दिनांक:09-10-2015
परिवादिनी ने यह परिवाद इस आशय से येाजित किया है कि उसे विपक्षी से बीमा धन के रूप में ब्याज सहित रू0 1,00000/- दिलाये जाने के साथ ही वाद व्यय के रूप में रू0 5000/- दिलाये जायॅ।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन संक्षेप में इस प्रकार है कि उसके पति मो0 साबिर खॉ ने विपक्षी से अपने जीवन के जोखिम हेतु रू0 1,00000/- की बीमा पालिसी सं0 285379656 दिनांक 08-02-2007को ली थी। उसके पति मो0 साबिर खॉं पेशे से ट्रक ड्राइवर थे और अपना भी ट्रक चलवाते थे। वे शरीर से स्वस्थ और निरोग थे। शारीरिक श्रम से अपने परिवार का पालन करते थे। दिनांक 05-11-2009 को घर पर उनके बदन में दर्द, उल्टी होने लगी तो स्थानीय डाक्टर को दिखाया गया, उन्होंने पीलिया रोग होने की जानकारी दी । दिनांक 06-11-2009 को मो0 साबिर खॉं को वाराणसी के सन्तुष्टि हास्पिटल में ले जाया गया जहॉ पर अच्छे इलाज हेतु डाक्टर ने उन्हें भर्ती कर लिया, लेकिन दिनांक 06-11-2009 को ही लगभग सात बजे शाम को उनकी मृत्यु हो गयी। मृतक का क्रिया-कर्म करने के उपरांत परिवादिनी ने अस्पताल के मृत्यु प्रमाण पत्र व प्रपत्रों सहित विपक्षी के समक्ष बीमा धन की अदायगी हेतु दावा प्रस्तुत किया। विपक्षी ने परिवादिनी के दावे को निस्तारित नहीं किया और बहुत दिन बाद दिनांक 21-12-2010 को परिवादिनी को केवल बीमा किस्त के रूप में जमा धनराशि के बावत रू0 53145/- चेक द्वारा भुगतान किया। विपक्षी द्वारा बीमा धनराशि रू0 1,00000/- की धनराशि का भुगतान परिवादिनी को न किया जाना सेवा में घोर कमी है। परिवादिनी बहुत कम पढ़ी-लिखी है, वह केवल दस्तखत करना जानती है। वह विपक्षी से बीमा धन की मॉंग बराबर करती रही और उसे बताया जाता रहा कि शेष धनराशि का भुगतान उसे बाद में किया जायेगा। लगभग दो माह पहले विपक्षी बीमा कम्पनी ने बताया कि परिवादिनी के पति ने बीमारी छिपाकर बीमा कराया था, इसलिए बीमा धन देय नहीं है। विपक्षी ने परिवादिनी का दावा निरस्त करके अब तक उसे सूचना नहीं दी है। परिवादिनी के पति पहले कभी भी किसी बीमारी से ग्रस्त नहीं थे और न ही किसी बीमारी को छिपाकर उन्होंने बीमा प्राप्त किया था । बीमा एजेण्ट व विकास अधिकारी की आख्या पर ही परिवादिनी के पति को बीमा पालिसी जारी की गयी थी।
परिवादिनी ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 24-ए के अधीन प्रार्थना पत्र में कथन किया है कि परिवादिनी के पति ने दिनांक 08-02-2007 को रू0 1,00000/- का बीमा लिया था लेकिन दुर्भाग्यवश दिनांक 06-11-2009 को पीलिया रोग और पेट में दर्द होने के कारण उनकी मृत्यु हो गयी। परिवादिनी ने नामिनी के रूप में विपक्षी से बीमा धन प्राप्त करने हेतु दावा प्रस्तुत किया था लेकिन उसे दिनाक 21-12-2010 को केवल जमा किस्तों का धन रू0 53,145/- का भुगतान किया गया। शेष धन की अदायगी के बावत विपक्षी द्वारा यह बात कही गयी कि बाद में भुगतान किया जायेगा। लगभग दो माह पहले यह बात कही गयी कि मृतक ने बीमारी को छिपाकर बीमा लिया है, इसलिए बीमा धन नहीं मिलेगा, लेकिन विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादिनी को अब तक लिखित सूचना नहीं दी है। परिवादिनी बहुत कम पढ़ी-लिखी है। कानूनी जानकारी नहीं रखती है। विपक्षी द्वारा दावा देने से इनकार करके सूचना उसे नहीं दी गयी है इसलिए परिवाद योजित करने से पूर्व यह प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करके निवेदन कर रही है कि यदि परिवाद प्रस्तुत करने में कोई विलम्ब पाया जाये, तो उसे माफ किया जाय।