(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष्ा आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-88/2021
(जिला उपभोक्ता आयोग, सुलतानपुर द्वारा परिवाद संख्या-108/2015 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 08.01.2021 के विरूद्ध)
श्रीमती मृदुलता सिंह पत्नी स्व0 डा0 नागेन्द्र कुमार सिंह, निवासिनी आई हॉस्पिटल, सिविल लाइन गोलाघाट, पोस्ट बस स्टेशन, थाना कोतवाली नगर, जिला सुलतानपुर।
अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम
हेड ब्रांच मैनेजर, लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, सूपर मार्केट, पोस्ट हेड पोस्ट आफिस, जिला सुलतानपुर।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अंशुमाली सूद, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी.एस. बिसारिया, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : 14.09.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-108/2015, श्रीमती मृदुलता सिंह बनाम मुख्य शाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, सुलतानपुर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 08.01.2021 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज कर दिया कि बीमाधारक मृतक डा0 नागेन्द्र कुमार सिंह द्वारा प्रश्नगत बीमा पालिसी प्राप्त करते समय पूर्व में ली गईं बीमा पालिसियों को छिपाया गया, इसलिए कोई बीमा क्लेम देय नहीं है।
2. इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने अवैध तथा मनमाना निर्णय
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पारित किया है, जो साक्ष्य के विपरीत है। परिवादिनी द्वारा दो पालिसी क्रमश: पालिसी संख्या-219654803 तथा पालिसी संख्या-276036454 का बीमा क्लेम मांगा गया है। बहस के दौरान यह ज्ञात हुआ है कि पालिसी संख्या-219654803 दिनांक 12.04.2010 को प्राप्त की गई, इस पालिसी को प्राप्त करते समय पूर्व की तीन पालिसियों का कोई विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया, जबकि पालिसी संख्या-276036454 दिनांक 14.05.2012 को प्राप्त की गई, इस पालिसी को भी प्राप्त करते समय पूर्व में किसी भी पालिसी का कोई विवरण नहीं दिया गया, जो स्पष्ट रूप से बीमा अधिनियम की धारा 45 के प्रावधान का उल्लंघन है।
3. उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
4. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 27.02.2014 को हुई है, इसलिए केवल पालिसी संख्या-276036454 दिनांक 14.05.2012 ही बीमा अधिनियम की धारा 45 के प्रावधानों के अन्तर्गत नहीं आती, इसलिए इस पालिसी पर बीमा क्लेम अदा किया जाना चाहिए।
5. नजीर II (2019) CPJ 53 सुप्रीमकोर्ट रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम रेखा बेन नरेश भाई राठौर में व्यवस्था दी गई है कि यदि पूर्व में जारी बीमा पालिसी का विवरण नहीं दिया गया है और बीमाधारक की मृत्यु दो वर्ष के अन्दर हुई है तब बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन है और बीमा कंपनी द्वारा क्लेम को इंकार करना विधिसम्मत है। अत: इस निष्कर्ष के अनुसार वर्ष 2012 में ली गई पालिसी के पश्चात दो वर्ष की अवधि के अन्दर मृत्यु कारित हुई है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमा अधिनियम की धारा 45 की व्यवस्था के अनुसार दो वर्ष पश्चात बीमा पालिसी गलत कथनों के आधार पर प्राप्त किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं उठाई जा सकती, परन्तु इसी धारा में यह प्रावधान भी मौजूद है कि यदि बीमा कंपनी
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द्वारा यह जाहिर किया जाता है कि जो तथ्य छिपाया गया है, वह तात्वविक (मैटेरियल) और धोखे से ऐसा किया गया था और बीमाधारक जानता था कि जिस संबंध में वह कथन कर रहा है, वह असत्य है। प्रस्तुत केस में एक के बाद एक अनेक पालिसीयां प्राप्त की गईं, इसलिए उसने बीमा कंपनी को धोखा देकर वर्ष 2010 में जो पालिसी प्राप्त की गई, उसको प्राप्त करते समय पूर्व की तीन पालिसियों को छिपाया गया और एक उच्च मूल्य की पालिसी प्राप्त की गई, इसलिए बीमा कंपनी के साथ धोखा कारित किया गया है, जबकि बीमाधारक एक उच्च शिक्षित व्यक्ति थे, इसलिए तात्विक तथ्यों को छिपाने के आधार पर बीमा कंपनी दो वर्ष पश्चात भी बीमा क्लेम नकारने के लिए अधिकृत है। अत: विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। अपील तदनुसार निरस्त होने योग्य है।
आदेश
6. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-1