परिवादिनी ने प्रश्नगत दो पालिसियों का बोनस सहित धन 10% वार्षिक ब्याज सहित दिलाने के साथ ही मानसिक कष्ट, आर्थिक कष्ट तथा वाद व्यय के रूप में रू0 20,000/- दिलाये जाने हेतु यह परिवाद योजित किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार श्री अवनीश सिंह परिवादिनी के पति थे उन्होने चार पालिसियॉ 284282189, 284288425, 286274423 एवं 287626080 क्रमश: दिनांक 28-11-2004, 28-03-2005, 15-05-2009 एवं 28-08-11 को ली थी और उपरोक्त सभी पालिसियॉ माह फरवरी 2012 में क्रियाशील थीं । परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 15-02-2012 को हो गयी। बीमा पालिसी सं0284282189 के बावत हित लाभ सहित विपक्षी ने बीमा धन का भुगतान कर दिया है दूसरी बीमा पालिसी सं0 284288425 के सम्बन्ध में विपक्षी ने परिपक्वता की अवधि के उपरांत हितलाभ सहित समस्त बीमा धनराशि का भुगतान करने का वचन दिया है। परिवादिनी के पति द्वारा ली गयी तीसरी और चौथी पालिसी क्रमश: रू0100000/- व 125000/- के लिए थी। इन दोनों पालिसियों का भुगतान करने से विपक्षी ने इस आधार पर इनकार कर दिया कि मृतक काफी समय पूर्व से अच्छे स्वास्थ्य में नहीं था और कई वर्षों से ब्रेन ट्यूमर की बीमारी से ग्रस्त था और इस बीमारी को छिपाकर उसने उक्त दोनों बीमा पलिसी प्राप्त की थी । विपक्षी द्वारा असत्य व काल्पनिक आधार पर भुगतान करने से इनकार किया गया है, इसलिए उसके द्वारा सेवा में कमी की गयी है। बीमा पालिसी लेते समय मृतक अच्छे स्वास्थ्य में थे और वह ब्रेन ट्यूमर की बीमारी से ग्रस्त नहीं थे और न ही उन्होंने किसी बीमारी को छिपाकर बीमा लिया था। मृतक भारतीय जीवन बीमा निगम के अभिकर्ता थे वह इस व्यावसाय में वर्ष 2004 से लगे हुए थे । वे मस्तिष्क की बीमारी अथवा किसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त नहीं थे। बीमा लेते समय उन्हें किसी भी गम्भीर बीमारी की जानकारी नहीं थी। माह दिसम्बर 2011 में सिर दर्द की समस्या होने पर उन्होंने दि0 09-12-11 को वाराणसी में डॉ0 अखिलेश सिंह से सम्पर्क किया था और उन्होंने न्यूरो सर्जन डॉ0 आलोक ओझा से परामर्श लेने की सलाह दी थी और उसी दिन डॉ0 आलेाक ओझा से चिकित्सकीय परामर्श लिया गया था। डॉ ओझा के समक्ष भी मृतक ने एक सप्ताह पूर्व से सिर दर्द की शिकायत होना बताया था। डॉ0 ओझा के परामर्श के अनुसार मृतक का सी. टी. स्कैन / एम0आर0आई0 कराकर उन्हें दिखाया गया तो बीमारी की गम्भीरता की जानकारी हुई। तत्पश्चात् परिवादिनी के पति विवेकानन्द पालीक्लीनिक एवं इन्स्टीच्यूट आफ मेडिकल साइंस लखनऊ में दि0 19-12-11 को दिखाया गया और चिकित्सकीय जॉच कराने के उपरांत डॉ0 छाबड़ा ने इलाज प्रारम्भ किया और सर्जरी कराने की सलाह दी। अन्य वरिष्ठ चिकित्सकों से सलाह लिया गया, तो उन्होंने दवा का प्रभाव कुछ दिन देख लेने की सलाह दी। दिनांक 13-2-12 को उन्हें आल इण्डिया इन्स्टीच्यूट आफ मेडिकल साइंस दिल्ली के इमरजेंसी में दिखाया गया। दिनांक 14-02-12 को एम्स के ओ0पी0डी0 में दिखाया गया जहॉ पर कुछ मेडिकल जॉच कराने के उपरांत दिखाने की सलाह दी गयी। दिनांक 15-02-12 को उनकी खराब हालत देखकर एम्स ले जाया गया जहॉ कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गयी।