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से अपने लिखित कथन में यह स्वीकार किया गया है कि परिवादिनी के पति ने उसके यहॅा से बीमा पालिसी सख्या 285379656 दिनांक 08-02-2007 को लिया था, जिसका प्रीमियम वार्षिक रूप से देय थी और यह प्रीमियम प्रत्येक वर्ष की फरवरी माह में देय होती थी। मृतक ने फरवरी 2009 में पालिसी का प्रीमियम अदा नहीं किया था। जब वह पीलिया जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हो गया, और उसके बचने की सम्भावना नहीं रही तो उसने अपनी अस्वस्थता को छिपाकर साजिश के अधीन, बीमा धनराशि हड़पने के लिए दिनांक 15-09-2009 को उक्त बीमा पालिसी का पुनर्चलन कराया। उक्त बीमा पालिसी के पुनर्चालन के समय मृतक ने गलत कथन किया कि वह किसी रोग से ग्रस्त नहीं है और उसे एक सप्ताह या अधिक अवधि के लिए उपचार की आवश्यकता नहीं है और वह पूर्णरूप से स्वस्थ है। मृतक के उक्त कथन से सन्तुष्ट होकर व उस पर विश्वास करके बीमा पालिसी पुनर्चालित की गयी थी। दिनांक 15-09-2009 को मृतक पीलिया रोग से ग्रस्त था और उसने इस बीमारी को छिपाकर असत्य कथन करते हुए, बीमा पालिसी का पुनर्चलन कराया था। इसलिए उसे बीमा धन देय नहीं है। दिनांक 06-11-2009 को मृतक की पीलिया रोग से मृत्यु होना स्वीकार है और उसका अस्पताल में भर्ती कराया जाना स्वीकार नहीं है। परिवादिनी को रू0 53145/- का भुगतान किया जा चुका है। बीमा धन की अदायगी से इनकार करते हुए दिनांक 15-11-20010 को परिवादिनी के घर के पते पर सूचना भेजी गयी थी और बिड वैल्यू का भुगतान कर दिया गया था। दिनांक 01-02-2010 को परिवादिनी ने अपने पति के मृत्यु की सूचना विपक्षी को दी थी। उसका दावा अपूर्ण था, इसलिए उससे आवश्यक कागजातों की मॉग की गयी थी। पालिसी के पुनर्चालन की तिथि से एक माह इक्कीस दिन बाद ही बीमाधारक की मृत्यु हो गयी थी, इसलिए इसकी जॅाच करायी गयी, तो पाया गया कि बीमारी को छिपाकर बीमा पालिसी का पुनर्चलन बीमाधारक ने कराया था, इसलिए दावा समिति ने पालिसी के बिड वैल्यू का भुगतान करने की संस्तुति की थी और शेष क्लेम को अस्वीकार कर दिया था। इसकी सूचना परिवादिनी को जरिये पंजीकृत डाक, दिनांक 15-11-2010 भेज दी गयी थी और दिनांक 21-12-2010 को परिवादिनी को रू0 53145/-/ का चेक द्वारा भुगतान किया गया था। विपक्षी द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गयी है। परिवादिनी ने यह परिवाद सीमावधि बीतने से लम्बे अन्तराल के बाद योजित किया है, अत: परिवाद काल बाधित होने के कारण खारिज होने योग्य है। विलम्ब माफी हेतु परिवादिनी की ओर से दिये गये प्रार्थना पत्र के सम्बन्ध में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि प्रार्थना पत्र दिनांकित 15-11-2010 द्वारा परिवादिनी को दावा अमान्य किये जाने की सूचना दे दी गयी थी और दिनांक 21-12-2010 को उसे चेक द्वारा रू0 53145/- का भुगतान किया गया था। परिवादिनी ने पूर्ण सन्तुष्टि के साथ रू0 53145/- स्वीकार किया था। वर्तमान मामले में वाद कारण दिनांक 15-11-2010 को उत्पन्न हुआ है लेकिन यह परिवाद दिनांक 13-02-2014 को लगभग साढे तीन वर्ष विलम्ब से योजित किया गया है। विलम्ब माफ करने का कोई समुचित कारण नहीं है, इसलिए विलम्ब माफी का प्रार्थना पत्र स्वीकार होने योग्य नहीं है।
परिवादिनी ने अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र 7ग प्रस्तुत करने के साथ ही साक्ष्य में कागज सं08 ता 12क प्रस्तुत किये हैं और लिखित बहस कागज संख्या 26ग व 28ग प्रस्तुत की हैं ।
विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से अपने कथनों के समर्थन में शपथ पत्र कागज सं0 16ग प्रस्तुत करने के साथ ही सूची कागज सं0 17ग के जरिये 07अभिलेख पत्रावली पर उपलब्ध कराये गये हैं और लिखित बहस 27ग पत्रावली पर उपलब्ध करायी गयी है।
