View 7580 Cases Against Life Insurance Corporation
View 7580 Cases Against Life Insurance Corporation
View 32914 Cases Against Life Insurance
View 32914 Cases Against Life Insurance
GOPAL SANODIYA filed a consumer case on 18 Dec 2013 against LIFE INSURANCE CORPORATION in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/83/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक- 83-2013 प्रस्तुति दिनांक-21.10.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
गोपाल सनोडिया, आत्मज रामनाथ
सनोडिया, निवासी-ग्राम ढुलबजा (एरिया)
पोस्ट-फुलारा, तहसील व जिला सिवनी
(म0प्र0)।.................................................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा-
(1) षाखा प्रबंधक, भारतीय जीवन
बीमा निगम, षाखा कार्यालय एन.
एच. 7, जबलपुर रोड, सिवनी(म0प्र0)।
(2) मण्डल प्रबंधक, भारतीय जीवन
बीमा निगम मण्डल कार्यालय, जबलपुर
(म0प्र0)।....................................................अनावेदकगणविपक्षीगण।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 18.12.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक बीमा कम्पनी से प्राप्त की गर्इ पालिसी की परिपक्वता राषि को अनावेदकों द्वारा, अन्य योजना में निवेष कर देने और परिपक्वता राषि का विलम्ब से भुगतान किये जाने के आधार बताकर, अन्य योजना में निवेष का लाभ और विलम्ब अवधि का ब्याज तथा हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी ने, अनावेदक बीमा कम्पनी की एल.आर्इ.सी. फयूचर प्लस योजना के तहत बीमा पालिसी क्रमांक- 373705079, दिनांक-30.06.2006 को प्राप्त की थी, जिसका परिपक्वता दिनांक-30.06.2011 रहा है। यह भी अविवादित है कि-दिनांक-13.04.2012 को परिवादी ने, अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा में उक्त पालिसी की परिपक्वता राषि 88,993-रूपये का भुगतान दिलाने दिनांक-17.09.2013 का उक्त परिपक्वता राषि का चेक परिवादी को भुगतान बाबद जो डाक से प्रेशित किया गया, वह परिवादी को प्राप्त हुआ।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- 50,000-रूपये एकमुष्त प्रीमियम दिनांक-30.06.2006 को जमा कर, परिवादी ने उक्त पालिसी प्राप्त किया था, जो कि-दिनांक-30.06.2011 को परिपक्वता दिनांक के पष्चात भी परिवादी को परिपक्वता राषि वापस प्रदान नहीं की गर्इ, जो कि-परिवार विवाह कार्यक्रम के लिए आवष्यक होने पर, दिनांक-13.04.2012 को परिवादी, अनावेदक क्रमांक-1 के कार्यालय की षाखा में उपसिथत होकर, राषि की मांग किया, तो पता चला कि-परिवादी की सहमति व निर्देष के बिना ही, परिपक्वता राषि को अन्य योजना में अनाधिकृत रूप से निवेष कर दिया गया है, जो कि-परिवादी द्वारा, उक्त दिनांक-13.04.2013 को मूल पालिसी प्रमाण-पत्र व भुगतान हेतु प्रपत्र आदि हस्ताक्षर कर दिये गये थे, तो षीघ्र ही भुगतान कराने का आष्वासन दिया गया था, जो कि-परिवादी की भांजी का विवाह 24 व 25 अप्रैल- 2012 को होना था, उक्त अवधि में भी परिपक्वता राषि का भुगतान नहीं किया गया और बेवजह एक वर्श का समय नश्ट किया गया, अंतिम प्रयास के रूप में दिनांक-11.09.2013 को परिवादी द्वारा पत्र प्रेशित करने के पष्चात, अनावेदक-पक्ष से पंजीकृत-डाक के माध्यम से अक्टूबर-2013 में कम्प्यूटरीकृत सिलप सहित, दिनांक-17.09.2013 का परिपक्वता राषि 88,993-रूपये का चेक दिया गया, जो कि-पालिसी षर्तों के विपरीत अन्य योजना में निवेष का लाभ व विलम्ब अवधि का ब्याज दिये बिना ही भुगतान कर, परिवादी के प्रति-घोर उपेक्षा व व्यवसायिक दुराचार किया गया है।