विपक्षी पर नोटिस तामील होने के उपरांत उसकी ओर से आपत्ति प्रस्तुत की गयी। विपक्षी की ओर से अपनी आपत्ति में यह स्वीकार किया गया है कि उससे अवनीश सिंह का बीमा कराया गया था। विपक्षी की ओर से आगे कहा गया है कि परिवादिनी उनकी उपभोक्ता नहीं है और उसे परिवाद योजित करने का वाद कारण प्राप्त नहीं है।मृतक ने बीमा पालिसी सं0286274423 दि0 15-05-2009 को तथा पालिसी सं0 287626080 दिनांक 28-08-11 को ली थी। उसकी मृत्यु दिनांक 15-2-2012 को हो गई । उक्त दोनों पालिसियों के सम्बन्ध में मृत्यु दावा इन पालिसियों को लेने से कम समय के अन्दर ही प्रस्तुत किया गया था इसलिए इनकी जॉच करायी गयी। परिवादिनी का बयान, दावा प्रपत्र फार्म ’अ’ पर लिया गया जिसमें उसने अन्तिम बीमारी की अवधि तीन घण्टा तथा मृत्यु का कारण हृदयाघात बतायाथा । जबकि परिवाद पत्र के अनुसार बीमारी की सर्वप्रथम जानकारी दि0 09-12-11 को हुई थी और मृत्यु का कारण हृदयाघात नहीं था बल्कि ब्रेन ट्यूमर था। परिवादिनी ने जानबूझ कर अपने बयान में उक्त तथ्यों को छिपाया है। मृतक ने अपनी बीमारी को बीमा पालिसी लेते समय अपने प्रस्ताव पत्र में छिपाया था जबकि वह बीमा प्रस्ताव के समय ब्रेन ट्यूमर जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त था। मृतक ने अपनी बीमारी के सम्बन्ध में स्थानीय स्तर पर इलाज कराया था, लेकिन सुधार न होने पर उसने वाराणसी में डॉ0 अखिलेश सिंह को दिखाया था, जिसके क्रम में उसका सी. टी. स्कैन हुआ था। बाद में उसे एम्स नई दिल्ली में इलाज हेतु दि0 15-02-12 को ले जाया गया था जहॅा पहॅुचने के समय ही उसकी मृत्यु हो गयी थी। एम्स द्वारा जारी प्रपत्र दि0 19-03-12 में ब्रीफ हिस्ट्री में इस आशय का उल्लेख है कि मृतक पिछले कई वर्षों से ब्रेन ट्यूमर जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त था । इसके बावजूद, उसने गलत बयानी व धोखा पूर्ण कार्यवाही करते हुए सही तथ्यों को छिपाकर बीमा पालिसी प्राप्त की थी, इसलिए परिवादिनी बीमित धनराशि प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है। ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारी नई नहीं होती है बल्कि यह लम्बी बीमारी है और इस बीमारी के बारे में मृतक सहित उसके परिवार वाले अच्छी तरह जानते थे। परिवादिनी का परिवाद परिपक्व नहीं है। परिवादिनी द्वारा क्षेत्रीय कार्यालय को प्रेषित पत्र दिनांकित 10-04-13 अभी भी विचाराधीन है। परिवादिनी ने असत्य कथनों के आधार पर परिवाद योजित किया है, अत: उससे विपक्षी को रू0 20,000/- हर्जा के रूप में दिलाया जाय।
अपने प्रतिवाद पत्र में किये गये कथनों के समर्थन में परिवादिनी ने अपना शपथ पत्र 5ग प्रस्तुत किया है और सूची 6ग के जरिये 8 अभिलेख पत्रावली पर उपलब्ध किये हैं।
विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से अपनी आपत्ति में किये गये कथनों के समर्थन में श्री गिरिजा शंकर सहायक प्रबंन्धक (विधि) का शपथ पत्र 20ग प्रस्तुत किया गया है तथा सूची 21ग के जरिये 4 अभिलेख पत्रावली पर उपलब्ध किये गये हैं ।
परिवादिनी की ओर से लिखित बहस 20ग तथा विपक्षी की ओर से अपनी लिखित बहस कागज सं0 26ग पत्रावली पर उपलब्ध की गयी हैं ।
परिवाद पत्र, आपत्ति पत्र तथा पक्षों की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र तथा अभिलेखों का परिशीलन करने के साथ ही उनके द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का भी परिशीलन किया गया तथा उनकी ओर से की गई मौखिक बहस को भलीभॅति सुना गया।
