मौखिक
राज्य उपभोक्ता विवादप्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग,कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या 1128 सन 2003 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.06.2008 के विरूद्ध)
अपील संख्या 1756 सन 2008
असिस्टेंट जनरल मैनेजर केस्को उपखण्ड छवेलेपुरवा जाजमऊ कानपुर नगर ।
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
एम0एल0 खत्री वयस्क पुत्र स्व0 सुगनी चन्द्र निवासी 354 ए रामादेवी नगर कानपुर ।
. .........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष ।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री इसार हुसैन।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - कोई नहीं ।
दिनांक:- 22.12.2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या 1128 सन 2003 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.06.2008 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में, वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने एक कामर्शियल कनेक्शन प्राप्त करने हेतु विपक्षी सं०.2 के यहा दिनाक 15.12.2000 को आवेदन पत्र दिया था तथा 600.00 रू० सिक्योरिटी मनी जमा की गई जिसकी रसीद भी विपक्षी सं०.2 द्वारा जारी की गई । विपक्षी द्वारा रु० 848.00 कनेक्शन फीस व मीटर फीस आदि में जमा कराया तथा कहा गया कि कुछ ही दिन में लाईनमैन आकर मेनलाइन जोडकर मीटर स्थापित कर देगा परन्तु विपक्षीगण द्वारा लम्बे समय तक न तो कोई लाईन दी गई और न ही कनेक्शन जोड़कर मीटर स्थापित किया गया। जबकि परिवादी बराबर इस सम्बन्ध में दौड़भाग करता रहा बल्कि विपक्षीगण द्वारा परिवादी को माह दिसम्बर 2000 का विल भी भेज दिया गया जो कि विपक्षीगण की त्रुटिपूर्ण सेवा है। विपक्षीगण द्वारा परिवादी का विद्युत कनेक्शन न देने से लम्बे समय तक क्षति होती रही और परिवादी का विद्युत कनेक्शन का उद्देश्य ही सफल न हो सका तथा परिवारी अब विपक्षीगण का विद्युत कनेक्शन नही चाहता है। अतः परिवादी ने परिवाद प्रस्तुत कर प्रार्थना की कि परिवादी द्वारा पूर्व मे आवेदित विद्युत कनेक्शन जिसका बुक नं0 7688 तथा कनेक्शन नं० 140 है, को कैन्सिल किया जाए तथा विपक्षीगण द्वारा जारी समस्त विद्युत बिल निरस्त किए जाए।
विपक्षीगण द्वारा कथन किया गया कि परिधादी को दिनांक 15.12.2000 को दो किलोवाट का कामर्शियल कनेक्शन चालू कर दिया गया था और तब से परिवादी बराबर विद्युत का उपयोग कर रहा है और परिवादी द्वारा 3 वर्ष से अधिक समय तक उपभोग करने के उपरान्त बिल जमा नही किया गया और न ही कोई विल आदि के सम्बन्ध में शिकायत की गयी। परिवादी द्वारा विल जमा न करने पर विपक्षी द्वारा अधिभार जोडकर विल भेजा गया है। परिवादी को विल प्राप्त होने के बाद ही परिवादी द्वारा सेवा में त्रुटि का कारण दिखाकर उपरोक्त वाद दाखिल किया गया ।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्धान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन के तर्को को सुना गया । प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
दौरान बहस अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन द्वारा कथन किया गया कि विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग, द्वारा अपने निर्णय दिनांक 28.06.2008 में जो 1440.00 रू0 तथा उस पर 12 प्रतिशत ब्याज लगाया गया है, वह अनुचित है।
प्रत्यर्थी की ओर से इस पर आपत्ति करने हेतु कोई उपस्थित नहीं है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता को सुनने के उपरान्त प्रस्तुत अपील, जो इस न्यायालय के सम्मुख विगत – 15 वर्षों से लम्बित है को आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विद्धान जिला आयोग द्वारा मानसिक एवं वादव्यय के रूप में आरोपित 1500.00 की धनराशि को समाप्त किया जाता है एवं जो 12 प्रतिशत ब्याज आरोपित किया गया है उसे अत्यधिक पाते हुए 12 प्रतिशत के स्थान पर 06 (छह) प्रतिशत संशोधित किया जाता है। जिला आयोग के निर्णय का शेष भाग/आदेश यथावत रहेगा।
अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त आदेश का अनुपालन दो माह की अवधि में किया जाना सुनिश्चित करें। तदनुसार अपील अंतिम रूप से निस्तारित की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
सुबोल श्रीवास्तव
पी0ए0(कोर्ट नं0-1)