प्रकरण क्र.सी.सी./14/183
प्रस्तुती दिनाँक 16.06.2014
जयदेव सिंग लाल आ. हरभजन सिंग, उम्र 40 वर्ष, निवासी-क्वा. नं.- 24, मालवीय नगर, दुर्ग, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
1. लोट्स इलेक्ट्रानिक सुपर मार्केट, (ए. यूनिट आफ सी.पी.आर. डिस्ट्रीब्यटर्स प्राईवेट लिमिटेड), द्वारा-मैनेजर, पता-आर.एम. प्लाजा, जेल रोड़, कचहेरी चैक, रायपुर तह. व जिला-रायपुर (छ.ग.)
2. स्टार कस्टमर केयर, (सोनी इलेक्ट्रानिक कंपनी, द्वारा-मैनेजर, पता-नगर निगम के सामने, सुपेला भिलाई, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
3. सोनी इंडिया प्राईवेट लिमिटेड, द्वारा-मैनेजर, पता- ए.31, मोहन कापेटिंव इंड्रसटियल स्टेट, मथुरा रोड़, न्यू दिल्ली, 110044
- - - - अनावेदकगण
परिवादी द्वारा श्री ए.के.राव अधिवक्ता।
अनावेदक क्र.1 एकपक्षीय।
अनावेदक क्र.2 द्वारा श्री पारस महोबिया अधिवक्ता।
अनावेदक क्र.3 द्वारा श्री संजय तिवारी अधिवक्ता।
आदेश
(आज दिनाँक 09 जनवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण से डी.वी.डी. की कीमत 12,700रू. मय ब्याज या उसी माॅडल का नया डी.वी.डी., मानसिक कष्ट हेतु 10,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण में निर्विवादित तथ्य है कि अनावेदक क्र.1 ने सोनी कंपनी का डी.वी.डी. सीस्टम एम.एस.सी. माडल जी.जेड.आर.05 डी.(6149557) दि.07.09.2012 को बिल क्र.85 सी.1203905 के माध्यम से नगद रकम 12,700रू. प्राप्त कर परिवादी को विक्रय किया था।
(3) प्रकरण अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध एकपक्षीय हैं।
परिवाद-
(4) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने अनावेदक क्र.1 के पास से सोनी कंपनी का डी.वी.डी. सीस्टम एम.एस.सी. माॅडल जी.जेड.आर.05डी.(6149557) दि.07.09.2012 को बिल क्र.85 सी.1203905 के माध्यम से नगद रकम 12,700रू. दे कर क्रय किया था, जिसपर अनावेदक क्र.1 ने एक वर्ष की गारंटी दी गयी थी। उक्त डी.वी.डी. एक वर्ष के भीतर ही नहीं चल पाया और खराबी आ गयी, जिसकी सूचना अनावेदकगण को तत्काल परिवादी द्वारा समय पर दिया गया था, तब अनावेदक क्र.1 द्वारा अनावेदक क्र.2 सर्विस संेटर के पास जाने की सलाह दी। परिवादी द्वारा उक्त डी.वी.डी. को दि.29.08.13 को अनावेदक क्र.2 के पास लेकर गया, जिसे अनावेदक क्र.2 द्वारा दि.08.11.13 एवं 17.01.2014 एवं 25.03.14 को सुधार कार्य किया गया। आवेदक द्वारा उक्त दिनांक को डी.वी.डी. को चलाकर दिखाने के लिए कहा गया तब भी डी.वी.डी. नहीं चला। अनावेदकगण द्वारा समय की मांग किया गया और सुधार कार्य नहीं हो पाया और अनावेदकगण द्वारा परिवादी को लिख कर दिया गया कि डी.वी.डी. नहीं चल पा रहा है तथा सी.डी., डी.वी.डी. कैसेड फस रहा है और सिस्टम के अंदर नहीं जा रहा है। अनावेदक क्र.1 द्वारा परिवादी को दोषपूर्ण डी.वी.डी. बेच दिया, जिसकी जानकारी अनावेदक को थी। उक्त डी.वी.डी. रिपेयर हेतु अनावेदक क्र.2 के पास आज भी है, जो आज तक परिवादी को बनकर प्राप्त नहीं हुआ है। परिवादी उक्त डी.वी.