर्व क्षेत्र विधुत वितरण कम्पनी लिमिटेड जो अनावेदक क्रमांक-1 की संस्था है, उससे है। और एम0पी0 आनलार्इन के माध्यम से जमा किये गये देयक व प्रभार को एम0पी0 आनलार्इन उपभोक्ता के खाते में दर्ज कर, अनावेदक क्रमांक-1 की संस्था के खाते में पोसिटंग करता है, जिससे उपभोक्ताओं के खाते में उक्त राषि का विवरण दर्ज हो जाता है। तो स्पश्ट है कि-स्वयं अनावेदक क्रमांक-1 की संस्था विधुत वितरण कम्पनी ने एम0पी0 आनलार्इन को विधुत कम्पनी के उपभोक्ताओं के बिल की राषि जमा करने हेतु अधिकृत किया हुआ है, तो उक्त माध्यम से जमा की गर्इ राषि अपने रिकार्ड में जमा दर्षाने का दायित्व अनावेदक क्रमांक-1 का है, अनावेदक क्रमांक-1 ही परिवादी का सेवाप्रदाता है और एम0पी0 आनलार्इन से परिवादी का कोर्इ अनुबंध या करार नहीं है, बलिक उपभोक्ताओं के विधुत देयक जमा करने हेतु एम0पी0 आनलार्इन के अधिकृत सेन्टर उपभोक्ताओं के प्रयोजन हेतु अनावेदक क्रमांक-1 का ही बिल जमा करने का केन्द्र हुआ, तो ऐसे में एम0पी0 आनलार्इन प्रस्तुत मामले के निराकरण हेतु किसी भी तरह से पक्षकार नहीं और इसलिए एम0पी0 आनलार्इन को पक्षकार न बनाने के आधार पर, परिवाद अपोशणीय नहीं हो जाता। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(8) जून-2012 के बिजली देयक प्रदर्ष सी-5 के आनलार्इन भुगतान की अंतिम तिथि के पूर्व 990-रूपये का भुगतान कर दिया जाना प्रदर्ष सी-4 की आनलार्इन पेमेंट रसीद से स्पश्ट है, जबकि-जुलार्इ-2013 के विधुत देयक प्रदर्ष सी-3 से यह दर्षित है कि-उक्त बिल में उक्त वर्तमान माह के विधुत देयक की राषि 635-रूपये के अलावा, पिछला बकाया 989.84- रूपये की भी मांग की गर्इ थी और दिनांक-20.08.2013 को अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा पिछला बकाया के भुगतान से संतुश्ट होकर बिल में उसे निरस्त करते हुये, मात्र वर्तमान देयक की राषि 635-रूपये जमा करने निर्देषित किया गया, तो दिनांक-20.08.2013 को ही 15-रूपये विलम्ब षुल्क सहित, 650-रूपये जुलार्इ माह के देयक बाबद, अनावेदक क्रमांक-1 द्वारा प्राप्त कर लिया जाना प्रदर्ष सी-2 की रसीद से स्पश्ट है। और प्रदर्ष सी-6 के माह अगस्त-2013 के विधुत देयक राषि 706-रूपये के अलावा, पुन: पिछला बकाया 984.94-रूपये इस तरह कुल-1691-रूपये की मांग की गर्इ और 23 सितम्बर-2013 तक भुगतान न होने पर 17-रूपये विलम्ब षुल्क भी देय रहा है, लेकिन प्रदर्ष सी-1 की रसीद से स्पश्ट है कि- दिनांक-20.09.2013 को ही परिवादी से न केवल 1691-रूपये जमा कराया, बलिक 19-रूपये अतिरिक्त राषि भी जमा करा ली, जो कि-उक्त सब स्वीकृत सिथतियां भी हैं। तो यह स्पश्ट है कि-परिवादी ने माह जून-2000 तक विधुत देयक की राषि को जुलार्इ माह में ही आनलार्इन पेमेंट कर दिया था, फिर भी उक्त राषि 990-रूपये के भुगतान को अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से जारी बिलों में गणना में नहीं लेते हुये, पुन: उक्त राषि अगस्त माह के देयक में पिछला बकाया होना दर्षाते हुये जमा करा ली गर्इ।
