Uttar Pradesh

StateCommission

A/1995/1566

Deepa Sharma - Complainant(s)

Versus

Lucknow Medical Center - Opp.Party(s)

Rajesh Chaddha

09 Nov 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1995/1566
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Deepa Sharma
A
...........Appellant(s)
Versus
1. Lucknow Medical Center
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Bal Kumari MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 09 Nov 2016
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-1566/1995

(मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, बांदा द्वारा परिवाद संख्‍या 580/1994 में पारित आदेश दिनांक 30.08.1995 के विरूद्ध)

श्रीमती दीपा शर्मा पत्‍नी श्री रामजी शर्मा नि0 मोहल्‍ला कटरा शहर व जिला बांदा (उ0प्र0)          ...................अपीलार्थी/परिवादिनी

बनाम

लखनऊ मेडिकल सेन्‍टर प्रा0लि0, बांदा शाखा द्वारा मालिक डा0 रफीक निवासी मोहल्‍ला अलीगंज शहर व जिला बांदा (उ0प्र0)

                                  ................प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य।

3. माननीय श्री विजय वर्मा, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा,                                     

                           विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित   : श्री वासुदेव मिश्रा।

                            विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक: 09-11-2016

 

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद संख्‍या-580/1994 श्रीमती दीपा शर्मा बनाम लखनऊ मेडिकल सेन्‍टर प्राइवेट लिमिटेड में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, बांदा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 30.08.1995 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्‍त परिवाद की परिवादिनी श्रीमती दीपा शर्मा की ओर से धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवादिनी का परिवाद खारिज कर दिया है, जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवादिनी/अपीलार्थी ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

 

 

-2-

अपीलार्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा एवं प्रत्‍यर्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्‍ता श्री वासुदेव मिश्रा उपस्थित आए।

हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि और साक्ष्‍य के विरूद्ध है। जिला फोरम ने जो यह निष्‍कर्ष निकाला है कि विपक्षी ने परिवादिनी का अल्‍ट्रासाउण्‍ड बिना कोई शुल्‍क लिए मुफ्त में किया है वह आधार रहित और त्रुटिपूर्ण है।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम ने मात्र परिवाद इसी आधार पर निरस्‍त किया है कि विपक्षी ने अल्‍ट्रासाउण्‍ड मुफ्त में किया है। अत: यह परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत ग्राह्य नहीं है। जिला फोरम ने गुणदोष के आधार पर कोई निर्णय पारित नहीं किया है। अत: अपील स्‍वीकार करते हुए वाद जिला फोरम को पुन: विधि के अनुसार निर्णय हेतु प्रत्‍यावर्तित किया जाना उचित है।

प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के अनुकूल है।

प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी ने जिला फोरम के समक्ष अपने लिखित कथन में यह स्‍पष्‍ट रूप से अभिकथन किया है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने परिवादिनी का अल्‍ट्रासाउण्‍ड मुफ्त में बिना किसी शुल्‍क के किया है और परिवादिनी जिला फोरम के समक्ष यह साबित करने में असफल रही है कि उसने विपक्षी से अल्‍ट्रासाउण्‍ड फीस देकर कराया था।

हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि उसे दो माह का गर्भ था। दिनांक 25.05.1994 को जिला अस्‍पताल बांदा में वह भर्ती हो गयी

 

-3-

थी। अस्‍पताल की मेडिकल आफीसर श्रीमती अल्‍का जैन ने उसे अल्‍ट्रासाउण्‍ड कराने के सलाह दी थी। इस पर उसने प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के यहॉं दिनांक 25.05.1994 को रात 9 बजे अल्‍ट्रासाउण्‍ड कराया। तब प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने यूटरीन प्रेगनेंसी की रिपोर्ट दी। परिवादिनी का कथन है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा दी गयी अल्‍ट्रासाउण्‍ड रिपोर्ट गलत थी। अत: उसने गलत रिपोर्ट देकर सेवा में त्रुटि की है।

प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने जिला फोरम के समक्ष अपने लिखित कथन में अन्‍य बातों के अलावा यह कहा है कि प्रत्‍यर्थी के यहॉं कार्यरत डा0 जगदीश नारायण चंनसौरिया अपीलार्थी/परिवादिनी के पति    के मित्र थे। अत: उनके कहने पर प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने अपीलार्थी/परिवादिनी का अल्‍ट्रासाउण्‍ड मुफ्त में किया था और   कोई फीस नहीं लिया था।

जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उनके द्वारा प्रस्‍तुत साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त यह निष्‍कर्ष निकाला है कि अपीलार्थी/परिवादिनी का अल्‍ट्रासाउण्‍ड बगैर शुल्‍क लिए मुफ्त में किया गया था। अत: वह उपभोक्‍ता की परिभाषा में नहीं आती है।

निर्विवाद रूप से अपीलार्थी/परिवादिनी के अल्‍ट्रासाउण्‍ड की फीस की कोई रसीद जिला फोरम अथवा आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं की गयी है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने 250/-रू0 फीस लिया था, परन्‍तु रसीद नहीं दिया था। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में उल्‍लेख किया है कि परिवादिनी का कथन है कि उसके पति रामजी शर्मा व उनके मित्र मुक्‍ता प्रसाद मिश्र व राजेश के समक्ष 250/-रू0 विपक्षी को दिए गए थे। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्‍लेख किया है कि डा0 जगदीश नारायण चंनसौरिया ने  शपथ पूर्वक कहा है कि परिवादिनी का अल्‍ट्रासाउण्‍ड अधीनस्‍थ सहयोगी के केस के रूप में प्रत्‍यर्थी/विपक्षी डा0 रफीक ने 9 बजे रात में दिनांक 25.05.1994 को किया था। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह भी उल्‍लेख किया है कि उपरोक्‍त  मुक्‍ता  प्रसाद  मिश्र,  जो

 

 

-4-

परिवादिनी के अनुसार अल्‍ट्रासाउण्‍ड की फीस दिए जाने के समय उपस्थित थे, ने भी कहा है कि परिवादिनी का अल्‍ट्रासाउण्‍ड बिना शुल्‍क के किया गया था।

उभय पक्ष के अभिकथन एवं उनकी ओर से जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त हम इस मत के हैं कि जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश में जो यह निष्‍कर्ष निकाला है कि अपीलार्थी/परिवादिनी का अल्‍ट्रासाउण्‍ड प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने मुफ्त में बिना किसी शुल्‍क के किया था वह साक्ष्‍य और विधि के विपरीत नहीं कहा जा सकता है। अत: जिला फोरम द्वारा इस सन्‍दर्भ में निकाले गए निष्‍कर्ष में किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है।

चूँकि अल्‍ट्रासाउण्‍ड बिना शुल्‍क के मुफ्त में किए जाने पर धारा-2 (1) (डी) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी उपभोक्‍ता नहीं है, अत: जिला फोरम ने परिवादिनी का परिवाद जो आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा खारिज किया है वह अनुचित और अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।

उपरोक्‍त निष्‍कर्षों के आधार पर हम इस मत के हैं कि वर्तमान अपील बल रहित है और निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

     वर्तमान अपील निरस्‍त की जाती है।

 

 

(न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)   (बाल कुमारी)    (विजय वर्मा)       

    अध्‍यक्ष                   सदस्‍य         सदस्‍य          

 

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1     

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Bal Kumari]
MEMBER

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