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SMT. RADHA BAI SANODIYA filed a consumer case on 18 Dec 2013 against LIFE INSURANCE CORPORATION in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/76/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक -76-2013 प्रस्तुति दिनांक-11.09.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
श्रीमती राधा बार्इ सनोडिया, पति-
स्वर्गीय श्री गणेष प्रसाद सनोडिया,
उम्र 49 वर्श, जाति-कुर्मी, निवासी-
ग्राम-पांजरा, पोस्ट-पांजरा, तहसील
केवलारी, जिला सिवनी (म0प्र0)।..........................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
षाखा प्रबंधक,
भारतीय जीवन बीमा निगम,
जबलपुर रोड, सिवनी, तहसील व
जिला सिवनी (म0प्र0)। ...........................................अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 18.12.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादिया ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसके पति-गणेष प्रसाद सनोडिया की मृत्यु पष्चात, मृतक की बीमा पालिसी क्रमांक-355874742 बाबद, परिवादिया के बीमा क्लेम को अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, पत्र दिनांक-19.12.2012 के माध्यम से अस्वीकार कर दिया जाना जो सूचित किया गया, उसे अनुचित व सेवा में कमी होना बताते हुये, बीमाधन (मृत्यु क्लेम) की राषि व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादिया के पति-गणेष प्रसाद सनोडिया ने वेल्थ प्लस प्लान की उक्त बीमा पालिसी क्रमांक- 355874742, दिनांक-18.02.2010 को बीमा कम्पनी के अभिकत्र्ता के माध्यम से लिया था। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादिया के पति के बांये पैर के निचले हिस्से में घाव होकर, मवाद बनने लगा था, जो इलाज में ठीक न होने पर, ष्योरटेक हासिपटल एण्ड रिसर्च सेन्टर लिमिटेड, नागपुर में परिवादिया के पति को दिनांक-10.09.2010 से 16.09.2010 तक भर्ती रखकर जांच व इलाज किया गया। यह भी विवादित नहीं कि-डाक्टरों के द्वारा पैर में इन्फेक्षन फैलने के फलस्वरूप, परिवादिया के पति-गणेष प्रसाद के बांये पैर के निचले हिस्से को काटने (विच्छेदन) की सलाह दी गर्इ और डाक्टरी राय के विपरीत दिनांक-16.09.2010 को उक्त ष्योरटेक अस्पताल से भी छुटटी कराकर, गणेष प्रसाद वापस अपने घर आ गया। और दिनांक-20.09.2010 को उसकी मृत्यु हो गर्इ। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-उक्त बीमा पालिसी के नामिनीपरिवादिया के द्वारा, उक्त बीमा पालिसी का मृत्यु क्लेम पेष किया गया था, जिसे जांच बाद, अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि-बीमित ने अपने बीमा प्रस्ताव दिनांक-18.02.2010 में व्यकितगत व स्वास्थ्य संबंधी प्रष्नों बाबद गलत जानकारी देकर, डायबिटीज की बीमारी से ग्रस्त होने और इलाजरत रहे होने को छिपाया था, इसलिए उक्त आधार पर परिवादिया के क्लेम को अस्वीकार किये जाने की सूचना परिवादिया को पत्र दिनांक-19.12.2012 के द्वारा दी गर्इ।