जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-55/2007
लाल चन्द्र मिश्रा पुत्र श्री राम अंजोर मिश्र निवासी ग्राम हरिदासपुर बतुरिहा कौंधा (पोस्ट भावापुर तहसील बीकापुर जनपद फैजाबाद .................परिवादी
बनाम
1- दि ओरियन्टल इंश्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड स्थित भवन संख्या-2/1/55 स्थित मोहल्ला सिविल लाईन्स परगना हवेली अवध तहसील सदर शहर व जनपद फैजाबाद द्वारा शाखा प्रबन्धक।
2- बैंक आफ बड़ौदा शाखा रामपुर भगन जनपद फैजाबाद द्वारा शाखा प्रबन्धक। ................. विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 15.05.2015
निर्णय
उद्घोषित द्वारा: श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध इस आशय का योजित किया ह,ै कि परिवादी ने एक भैंस मु0 13,500=00 में जीविकोपार्जन हेतु दि0 18.4.2004 को बैंक आफ बड़ौदा से ऋण प्राप्त करके क्रय किया था, जिसका बीमा विपक्षी सं0-1 दि ओरियन्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी में हुआ था। भैंस का टैग नं0-ओ0आई0सी0-एफ0जेड0डी0/64543 था। परिवादी विपक्षी सं0-2 बैंक को माह
( 2 )
फरवरी 2006 तक किश्तों की अदायगी बराबर करता रहा। परिवादी की भैंस बीमार हो गयी, जिसका इलाज पशु चिकित्साधिकारी बीकापुर फैजाबाद से कराता रहा। भैंस की हालत काफी बिगड़ गयी, जिसके कारण इलाज के दौरान दि0 01.03.2006 को भैंस की मृत्यु हो गयी। दि0 02.03.2006 को पशु चिकित्साधिकारी बीकापुर फैजाबाद को सूचित करके भैंस का पोस्ट मार्टम कराया, जिसकी सूचना बैंक को तथा बीमा कम्पनी को दिया तथा बीमित धनराशि की माॅंग किया। विपक्षी सं0-1 बीमा कम्पनी ने बीमित धनराशि की अदायगी नहीं किया। नोटिस दिया फिर भी बैंक को परिवादी को कहने के बावजूद बीमित धनराशि नहीं दिया तब यह परिवाद योजित किया।
विपक्षी सं0-1 ने अपने जवाबदावे में कहा है कि परिवादी ने कभी भी अपने दावा प्रपत्र के साथ कोई औपचारिकता प्रस्तुत नहीं किया। इस सम्बन्ध में दि0 26.02.2007, दि0 23.03.2007 एवं दि0 30.03.2007 को साधारण डाक से एवं रजिस्टर्ड डाक से औपचारिकता पूर्ण करने हेतु पत्र भेजा गया। परिवादी ने न तो उक्त पत्रों का संतोषजनक उत्तर दिया और न ही औपचारिकता पूर्ण किया, इसलिए परिवादी का क्लेम नो क्लेम करके बन्द कर दिया।
पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया तथा परिवादी के लिखित बहस का अवलोकन किया। परिवादी ने सूची 22ख से कागजात प्रेषित किये हैं, जिसमें से परिवादी के अधिवक्ता ने दि0 16.11.2006 को विपक्षी सं0-1 दि ओरियन्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी को नोटिस दिया है, जो क्रमशः 24ख और 25ख है। 26ख विपक्षी सं0-1 ने कहा है कि औपचारिकतायें पूर्ण करिये। शिकायत का कोई प्रश्न नहीं उठता। विपक्षी सं0-1 ने मृत्यु प्रमाण-पत्र, पाॅलिसी बीमा धारक द्वारा भेजने का आग्रह किया गया। परिवादी ने भैंस का पोस्ट मार्टम रिपोर्ट तथा टैग नम्बर और पालिसी से सम्बन्धित प्रपत्र प्रेषित किये। पत्रावली के देखने से स्पष्ट होता है कि विपक्षी सं0-1 दि ओरियन्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी परिवादी को बहाना बना-बना करके टाल-मटौल करता रहा है और जानबूझ करके परिवादी की भैंस की बीमित धनराशि की अदायगी नहीं किया। बीमा पाॅलिसी विपक्षी सं0-1 के पास होती है। बैंक द्वारा भैंस का टैग नम्बर आदि समस्त प्रपत्र बीमा कम्पनी के पास भेजी जाती है। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट की फोटो कापी भी बैंक द्वारा विपक्षी सं0-1 को भेजी जाती है। इसके बावजूद विपक्षी सं0-1 टैग नम्बर की मांॅग करता रहा। पोस्ट मार्टम करने वाले डाॅक्टर के अनुसार भैंस का टैग नम्बर सही है। टैग भी प्रस्तुत किया गया, लेकिन फिर भी बीमा कम्पनी ने परिवादी के भैंस की बीमित धनराशि की अदायगी नहीं किया। इस प्रकार पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य के अनुसार परिवादी विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध अपने भैंस की बीमित धनराशि प्राप्त करने का अधिकारी है। विपक्षी सं0-2 बैंक है, जिसने ऋण दिया है। विपक्षी सं0-2 से कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है। इस प्रकार परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अंशतः स्वीकार तथा अंशतः खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अंशतः स्वीकार तथा अंशतः खारिज किया जाता है। परिवादी का परिवाद विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी सं0-2 के विरूद्ध खारिज किया जाता है। विपक्षी सं0-1 परिवादी को भैंस की बीमित धनराशि मु0 13,500=00 निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर अदा करें तथा वाद व्यय मु0 5,000=00 तथा शारीरिक मानसिक पीड़ा के लिए मु0 500=00 अदा करें। यदि विपक्षी सं0-1 मु0 13,500=00 उक्त दिये गये समय के अन्दर अदायगी नहीं करता ह,ै तो परिवाद योजित करने की तिथि से 12 प्रतिशत सालाना साधारण ब्याज तारोज वसूली करने का अधिकारी होगा।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) ( चन्द्र पाल )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 15.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) ( चन्द्र पाल )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-138/2005
राम प्यारे कुशवाहा पुत्र देवनरायन निवासी ग्राम जमुआ पोस्ट गुनई गहरपुर (मेंजा) तहसील मेंजा जिला इलाहाबाद सेवा निवृत्त कर्मचारी निर्माण खण्ड नं0-2 लोक निर्माण विभाग फैजाबाद .................परिवादी
बनाम
1- अधीक्षण अभियन्ता फै0अ0सु0वृत्त लो0नि0वि0 फैजाबाद।
2- अधिशाषी अभियन्ता निर्माण खण्ड नं0-2 लो0नि0वि0 फैजाबाद।
3- राम चन्दर (तत्कालीन मुख्य लिपिक) सेवा निवृत्त मो0 इस्माईलगंज साहबगंज पुलिस चैकी के पीछे फैजाबाद।
4- हरि प्रसाद साहू (तत्कालीन जी0पी0एफ0 लिपिक) सेवा निवृत्त (साहू प्रोविजन स्टोर) मोहल्ला लालबाग नाका मकबरा रोड निकट फतेहगंज क्रासिंग फैजाबाद।
5- बुद्धिपाल साहू (तत्कालीन कैशियर) सेवा निवृत्त मो0 पुरानी सब्जी मंडी फैजाबाद। ................. विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 16.05.2015
निर्णय
उद्घोषित द्वारा: श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध मु0 20,000=00 जी.पी.एफ. से निकलने के सम्बन्ध में योजित किया है।
( 2 )
स्ंाक्षेप में परिवादी का केस इस प्रकार है कि परिवादी निर्माण खण्ड नं0-2, लोक निर्माण खण्ड फैजाबाद का सेवा निवृत्त कर्मचारी है। परिवादी वर्क एजेण्ट के पद पर कार्यरत था। दि0 30.6.2000 को सेवा निवृत्त हुआ। परिवादी के जी.पी.एफ. खाता संख्या-एफ.पी. 215 में रूपया था, जिसमें से मु0 20,000=00 का अंतिम निष्कासन प्रार्थी की न जानकारी में किसी अज्ञात व्यक्ति/कर्मचारी द्वारा अधीक्षण अभियन्ता विपक्षी सं0-1 के कार्यालय पत्रांक-8744/55 ई0सी0फै0वृत्त/07 दि0 25.11.97 के द्वारा स्वीकृत कराकर मु0 20,000=00 हड़प कर लिया गया। प्रार्थी फील्ड कर्मचारी था और विभागीय प्रक्रिया के अनुसार जी0पी0एफ. खाते से रूपया निकालने हेतु फील्ड कर्मचारी द्वारा विभाग में प्रार्थना-पत्र दिया जाता है, जिस पर क्रमशः अवर अभियन्ता, सहायक अभियन्ता, अधिशाषी अभियन्ता द्वारा अपनी संस्तुति अंकित करने के उपरान्त् अधीक्षण अभियन्ता द्वारा कार्यालय ज्ञाप के माध्यम से स्वीकृति प्रदान की जाती है, जिसकी प्रति आवेदक/कर्मचारी को भी दी जाती है। जिसके उपरान्त् अधिशाषी अभियन्ता विपक्षी सं0-2 के कार्यालय में कैशियर द्वारा सम्बन्धित अवर अभियन्ता की पहचान पर आवेदक/कर्मचारी को सम्बन्धित रूपये का भुगतान कर दिया जाता है।