पक्षों के विद्वान अधिवक्ता गण को विस्तार से सुना गया। परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत विलम्ब माफी के प्रार्थना पत्र, परिवाद पत्र, तथा विपक्षी की ओर से प्रस्तुत आपत्ति व लिखित कथन का अवलोकन करने के साथ ही पक्षों द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्रों व प्रस्तुत किये गये अभिलेखों का भलीभॅति परिशीलन किया गया।
विपक्षी की ओर से कहा गया है कि उसने पत्र दिनांकित 15-11-2010 द्वारा बिड वैल्यू को छोड़कर शेष धनराशि के लिए परिवादिनी का दावा अस्वीकृत करके परिवादिनी को सूचित कर दिया था और इसी क्रम में दिनांक 21-12-2010 को बिड वैल्यू के रू0 53145/- परिवादिनी को जरिये चेक प्राप्त करा दिये गये थे। विपक्षी की ओर से आगे कहा गया है कि बिड वैल्यू को छोड़कर शेष धनराशि के लिए परिवादिनी का दावा अस्वीकृत किये जाने की तिथि 15-11-2010 से दो वर्ष की अवधि के अन्दर परिवाद योजित किया जाना चाहिए था लेकिन इसे लगभग तीन वर्ष तीन माह बाद दिनांक 13-02-14 को योजित किया गया है, इसलिए परिवाद अवधि बाधित है। विपक्षी की ओर से अपने कथन के समर्थन में 2014 (2) सी पी आर 682 (एन सी) राम अवतार शास्त्री बनाम मैक्स सुपर स्पेसियालिटी हास्पिटल व अन्य मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त का सहारा लिया गया है।
वर्तमान मामले में स्वीकृत रूप से परिवादिनी को बिड वैल्यू की धनराशि रू0 53145/- दिनांक 21-12-2010 को जरिये चेक प्राप्त करायी गयी थी। परिवादिनी का कहना है कि उक्त भुगतान के समय उसे बताया गया था कि शेष धनराशि बाद में प्राप्त कराई जायेगी। इस सम्बन्ध में परिवादिनी ने कोई लिखित आश्वासन अथवा पत्र नहीं प्रस्तुत किया है, ऐसी दशा में विपक्षी की ओर से दिये गये, इस तर्क में पर्याप्त बल है कि परिवादिनी ने उक्त कथन केवल सीमावधि बढ़ाने के लिए किये हैं । बिड वैल्यू को छोड़कर शेष धनराशि के लिए दावा पत्र दिनांकित 15-11-2010 द्वारा अस्वीकार करने के बाद विपक्षी द्वारा दिनांक 21-12-2010 अथवा इसके पश्चात् परिवादिनी को यह आश्वासन कि शेष धनराशि की अदायगी बाद में की जायेगी, देने का औचित्य नहीं था, इन परिस्थितियों में विपक्षी द्वारा कथित आश्वासन देने सम्बन्धी परिवादिनी का कथन विश्वसनीय नहीं है।
परिवादिनी ने परिवाद पत्र विलम्ब से योजित किये जाने के सम्बन्ध में अन्य कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। ऐसी स्थित में प्रकट है कि विलम्ब से परिवाद योजित करने के सम्बन्ध में परिवादिनी कोई औचित्यपूर्ण कारण स्पष्ट करने में असफल रही है। अत: परिवादिनी का परिवाद सीमावधि से बाधित है।
स्वीकृत रूप में परिवादिनी के पति ने अपने जीविन के जोखिम को आच्छादित करने के लिए रू0 1,00000/- का बीमा दिनांक 08-02-2007 को विपक्षी से कराया था और प्रत्येक वर्ष माह फरवरी में किस्त देय होती थी। विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादिनी के पति ने माह फरवरी 2009 की किस्त का भुगतान नहीं किया था इसलिए पालिसी कालातीत हो गयी थी बाद में पीलिया जैसी बीमारी को छिपाकर उन्होंने दिनांक 15-09-2009 को पालिसी का पुनर्चालन कराया था और इसी बीमारी से उनकी मृत्यु दिनांक 06-11-2009 को हो गई थी। परिवादिनी ने उक्त बीमा पालिसी के कालातीत होने तथा दिनांक 15-09-2009 को इसके पुनर्चलन के तथ्य का उल्लेख न तो अपने परिवाद पत्र में किया है और न साक्ष्य में ही । उक्त बीमारी छिपाकर बीमा पालिसी का पुनर्चलन (Revival) कराये जाने का तथ्य साबित करने का दायित्व विपक्षी बीमा कम्पनी पर है।