डी. को अपने घर में अनेक प्रकार के हो रहे खुशी माहौल एवं अन्य प्रकार के समारोह कार्य के लिए लिया गया था तथा परिवादी का परिवार संगीत सुनने एवं देखने का शौकिन है, इस कारण परिवादी अच्छी कंपनी का डी.वी.डी. लिया था। परिवादी उक्त डी.वी.डी. का उपयोग नहीं कर पाया और अपने पोते एवं बच्चे का जन्म दिन के लिए बाहर से सिस्टम किराये में लाकर उपयोग किया गया है, जिसके कारण परिवादी को काफी आर्थिक क्षति हुई है। परिवादी द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से अनावेदकगण को दि.20.05.2014 को रजिस्टर्ड मय पावती सूचना मांग पत्र भेजा गया, जिसके प्राप्ति उपरांत भी अनावेदकगण द्वारा कोई जवाब नहीं दिया और ना ही परिवादी के उक्त डी.वी.डी. को सुधार नहीं किया गया और ना ही बदल कर दिया गया। अनावेदकगण के उपरोक्त कृत्य से परिवादी को काफी, आर्थिक, मानसिक पीड़ा हुई है। इस तरह अनावेदकगण द्वारा परिवादी के प्रति सेवा में कमी की गयी है। अतः परिवादी को अनावेदकगण से डी.वी.डी. की कीमत 12,700रू. मय ब्याज या उसी माडल का नया डी.वी.डी., मानसिक कष्ट हेतु 10,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(5) अनावेदक क्र.2 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी ने अनावेदक क्र.3 की कंपनी का डी.वी.डी. दि.07.09.12 को अनावेदक क्र.1 दुकान से क्रय किया था। अनावेदक कंपनी के नियमानुसार उक्त डी.वी.डी. पर एक वर्ष की वारंटी प्रदान की गयी थी, जिसके तहत किसी भी प्रकार की खराबी आने पर कंपनी के अधिकृत सर्विस सेंटर अनावेदक क्र.2 द्वारा सुधार कर प्रदान किये जाने की व्यवस्था थी। परिवादी ने उक्त डी.वी.डी. को दि.07.09.2012 से बिना किसी खराबी के लगातार चलता रहा तथा उक्त डी.वी.डी. सिस्टम से मन भर गया और परिवादी उक्त डी.वी.डी. को बदलकर नया डी.वी.डी. सिस्टम चाहता था, इसी उद्देश्य से परिवादी ने एक वर्ष की वारंटी समाप्त होने से पूर्व पहली बार दि.29.08.2013 को अनावेदक क्र.2 सर्विस सेंटर में डी.वी.डी. के खराबी की शिकायत की, जिस पर अनावेदक क्र.2 द्वारा डी.वी.डी. सुधार हेतु अपने सर्विस सेंटर रख लिया, जांच किया गया तो पाया गया कि उक्त डी.वी.डी. सिस्टम में कोई खराबी नहीं थी तथा परिवादी ने लापरवाहीपूर्वक चलाने व उपयोग करने के कारण सी.डी./डी.वी.डी. के ट्रे में एक साथ तीन डी.वी.डी. कैसेट फंसा पाया जो एक के ऊपर एक चढ़ी हुई थी, जिसके कारण सिस्टम की लैंस व लैंस एसेम्बली खराब हो गयी थी, परंतु अनावेदक क्र.2 सद्भावनापूर्वक कार्य करते हुए परिवादी के उक्त सिस्टम को मुफ्त सुधारा गया, चूंकि लैंस व लैंस एसेम्बली रायपुर स्थित डिपों से मंगाने का आर्डर दिया गया था, जिसके कारण लगभग 15 दिन का समय लगा। उक्त डी.वी.डी. सिस्टम बनने के बाद अनावेदक क्र.2 द्वारा परिवादी को तत्काल सूचना दी गयी कि सिस्टम ले जाये, किन्तु परिवादी डी.वी.डी. लेने नहीं आया, परिवादी आज-कल में ले जाने का आश्वासन देता रहा और दि.08.11.2013 को अत्यधिक विलंब से अनावेदक क्र.2 के सर्विस सेंटर में आकर पुराने सिस्टम को बदल कर नये सिस्टम देने की मांग करने लगा और उक्त सिस्टम वापस ले जाने से मना कर दिया। इसके पश्चात् परिवादी दि.17.01.14 एवं 25.03.14 को आया, किन्तु उक्त डी.