वर्तमान मामले में पक्षों के मध्य इस बिन्दु पर विवाद नहीं है कि मृतक की मृत्यु ब्रेन ट्यूमर नामक बीमारी से हुई थी। परिवाद पत्र के प्रस्तर 1 में वर्णित पहली व दूसरी पालिसी के बीमा धन के भुगतान के सम्बन्ध में पक्षों के मध्य कोई विवाद नहीं है। स्वीकृत रूप में मृतक अवनीश सिंह द्वारा तीसरी बीमा पालिसी सं0 286274423 दिनांक 15-05-2009 को तथा चौथी बीमा पालिसी सं0 287626080 दिनांक 28-08-2011 को प्राप्त की गयी थीं। विपक्षी बीमा निगम की ओर से कहा गया है कि ये दोनों पालिसियॉ लेने से कम समय के अन्दर ही बीमाधारक की मृत्यु हो गयी थी इसलिए दोनों के सम्बन्ध में जॉच करायी गयी, तो यह तथ्य जानकारी में आया कि दोनों पालिसियॉ लेने के समय मृतक ब्रेन ट्यूमर जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त था लेकिन इस तथ्य को छिपाकर उसने उक्त यह दोनों पालिसियॉ प्राप्त की थीं, इसलिए परिवादिनी को इन दोनों पालिसियों का बीमा धन अदा नहीं किया जा सकता। इस बिन्दु पर परिवादिनी की ओर से कहा गया है कि उक्त दोनों पालिसियों को लेते समय बीमाधारक को न तो किसी गम्भीर बीमारी के बारे में जानकारी थी और न ही उसने जानबूझकर बीमारी के तथ्य को छिपाया था, इसलिए परिवादिनी बीमा धन प्राप्त करने की अधिकारिणी है।
परिवादिनी की ओर से ए आई आर 1962(एस सी) 114 मिट्ठू लाल नायक बनाम लाइफ इन्श्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया मामले में मा0 उच्च्तम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त तथा 2011 (1) सी पी आर 167 (एनसी) लाइफ इन्श्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया बनाम श्रीमती उपेन्द्र कौर मामले में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त का सहारा लेते हुए कहा गया है कि तथ्य छिपाकर बीमा पालिसी प्राप्त किये जाने का कथन करने वाले को सकारात्मक साक्ष्य से यह तथ्य प्रमाणित किया जाना चाहिए कि तीसरी बीमा पालिसी दिनांक 15-05-2009 को लेते समय और चौथी बीमा पालिसी दिनांक 28-08-11 को लेते समय मृतक ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारी से पीडि़त था । इस तथ्य को साबित करने के लिए विपक्षी ने कोई सकारात्मक साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नहीं की है। विपक्षी की ओर से अपने इस कथन को प्रमाणित करने के लिए प्रपत्र 23ग/1 पर मृतक के शव परीक्षण आख्या में उल्लिखित तथ्य ‘’ Alleged history of brain tumor for past many years. He was taken to AIIMS on 15/02/12 after this condition was- dead on 15/02/12 at 11:38AM’’ इसके अवलोकन से प्रकट है कि मृतक के पंचायतनामें में इस तथ्य का उल्लेख है कि मृतक कई वर्षों से ब्रेन ट्यूमर से पीडि़त था। पंचनामें में इस तथ्य का उल्लेख किस आधार पर किया गया था, विपक्षी यह स्थापित करने में असफल रहा है। विपक्षी ने इस बिन्दुको स्पष्ट करने हेतु कथित पंचनामा को भी साक्ष्य में उपलब्ध नहीं किया है। पंचनामा के अवलोकन से इस बिन्दु पर स्थिति पूर्णतया स्पष्ट हो सकती थी कि किस आधार पर उक्त तथ्य का उल्लेख किया गया था विपक्षी यह साबित करने के लिए कि उपरोक्त दोनों पालिसियॉ प्राप्त करने से कई वर्ष पूर्व से मृतक ब्रेन ट्यूमर जैसी गम्भीर बीमारी से पीडि़त रहा था, कथित पंचनामा तैयार कर्ता तथा पंचनामा के साक्षी का भी शपथ पत्र नहीं प्रस्तुत किया गया है। परिवादिनी की ओर से कहा गया है कि सिर में दर्द था इसलिए दि0 09-12-2011 को मृतक ने वाराणसी में डॉ0 अखिलेश सिंह से सम्पर्क किया था जिन्होंने परीक्षण करने के उपरांत मृतक को डॉ0 आलोक ओझा न्यूरो एवं स्पाइनल सर्जन को दिखाने की सलाह दी थी। मृतक को दि0 09-12-2011 को ही डॉ0 आलोक ओझा को दिखाया गया था और उन्होंने मृतक के मस्तिष्क का एम आर आई कराने की सलाह दी थी। परिवादिनी का कहना है कि दिनांक 09-12-2011 को मृतक का सी टी स्कैन कराने पर मृतक को गम्भीर