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- परिवादिया के पति किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं थे, उन्हें कृशि कार्य करते समय पैर में जो चोट लगी थी, उसका घाव धीरे-धीरे बन गया और देहाती इलाज होते रहने पर भी घाव ठीक नहीं हुआ, तब ष्योरटेक हासिपटल एण्ड रिसर्च सेन्टर लिमिटेड, नागपुर में जांच और इलाज दिनांक-10.09.2010 से 16.09.2010 तक भर्ती रखकर किया गया, पैर के घाव में मवाद बनकर, दुर्गंध आने लगी थी, इन्फेक्षन फैल रहा था, इसलिए डाक्टरों ने आपरेषन कर, पैर काटना अनिवार्य बताया, जो कि- आपरेषन हेतु रूपयों की व्यवस्था करने के लिए गणेष प्रसाद व परिवारजन छुटटी कराकर वापस घर आ गये। और दिनांक-20.09.2010 को उनकी मृत्यु हो गर्इ, जो कि-बीमा पालिसी प्राप्त करते समय परिवादिया के पति को कोर्इ बीमारी नहीं थी, वे पूर्णत: स्वस्थ्य थे और बीमा प्रस्ताव-पत्र में दी गर्इ संपूर्ण जानकारियां सही होना स्वीकार करते हुये, पालिसी जारी की गर्इ थी, जो कि-अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, काल्पनिक रूप से बीमित को मधुमेह की बीमारी से कर्इ वर्शों से पीडि़त मानकर दावा अस्वीकार किया गया है, जो अनुचित है और परिवादिया के प्रति-की गर्इ सेवा में कमी है।
(4) अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-बीमा संविदा आपसी विष्वास पर आधारित संविदा है और बीमा प्रस्ताव-पत्र में दी गर्इ जानकारियों के आधार पर पालिसी प्रदान किये जाने का निर्णय लिया जाता है, जो कि-बीमित के द्वारा, दिनांक-18.02.2010 के बीमा प्रस्ताव में जो व्यकितगत व स्वास्थ्य संबंधी प्रष्नों के उत्तर व घोशणा-पत्र में जो कथन किये गये थे, वह गलत थे, जो कि-दिनांक-18.02.2010 को पूर्व से ही बीमित डायबिटीज मिलार्इटिस की बीमारी से पीडि़त था और डायबिटीज मिलार्इटिस फूट की बीमारी से भी पीडि़त था, जो कि-बीमारी का इलाज नियमित रूप से नहीं कराया गया, बीमित के पैर में इन्फेक्षन हो जाने से उसकी मृत्यु हुर्इ है, जिसकी पुशिट ष्योरटेक हासिपटल की चिकित्सा प्रपत्रों से भी होती है। उक्त बीमारी व उसके संबंध में उपचार संबंधी कोर्इ जानकारी बीमा प्रस्ताव-पत्र में प्रदान नहीं की गर्इ और प्रस्ताव-पत्र में मिथ्या कथन कर, बीमा निगम का बीमाकंन निर्णय प्रभावित किया, जिसके कारण सक्षम अधिकारी द्वारा, पालिसी षर्तों के अनुसार ही मृत्यु दावा अस्वीकार किया गया है और अस्वीकृति की सकारण सूचना परिवादिया को दी गर्इ है, उसके प्रति-सेवा में कोर्इ कमी नहीं की गर्इ है और परिवादिया ने सही तथ्यों को छिपाकर, गलत व काल्पनिक, झूठे आधार पर परिवाद पेष किया है, जो निरस्त किये जाने योग्य है।
(5) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादिया के
बीमा क्लेम को अस्वीकार किया जाना, अनुचित
होकर, परिवादिया के प्रति-की गर्इ सेवा में कमी
है?
(ब) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6) अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष पालिसी दस्तावेज की प्रति प्रदर्ष आर-19 व परिवादी-पक्ष की ओर से पेष प्रथम प्रीमियम रसीद की प्रति प्रदर्ष सी-1 से यह दर्षित है कि-उक्त बीमा पालिसी, प्रीमियम की राषि जमा करने की दिनांक-18.02.2010 से ही प्रभावी रही है। जबकि- प्रदर्ष सी-2 के परिवादिया के पति-गणेष प्रसाद के मृत्यु प्रमाण-पत्र की प्रति से स्पश्ट है कि-उक्त पालिसी लेने के सात माह पष्चात ही, दिनांक- 20.09.2010 को गणेष प्रसाद की मृत्यु उसके गांव-पांजरा में हुर्इ थी।