वी.डी. सिस्टम को अपने साथ ले जाने से इंकार कर दिया और नये सिस्टम की मांग करने लगा और परिवादी ने दुर्भावनापूर्वक असत्य कथनों के आधार पर अधिवक्ता के माध्मय से दि.20.05.2014 को नोटिस प्रेषित करवाया। परिवादी फोरम के समक्ष स्वच्छ हाथों से नहीं आया है। परिवादी ने प्रकरण के लंबित रहने के दौरान उक्त सिस्टम को अनावेदक क्र.2 से दि.28.07.2014 को प्राप्त कर लिया है तथा बिना किसी खराबी के आज दिनांक तक उक्त सिस्टम परिवादी उपयोग एवं उपभोग कर रहा है। उक्त सिस्टम में किसी भी प्रकार की खराबी की कोई शिकायत आज तक अनावेदकगण से नहीं की है, इसलिए परिवादी के आवेदन का उद्देश्य पूर्ण हो चुका है। अनावेदक क्र.2 द्वारा परिवादी के प्रति किसी प्रकार की सेवा में कमी या लापरवाही नहीं की गयी है। अनावेदक, परिवादी को सेवा देने के लिए हमेशा तत्पर व तैयार रहा है। परिवादी द्वारा की गयी लापरवाही के लिए स्वयं परिवादी ही जिम्मेदार है, इसलिए परिवादी का आवेदन पत्र सव्यय निरस्त किया जावे।
(6) अनावेदक क्र.3 का जवाबदावा में यह भी कथन है कि परिवादी ने अभिकथित उपकरण देख परख कर संतुष्ट होने पर खरीदा था, परिवादी ने असत्य आधारों पर दावा प्रस्तुत किया है। अभिकथित उपकरण में अनावेदकगण द्वारा सुधार किया गया था, परंतु परिवादी लेने नहीं आया, इस प्रकार अनावेदकगण द्वारा किसी प्रकार की सेवा में निम्नता नहीं की गयी है अतः दावा खारिज किया जावे।
(7) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदकगण से डी.वी.डी. की कीमत 12,700रू. मय ब्याज या उसी माॅडल का नया डी.वी.डी. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज में 10,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(8) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(9) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक क्र.1 लोट्स इलेक्ट्रानिक सुपर मार्केट द्वारा जवाब प्रस्तुत किया गया है, उसमें यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी को अभिकथित डी.वी.डी. को एक माह के उपयोग के बाद समस्या आयी। अतः यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी ने डी.वी.डी. को लम्बे समय तक उपयोग किया था। अनावेदक क्र.1 ने अपने जवाब में डी. वी.डी. में समस्या आने के तथ्य को स्वीकार किया है कि जब डी.वी.डी. में समस्या आयी तो परिवादी उनके पास आया था और उन्होंने परिवादी को मार्गदर्शन देते हुए सर्विस सेंटर में शिकायत दर्ज करने के लिए कहा था।
(10) अनावेदक क्र.2 सर्विस सेंटर का तर्क है कि वे सोनी इंडिया प्राईवेट लिमिटेड का सर्विस सेंटर चलाते हैं, जहां पर सामान का सुधार कार्य करते हैं। अनावेदक क्र.2 ने अपने जवाबदावा में अत्यंत विरोधाभासी अभिकथन किया है, जहां एक ओर उसने अभिकथित डी.वी.डी. में खराबी आने का अभिकथन किया है, वहीं यह आक्षेप लगा दिया है कि परिवादी का उक्त उपकरण से मन भर गया था और वह उक्त उपकरण को बदल कर नया डी.वी.