RAJ KISHOR DEHERIYA filed a consumer case on 27 Jun 2014 against M P E B KHERAPALARI in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/20/2014 and the judgment uploaded on 15 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक -20.2014 प्रस्तुति दिनांक-14.03.2014
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
राजकिषोर डहेरिया, आत्मज श्री कपूरचंद
डहेरिया, उम्र लगभग 50 वर्श, निवासी-
ग्राम-डोकररांजी, पोस्ट-डोकररांजी, तहसील
व जिला सिवनी (म0प्र0)।...................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
मध्यप्रदेष पूर्व क्षेत्र विधुत वितरण कम्पनी
लिमिटेड द्वारा-कनिश्ठ यंत्री, खैरा पलारी,
पोस्ट खैरा पलारी, तहसील केवलारी, जिला
सिवनी (म0प्र0)।............................................अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 27.06.2014 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसके घरेलू विधुत कनेक्षन क्रमांक-90-56-271056 के माह सितम्बर-2013 में देय रहे मासिक विधुत देयक, वास्तविक खपत से भिन्न मनमाने तौर पर अत्याधिक वा अनुचित रूप से जारी किये जाने के आधार पर, माह-सितम्बर-2013 से वर्तमान तक के देयकों को निरस्त कर, बगैर अधिभार के वास्तविक खपत के देयक अनावेदक से जारी कराने के आदेष व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी के घरेलू विधुत कनेक्षन अनावेदक के द्वारा प्रदान किया गया और माह जुलार्इ का देयक जो अगस्त- 2013 में 141-रूपये का भुगतान के लिए प्राप्त हुआ, उसका भुगतान परिवादी के द्वारा नहीं किया गया था, तो माह अगस्त का देयक जो माह सितम्बर-2013 में देय रहा है, उसमें 2000 यूनिट की अतिरिक्त त्रुटिपूर्ण खपत के आधार पर, 2048 यूनिट खपत का देयक परिवादी को सितम्बर-2013 में प्राप्त हुआ और परिवादी के द्वारा, उक्त देयक और उसके बाद के प्राप्त मासिक देयकों का भुगतान नहीं किया गया।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-माह सितम्बर-2013 में परिवादी को उसके विधुत कनेक्षन में माह अगस्त-2013 के खपत के विपरीत लगभग 15,477-रूपये का त्रुटिपूर्ण देयक प्राप्त हुआ, जिसका परिवादी ने व्यकितगत रूप से संपर्क कर आपतित व्यक्त किया और अनावेदक के द्वारा बिल त्रुटिपूर्ण होना मान्य कर अगले माह सही मिलाने का आष्वासन दिया गया था और कहा गया था कि-चिंता मत करो लार्इट नहीं काटी जायेगी, लेकिन पुन: माह अक्टूबर में जो देयक प्राप्त हुआ, उसमें भी दोशपूर्ण बिल जारी हुआ और अनावेदक के द्वारा, मात्र सुधार कर देने का आष्वासन दिया जाता रहा, जो कि-अनावेदक के द्वारा जानबूझकर वांछित सुधार नहीं किया जा रहा है, जिसकी वजह से परिवादी को हुर्इ असुविधा और अनावष्यक भार के लिए अनावेदक जिम्मेदार है और अनावेदक ने आपतित व निवेदन के बाद भी सुधार नहीं किया है।