(7) परिवादिया की ओर से उक्त पालिसी के तहत पेष किये गये मृत्यु क्लेम के प्रपत्र दावेदार का बयान प्रदर्ष आर-18, चिकित्सालय उपचार प्रमाण-पत्र प्रदर्ष आर-17, व ष्योरटेक अस्पताल में भर्ती के समय की सिथति बाबद प्रदर्ष आर-2 डामा कार्ड, प्रदर्ष आर-3 व भर्ती के दौरान डेली ट्रीटमेन्ट प्लान व कनसल्टेन्टस सीट प्रदर्ष आर-4 से आर-16 की प्रतियां भी अनावेदक-पक्ष द्वारा पेष की गर्इं हैं। जबकि-परिवादी-पक्ष की ओर से उक्त प्रपत्र जो बीमा कम्पनी को दिये गये थे, उसमें-से मात्र प्रदर्ष सी-5 का डामा कार्ड की प्रति पेष की गर्इ है और प्रदर्ष सी-6 उक्त ष्योरटेक अस्पताल के बिल की प्रति पेष की गर्इ है। प्रदर्ष आर-18 के दावेदार के बयान के प्रपत्र में परिवादिया ने मृत्यु का कारण पैर में इन्फेक्षन होना और अंतिम बीमारी की अवधि तीन माह ही रहा होना मात्र दर्षाया था।
(8) जो कि-प्रदर्ष सी-5 (आर-3) के डामा कार्ड में ही गणेष प्रसाद को डायबिटिक फूट विथ पेरीफीरल वेसकुलर डिसीस डायबिटिक मेलीटस के साथ सेप्टीसीमिया के मामले में होना बताया गया है और केस हिस्ट्री में यह दर्षाया गया था कि-मरीज, के.सी.ओ. डायबिटिक फूट के संबंध में अनियमित इलाज करता रहा है, पूर्व में उसके द्वारा स्थानीय अस्पताल में इलाज कराया जाता रहा, फिर उसे मेडिकल हासिपटल, नागपुर के लिए रिफर किया गया था, जहां पर कि-जांघ के बीच से पैर के विच्छेदन की सलाह दी गर्इ थी, लेकिन मरीज उक्त टांग के विच्छेदन के लिए सहमत नहीं था और इसके बाद मरीज उक्त मेडिकल अस्पताल, नागपुर को डिस्चार्ज लेकर छोड़ दिया और फिर 10 सितम्बर-2010 को इलाज के लिए ष्योरटेक अस्पताल आया, जो कि-प्रदर्ष आर-2 में भी वर्तमान षिकायत का इतिहास के रूप में यही लेख किया गया था कि- डायबिटिक फूट के इलाज के लिए पहले मरीज ने लोकल एरिया अस्पताल में इलाज लिया, फिर उसे मेडिकल हासिपटल के लिए रिफर किया गया था, जहां बांये पैर के निचले हिस्से घुटने के नीचे के विच्छेदन की सलाह दी गर्इ थी, लेकिन मरीज पैर के विच्छेदन हेतु इच्छुक नहीं था, इसलिए घर चला गया था और फिर बाद में दिनांक-10.09.2010 को षाम 6:30 बजे ष्योरटेक अस्पताल में भर्ती हुआ। और प्रदर्ष आर-2 में ही मरीज के पूर्व इतिहास (पास्ट हिस्ट्री) के रूप में डी.एम. अर्थात डायबिटिक मेलीटस बीमारी अनेक वर्शों से रही होना लेख है, जो भर्ती के समय उक्त अस्पताल में मरीज के द्वारा बतार्इ गर्इ थी। और प्रदर्ष आर-3 से यह भी दर्षित है कि-दिनांक-10.09.2010 को ष्योरटेक अस्पताल में भर्ती किये जाते समय मरीज का सुगर 600 रहा है।
(9) प्रदर्ष आर-17 के चिकित्सालय उपचार प्रमाण-पत्र में भर्ती के समय पूर्वावृति (पास्ट हिस्ट्री) स्वयं मरीज के द्वारा बताया गया कारण, 5'ब में चिकित्सक ने लेख किया है।
(10) तो स्वयं परिवादिया के पतिमरीज के द्वारा, ष्योरटेक अस्पताल में भर्ती के समय अपनी बीमारी बाबद जो पूर्व का विवरण दिया गया, उससे ये सिथतियां स्पश्ट रही हैं कि-परिवादिया के पति को अनेक वर्शों से मधुमेह रोग रहा है और डायबिटिक फूड बाबद ष्योरटेक अस्पताल में भर्ती किये जाते समय पैर में पुराना संक्रमित घाव रहा है, जो कि-मृतक के पैर में उक्त घाव कबसे रहा, इस संबंध में प्रस्तुत परिवाद में कोर्इ उल्लेख नहीं किया गया, जबकि-प्रदर्ष आर-2 और आर-3 के अस्पताल के दस्तावेजों से यह भी स्पश्ट है कि-परिवादिया के पति ने पूर्व में स्थानीय अस्पताल में इलाज कराया था, जहां से उसे मेडिकल हासिपटल के लिए रिफर किया गया था, फिर परिवादिया का पति मेडिकल हासिपटल, नागपुर में भी इलाज कराया और पैर काटे जाने की सलाह वहां दिये जाने पर, मेडिकल हासिपटल, नागपुर छोड़कर घर आ गया और बाद में दिनांक-10.09.2010 को ष्योरटेक अस्पताल में भर्ती हुआ था, तो स्थानीय हासिपटल में