(4) अनावेदकगण के जवाब का सार यह है कि-परिवादी ने दिनांक-30.06.2006 को तालिका क्रमांक-172 की पांच वर्श के लिए 50,000-रूपये प्रीमियम की पालिसी क्रय की थी, जिसमें दिनांक-30.06.2011 को वृतित निहित, अर्थात पेंषन निहित होने की तिथि है, जो कि- पालिसी निहित होने पर वृतित राषि मासिक 500-रूपये से कम होने पर, बीमा धारक को एकमुष्त परिपक्वता हितलाभ राषि प्रदान करने का प्रावधान है, परिवादी की उक्त पालिसी का परिपक्वता मूल्य 88,993-रूपये था, जो कि-परिवादी द्वारा, विमुकित-पत्र व मूल पालिसी बाण्ड प्रेशित करने पर ही उसका भुगतान किया जाना संभव था, परिवादी की उक्त पालिसी की राषि किसी अन्य योजना में समाहित नहीं की गर्इ है और परिवादी द्वारा, दिनांक-13.04.2012 को विमुकित-पत्र हस्ताक्षरित कर, मूल पालिसी दस्तावेज के साथ अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा में जमा किये गये, जिसका भुगतान दिनांक-27.04.2012 को चेक क्रमांक-154613 को स्पीड पोस्ट से दिनांक-03.05.2012 को परिवादी के पते पर प्रेशित किया गया था, उक्त चेक को परिवादी ने तीन माह की समय-सीमा में नहीं भुनाया और चेक की समय-सीमा समाप्त हो जाने से वह व्यर्थ हो गया था, परिवादी द्वारा पुन: चेक पाने हेतु आवेदन-पत्र पंजीकृत-डाक से दिनांक-11.09.2013 को प्रेशित किया गया, जिसके दिनांक-12.09.2013 को अनावेदक की षाखा में प्रापित की अभिस्वीकृति भी परिवादी को प्रदान की गर्इ और उक्त आवेदन के आधार पर, चेक क्रमांक-166307, रूपये 88,993-का पंजीकृत-डाक आर.एल.क्यू.2992092013 को प्रेशित किया गया, जिसका परिवादी द्वारा दिनांक-29.10.2013 को भुगतान करा लिया गया है, जो कि-पालिसी की परिपक्वता तिथि के बाद, अनावेदक संस्था से संपर्क कर, विमुकित-पत्र, मूल पालिसी दस्तावेज व अन्य दस्तावेज पेष करने की जवाबदारी परिवादी की रही है और स्वयं परिवादी ने विलम्ब से दिनांक-13.04.2012 को अनावेदक संस्था में उपसिथत होकर विमुकित- पत्र व पालिसी दस्तावेज पेष किये, इसके बाद अनावेदक-पक्ष द्वारा राषि प्रदान करने में कोर्इ विलम्ब व उपेक्षा नहीं की गर्इ है और परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है, परिवाद बिना उचित कारण के अनुचित लाभार्जन करने के उददेष्य से पेष किया गया, इसलिए निरस्त योग्य है।
(5) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हंंै कि:-
(अ) क्या परिवादी की उक्त पालिसी की परिपक्वता
राषि को परिवादी के निर्देष व अनुमति के बिना
अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा अन्य योजना में निवेष
कर दिया गया और ऐसे निवेष का लाभ परिवादी
को न दिया जाकर, उसके प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है?
(ब) क्या अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादी को उक्त
पालिसी की परिपक्वता राषि का भुगतान करने में
अनुचित विलम्ब किया गया और विलम्ब अवधि के
ब्याजहर्जाना का भुगतान न कर, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है?