(4) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-माह अगस्त के बिल का भुगतान सितम्बर-2013 में किया जाता है, जो कि-परिवादी के घरेलू विधुत कनेक्षन में माह अगस्त-2013 के मीटर का वाचन 2366 था, लेकिन जब कम्प्यूटर आपरेटर ने भूलवष 4366 वाचन बिल में दर्ज कर दिया जो लिपिकीय त्रुटि है, जिसके कारण परिवादी को 2048 यूनिट की खपत का 14,834-रूपये का देयक जारी हुआ, लेकिन परिवादी द्वारा समय रहते उसी माह में संबंधित विधुत कार्यालय में सूचित न किये जाने के कारण, उक्त देयक में आवष्यक सुधार नहीं किया जा सका और परिवादी के द्वारा माह अक्टूबर-2013 में अनावेदक के कार्यालय में सूचित किये जाने पर, अनावेदक के द्वारा, परिवादी के बिल में सुधार कार्यवाही की जाकर, मण्डल कार्यालय से अनुमति प्रदान करने की कार्यवाही की गर्इ और मण्डल कार्यालय के द्वारा, माह नवम्बर-2013 में परिवादी को 12,911-रूपये की छूट प्रदान की गर्इ, परिवादी के बिल में जो विधुत षुल्क की डयूटी राषि 1640-रूपये लगी है, विधुत षुल्क की डयूटी राषि षासन को देय रहती है, जो अनावेदक संस्था की ओर से षासन को भुगतान कर दी गर्इ है, इस कारण मंडल स्तर पर, उक्त डयूटी राषि की छूट तत्काल परिवादी को प्रदान नहीं की जा सकी और उक्त संबंध में अनावेदक संस्था द्वारा अगि्रम कार्यवाही की गर्इ है तथा आगामी माह के बिल में उसे संभागीय कार्यालय से स्वीकृति लेकर विधुत षुल्क डयूटी की राषि 1640-रूपये की अतिरिक्त छूट प्रदान की जावेगी। स्वयं परिवादी के द्वारा विधुत देयकों के भुगतान में लापरवाही की गर्इ है। माह अगस्त-2013 से अब-तक के विधुत देयकों का कोर्इ भुगतान नहीं किया गया और ऐसी सिथति में विधुत देयकों पर लगाया गया अधिभार के आधार पर, विधुत प्रदाय संहिता व विधुत बिलों में पृश्ठ भाग में छपे कणिडका क्रमांक-3 के अनुसार, षिकायत के निराकरण या बिल में कोर्इ अंतर या स्पश्टीकरण हेतु बिलों का भुगतान नहीं रोका जा सकता है। और ऐसी सिथति में परिवादी स्वयं की लापरवाही के कारण अधिभार में छूट पाने का अधिकारी नहीं है। परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है, इसलिए परिवाद निरस्त योग्य है।
(5) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या अनावेदक के द्वारा, परिवादी को जारी त्रुटिपूर्ण
विधुत देयक में उचित समय के अंदर समुचित
सुधार व उक्त हेतु उचित कार्यवाही कर, निराकरण
से परिवादी को अवगत न कराकर, परिवादी के प्रति-
सेवा में कमी की गर्इ है?
(ब) यदि हां, तो क्या परिवादी, अनावेदक से हर्जाना
पाने का अधिकारी है?
(स) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6) परिवादी की ओर से माह सितम्बर-2013 में देय रहे, माह अगस्त-2013 के प्रष्नाधीन विधुत देयक को मामले में पेष भी नहीं किया गया और उसके पूर्व माह जुलार्इ का देयक प्रदर्ष सी-4 का भी भुगतान परिवादी के द्वारा नहीं किया गया था, माह नवम्बर में देय रहे अक्टूबर-2013 के देयक की प्रति प्रदर्ष सी-2 से यह स्पश्ट है कि-अनावेदक के कार्यालय के जे.