Uttar Pradesh

StateCommission

A/2012/1507

Iffco Tokio General Insurance - Complainant(s)

Versus

M L Sangar - Opp.Party(s)

Dilip Mani

13 Feb 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2012/1507
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Iffco Tokio General Insurance
a
...........Appellant(s)
Versus
1. M L Sangar
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh PRESIDENT
 HON'BLE MR. Jugul Kishor MEMBER
 HON'BLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1507/2012

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-731/2010 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 25.05.2012 के विरूद्ध)

 

1. दि इफ्को टोकियो जनरल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0, 34, नेहरू प्‍लेस, नई दिल्‍ली 110019 ।

2. दि इफ्को टोकियो जनरल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0, 8, गोखले मार्ग, लखनऊ।

                                          ................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

बनाम्      

1. श्री एम0एल0 संगल पुत्र स्‍व0 श्री जानकी प्रसाद, निवासी ए-5, आवास विकास, इन्दिरा नगर, रायबरेली, यू0पी0।

2. मे0 यू0पी0 सीमेण्‍ट पाईप फैक्‍ट्री द्वारा पार्टर, 421, अंसल सिटी सेण्‍टर, बिहाइन्‍ड तुलसी ठेठर, लखनऊ।

                                       ...................प्रत्‍यर्थीगण/परिवादीगण

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री वीरेन्‍द्र सिंह, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्‍य।

3. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्‍य।

 

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित     : श्री विक्रम सोनी के सहयोगी श्री सत्‍य प्रकाश

                             पाण्‍डेय, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित    : श्री सुधांशु चौहान, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक 03.06.2015

माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      यह अपील, जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-731/2010 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 25.05.2012 के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके द्वारा जिला फोरम ने निम्‍नवत् आदेश पारित किया है :-

‘’परिवा‍दी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध एकल व संयुक्‍त रूप से निर्णीत किया जाता है और आदेश दिया जाता है कि विपक्षीगण निर्णय से दो माह के भीतर परिवादीगण को बीमित धनराशि का 75 प्रतिशत अदा करेंगे। इसके अतिरिक्‍त विपक्षीगण परिवादी को 5,000/- रू0 मानसिक कष्‍ट व 2,000/- रू0 वाद व्‍यय भी अदा करेंगे।

परिवादीगण को अदा होने वाली 75 प्र‍तिशत धनराशि पर दावा दायर करने की तिथि से रकम अदा होने की तिथि तक विपक्षीगण 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज भी अदा करेंगे।‘’

अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री विक्रम सोनी के सहयोगी श्री सत्‍य प्रकाश पाण्‍डेय एवं प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुधांशु चौहान उपस्थित हैं। विद्वान अधिवक्‍तागण को विस्‍तार से सुना गया और अभिलेख का अवलोकन किया है।