डी. सिस्टम लेना चाहता था, परंतु जवाबदावा में ही यह उल्लेख है कि सिस्टम के लैंस व लैंस एसेम्बली खराब हो गयी थी ट्रे बाहर नहीं आ रही थी, ट्रे पूरी तरह अंदर नहीं जा रही थी और सिस्टम के लैंस व लैंस एसेम्बली को बदला गया था और इस प्रकार का सुधार कार्य समय समय पर किया गया। अनावेदकगण द्वारा उक्त उपकरण में सुधार कार्य किया जाना स्वीकार तो किया गया है, परंतु उक्त संबंध में विभिन्न समय पर जारी की गयी जाॅब शीट के दस्तावेज अलग-अलग तारीख के प्रस्तुत नहीं किया गये हैं, परिवादी द्वारा एनेक्चर-3 प्रस्तुत किया गया है, जिसके खण्डन में अनावेदकगण द्वारा कोई दस्तावेज या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है। एनेक्चर-4 परिवादी द्वारा सिस्टम खराब हो जाने के संबंध में लिखा गया पत्र है, जिसके खण्डन में भी अनावेदकगण द्वारा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नही की गयी है। इसी प्रकार एनेक्चर-7 परिवादी द्वारा अनावेदकगण को दी गयी नोटिस है, यदि वास्तव में उक्त उपकरण सही होता तो सर्विस सेंटर द्वारा बार-बार उक्त उपकरण को ठीक नहीं किया जाता, जिससे यही सिद्ध होता है कि वास्तव में उक्त उपकरण में समय समय पर खराबी आयी, वह भी वारंटी अवधि के भीतर।
(11) परिवादी पर यह आक्षेप लगाया गया है कि परिवादी ने उक्त डी.वी.डी. को लापरवाहीपूर्वक उपयोग किया, परंतु अनावेदक द्वारा उसे कहीं भी साक्ष्य द्वारा सिद्ध नहीं किया है, मात्र यह कह देने से कि ग्राहक ने खरीदते समय देख परख कर और संतुष्ट होने पर क्रय किया था, इस बचाव से अनावेदकगण को कोई लाभ नहीं पहुंचता है, क्योंकि वारंटी इसी आशय की दी जाती है कि ग्राहक उसका उपयोग करे और उस दौरान खराबी आने पर अनावेदकगण उसे उचित रूप से सुधार कर दे और सुधारने लायक नहीं हो तो अन्य विकल्प का उपयोग करे। कोई भी ग्राहक जब इतनी मोटी रकम देकर कोई उपकरण खरीदता है तो अनावेदकगण यह बचाव नहीं ले सकता है कि उसने उपकरण को बहुत दिनों तक चलाया और लापरवाहीपूर्वक चलाने के कारण खराबी आयी। आज के आधुनिक तकनीकी वातावरण में कोई भी ग्राहक ऐसा अनभिज्ञ नहीं रहता है कि वह इलेक्ट्रानिक उपकरण का लापरवाहीपूर्वक उपयोग करे, वह भी अनावेदकगण ने यह सिद्ध नहीं किया है कि परिवादी ने ऐसी क्या लापरवाही कर दी जिससे उक्त उपकरण एक वर्ष के भीतर ही इतनी बार खराब हो गया। अतः हम अनावेदकगण के बचाव के आधारों को स्वीकार करना उचित नहीं पाते हैं।
(12) यहां यह उल्लेख करना आवश्यक होगा कि जब ग्राहक इतनी मोटी रकम देकर कोई उपकरण खरीदता है तो वह उत्साहित रहता है कि वह अपने परिवार की सुविधा के लिए उपकरण खरीद रहा है उसका यह आशय नही रहता कि बिना किसी कारण के दुकानदार पर दबाव डालेगा और झूठे आधार बताकर कि उपकरण खराब है, नया उपकरण खरीदने का आशय रखेगा, अनावेदकगण ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि उक्त उपकरण त्रुटिरहित था बल्कि प्रकरण के अवलोकन से यही सिद्ध होता है कि उक्त उपकरण में समय-समय पर समस्या आयी, अर्थात् परिवादी उक्त उपकरण के त्रुटिरहित रहने का संतोष ही प्राप्त नहीं हुआ कि उसने इतनी मोटी रकम देकर त्रुटिरहित वस्तु खरीदी है और इन परिस्थितियों में अनावेदकगण का यह कर्तव्य था कि या तो वह उक्त उपकरण की त्रुटियां स्थायी रूप से सुधारते या परिवादी से अन्य विकल्प