बीमारी होने की जानकारी पहली बार हुई थी । परिवादिनी द्वारा उपलब्ध कराये गये प्रिस्क्रिप्शन पत्र के अनुसार दिनांक 20-12-2011 को मृतक को विवेकानन्द पालीक्लीनिक एवं इन्स्टिच्यूट आफ मेडिकल साइंसेज लखनऊ में दिखाया गया वहॉ डॉ0 छाबड़ा ने आपरेशन कराने की सलाह दी थी । परिवादिनी के अनुसार मृतक को आल इण्डिया इन्स्टिच्यूट आफ मेडिकल साइंसेज दिल्ली में दिखाया गया जहॉ पर दिनांक 15-02-12 को उनकी मृत्यु हो गयी थी। इस प्रकार परिवादिनी की ओर से जो चिकित्सकीय साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध करायी गयी हैं उससे परिवादिनी के इस कथन का समर्थन होता है कि मृतक को ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारी होने की जानकारी पहली बार दिनांक 09-12-11 को हुई थी। दिनांक 09-12-11 के पहले मृतक को ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारी होने की जानकारी नहीं थी । दिनाक 09-12-2011 से पहले मृतक द्वारा ब्रेन ट्यूमर का इलाज स्थानीय स्तर पर कराये जाने के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य विपक्षी ने पत्रावली पर उपलब्ध नहीं की है। ऐसी स्थिति में परिवादिनी का यह कथन विश्वसनीय प्रतीत होता है कि दिनांक 09-12-11 को प्रथम बार मृतक को ब्रेन ट्यूमर होने की जानकारी हुई। इस प्रकार तीसरी पालिसी लेने की दिनांक 15-05-2009 तथा चौथी बीमापालिसी लेने की दिनांक 28-08-2011 को मृतक को ब्रेन ट्यूमर जैसी गम्भीर बीमारी होने की जानकारी होने की कोई साक्ष्य पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है।
विपक्षी बीमा निगम की ओर से कहा गया है कि परिवादिनी ने गलत कथन करते हुए बीमा कम्पनी के समक्ष दावा किया था। इस संबंध में परिवादिनी की ओर से कहा गया है कि सही तथ्य कथन करते हुए इस फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया है। वर्तमान मामले में उपलब्ध साक्ष्य से प्रकट है कि वर्ष 2004 से मृतक विपक्षी बीमा निगम के अभिकर्ता के रूप में कार्यरत रहा था। परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मृतक को ब्रेन टयूमर की बीमारी होने की जानकारी सर्वप्रथम दि0 09-12-2011 को हुई थी। इससे पूर्व उसे उक्त बीमारी होने की जानकारी नहीं थी। इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए परिवादिनी की ओर से साक्ष्य भी प्रस्तुत की गयी हैं जिसका खण्डन करने के लिए विपक्षी की ओर से कोई साक्ष्य नहीं प्रस्तुत की गई है। ऐसी स्थिति में परिवादिनी ने विपक्षी बीमा निगम के समक्ष दावा प्रस्तुत करते समय क्या कथन किया था, यह तथ्य इस मामले के निस्तारण हेतु महत्वपूर्ण नहीं हैं ।
विपक्षी बीमा निगम की ओर से कहा गया है कि ब्रेन ट्यूमर की बीमारी एकाएक उत्पन्न नहीं होती है बल्कि यह एक लम्बी बीमारी है और इस बीमारी के बावत बीमा धारक तथा उसके परिवार वालों को पहले से जानकारी थी और इस बीमारी का उनके द्वारा इलाज पहले से कराया जा रहा था। इस बिन्दु पर पहले विस्तार में विचार किया जा चुका है । दिनांक 09-12-11 से पहले बीमा धारक को ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारी की जानकारी होने का कोई साक्ष्य विपक्षी बीमा निगम द्वारा प्रस्तुत नहीं की गई है। बीमा निगम ने उक्त बीमारी के लिए बीमा धारक द्वारा दि0 09-12-2011 से पूर्व इलाज कराये जाने के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं करायी है ,ऐसी स्थिति में इस बिन्दु पर विपक्षी बीमा निगम की ओर से दिये गये तर्क में कोई बल नहीं है।