प्रकरण के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादीगण/प्रत्‍यर्थीगण ने दिनांक 06.06.2008 को रू0 7,37,302/- अदा करके वाहन खरीदा, जिसमें रू0 21,300/- के सामान लगवाये गये। वाहन खरीदने हेतु रू0 6,25,000/- एचडीएफसी बैंक से लोन लिया गया तथा गाड़ी का बीमा विपक्षी संख्‍या-1 के यहां से कराया गया, जिसकी वैद्यता दिनांक 06.06.2008 से दिनांक 05.06.2010 तक थी। बीमा प्रीमियम की धनराशि रू0 37,166/- की थी। प्रश्‍नगत वाहन दिनांक 13.06.2008 को श्री विवेक चन्‍द्रा, सेक्‍टर-एफ जानकीपुरम, लखनऊ जो कि परिवादी संख्‍या-1 के रिश्‍तेदार हैं, के मकान से बी-2/130, सेक्‍टर-एफ, जानकीपुरम, लखनऊ के सामने से शायं 7.00 बजे चोरी हो गया, जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट उसी दिन 8.30 मिनट पर दर्ज करायी गयी तथा दिनांक 23.06.2008 को इसकी सूचना विपक्षी संख्‍या-1 को दी गयी। इसके उपरान्‍त आरटीओ तथा गाड़ी की विक्रेता कम्‍पनी को भी सूचना दी गयी। विपक्षी की ओर से दिनांक 30.09.2008 को पत्र भेजकर यह सूचित किया गया कि गाड़ी चोरी होने की सूचना देर से दी गयी है, जिससे पॉलिसी की शर्त संख्‍या-1 और 8 का उल्‍लंघन हुआ है। अक्‍टूबर, 2008 में परिवादी अपने घरेलू सामान को अपने घर और आफिस नये मकान में स्‍थानान्‍तरित कर रहा था इस बीच गाड़ी की चाभी गायब हो गयी। चोरी के मुकदमें में फाइनल रिपोर्ट दिनांक 17.01.2009 को भेजी गयी और मजिस्‍ट्रेट ने दिनांक 26.04.2009 के आदेश द्वारा अन्तिम रिपोर्ट स्‍वीकार कर ली। करीब एक वर्ष व्‍यतीत हो जाने के बाद श्री मुकेश माथुर, सर्वेयर बीमा कम्‍पनी आये तो उन्‍हें बताया गया कि चाभी कहीं गायब हो गयी है एवं दिनांक 08.06.2009 को सर्वेयर को सभी कागजात दे दिये गये। बीमा कम्‍पनी ने दूसरा सर्वेयर नियुक्‍त किया और परिवादीगण से कहा गया कि दोनों चाभियां गाड़ी के भीतर छूट गयी थी तो आपसे चाभी नहीं मांगी जायेगी और आपका क्‍लेम जल्‍दी मिल जायेगा। इस पर परिवादी ने विश्‍वास करते हुए बयान दे दिया, लेकिन दिनांक 21.10.2009 को विपक्षी संख्‍या-1 द्वारा पत्र भेजा गया, जिसमें परिवादीगण का दावा खारिज कर दिया गया, जिससे क्षुब्‍ध होकर प्रश्‍नगत परिवाद योजित करना पड़ा।

जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण/अपीलार्थीगण द्वारा जवाबदावा दाखिल करते हुए कथन किया गया कि परिवादी संख्‍या-1 उपभोक्‍ता नहीं है। उनके द्वारा यह भी कथन किया गया कि परिवादी का गाड़ी मालिक होना, परिवादी का बीमा होना, परिवादी द्वारा एफआईआर लिखाया जाना, चोरी की सूचना दिया जाना और बीमा शर्त संख्‍या-1 व 8 का उल्‍लंघन की सूचना परिवादी को दिया जाना स्‍वीकार किया है। विपक्षीगण ने अपने लिखित कथन में कहा है कि परिवादी ने अपने बयान में दोनों चाभियां छोड़ना बताया है, जिसके आधार पर उसका दावा खारिज किया गया है।

     जिला फोरम ने दोनों पक्षों को सुनने तथा पत्रावली का अनुशीलन व परिशीलन करने के उपरान्‍त यह निष्‍कर्ष दिया गया कि प्रश्‍नगत वाहन की चाभियों के बावत परिवादी द्वारा लापरवाही किया जाना पाया जाता है, परन्‍तु माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय की विधि व्‍यवस्‍था नेशनल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0 बनाम नितिन खण्‍डेलवाल IV (2008) CPJ (SC) एवं माननीय राष्‍ट्रीय आयोग की विधि व्‍यवस्‍था नेशनल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0 बनाम कमल सिंघल IV (2010) CPJ 297 (NC) में प्रतिपादित सिद्धान्‍त के दृष्टिगत परिवादी नॉन स्‍टेण्‍डर्ड बेसिस पर बीमा की धनराशि का 75 प्रतिशत पाने का अधिकारी है। अ‍त: जिला फोरम द्वारा उपरोक्‍त वर्णित आदेश पारित किया गया।

     अपीलार्थी की ओर से मुख्‍य रूप से यह तर्क किया गया कि जिला फोरम द्वारा प्रश्‍नगत प्रकरण में परिवादी के वाहन की चाभियों के रख-रखाव के सन्‍दर्भ में लापरवाही को स्‍वीकार किया गया। ऐसी स्थिति में बीमा की शर्तों का उल्‍लंघन होना स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है। अत: परिवादी/प्रत्‍यर्थी बीमा के सन्‍दर्भ में कोई धनराशि प्राप्‍त करने के अधिकारी नहीं हैं और इस सन्‍दर्भ में अपीलार्थी की ओर से यह भी तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि बीमा के सन्‍दर्भ में पक्षकारान के बीच जो संविदा है उसका पालन करना पक्षकारान के लिए अनिवार्य होता है और इस तथ्‍य के दृष्टिगत जिला फोरम द्वारा पारित आदेश विधि अनुकूल नहीं है, अत: अपास्‍त होने योग्‍य है।

