(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2024/2010
Ghaziabad Development Authority
Versus
M. Govind Kutti, son of Sri M. Chandu Nair
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री पियूष मणि त्रिपाठी, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं
दिनांक :17.10.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-526/2002, एम. गोविन्द कुट्टी बनाम चेयरमैन गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में विद्वान जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 12.11.2010 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर केवल अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवादी द्वारा जमा राशि 18 प्रतिशत प्रतिवर्ष के ब्याज के साथ वापस लौटाने तथा 1,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी द्वारा कोड सं0 615 इन्द्रापुरम आवास योजना के अंतर्गत 18 जून 1991 को एक फ्लैट के लिए पंजीकरण कराया। दिनांक 02.01.1992 द्वारा परिवादी को सूचित किया गया कि ग्राउण्ड फ्लोर का एक आवास आरक्षित कर दिया गया है, जिसका अनुमानित मूल्य 58,000/-रू0 है। इसके पश्चात परिवादी को 15 जून 1994 को एक पत्र मिला, जिसमें 4 किश्तें जमा करने के लिए निर्देश दिया गया, जिसका अनुपालन कर दिया गया। इसके पश्चात 23 जनवरी 1995 के पत्र द्वारा प्राधिकरण ने परिवादी को सूचना दी गयी कि ग्राउण्ड फ्लोर का आवास देने मे असमर्थ हैं और फर्स्ट, सैकेण्ड या थर्ड फ्लोर पर आवास लेने के लिए सहमति देने के लिए कहा गया। दिनांक 23.02.1995 को परिवादी ने फर्स्ट फ्लोर पर अपने आवास के लिए सहमति दिया, परंतु फर्स्ट फ्लोर पर भी फ्लेट आवंटित नहीं किया गया और दिनांक 26.09.1996 को एक पत्र भेजा गया कि यदि वह रिफण्ड चाहता है तब मूल रसीद बैंक से प्राप्त कर दाखिल करे। इन्हीं तथ्यों को स्थापित मानते हुए जिला उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया है।
4. अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि स्वयं परिवादी ने रिफण्ड वापस लेने का अनुरोध किया गया था, परंतु ऐसा कोई पत्र पत्रावली पर मौजूद नहीं है, जिससे यह साबित हो कि परिवादी ने रिफण्ड लेने का अनुरोध किया, बल्कि प्राधिकरण का एक पत्र मौजूद है, जिसमे लिखा है कि रिफण्ड वापस लेना चाहते हैं तब मूल रसीद प्रस्तुत करें। यही कथन परिवादी ने परिवाद पत्र में अंकित किया है कि प्राधिरण ने स्वयं रिफण्ड लेने के लिए लिखा है। प्राधिकरण को इस तथ्य से भी इंकार नहीं है कि प्रारंभ में परिवादी को ग्राउण्ड फ्लोर का फ्लैट आवंटित किया था, जिसे बाद में प्रदान करने से इंकार कर दिया गया, इसलिए परिवादी द्वारा जमा राशि को वापस लौटाने का आदेश एवं क्षतिपूर्ति का आदेश विधिसम्मत है, सिवाय इसके कि ब्याज दर अत्यधिक उच्च दर से निर्धारित किया गया। अत: ब्याज दर 18 प्रतिशत के स्थान पर 09 प्रतिशत किया जाना उचित है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारापारित निर्णय/आदेश में ब्याज की देयता 18 प्रतिशत के स्थान पर 09 प्रतिशत की दर से देय होगी। शेष निर्णय/आदेश पुष्ट किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2