विपक्षी बीमा निगम की ओर से कहा गया है कि दि0 09-12-11 से पहले मृतक को स्थानीय स्तर पर दिखाया गया था लेकिन कोई सुधार न होने के कारण दि0 09-12-11 को डॉ0 अखिलेश सिंह को दिखाया गया था और बाद में डा0 आलोक ओझा को दिखाया गया था। दि0 09-12-2011 से पहले मृतक को स्थानीय स्तर पर इलाज कराये जाने की कोई साक्ष्य बीमा निगम उपलबध कराने में असफल रहा है। उसने ऐसे किसी व्यक्ति का शपथ पत्र भी नहीं प्रस्तुत किया है जिसे बीमा धारक के उक्त बीमारी होने की जानकारी पहले से रही हो और उसने बीमा धारक को स्थानीय स्तर पर चिकित्सकीय इलाज कराते देखा हो । जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि उपरोक्त मिट्ठू लाल बनाम लाइफ इन्श्योरेंस कारपारेशन आफ इण्डिया तथा अन्य मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय ने प्रतिपादित किया है कि तात्विक तथ्य छिपाकर बीमा पालिसी प्राप्त किये जाने का कथन करने वाले को सकारात्मक साक्ष्य प्रस्तुत करके उपरोक्त तथ्य को स्थापित करना चाहिए। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि विपक्षी बीमा निगम यह स्थापित करने हेतु सकारात्मक साक्ष्य उपलब्ध कराने में असफल रहा है कि प्रश्नगत तीसरी तथा चौथी बीमा पालिसी लेते समय मृतक को ब्रेन ट्यूमर जैसी गम्भीर बीमारी की जानकारी थी और उसने इस तथ्य को छिपाकर ये दोनों पालिसियॉ प्राप्त की थी।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन से प्रकट है कि तीसरी बीमा पालिसी लेने की दिनांक 15-05-09 तथा चौथी बीमा पालिसी लेने के दिनांक 28-08-2011 को बीमा धारक को ब्रेन ट्यूमर जैसी गम्भीर बीमारी होने की न तो जानकारी थी, और न उसने इस बीमारी को छिपाकर उक्त दोनों पालिसियॉ प्राप्त की थीं। ऐसी स्थिति में मेरे विचार से विपक्षी बीमा निगम की ओर से दिये गये इस तर्क में कोई बल नहीं है कि मृतक ने ब्रेन ट्यूमर जैसी गम्भीर बीमारी होने के तथ्य को जानते हुए, इसे छिपा कर प्रश्नगत दोनों पालिसियॉ प्राप्त की थीं। ऐसी स्थिति में मेरे विचार से प्रश्नगत दोनों पालिसियों का बीमा धन नियमानुसार अन्य देयों सहित परिवादिनी को अदा न करके, विपक्षी बीमा निगम द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है। स्वीकृत रूप से तीसरी बीमा पालिसी रू0 100000/- के लिए तथा चौथी पालिसी रू0 1,2500/- के लिए थी । ऐसी स्थिति में परिवादिनी, परिवाद योजित करने के दिनांक 10-06-2014 से उक्त दोनों पालिसियों का अन्य नियमानुसार देयों सहित कुल धन 08 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज सहित विपक्षी बीमा निगम से प्राप्त करने की अधिकारिणी है। इसके साथ ही वह मानसिक तथा आर्थिक कष्ट के लिए रू0 2,000/- प्रतिकर तथा वाद व्यय के रूप में रू0 1,000/- भी विपक्षी बीमा निगम से प्राप्त करने की अधिकारिणी है। परिवादिनी का परिवाद तद्नुसार स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद स्वीकार किया जाता है। परिवादनी विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम से प्रश्नगत दोनों पालिसियों संख्या 286274423 तथा 287626080 का नियमानुसार, अन्य देयों सहित कुल धन 08प्रतिशत वार्षिक दर से साधारण बयाज सहित वसूल पाने के साथ ही मानसिक, आर्थिक कष्ट के लिए रू0 2,000/- प्रतिकर तथा वाद व्यय के लिए रू0 1000/- वसूल पायेगी। विपक्षी बीमा निगम को निर्देश दिया जाता है कि वह दो माह के अन्दर समस्त धन की अदायगी परिवादिनी को करे ।
इस निर्णय की एक-एक प्रति पक्षकारों को नि:शुल्क प्रदान की जाय। यह निर्णय आज खुले न्यायालय में, हस्ताक्षरित, दिनांकित कर, उद्घोषित किया गया।