     उपरोक्‍त तर्क के विरोध में प्रत्‍यर्थी की ओर से माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय की विधि व्‍यवस्‍था नेशनल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0 बनाम नितिन खण्‍डेलवाल IV (2008) CPJ (SC) की ओर ध्‍यान आकर्षित कराते हुए यह तर्क किया गया कि सर्वप्रथम प्रश्‍नगत प्रकरण में परिवादी/प्रत्‍यर्थी की कोई लापरवाही नहीं है और जिला फोरम द्वारा परिवादी/प्रत्‍यर्थी की लापरवाही के सन्‍दर्भ में जो निष्‍कर्ष दिया गया है वह स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है, परन्‍तु यदि परिवादी/प्रत्‍यर्थी की लापरवाही स्‍वीकार भी कर ली जाती है तो माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय की उपरोक्‍त वर्णित विधि व्‍यवस्‍था के दृष्टिगत परिवादी/प्रत्‍यर्थी नॉन स्‍टेण्‍डर्ड बेसिस पर बीमा धनराशि का 75 प्रतिशत पाने का अधिकारी है। चाभियों के सन्‍दर्भ में जो लापरवाही की बात कही जा रही है वह चोरी के मामलें में बीमा शर्तों के उल्‍लंघन के सम्‍बन्‍ध में ऐसे तथ्‍य विशेष महत्‍व नहीं रखते हैं। माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय की उपरोक्‍त वर्णित विधि व्‍यवस्‍था के दृष्टिगत माननीय राष्‍ट्रीय आयोग की विधि व्‍यवस्‍था नेशनल इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0 बनाम कमल सिंघल IV (2010) CPJ 297 (NC) में भी चोरी के मामलें में जहां ड्राइवर चाभियों को वाहन में लगा हुआ छोड़कर पेशाब करने चला गया था। ऐसे प्रकरण में नॉन स्‍टैण्‍डर्ड बेसिस पर बीमा धनराशि के सन्‍दर्भ में जिला फोरम द्वारा जो अनुतोष प्रदान किया गया है, वह विधि अनुकूल है।

     दोनों विद्वान अधिवक्‍तागण को सुनने एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलखों का अवलोकन करने के उपरान्‍त हम इस निष्‍कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रश्‍नगत प्रकरण के तथ्‍य एवं परिस्थितियों को देखते हुए नॉन स्‍टैण्‍डर्ड बेसिस पर बीमा धनराशि की 75 प्रतिशत धनराशि का भुगतान परिवादी/प्रत्‍यर्थी को किया जाना न्‍यायसंगत और उचित प्रतीत होता है एवं जिला फोरम द्वारा इस सन्‍दर्भ में दिये गये निष्‍कर्ष में किसी प्रकार की कोई विधिक त्रुटि होना नहीं पायी जाती है।

     जिला फोरम द्वारा प्रश्‍नगत धनराशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज हेतु अनुतोष प्रदान किया गया है। ऐसी स्थिति में अलग से क्षतिपूर्ति हेतु आदेश का पारित किया जाना उचित नहीं पाया जाता है। अत: रू0 5,000/- की क्षतिपूर्ति के बावत पारित आदेश अपास्‍त किये जाने योग्‍य है। तदनुसार प्रस्‍तुत अपील आंशिक स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

आदेश

     अपील आंशिक स्‍वीकार की जाती है। जिला फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-731/2010 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 25.05.2012 के अन्‍तर्गत रू0 5,000/- क्षतिपूर्ति हेतु पारित आदेश अपास्‍त किया जाता है एवं शेष आदेश की पुष्टि की जाती है।

 

 

 

 

    (न्‍यायमूर्ति वीरेन्‍द्र सिंह)       (जुगुल किशोर)          (संजय कुमार)    

           अध्‍यक्ष                   सदस्‍य                   सदस्‍य                      

लक्ष्‍मन, आशु0

   कोर्ट-1

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Jugul Kishor]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

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