(9) परिवादी की ओर से अनावेदक क्रमांक-1 को दिनांक-18.12.2013 को दिये गये आवेदन की पावती प्रति प्रदर्ष सी-7 में परिवादी ने उक्त तथ्यों का स्पश्ट उल्लेख करते हुये, यह कहा है कि-अनावेदक क्रमांक-2 से कहा था, तो उसने व्यक्त किया कि-वह तो रसीद दे चुका है और विधुत कम्पनी वाले ही जाने तथा एम0पी0 आनलार्इन वालों को भी दो बार सूचना- पत्र रजिस्ट्री द्वारा दिया है, इसलिए 990-रूपये के बिल का दो बार भुगतान ले-लेने बाबद निराकरण 15 दिन के अंदर करने या करवाने का निवेदन किया गया, जो कि-अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा अपने बैंक के अकाउंट के दस्तावेज की प्रति प्रदर्ष आर-1 पेष कर यह दर्षाया है कि-16 जुलार्इ-2013 को उसके खाते से मध्यप्रदेष पूर्व क्षेत्र विधुत वितरण कम्पनी को 990-रूपये की राषि का भुगतान हो चुका है। तो स्पश्ट है कि-अनावेदक क्रमांक-1 की विधुत वितरण कम्पनी द्वारा, परिवादी के माह जून-2013 के देयक की राषि भुगतान हो जाने के बावजूद, अगले मासिक बिलों में उक्त राषि बकाया दर्षार्इ जाती रही और अगस्त-2013 के देयक के भुगतान के समय पिछला बकाया बताकर, उक्त राषि पुन: परिवादी से वसूल ली गर्इ, फिर भी उक्त राषि का समायोजन नहीं किया गया, दिसम्बर-2013 में अनावेदक क्रमांक-1 को भी प्रदर्ष सी-13 का लिखित पत्र प्रेशित किया गया।
(10) अनावेदक क्रमांक-1 के जवाब में जो यह लेख किया गया है कि-दिनांक-16.04.2014 तक ही परिवादी के द्वारा आनलार्इन जुलार्इ-2013 में जमा की गर्इ 990-रूपये की राषि विधुत कम्पनी के खाते में एम0पी0 आनलार्इन द्वारा दर्ज नहीं की गर्इ, जबकि-इस बारे में अनावेदक क्रमांक-1 की संस्था द्वारा उन पर षिकायत की जाती रही और फिर एम0पी0 आनलार्इन को र्इ-मेल कर लिखित षिकायत अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा की गर्इ थी, तब दिनांक-17.04.2014 को उक्त राषि अनावेदक क्रमांक-1 की विधुत कम्पनी के खाते में आनलार्इन दर्षार्इ गर्इ, जो कि-दिनांक-16.04.2014 की सिथति दर्षाने बाबद प्रदर्ष एस-2 पेष हुआ है कि-उसमें जुलार्इ माह में किया गया भुगतान 990-रूपये का परिवादी के पिता के नाम पर विधुत कनेक्षन में दर्षित नहीं रहा और दिनांक-05.05.2014 को अनावेदक क्रमांक- 1 के द्वारा, एम0पी0 आनलार्इन 11:49 बजे भेजे गये र्इ-मेल की प्रति प्रदर्ष एस-4 पेष की गर्इ है, जिसमें उपभोक्ता द्वारा किया गया भुगतान कम्प्यूटर में दर्षित न होने और उपभोक्ता द्वारा कोर्ट-केस कर दिये जाने का हवाला रहा है और उसी दिन दिनांक-05.05.2014 को 11:54 बजे उक्त दिनांक-16.04.2013 का भुगतान 990-रूपये कम्प्यूटर में दर्षित होने लगा, यह दर्षाने प्रदर्ष एस-1 का भुगतान विवरण पेष किया गया है।
(11) कम्प्यूटर में कोर्इ डाटा आनलार्इन दर्षित न होने की त्रुटि की षिकायत र्इ-मेल के जरिये दर्ज करार्इ जाने पर निराकरण संभव रहता है, यह सामान्य बात है। तो यह स्पश्ट है कि-वास्तव में अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी की लिखित षिकायत दिसम्बर-2013 में प्राप्त हो जाने के बावजूद, उसकी षिकायत पर ध्यान नहीं दिया और दोबारा प्राप्त कर लिये गये भुगतान को न तो परिवादी को लौटाया गया, न ही समायोजित किया गया और इस मामले का संमंस मिल जाने के बाद, दिनांक-25.04.2014 को अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से अधिवक्ता उपसिथत हुये, जवाब के लिए पहले दिनांक-28.04.2014 तक का और फिर दिनांक-05.05.2014 तक का अवसर लेने के पष्चात ही वास्तव में दिनांक-05.05.2014 को ही अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से परिवादी द्वारा आनलार्इन जमा देयक राषि कम्प्यूटर में आनलार्इन दर्षित करने के लिए र्इ-मेल भेजकर सार्थक प्रयास किया गया और मात्र 5 मिनिट के अंदर ही, उक्त भुगतान डाटा में दर्षित होने लगा। तो स्पश्ट है कि-पूर्व में टेलीफोन आदि से षिकायत करने का बचाव, मात्र बनावटी व अविषिश्ट बचाव रहा है, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 का ही दायित्व