विपक्षी की ओर से परिवादिनी के बयान की फोटो प्रति कागज सं0 20ग पत्रावली पर उपलबध की गई है। इसे परिवादिनी की ओर से चुनौती नहीं दी गई है। उक्त बयान में परिवादिनी ने मृत्यु से दो माह पूर्व से अपने पति को पीलिया रोग से पीडि़त होने का कथन किया गया है । उक्त बयान साक्षी शेषनाथ सिंह की उपस्थिति में दिनांक 01-02-2010 को दर्ज किया गया है। मृतक के शव को दफनाने संबन्धी प्रमाण पत्र कागज सं0 20ग में भी मृतक को दो माह पहले से पीलिया रोग से ग्रस्त होने का उल्लेख है। परिवादिनी के ग्रामवासी साक्षी जमालुद्दीन खॉ ने अपने बयान 21ग में मृतक को मृत्यु के दो माह पहले से पीलिया की बीमारी से ग्रस्त होने का कथन किया है।
परिवादिनी के गॉव के निवासी मो0 एकराम खॉ तथा परिवादिनी की गॉव की ग्राम प्रधान श्रीमती अम्बरी खातून ने अपने प्रमाण पत्रों (22ग व 23ग)में परिवादिनी के पति का मृत्यु से दो माह पहले से पीलिया से पीडि़त होने का कथन किया है।
इस प्रकार विपक्षी द्वारा उपलब्ध की गई साक्ष्य तथा स्वयं परिवादिनी के बयान से स्पष्ट है कि परिवादिनी के पति की पीलिया नामक बीमारी के कारण दिनांक 06-11-2009 को मृत्यु हुई थी और वे मृत्यु के दो माह पहले से उक्त बीमारी से पीडि़त थे। ऐसी दशा में पालिसी के पुनर्चलन की दिनांक 15-09-2009 को भी मृतक का उक्त बीमारी से पीडि़त होना प्रकट है। विपक्षी का कहना है कि पुनर्चलन के समय पालिसी धारक ने स्वयं को पूर्णतया स्वस्थ बताया था ओर कोई बीमारी न होना बताया था । अत: उसके कथन पर विश्वास करके बीमा पालिसी का पुनर्चलन किया गया था।
परिवादिनी की ओर से कहा गया है कि पुनर्चलन के समय पालिसी धारक का डाक्टरी परीक्षण कराया जाता है। परिवादिनी की ओर से डाक्टरी परीक्षण कराये जाने का उल्लेख परिवाद पत्र में नहीं किया गया है और न डाक्टरी प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी की ओर से पालिसी धारक का डाक्टरी परीक्षण कराने से इनकार करते हुए कहा गया है कि स्वयं पालिसी धारक के कथन व घोषणा पर विश्वास करके पालिसी का पुनर्चलन किया गया था। ऐसी स्थिति में परिवादिनी की ओर से इस बिन्दु पर किया गया कथन विश्वसनीय नहीं है।
उपरोक्त विवेचन से प्रकट है कि दिनांक 15-09-2005 को परिवादिनी का पति पीलिया रोग से पीडि़त था और उसने इसे छिपाकर असत्य कथन व घोषणा करके कालातीत बीमा पालिसी का पुनर्चलन कराया था, ऐसी स्थिति में इस आधार पर भी विपक्षी द्वारा बीमा पालिसी की धनराशि अदा करने से इनकार करना उचित है।
परिवादिनी की ओर से उद्घृत 2013 (3) सी.पी.आर. 186 (एन सी) राजेश शर्मा बनाम लाईफ इन्श्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया तथा 2008 (4) सी पी आर 53 (एन सी) आशा देवी बनाम सीनियर डिवीजनल मैनेजर, मामलो में बीमारी छिपाकर बीमा पालिसी का पुनर्चलन कराये जाने की दशा में क्लेम का भुगतान करने से इनकार करना उचित माना गया है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन से प्रकट है कि परिवादिनी के पति ने स्वयं की पीलिया बीमारी होने के तथ्य को छिपाते हुए बीमा पालिसी का दिनांक 15-09-2009 को पुनर्चालन कराया था। इसलिए विपक्षी द्वारा बिड वैल्यू को छोड़कर शेष धनराशि भुगतान करने से इनकार करना उचित है। मामले के तथ्यों तथा उपलब्ध साक्ष्य से प्रकट है कि परिवादिनी ने यह परिवाद वाद कारण उत्पन्न होने से दो वर्ष से अधिक अवधि बीतने के बाद योजित किया है। ऐसी स्थिति में परिवाद अवधि से बाधित है। इन परिस्थितियों में परिवादिनी का परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद विपक्षी को देय रू0 1000/- (एक हजार रूपये मात्र) हर्जा सहित खारिज किया जाता है। इस निर्णय की एक-एक प्रति पक्षकारों को नि:शुल्क दी जाय। निर्णय आज खुले न्यायालय में, हस्ताक्षरित, दिनांकित कर, उद्घोषित किया गया।