(स) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6) उक्त पालिसी दिनांक-30.06.2006 से प्रभावी परिवादी के द्वारा जो क्रय की गर्इ थी, उसका पालिसी दस्तावेज प्रदर्ष आर-3 के रूप में अनावेदक-पक्ष से पेष हुआ है और प्रदर्ष आर-1 में उक्त पालिसी के सभी नियम व षर्तें वर्णित हैं, जो कि-उक्त पालिसी में पेंषन योजना भी षामिल रही है और पेंषन निरस्त कर, परिपक्वता राषि प्राप्त करने का विकल्प बीमा धारक के पास रहा है, जो कि-पालिसी की परिपक्वता दिनांक-30.06.2011 के पष्चात पेंषन न लेकर, परिपक्वता राषि का भुगतान एकमुष्त प्राप्त करने का विकल्प परिवादी के पास था और यदि पेंषन राषि 500- रूपये मासिक तक नहीं बनती, तो भी परिपक्वता राषि का एकमुष्त भुगतान होना था, जो कि-स्पश्ट है कि-परिवादी जब दिनांक-13.04.2012 को पालिसी की परिपक्वता राषि प्राप्त करने के लिए अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा में संपर्क किया, तो उसे यह सामान्य जानकारी ही दी गर्इ होगी कि-यह पेंषन योजना का प्लान है। और परिपक्वता राषि की मांग न किये जाने पर पेंषन योजना के प्लान में निवेष होने की षर्त बीमा पालिसी में है। तो स्पश्ट है कि-प्रदर्ष आर-1 में दी पालिसी षर्तों को देखते हुये ही, परिवादी-पक्ष ने, परिवादी की पालिसी की परिपक्वता राषि को अन्य योजना में निवेष कर दिये जाने का लांछन दिनांक-24.04.2012 के पत्र प्रदर्ष सी-5 और सितम्बर-2012 में अधिवक्ता की सहायता से भेजे प्रदर्ष सी-2 के पत्र में लगाया, जिसका अभिस्वीकृति-पत्र प्रदर्ष सी-3 के रूप में परिवादी-पक्ष से पेष हुआ है।
(7) तो परिवादी के पालिसी की परिपक्वता राषि को अन्य किसी योजना में निवेष किये जाने का अनावेदक-पक्ष ने खण्डन किया है और परिपक्वता राषि अन्य किसी योजना में निवेष की गर्इ हो, ऐसा कोर्इ प्रमाण परिवादी-पक्ष का नहीं, तो विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को इस प्रकार निश्कर्शित किया जाता है कि-परिवादी की बीमा पालिसी की परिपक्वता राषि अन्य किसी योजना में अनावेदक द्वारा निवेषित किया जाना प्रमाणित नहीं है, इसलिए अन्य किसी योजना के निवेष का लाभ परिवादी द्वारा पाना संभव नहीं, तो इस बाबद अनावेदक-पक्ष ने, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं किया है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(8) परिवादी के द्वारा, उक्त पालिसी की परिपक्वता राषि प्राप्त करने हेतु मूल पालिसी का बाण्ड व विमुकित-पत्र दिनांक-13.04.2012 को अनावेदक क्रमांक-1 के कार्यालय में पेष कर, परिपक्वता राषि की मांग की गर्इ, तो उसके पूर्व उक्त राषि प्राप्त होने की कोर्इ कार्यवाही परिवादी द्वारा किया जाना दर्षित नहीं है, जो कि-दिनांक-13.04.2012 को परिवादी द्वारा निश्पादित विमुकित-पत्र की प्रति आर-2 अनावेदक-पक्ष से पेष की गर्इ है, जिसमें परिपक्वता राषि 88,993-रूपये प्राप्त करने हेतु परिवादी सहमत व संतुश्ट रहा है, तो उक्त राषि का भुगतान परिवादी को लगभग 15-20 दिन या 1 माह की अवधि के अंदर कर दिया जाना चाहिये था।
(9) अनावेदक के जवाब में यह बचाव लिया गया है कि- विमुकित-पत्र व पालिसी दस्तावेज प्राप्त होने पर, दिनांक-27.04.2012 के चेक क्रमांक-154613 के द्वारा, परिवादी को भुगतान, परिपक्वता राषि का दिनांक-03.05.2012 के स्पीड-पोस्ट से परिवादी के पते पर भेज दिया गया था और तीन माह की समय-सीमा में परिवादी द्वारा नहीं भुनाया गया, इसलिए उक्त चेक व्यर्थ हो जाने पर, परिवादी ने जब पुन: चेक पाने हेतु दिनांक-11.09.2013 को पत्र प्रेशित किया, तो परिवादी को पुन: उक्त राषि का दूसरा चेक जारी किया गया और इस तरह परिवादी द्वारा पेष दिनांक- 17.09.2013 के चेक को जिसकी फोटोप्रति आर-4 के रूप में पेष हुर्इ है, अनावेदक-पक्ष, परिवादी को प्रेशित दूसरा चेक होना कह रहा है।
(10) यदि वास्तव में ऐसी सिथति रही होती कि-अनावेदक-पक्ष द्वारा वास्तव में दिनांक-03.05.2012 को रजिस्टर्ड स्पीड पोस्ट से चेक भेजा गया होता और वह परिवादी को प्राप्त हुआ होता, तो अनावेदक-पक्ष दिनांक- 17.09.2013 का चेक जिसकी फोटोप्रति प्रदर्ष सी-4 है जारी करने के पूर्व, पूर्व में चेक भेज दिये जाने की परिवादी को जानकारी का पत्र देते हुये, पूर्व का भुगतान न हुये चेक की वापस मांग करता। अनावेदक-पक्ष की ओर से जो प्रदर्ष आर-4 का दिनांक-03.05.2012 का डिस्पेच रजिस्टर की प्रति होना कहकर पेष की गर्इ है कि-उसमें क्रमांक-34 पर गोपाल सनोडिया को डाक भेजे जाने का उल्लेख और पोस्ट आफिस की सील भी है और उससे मात्र यही दर्षित है कि-उक्त डाक, परिपक्वता राषि के भुगतान बाबद भेजी गर्इ थी, जो कि-प्रदर्ष सी-4 के लिस्ट में स्थान के कालम में परिवादी के गांव-ढुलबजा का उल्लेख नहीं, बलिक फुलारा का उल्लेख है, जो उक्त क्षेत्र का पोस्ट आफिस है। जो कि-ऐसी डाक में पता सही लिखा गया हो और डाक लौटकर वापस अनावेदक बीमा कम्पनी षाखा को प्राप्त न हुर्इ हो, ऐसा कोर्इ उल्लेख अनावेदक के जवाब में भी नहीं।
(11) वास्तव में दिनांक-11.09.2013 को प्रदर्ष सी-1 की पोस्टल रसीद के द्वारा भेजा गया अनावेदक क्रमांक-1 को परिवादी के आवेदन की प्रति प्रदर्ष सी-2 में यह लेख किया गया है कि-दिनांक-13.04.2012 से एक वर्श से अधिक समय हो जाने पर भी अब-तक भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए तीन दिन के अंदर राषि का भुगतान न होने पर, सक्षम न्यायालय की षरण लेनी पड़ेगी, तो दिनांक-11.09.2013 को उक्त आवेदन में परिवादी-पक्ष द्वारा कहीं ऐसा उल्लेख नहीं किया गया कि-मर्इ-2012 में उसे कोर्इ अनावेदक द्वारा भेजा गया दिनांक-27.04.2012 का चेक प्राप्त हुआ था, जो समय-सीमा में भुगतान नहीं हो पाया, तो प्रदर्ष सी-2 का पत्र प्राप्त होने के बाद, अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा पूर्व में भेजे गये चेक बाबद कोर्इ जानकारी लिये बिना उसका कोर्इ हवाला दिये बिना ही, प्रदर्ष सी-4 का दूसरा चेक दिनांक-17.09.2013 भेज दिये जाने की परिसिथति स्वयं यह दर्षाती है कि-वास्तव में पूर्व में भेजी गर्इ दिनांक-03.05.2012 की डाक, परिवादी को वितरित न होना, अनावेदक-पक्ष जानता रहा है और उक्त डाक परिवादी को वितरित न होने बाबद, अनावेदक-पक्ष का ही कोर्इ-न-कोर्इ दोश या त्रुटि रहा होना भी अनावेदक-पक्ष जानता रहा है, इसलिए मर्इ-2012 में भेजे गये डाक से चेक बाबद, कोर्इ जानकारी दिये बिना और उक्त पूर्व के चेक बाबद परिवादी-पक्ष से कोर्इ माहती लिये बिना ही दूसरा चेक जारी कर दिया गया और इसलिए अनावेदक-पक्ष ने इस मामले में भी प्रदर्ष सी-4 के दिनांक-03.05.2012 को डाक भेजने के अलावा, उक्त डाक परिवादी को वितरित होने संबंधी कोर्इ प्रमाण-पत्र या स्टेटर्स रिपोर्ट पेष नहीं की है, जबकि-उक्त संबंध में डाक भेजने का प्रमाण-पत्र पर्याप्त नहीं। उक्त डाक से भेजा चेक परिवादी को प्राप्त हो जाने के प्रमाण के बिना, अनावेदक को कोर्इ बचाव प्राप्त नहीं होता, क्योंकि भुगतान हेतु चेक, परिवादी को प्रदान करने का दायित्व अनावेदकगण का रहा है। और मर्इ-2012 के पष्चात से उक्त डाक का वितरण न होने और चेक का भुगतान प्राप्त न किये जाने की जानकारी होती। अनावेदक द्वारा अगले 1 वर्श तक कोर्इ प्रयास, परिवादी को परिपक्वता राषि के भुगतान बाबद किया गया हो, ऐसा अनावेदक-पक्ष का मामला नहीं और प्रदर्ष सी- 3 का परिवादी का नोटिस जब दिनांक-12.09.2013 को अनावेदक क्रमांक- 1 को प्राप्त हो गया, इसके पष्चात ही दिनांक-17.09.2013 का प्रदर्ष सी- 4 के आषय का चेक भुगतान बाबद परिवादी को भेजा गया, ऐसे में परिपक्वता राषि का भुगतान करने में लगभग सवा वर्श का विलम्ब अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा कारित किया गया, तो ऐसे अनुचित विलम्ब की अवधि का हर्जाने के तौर पर ब्याज का भुगतान भी अनावेदकगण द्वारा, परिवादी को किया जाना चाहिये था और ऐसे अनुचित अवधि के विलम्ब के ब्याज का भुगतान न कर, अनावेदकगण ने, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी किया है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(12) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) अनावेदकगण ने दिनांक-13.04.2012 को परिवादी के
द्वारा, औपचारिकतायें पूर्ण कर देने पर भी परिपक्वता
राषि भुगतान करने में जो लगभग सवा वर्श का
अनुचित विलम्ब किया है और उक्त अनुचित विलम्ब
की अवधि का ब्याज न देकर, जो सेवा में कमी की
गर्इ है, उक्त हेतु अनावेदक क्रमांक-2 परिवादी को
परिपक्वता ब्याज पर हुये ब्याज का नुकसान, कश्ट
व असुविधा बाबद 10,000-रूपये (दस हजार रूपये) हर्जाना अदा करे।
(ब) अनावेदकगण स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे
और परिवादी को कार्यवाही-व्यय के रूप में संयुक्तत: या पृथकत: 2,000-रूपये (दो हजार रूपये) अदा करें।
(स) उक्त अदायगी आदेष दिनांक से चार माह की अवधि के अन्दर की जावे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes
Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.