था कि-जब 20 अगस्त-2013 और जुलार्इ-2013 के देयक परिवादी द्वारा उसे दिखाया गया था, तो पिछले माह की आनलार्इन जमा देयक राषि कम्प्यूटर के डाटा में दर्षित हो, इस हेतु र्इ-मेल एम0पी0 आनलार्इन को भेजकर सार्थक कार्यवाही करनी थी, जो अगले चार माह तक भी नहीं की गर्इ। और माह दिसम्बर-2013 में परिवादी द्वारा लिखित में प्रदर्ष सी-7 का आवेदन देने पर भी अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा न तो आनलार्इन डाटा सुधार की कार्यवाही की गर्इ, न ही परिवादी से दोबारा प्राप्त कर लिये गये भुगतान को उसे लौटाया गया, न ही अगले चार माह तक समायोजित किया गया, तब माह अप्रैल-2014 में परिवादी को यह परिवाद पेष करना पड़ा और आनलार्इन डाटा सुधार की कार्यवाही अनावेदक द्वारा, मात्र तब की गर्इ, जब उसे परिवाद का जवाब पेष करना आवष्यक हुआ।
(12) तो स्पश्ट है कि-अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के प्रति गंभीर सेवा में कमी की गर्इ है, जबकि-अनावेदक क्रमांक-2 का काम मात्र बिल का आनलार्इन भुगतान कर, रसीद लेने का रहा है, जो उसने किया था, इसलिए अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(13) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब के निश्कर्श के आधार पर, परिवादी, अनावेदक क्रमांक-2 से कोर्इ हर्जाना पाने का अधिकारी नहीं, लेकिन माह जून-2013 के आनलार्इन भुगतान किये गये 990-रूपये की बिल की राषि जिसे अगस्त-2013 के विधुत देयक के द्वारा, परिवादी से पुन: वसूल ली गर्इ, परिवादी पाने का अधिकारी है। और अनावेदक क्रमांक-1 ने जो परिवादी के प्रति अनुचित प्रथा अपनाते हुये उसके प्रति सेवा में कमी किया है, जिससे हुर्इ असुविधा, मानसिक कश्ट व ब्याज की नुकसानी बाबद परिवादी, अनावेदक क्रमांक-1 से 1,000-रूपये दांणिडक हर्जाना भी पाने का अधिकारी है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'स को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(द):-
(14) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ से 'स के निश्कर्शों के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) अनावेदक क्रमांक-1 ने माह जून-2013 के विधुत देयक की राषि 990-रूपये (नौ सौ नब्बे रूपये) परिवादी से दो बार वसूल कर ली है, तो दोबारा वसूल कर ली गर्इ राषि 990-रूपये (नौ सौ नब्बे रूपये) अनावेदक क्रमांक-1, परिवादी को एक माह की अवधि के अंदर वापस करे या आगामी विधुत देयक में समायोजित करे।
(ब) अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के प्रति जो अनुचित प्रथा अपनार्इ गर्इ व उसके प्रति जो सेवा में कमी की गर्इ, जिससे परिवादी को असुविधा, मानसिक कश्ट व ब्याज की आर्थिक क्षति हुर्इ है, उक्त हेतु अनावेदक क्रमांक-1, परिवादी को 1,000-रूपये (एक हजार रूपये) हर्जाना आदेष दिनांक से दो माह की अवधि के अंदर अदा करे या उक्त अवधि के अंदर परिवादी के आगामी अवधि देयक में समायोजित करे।
(स) अनावेदकगण स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे, जबकि-अनावेदक क्रमांक-1, परिवादी को कार्यवाही-व्यय के रूप में 1,000-रूपये (एक हजार रूपये) आदेष दिनांक से दो माह की अवधि के अंदर अदा करे।
(द) पूर्व क्षेत्र विधुत वितरण कम्पनी परिवादी को अदा की गर्इ
हर्जाना व कार्यवाही-व्यय की राषि त्रुटिकत्र्ता अनावेदक
क्रमांक-1 के रूप में पदस्थ रहे अधिकारी से वसूलेंगे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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