विपक्षीगण में से विपक्षी सं0-5 बुद्धिपाल साहू सेवा निवृत्त कैशियर ने अपने जवाबदावे में कहा है, कि वादी दि0 30.06.2000 को सेवा निवृत्त हुआ। परिवादी ने जो आरोप लगाया हैं कि उनके खाता संख्या एफ.पी.-215 से किसी अज्ञात व्यक्ति/कर्मचारी द्वारा विपक्षी सं0-1 से स्वीकृत कराकर मु0 20,000=00 हड़प कर लिया है। यह अज्ञात व्यक्ति/कर्मचारी और कोई नहीं वह मिस्टर श्रीराम प्यारे कुशवाहा ही हैं। वादी का देय समस्त औपचारिकताओं के पश्चात् भुगतान किये जाने हेतु प्राप्त हुआ था। देयक का चेक निर्गत कराकर बैंक से भुगतान प्राप्त कर लिया गया था। श्री राम प्यारे की तवियत बुखार के कारण उस समय ठीक नहीं थी। अतएव इन्होंने मुझसे भुगतान करने का निवेदन किया। चूॅंकि मैं इनको काफी समय से जानता पहचानता था, इसलिए इन्हें सीधे भुगतान कार्यालय में लिपिक के समक्ष कर दिया गया था। इनके हस्ताक्षर भुगतान पंजिका पर टिकट के साथ उपलब्ध है। परिवादी ने जी.पी.एफ. से रूपया निकालने हेतु प्रार्थना-पत्र दिया था तथा भुगतान भी वादी को दिया गया है।
विपक्षी सं0-4 हरि प्रसाद साहू तत्कालीन जी.पी.एफ. लिपिक ने अपने जवाब में कहा है, कि अंतिम निष्काशन का स्वीकृत होना स्वीकार है। शेष अस्वीकार है। जिस प्रकार की प्रक्रिया के सम्बन्ध में बात कही गयी है, उसके सम्बन्ध में कोई टिप्पणी नहीं
( 3 )
करनी है। प्रार्थी के पास कोई प्रार्थना-पत्र उचित माध्यम द्वारा (अधिशाषी अभियन्ता) प्राप्त होने पर आवश्यक अग्रिम कार्यवाही करनी होती थी। शेष के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहना है। मेरे द्वारा देयक बनाकर अधिशाषी अभियन्ता को प्रस्तुत किया गया। तत्पश्चात् मुझे कोई सरोकार नहीं है।
विपक्षी सं0-3 राम चन्द्र सेवा निवृत्त मुख्य लिपिक है। इन्होंने अपने जवाबदावे में कहा ह,ै कि परिवादी द्वारा मु0 20,000=00 अग्रिम हेतु प्रार्थना-पत्र दिया गया था। रूटीन वे में जी0पी0एफ0 लिपिक द्वारा प्रस्तुत किया गया, परीक्षणोपरान्त् संस्तुति सहित स्वीकृति हेतु विपक्षी सं0-1 को भेजा गया। स्वीकृति की प्रति वादी को भी दी गई है। जहाॅं तक भुगतान किय जाने की बात है जिसे भली-भाॅंति जाना जाता है उसके अनुरोध पर सीधे भुगतान भी किया जाता है। भुगतान कैशियर द्वारा किया गया है। जो वादी को भली भाॅंति जानते पहचानते थे।
विपक्षी सं0-2 अधिशाषी अभियन्ता ने अपने जवाब में कहा है कि अधीक्षण अभियन्ता के स्वीकृति के पश्चात् भुगतान सम्बन्धित आवश्यक कार्यवाही के पश्चात् स्वीकृत धनराशि मु0 20,000=00 वादी को प्राप्त करा दी गयी। प्राप्त करते समय वादी ने रसीदी टिकट लगाकर हस्ताक्षर किये। वादी की शिकायत है कि उसके द्वारा भुगतान नहीं प्राप्त किये गये। उसके हस्ताक्षर की हैण्डराइटिंग एक्सपर्ट से जाॅंच कराई गई, जिसमें हस्ताक्षर वादी के ही मिले। हस्ताक्षर विशेषज्ञ श्री राकेश ़ित्रवेदी के रिपोर्ट की फोटो प्रति संलग्न है।