पूछते और वही उच्च शिष्टाचार की सेवा होती, अन्यथा स्थिती में सेवा में निम्नता और व्यवसायिक कदाचरण माना जावेगा। आज के आक्रामक व्यापारिक नीति के चलते निर्माता कंपनी यह माॅनिटर नहीं करती कि यदि उन्होंने अपने द्वारा निर्मित उपकरण बाजार में डीलर के माध्यम से विक्रय हेतु रखे हैं और सर्विस सेंटर खोले हैं तो क्या वैसी दुकान और सर्विस सेंटर अपने ग्राहकों को संतोषप्रद सेवाएं दे रही है या नहीं, बल्कि जैसा कि इस प्रकरण में है कि यह सिद्ध होता है कि जब ग्राहक एक बार इतनी मंहगी वस्तु खरीद लेता है तो फिर यदि उक्त वस्तु त्रुटिपूर्ण निकलती है तो उसे किस प्रकार दुकानदार और सर्विस सेंटर दिनोंदिन चक्कर लगावते हैं, परंतु स्थिती वही बनी रहती है, न तो उसका उपकरण ठीक होता है और नही उसे यह अनुभव हो जाता है कि उसने जिस प्रयोजन से उक्त वस्तु खरीदी थी उसके संबंध में उसके द्वारा लगायी गयी राशि का सही उपयोग हुआ है।
(13) एनेक्चर-7 परिवादी द्वारा अनावेदकगण को दी गयी नोटिस है, जिसमें भी यही उल्लेख है कि परिवादी अनेक बार अनावेदकगण के पास गया है, कई बार फोन और मेल किया है, परंतु अभिकथित डी.वी.डी. में सुधार कार्य नहीं किया गया है, स्वयं अनावेदक क्र.2 ने अपने जवाबदावा की कंडिका-11 में यह स्वीकार किया है कि अनावेदक क्र.2 के पास तत्काल लैस व लैंस एसेम्बली नहीं थी, इसलिए कंपनी के रायपुर स्थिति डिपांे से मंगाने का आर्डर दिया तथा जिसके कारण सिस्टम को बनाने में लगभग 15 दिन का समय लगा। अतः इसी अभिकथन से यह सिद्ध हो जाता है कि अनावेदकगण ने सिस्टम को जहां एक ओर खराब नहीं होने का बचाव लिया है वहीं पाट्र्स मंगाने के लिए 15 दिन का समय लगने का कथन किया है, इस प्रकार हम अनावेदकगण का संपूर्ण बचाव असत्य होना निष्कर्षित करते हैं और यह पाते हैं कि अनावेदकगण ने अभिकथित उपकरण को सुधार हेतु लम्बा समय लगाया जो कि परिवादी को मानसिक वेदना का कारण भी बना, फलस्वरूप हम परिवादी के तकों से सहमत है कि अनावेदकगण ने अभिकथित डी.वी.डी. सुधारा नहीं है न ही बदल कर दिया, उसमें समय-समय पर अत्यधिक खराबी आयी है, इस प्रकार अनावेदकगण ने त्रुटिपूर्ण उपकरण परिवादी को विक्रय किया है और इस प्रकार सेवा में घोर निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण किया है, फलस्वरूप हम परिवादी का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं।
(14) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करेंगे:-
(अ) अनावेदक क्र.2, परिवादी से अभिकथित डी.वी.डी. का कब्जा प्राप्त करे।
(ब) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को डी.वी.डी. की कीमत 12,700रू. (बारह हजार सात सौ रूपये) प्रदान करेंगे।
(स) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दिनांक 16.06.2014 से भुगतान दिनांक तक 07 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(द) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को उपरोक्त कृत्य के कारण हुए मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) अदा करेंगे।(प)
अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करेंगे।