र्इ. के द्वारा, उक्त देयक की कुल बकाया हो गर्इ राषि 15,828-रूपये में-से 12,911-रूपये की राषि कम करते हुये, मात्र 2,917-रूपये की राषि का संषोधित देयक जारी किया गया, लेकिन परिवादी ने उसका भी भुगतान नहीं किया, उसके बाद भी माह नवम्बर-2013 के देयक की प्रति प्रदर्ष सी-6 से ही स्पश्ट है कि-उक्त देयक में 12,911-रूपये समायोजन गणना राषि के रूप में कम करते हुये, 3,111-रूपये का देयक जारी किया गया, परिवादी ने उक्त देयक का भी भुगतान नहीं किया और माह जनवरी में देय रहे दिसम्बर-2013 के देयक की प्रति प्रदर्ष सी-5 और माह फरवरी में देय रहे जनवरी-2014 के देयक की प्रति प्रदर्ष सी-3 का भी कोर्इ भुगतान परिवादी ने नहीं किया, यह स्वीकृत तथ्य है। तो परिवादी के द्वारा पेष देयकों से ही यह स्पश्ट हो जाता है कि-माह सितम्बर में देय रहे अगस्त माह के देयक की राषि में 2000 यूनिट के प्रभार की गणना कर, 12,911-रूपये नवम्बर माह में देय रहे अक्टूबर-2013 के देयक में ही समायोजित कर दिया गया था, फिर भी परिवादी के द्वारा, माह अक्टूबर-2013 के संषोधित देयक जिसमें पिछला बकाया भी षामिल था व उसके आगे के देयकों की राषि का भुगतान नहीं किया गया है, जो कि-त्रुटिपूर्ण रूप से 2000 यूनिट बिल में जो जोड़े गये थे, उसे निरस्त कर, संषोधित देयक में समायोजित की गर्इ राषि से यदि परिवादी संतुश्ट नहीं था, तो भी माह अक्टूबर-2013 और उसके आगे की अवघि के देयकों का अंडरप्रोटेस्ट भुगतान करना था और कोर्इ अधिक राषि वसूली गर्इ है, तो उसके समायोजन के लिए वह अनावेदक से क्लेम कर सकता था, जबकि-माह सितम्बर में देय रहे अगस्त माह के विधुत देयक के संबंध में स्वयं माह सितम्बर-2013 में परिवादी के द्वारा देयक में सुधार करने की कोर्इ षिकायत नहीं की गर्इ और उक्त षिकायत अनावेदक से परिवादी के द्वारा माह अक्टूबर-2013 में की गर्इ, इसलिए विधुत षुल्क की षासन को देय रही राषि का तत्काल समायोजन नहीं हो सका, ऐसे में त्रुटिपूर्ण रूप से माह सितम्बर-2013 में देय रहे विधुत देयक में त्रुटिपूर्ण रूप से जोड़े गये 2000 यूनिट के संबंध में कोर्इ अधिभार माह नवम्बर-2013 तक की अवधि के लिए अदायगी का पात्र परिवादी नहीं रहा है, लेकिन उक्त प्रष्नाधीन बिल के 47 यूनिट और उसके वास्तविक बिल के 47 यूनिट व उसके पूर्व के पष्चात के मासिक बिल के देयकों की राषि का भुगतान न करने से विलम्ब भुगतान अधिभार अदा करने का दायित्व परिवादी का ही है।
(7) वास्तव में बिल में कोर्इ त्रुटि हो जाना स्वयं में कोर्इ सेवा में कमी नहीं और प्रदर्ष सी-2 से यह स्पश्ट है कि-परिवादी द्वारा ऐसी त्रुटि की ओर अनावेदक के कार्यालय को ध्यान दिलाने पर देयक में भूलवष जो 2000 यूनिट की अधिक खपत दर्षार्इ गर्इ थी, उसके सुधार के लिए अनावेदक-पक्ष द्वारा कार्यवाही की जाकर, प्रदर्ष सी-2 और सी-6 के बिल में 12,911- रूपये का समायोजन भी कर दिया गया, लेकिन मात्र 12,911-रूपये का समायोजन का आधार परिवादी से गुप्त रखा जाना निषिचत रूप से अनुचित प्रथा है। जो कि-परिवादी को अनावेदक-पक्ष के द्वारा वास्तविक गणना लिखित में सूचित किया जाना चाहिये था और अनावेदक के जवाब से यह दर्षित है कि-माह जून-2014 में अनावेदक के द्वारा जवाब पेष किये जाते समय तक भी परिवादी को यह नहीं बताया गया कि-विधुत षुल्क की राषि जो षासन में जमा कर दी जाती है, उक्त विधुत षुल्क की राषि 1640- रूपये का समायोजन उक्त त्रुटिपूर्ण बिल बाबद किया जाना षेश है, जो आगे समायोजन किया जाना है और अनावेदक के जवाब में ऐसा कहीं नहीं कहा गया कि-माह मार्च-2014 के देयक में विधुत षुल्क की राषि 1640-रूपये का समायोजन किया जा चुका है और अंतिम तर्क के समय प्रदर्ष आर-1 का मार्च-2014 का देयक जो अप्रैल-2014 में देय रहा है, हाथ से भरा जाकर, प्रदर्ष आर-1 के रूप में पेष किया गया, जिसमें मार्च माह के देयक की वर्तमान खपत 50 यूनिट हाथ से लेख कर दी गर्इ, लेकिन उसमें कोर्इ रीडिंग किस दिनांक को ली गर्इ, कुल रीडिंग कितनी रही है, ऐसा भी कोर्इ उल्लेख नहीं है और ऐसा देयक परिवादी को अप्रैल-2014 में दिया गया हो, ऐसा भी अनावेदक के जवाब से दर्षित नहीं है।
(8) तो अनावेदक द्वारा जारी त्रुटिपूर्ण देयक के संबंध में विधुत षुल्क की आंकलित राषि में 1640-रूपये का समायोजन षेश रहे होने की कोर्इ सूचना परिवादी को कभी दी नहीं गर्इ और कुल कितनी राषि का समायोजन किस गणना के आधार पर किया जा रहा है, ऐसी कोर्इ सूचना परिवादी को न देकर उसके प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है, जो कि-त्रुटिपूर्ण देयक में विधुत षुल्क की राषि का समायोजन जो अनावेदक-पक्ष के द्वारा अब लगभग 8 माह बाद किया जा रहा है, इस बारे में परिवादी-पक्ष की ओर से किया यह तर्क समुचित है कि-यदि परिवादी ने यह परिवाद पेष न किया होता, तो अनावेदक के द्वारा, उक्त 1640-रूपये की राषि का समायोजन न किया जा रहा होता। जो कि-उक्त 1640-रूपये की राषि का समायोजन करने में अनावेदक के द्वारा अनुचित विलम्ब किया गया, ऐसा कोर्इ समायोजन षेश रहे होने की परिवादी को न तो कोर्इ सूचना दी गर्इ, न कभी कोर्इ गणना बतार्इ गर्इ। इस तरह अनावेदक के द्वारा, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(9) अनावेदक द्वारा, परिवादी के प्रति की गर्इ सेवा में कमी से परिवादी से जो 2000 यूनिट के अनुचित बिलिंग बाबद दो माह तक अधिभार की राषि देयक में वसूल किया जाना है, उसे कम नहीं किया जाना है, जिससे परिवादी को करीब ढ़ार्इ सौ रूपये की आर्थिक क्षति क्षति हुर्इ और अनावेदक के द्वारा समायोजन की गणना का स्पश्ट विवरण न देकर जो सेवा में कमी की गर्इ है और विधुत षुल्क की राषि का समायोजन बकाया होने के तथ्य को परिवादी से छिपाकर रखा गया और इस तरह परिवादी के प्रति की गर्इ सेवा में कमी से परिवादी को होने वाली आर्थिक क्षति, असुविधा व मानसिक कश्ट बाबद, अनावेदक से परिवादी 800-रूपये हर्जाना पाने का पात्र है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(10) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) अनावेदक के द्वारा, परिवादी के प्रति की गर्इ सेवा में
कमी से परिवादी को जो असुविधा व मानसिक-कश्ट
हुआ है व जो आर्थिक क्षति होना है, उसके संबंध में
अनावेदक, परिवादी को 800-रूपये (आठ सौ रूपये)
हर्जाना अदा करे।
(ब) अनावेदक स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेगा और
परिवादी को कार्यवाही-व्यय के रूप में 1,000-रूपये
(एक हजार रूपये) अदा करे।
(स) अनावेदक उक्त अदायगी परिवादी को आदेष दिनांक
से तीन माह की अवधि के अंदर करेगा या उक्त राषि
उक्त अवधि में परिवादी के विधुत देयक में समायोजित
करेगा।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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