जी.पी.एफ. के अन्तिम निष्कासन के प्रार्थना-पत्र की प्रति पत्रावली में संलग्न है। प्रार्थना-पत्र राम प्यारे वर्क एजेन्ट का है। मु0 20,000=00 अंतिम निष्कासन मकान मरम्मत हेतु आवेदन किया गया। मु0 20,000=00 के भुगतान के सम्बन्ध में अंतिम विवरण विपक्षी द्वारा दाखिल किया गया है। राकेश त्रिवेदी हैण्डराइटिंग एक्सपर्ट द्वारा वादी राम प्यारे के स्वीकृत हस्ताक्षर व विवादित हस्ताक्षर के नमूना लेकर के फोटोग्राफ को इन्लार्ज किया और अपनी राय दिया। हैण्डराइटिंग एक्सपर्ट की रिपोर्ट के अनुसार विवादित हस्ताक्षर और स्वीकृत हस्स्ताक्षर एक ही व्यक्ति के हैं। विवादित हस्ताक्षर और स्वीकृत हस्ताक्षर के नमूने के फोटोग्राफ जिन्हें हैण्डराइटिंग एक्सपर्ट द्वारा इन्लार्ज की गयी है, दाखिल की गयी है। स्वीकृत हस्ताक्षर और विवादित हस्ताक्षर के इन्लार्ज फोटो पत्रावली में मौजूद है, लेकिन असल जी.पी.एफ. निष्कासन में बने हस्ताक्षर व मु0 20,000=00 प्राप्त करने के हस्ताक्षर पत्रावली में विपक्षीगण द्वारा दाखिल नहीं किये गये हैं। स्वीकृत हस्ताक्षर का प्रथम (र) और अन्तिम (रे) तथा विवादित हस्ताक्षर का प्रथम
( 4 )
(र) का स्ट््रोक अलग हैं। इसी प्रकार (प्या) का भी स्ट््रोक अलग है। यदि मूल स्वीकृत हस्ताक्षर तथा विवादित हस्ताक्षर पत्रावली में मौजूद होते तो पेन ड््राप साइलेंस तथा रूकावट आदि का स्पष्ट पहचान किया जा सकता था। फोटो में इसका पहचान नहीं किया जा सकता। इस प्रकाार मैं हैण्डराइटिंग एक्सपर्ट रिपोर्ट से असहमत व्यक्त करता हूॅं। स्वीकृत हस्ताक्षर और विवादित हस्ताक्षर एक ही व्यक्ति के नहीं है। यहाॅं पर एक मुख्य बिन्दु यह भी यह ह,ै कि विपक्षीगण द्वारा हैण्डराइटिंग एक्सपर्ट की रिपोर्ट दाखिल किया गया है। यह मु0 20,000=00 का मामला है। यदि परिवादी हैण्डराइटिंग एक्सपर्ट की रिपोर्ट के विरोध में दूसरी रिपोर्ट दाखिल करता, तो परिवादी का मु0 20,000=00 खर्च हो जाता। जितनी धनराशि की माॅंग की गयी है, उससे कहीं ज्यादा परिवादी का खर्च हो जाता। इससे परिवादी का उद्देश्य विफल हो जाता। मु0 20,000=00 जी.पी.फ. खाते से अन्तिम निष्कासन का इसमें विवाद है। मु0 20,000=00 चेक द्वारा बैंक से निकाले गये तो विपक्षीगण द्वारा चेक द्वारा मु0 20,000=00 परिवादी को भुगतान क्यों नहीं किया गया या मु0 20,000=00 निकाल कर परिवादी के खाते में क्यों नहीं जमा किया गया। इससे स्पष्ट होता है, कि विपक्षीगण अपनी कमी को छिपाने के लिए तकनीकी साक्ष्य का सहारा ले रहे हैं, जो आधारहीन है। परिवादी वर्क एजेन्ट का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है। मु0 20,000=00 उसके लिए काफी महत्व रखता है। विपक्षीगण द्वारा परिवादी के जी.पी.एफ. खाते से अन्तिम निष्कासन हेतु गलत रूप से मु0 20,000=00 निकाल लिया गया है। परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ है। विपक्षी सं0-1 विभाग के विभागाध्यक्ष हैं इसलिए इस फर्जी कार्यवाही की जिम्मेदारी विपक्षी सं0-1 की है। अन्य कर्मचारी की नहीं है। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के अनुसार विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध परिवादी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है तथा शेष विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है तथा शेष विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद खारिज किया जाता है। विपक्षी सं0-1 को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को मु0 20,000=00 दि0 04.06.1997 से 12 प्रतिशत ब्याज के साथ तारोज वसूली अदा करें। विपक्षी सं0-1 यह धनराशि निर्णय व आदेश की तिथि से एक माह के अन्दर अदा करे।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) ( चन्द्र पाल )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
( 5 )
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 16.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) ( चन्द्र पाल )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष