Madhya Pradesh

Seoni

CC/34/2013

AATARLAL YADAV - Complainant(s)

Versus

LIFE INSURANCE CORPORATION - Opp.Party(s)

18 Jun 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी (म0प्र0)
 प्रकरण क्रमांक-34-2013                             प्रस्तुति दिनांक-14.03.2013


समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

अतरलाल, उम्र लगभग 55 वर्श, आत्मज
बिरजू यादव, जाति अहीर, निवासी-ग्राम 
बुढैनाखुर्द, तहसील बरघाट, जिला सिवनी
(म0प्र0)।..........................................................आवेदक     परिवादी।


                :-विरूद्ध-:  
                
क्षेत्रीय प्रबंधक,
भारतीय जीवन बीमा निगम कार्यालय
मदन महल, नागपुर रोड, जबलपुर
(म0प्र0)।...........................................................अनावेदक    विपक्षी।

                    
                 :-आदेश-:
    
     (आज दिनांक- 18/06/2013    को पारित)

द्वारा-अध्यक्ष:-

(1)        परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसकी पतिन-तीजोबार्इ, जो कि-प्राथमिक वनोपज, सहकारी समिति मर्यादित, भोमा, जिला सिवनी में तेन्दूपत्ता संग्रहक थी, उसकी दिनांक-18.10.2010 को सर्पदंष से हुर्इ मृत्यु बाबद, अनावेदक द्वारा, तेन्दूपत्ता संग्रहकों के लिए जारी समूह बीमा योजना के तहत मृतिका के क्लेम की देय राषि 25,000-रूपये का भुगतान न करने को सेवा में कमी होना बताते हुये, बीमाधन की षेश राषि 21,500-रूपये व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2)         मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि-अप्रैल-1991 से मध्यप्रदेष षासन द्वारा, मध्यप्रदेष संग्रहकों के लिए नि:षुल्क समूह जीवन बीमा योजना लागू की गर्इ, जिसके तहत अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, बीमा पालिसी जारी की गर्इ और योजना के तहत प्रीमियम की राषि, मध्यप्रदेष राज्य तेन्दूपत्ता, वनोपज समूह द्वारा जमा की जाती है, योजना के तहत, तेन्दूपत्ता संग्रहक की साधारण मृत्यु पर 3,500-रूपये और दुर्घटना मृत्यु पर 25,000-रूपये की राषि मृतक के नामांकित सदस्य को देय होती है। यह भी विवादित नहीं कि-परिवादी की पतिन तीजोबार्इ की दिनांक-18.10.2010 को सर्पदंष से मृत्यु हो गर्इ, जो कि-दुर्घटना मृत्यु पर देय राषि के संबंध में प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति, भोमा के माध्यम से दिनांक- 26.12.2010 को क्लेम प्रकरण, दस्तावेजों सहित, अनावेदक को भेजा गया था। और यह भी विवादित नहीं कि-अनावेदक के द्वारा, दुर्घटना मृत्यु होना न मानकर, साधारण मृत्यु के लिए देय 3,500-रूपये की राषि का चेक दिनांक-22.08.2011 को वनोपज सहकारी समिति के माध्यम से भुगतान हेतु भेजा गया। यह भी विवादित नहीं कि-इस प्रकरण का संमंस प्राप्त होने के पष्चात, अनावेदक के द्वारा, दिनांक-15.05.2013 को 21,500-रूपये षेश बीमाधन की राषि का चेक दिनांकित-09.05.2013 इस फोरम में पेष कर दिया गया है।
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- परिवादी द्वारा समुचित आवष्यक दस्तावेज तैयार कर, पी0एम0 रिपोर्ट, लाष का नक्षा पंचायतनामा, मर्ग सूचना व पुलिस जांच के अंतिम प्रतिवेदन की प्रतियां दावे के साथ प्रेशित किये थे, पर अनावेदक ने उन पर समुचित विचार न कर, दुर्घटना मत्यु होना मानने से इंकार करते हुये, साधारण मृत्यु पर देय राषि का ही भुगतान किया, अस्तु बीमाधन की राषि 21,500- रूपये व दिनांक-26.12.2010 से उक्त राषि पर ब्याजहर्जाना की मांग की गर्इ है। 
(4)        अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-नोडल एजेन्सी जिला यूनियन वनमण्डल के मार्फत से भुगतान स्वीकृति हेतु दावा-प्रपत्र, दस्तावेजों सहित प्रेशित किये जाते हैं, जो कि-इस मामले में नोडल एजेन्सी से अपूर्ण दावा-प्रपत्र प्राप्त हुये, जिसमें दुर्घटना हितलाभ हेतु, आवष्यक दस्तावेज-पुलिस का अंतिम प्रतिवेदन संलग्न न होने के कारण, दावेदार का सामान्य मृत्यु दावा मानते हुये, 3,500-रूपये की राषि का भुगतान दिनांक-22.08.2012 के चेक के माध्यम से कर दिया गया था और अनावेदक के कार्यालय द्वारा, नोडल एजेन्सी को दिनांक-03.01.2012 तथा 22.08.2012 के पत्र के द्वारा, अंतिम प्रतिवेदन तत्काल प्रेशित करने सूचित किया गया था, ताकि दुर्घटना हितलाभ की राषि प्रदान करने संबंधी निर्णय लिया जा सके, किन्तु उक्त अंतिम प्रतिवेदन दिनांक-01.03.2013 इस जिला उपभोक्ता फोरम के संमंस के साथ भेजे गये दस्तावेजों में प्राप्त हुये, तब बीमा क्लेम का षीघ्र निराकरण करते हुये, चेक दिनांक-09.05.2013 के माध्यम से षेश बीमाधन की राषि 21,500-रूपये का चेक इस फोरम में दिनांक-15.05.2013 को जमा कराया गया था।
(5)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
        (अ)    क्या अनावेदक ने दुर्घटना मृत्यु पर देय राषि के
            भुगतान में अनुचित विलम्ब कर, परिवादी के प्रति-
            सेवा में कमी किया है?
        (ब)    सहायता एवं व्यय?

                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-

(6)        इस संबंध में परिवादी की ओर से प्रदर्ष सी-3 का मृतिका का मृत्यु प्रमाण-पत्र और पुलिस जांच की मर्ग सूचना की प्रति प्रदर्ष सी-4, लाष के नक्षा पंचायतनामा की प्रति प्रदर्ष सी-5, षव परीक्षण के आवेदन व पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रति प्रदर्ष सी-6 पेष किये हैं तथा 3,500- रूपये की अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा जारी चेक की प्रति प्रदर्ष सी-2 और भुगतान बाबद, उक्त चेक प्राप्त होने की प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति के पत्र की प्रति प्रदर्ष सी-1 पेष की गर्इ है, जो कि-उक्त सभी दस्तावेजों की अंतर्वस्तुयें स्वीकृत सिथति हैं। 
(7)        अनावेदक के जवाब से यह स्पश्ट है कि-पुलिस अधीक्षक, सिवनी के कार्यालय द्वारा, दिनांक-01.03.2013 को प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति को भेजे गये पत्र की प्रति को ही मर्ग जांच का अंतिम प्रतिवेदन होना मानते हुये, उसके आधार पर भुगतान अनावेदक द्वारा, बीमाधन की षेश राषि 21,500-रूपये का किया जाना दर्षाया गया है। 
(8)        जबकि-प्रदर्ष सी-1 के पत्र दिनांक-15.01.2013 के माध्यम से नोडल एजेन्सी ने परिवादी को यह लिखित में सूचित किया था कि- दिनांक-26.12.2010 को जिला यूनियन कार्यालय (नोडल एजेन्सी) के द्वारा, अनावेदक को मृतिका का दुर्घटना दावा प्रकरण प्रेशित किया गया था और उसके एक वर्श के पष्चात जनवरी-2012 में अनावेदक के द्वारा, मूल मृत्यु प्रमाण-पत्र व पुलिस के अंतिम जांच रिपोर्ट की मांग करते हुये, दावा लौटा दिया गया था और तब मूल मृत्यु प्रमाण-पत्र व पुलिस की अंतिम जांच रिपोर्ट की  पूर्ति कर, प्रकरण पुन: जिला यूनियन के माध्यम से पत्र क्रमांक-383 दिनांक-26.04.2012 के द्वारा, अनावेदक को प्रेशित किया गया, फिर भी अनावेदक के द्वारा, दिनांक-22.08.2012 के चेक के द्वारा, 3,500-रूपये की राषि का ही भुगतान किया गया है, जबकि-समस्त दस्तावेज-मृत्यु प्रमाण-पत्र, मर्ग रिपोर्ट, नक्षा पंचायतनामा, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अंतिम जांच प्रतिवेदन अनावेदक को प्रेशित किये जा चुके हैं। 
(9)        स्पश्ट है कि-दिसम्बर-2010 में अनावेदक को क्लेम प्राप्त हो जाने के बावजूद, उसके द्वारा क्लेम निराकरण में कोर्इ रूचि नहीं ली गर्इ और पुलिस के अंतिम जांच प्रतिवेदन की मांग एक वर्श की अवधि के पष्चात की गर्इ, जो कि-मृत्यु, सर्पदंष से होने के संबंध में कोर्इ संदेह अनावेदक को था, तो वह अपने स्तर पर जांच कराने स्वतंत्र रहा है और पुलिस से अंतिम जांच प्रतिवेदन भी प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र रहा है, जो कि- अंतिम जांच प्रतिवेदन कोर्इ परिवादी-पक्ष के पास उपलब्ध दस्तावेज नहीं रहा है, तो एक वर्श पष्चात ऐसे दस्तावेज की मांग, नोडल एजेन्सी से किया जाना, मात्र विलम्ब करने का तरीका रहा होना दर्षित है और नोडल एजेन्सी के पत्र दिनांक-26.04.2012 के माध्यम से अंतिम जांच प्रतिवेदन प्रेशित कर दिये जाने के बावजूद, लगभग चार माह पष्चात दुर्घटना मृत्यु मानने से इंकार करते हुये, मात्र साधारण मृत्यु बाबद, 3,500-रूपये की राषि का भुगतान करना अनुचित है और क्लेम प्राप्त होने के दो वर्श के पष्चात 3,500-रूपये के चेक का भुगतान होना स्पश्ट है। प्रदर्ष सी-2 में यह नया आधार लेख कर दिया गया कि-पोस्टमार्टम रिपोर्ट में विसरा जांच होने पर दुर्घटना पर पुन: विचार होगा और अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, विसरा जांच रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए कोर्इ प्रयास या मृत्यु के कारण के संबंध में कोर्इ जांच करार्इ नहीं गर्इ और फिर इस मामले का संमंस प्राप्त हो जाने के पष्चात ही जवाब पेष करने के पूर्व, षेश बीमाधन की राषि का चेक इस फोरम में पेष किया गया और अपने जवाब में उक्त भुगतान का आधार, प्रदर्ष सी-7 के पुलिस अधीक्षक के पत्र को बनाया गया है, जबकि-उक्त पत्र में ही यह उल्लेख है कि-एस0डी0एम0 बरघाट की स्वीकृति पष्चात मर्ग डायरी फार्इल की गर्इ है।
(10)        ऐसे में अनावेदक के द्वारा, परिवादी को दुर्घटना मृत्यु दावा बाबद, देय राषि का भुगतान करने में दो वर्श से अधिक अवधि का अनुचित विलम्ब कारित किया गया है और इस तरह परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(11)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
        (अ)    अनावेदक के द्वारा, परिवादी के क्लेम भुगतान में
            जो लगभग दो वर्श से अधिक अवधि का अनुचित
            विलम्ब कारित किया गया, जो परिवादी के प्रति-
            सेवा में कमी है और उक्त से परिवादी को जो
            मानसिक कश्ट और असुविधा हुर्इ है तथा विलम्ब 
            से राषि प्राप्त होने पर ब्याज आदि का जो नुकसान
            हुआ, उक्त सबको देखते हुये, अनावेदक, परिवादी
            को 5,000-रूपये (पांच हजार रूपये) हर्जाना अदा
            करे।
        (ब)    अनावेदक स्वयं का कार्यवाही-व्यय अदा करेगा और
            परिवादी को कार्यवाही-व्यय के रूप में 2,000-रूपये
            (दो हजार रूपये) अदा करे।
        (स)    उक्त अदायगी आदेष दिनांक से चार माह की अवधि 
            के अंदर की जायेगी।

   मैं सहमत हूँ।                                      मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
         सदस्य                                                  अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         

       (म0प्र0)                                                   (म0प्र0)

                        

 

 

 

        
            

 

 

 

 

 

 

 

 

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