कराये गये इलाज और मेडिकल हासिपटल में कराये गये इलाज के अभिलेखों में पैर के घाव व मधुमेह की बीमारी की अवधि व इतिहास का उल्लेख मिलता, इसलिए स्थानीय अस्पताल और मेडिकल हासिपटल में हुये इलाज के दस्तावेजों को पेष न करना पड़े, इसलिए उन्हें छिपाते हुये बीमा कम्पनी को मृत्यु क्लेम पेष करते समय और यह परिवाद पेष करते समय परिवादिया ने ष्योरटेक अस्पताल में भर्ती होने के पूर्व के अन्य अस्पतालों में हुये इलाज की कहानी से ही इंकार करते हुये, मात्र यह वृतांत दर्षा दिया कि-पैर की चोट का धीरे-धीरे घाव बन जाने पर पहले देहाती इलाज किया जाता रहा, फिर ष्योरटेक अस्पताल में भर्ती किया गया, अर्थात अन्य किसी अस्पताल में इलाज कराये जाने से ही इंकार कर दिया गया। तो यह परिवादिया के द्वारा किया गया महत्वपूर्ण तथ्यों का छिपाव होना स्पश्ट है।
(11) प्रदर्ष आर-2 का ष्योरटेक अस्पताल द्वारा जारी भर्ती के समय मरीज की सिथति के दस्तावेज, जिसे परिवादिया ने अपने क्लेम के समय बीमा कम्पनी को पेष किया था और क्योंकि उसमें ही मरीज के द्वारा अनेक वर्शों से मधुमेह की बीमारी रहा होना, भर्ती के समय बताया गया था, जो इलाज प्रारम्भ करते समय मरीज की हिस्ट्री के रूप में लेख किया गया है और उसी के आधार पर, परिवादिया का बीमा मृत्यु क्लेम, बीमा कम्पनी ने अस्वीकार भी किया है। तो प्रदर्ष आर-2 का उक्त महत्वपूर्ण दस्तावेज परिवादिया के द्वारा, परिवाद पेष करते समय प्रदर्ष सी-5 के डामा कार्ड की प्रति के साथ पेष कर दिया जाता, तो परिवाद प्रारमिभक सुनवार्इ में ही स्वीकार योग्य न होता, इसलिए परिवादिया-पक्ष की ओर से उक्त इलाज संबंधी दस्तावेज को पेष न करते हुये परिवाद पेष किया गया, ताकि अनावेदक-पक्ष को जवाब के लिए तलब कराया जा सके। और यदि अनावेदक-पक्ष जवाब के लिए उपसिथत न हो, तो उक्त छिपाव का लाभ लिया जा सके।
(12) परिवादिया की ओर से उसके परिवाद में उसके पति को मधुमेह की बीमारी रहे होने से भी इंकार किया गया है और उक्त आधार पर, मृत्यु दावा अस्वीकार को अनुचित बताया गया है, जबकि-ष्योरटेक अस्पताल के अभिलेख की प्रति प्रदर्ष आर-2 से ही स्पश्ट है कि-भर्ती के समय परिवादिया के पति के ब्लड सुगर का स्तर 600 रहा है और भर्ती के समय उसके द्वारा ही अनेक वर्शों से मधुमेह से पीडि़त रहा होना भी बताया गया था और ष्योरटेक अस्पताल के प्रतिदिन हुये इलाज के अभिलेख की प्रतियां प्रदर्ष आर-4 से आर-16 से भी यह दर्षित है कि-रक्त षर्करा को नियंत्रित करने के लिए काफी उंचे डोज दवार्इयों के दिये गये।
(13) तब यह सिथति बहुत स्पश्ट है कि-परिवादिया का पति-गणेष प्रसाद अनेक वर्शों से रक्त षर्करा (डायबिटिक मेलीटस) की बीमारी से गंभीर रूप से पीडि़त रहा है और ष्योरटेक अस्पताल में भर्ती रहने के पूर्व से ही उसे यह जानकारी थी कि-वह अनेक वर्शों से डायबिटीज से पीडि़त है, तो निषिचत ही उक्त के नियंत्रण के लिए पूर्व में उसके द्वारा इलाज लिया जाता रहा होगा, फिर भी मृत्यु से मात्र 7 माह पूर्व उसके द्वारा बीमा पालिसी लिये जाते समय जो बीमा प्रस्ताव में जानकारी भरी जाकर, सत्यापिक व सही घोशित की गर्इ, तो प्रदर्ष आर-20 के उक्त बीमा प्रस्ताव की प्रति से स्पश्ट है कि-स्वास्थ्य के संबंध में व्यकितगत प्रक्कथन बाबद जो कालम कणिडका-6 रहा है, उसमें कालम-6'र्इ में विषिश्ट रूप से मधुमेह की बीमारी से पीडि़त है या रहे हैं, इस बारे में पूछा गया था, जिसे बीमित ने छिपाते हुये, 'नहीं में