मौखिक
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
परिवाद संख्या 95/2019
राकेश कुमार श्रीवास्तव उम्र लगभग 65 वर्ष पुत्र स्व० श्री सत्य प्रकाश श्रीवास्तव निवासी 1/875 सेक्टर-1 गोमती नगर एक्टेंशन, जिला लखनऊ।
परिवादी
बनाम
1- लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी, लखनऊ प्राधिकरण भवन, विपिन खण्ड गोमती नगर लखनऊ द्वारा वाइस प्रेसीडेंट।
2- सेक्रेटरी लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी, लखनऊ प्राधिकरण भवन, विपिन खण्ड गोमती नगर लखनऊ।
विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
परिवादी की ओर से उपस्थित: विद्वान अधिवक्ता, श्री एस०एन० पाण्डेय
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री दिलीप कुमार शुक्ला
दिनांक- 22-08-2022
माननीय श्री सुशील कुमार सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद, परिवादी राकेश कुमार श्रीवास्तव द्वारा विपक्षी लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी, लखनऊ प्राधिकरण भवन, विपिन खण्ड गोमती नगर लखनऊ द्वारा वाइस प्रेसीडेंट के विरूद्ध धारा-17(1)(ए) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।
2
ग्राह्यता के बिन्दु पर दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया।
परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एस०एन० पाण्डेय उपस्थित हुए।
विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दिलीप कुमार शुक्ला उपस्थित हुए।
परिवादी द्वारा यह परिवाद, विपक्षी लखनऊ विकास प्राधिकरण के विरूद्ध इन तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने उत्तराखण्ड कोआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी से एक प्लॉट वर्ष 1998 में ग्राम मकदूमपुर में क्रय किया था जिसका अधिग्रहण लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2000 में किया गया। परिवादी ने इस भूखण्ड पर डबल स्टोरी मकान बनवाया था तथा ऋण प्राप्त किया था। प्राधिकरण द्वारा आंशिक भुगतान 13,28,703/-रू० किया गया और शेष भुगतान नहीं किया गया।
इस परिवाद पत्र के माध्यम से यह अनुतोष मांगा गया है कि अधिग्रहण किये गये प्लाट का पूर्ण भुगतान विपक्षीगण से दिलाया जाए। उल्लेखनीय है कि किसी भी भूमि के अधिग्रहण की कार्यवाही Land acquisition act के अन्तर्गत होती है। प्लाट का निर्धारण Land acquisition officer द्वारा किया जाता है। वर्तमान परिवाद सिविल प्रकृति का विवाद है। यह विवाद उपभोक्ता विवाद नहीं है क्योंकि परिवादी द्वारा विपक्षीगण से कोई वस्तु क्रय नहीं की गयी है और न ही किसी प्रकार की कोई सेवा शुल्क देकर प्राप्त की गयी है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद सन्धार्य नहीं है, तदनुसार वर्तमान परिवाद संधारणीय न होने के कारण खारिज होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान परिवाद संधारणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
कृष्णा–आशु0 कोर्ट नं0 1