उत्तर दिया और कालम नंबर-'ए में जो 5 वर्शों के भीतर किसी ऐसी बीमारी जिसके लिये उपचार की एक सप्ताह की आवष्यकता रही हो, के संबंध में भी 'नहीं में उत्तर दिया व कालम-'आर्इ में सामान्यत: स्वास्थ्य की सिथति के संबंध में जो अच्छी रही होने की जानकारी दी गर्इ थी, तो निषिचत रूप से उक्त दी गर्इ जानकारी असत्य रही है और अपने खराब स्वास्थ्य, अनेक वर्शों से डायबिटीज से पीडि़त रहे होने और इसके इलाज ले रहे होने के तथ्यों को बीमित के द्वारा जानबूझकर छिपाया गया था और उक्त संबंध में जानबूझकर गलत जानकारी दी गर्इ थी, जो कि-स्वास्थ्य व बीमारी संबंधी सारबान तथ्यों का छिपाव कर, बीमित के द्वारा बीमा पालिसी प्राप्त की गर्इ, जो कि-बीमा प्रस्ताव में यह घोशणा रही है कि-उसके द्वारा दिये गये प्रक्कथन व उत्तर, प्रष्नों के यदि असत्य पाये जायें, तो उक्त बीमा अनुबंध व्यर्थ और प्रभावहीन हो जायेगा।
(14) और क्योंकि परिवादिया के पति द्वारा पालिसी लिये जाते समय सारबान व तात्विक जानकारी डायबिटीज की बीमारी रहे होने बाबद छिपाकर पालिसी प्राप्त की गर्इ थी, जबकि-बीमित अनेक वर्शों से डायबिटीज से पीडि़त रहा होना और इसलिए उसका घाव ठीक न होकर इन्फेक्षन और सेप्टीसीमिया हो जाना, उक्त ष्योरटेक अस्पताल के भर्ती के इलाज के व डिस्चार्ज के अभिलेखों से ही प्रमाणित रहा है, तब अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादिया का मृत्यु बीमा दावा अस्वीकार किया जाना किसी भी तरह अनुचित नहीं, बलिक इससे उलट यह दर्षित है कि- परिवादिया के पति ने तो अनेक वर्शों से डायबिटीज की बीमारी को छिपाकर पालिसी प्राप्त किया था, परन्तु स्वाभाविक रूप से परिवादिया को भी इस बात की जानकारी रही है और उसने भी बीमा पालिसी प्राप्त करने के पूर्व से उसके पति का मधुमेह की बीमारी से पीडि़त रहे होने के तथ्य को छिपाने के तरीके अपनाकर ही, मृत्यु दावा पेष किया था और मृत्यु दावा निरस्त हो जाने पर, परिवादिया ने उसके पति के मधुमेह की बीमारी से पीडि़त रहे होने के तथ्य को छिपाने के सभी जतन करते हुये, अनुचित आधारों पर यह क्लेम पेष किया है।
(15) तो अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादिया का मृत्यु दावा उचित आधार पर अस्वीकार किया गया है और अस्वीकृति की कारणों सहित, लिखित सूचना परिवादिया को दी गर्इ है, तो अनावेदक बीमा कम्पनी ने, परिवादिया के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं किया है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(16) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) परिवादिया का परिवाद, स्वीकार योग्य न होने
से निरस्त किया जाता है। और परिवादिया की ओर से उसके पति के मधुमेह बीमारी के तथ्यों को छिपाते हुये, गलत कथन कर व इलाज के तात्विक अभिलेखों को छिपाकर, यह परिवाद पेष करते हुये, अनावेदक-पक्ष को अनावष्यक-रूप से बचाव करने हेतु विवष किया है। अत: परिवादिया, अनावेदक बीमा कम्पनी को 2,000-रूपये (दो हजार रूपये) विषेश हर्जाना अदा करे।
(ब) परिवादिया स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेगी
और अनावेदक बीमा कम्पनी को कार्यवाही-व्यय
के रूप में 2,000-रूपये (दो हजार रूपये) अदा
करेगी।
(स) परिवादिया-पक्ष उक्त सब अदायगी आदेष दिनांक
से चार माह की अवधि के अन्दर अनावेदक-पक्ष को
करेगी।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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