Rajasthan

Nagaur

CC/195/2014

Majid Akram - Complainant(s)

Versus

LIC of India - Opp.Party(s)

Sh RK Dhaka

16 Dec 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/195/2014
 
1. Majid Akram
Nagaur
...........Complainant(s)
Versus
1. LIC of India
Nagaur
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Brijlal Meena PRESIDENT
 HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya MEMBER
 HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya MEMBER
 
For the Complainant:Sh RK Dhaka, Advocate
For the Opp. Party: Sh Vikram Joshi, Advocate
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर

 

परिवाद सं. 195/2014

 

मजीद अकरम पुत्र श्री जुम्मा, जाति-छींपा मुसलमान, निवासी- भारत टाकीज के पीछे, नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)।                                                                                                                                                                                                                         -परिवादी     

बनाम

 

1.            षाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम, कृशि उपज मण्डी के सामने, नागौर (राज.)।

2.            क्षेत्रीय प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम, मण्डल कार्यालय, जीवन प्रकाष, सागर रोड, बीकानेर (राज.)।     

               

                                       -अप्रार्थी   

 

समक्षः

1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।

2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।

3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।

 

उपस्थितः

1.            श्री रमेष कुमार ढाका एवं श्री ओमप्रकाष फूलफगर, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।

2.            श्री विक्रम जोषी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।

 

    अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986

 

                              आ  दे  ष               दिनांक 16.12..2015

 

 

1.            परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने पिता जुम्मा ने अप्रार्थीगण से एक बीमा पाॅलिसी दिनांक 27.08.2013 को बीमित राषि 5,00,000/- रूपये ली हुई थी। दिनांक 16.09.2013 को जुम्मा की हद्य घात होने से मृत्यु हो गई। मय दस्तावेजात के एक क्लेम अप्रार्थीगण के यहां प्रस्तुत किया। काफी समय निकल जाने के बाद अप्रार्थीगण से सम्पर्क किया तो उन्होंने यह कहा कि इस बात की जांच चल रही है कि बीमा पाॅलिसी लेने के बाद अल्प अवधि में ही जुम्मा की मृत्यु हो गई थी। परन्तु अप्रार्थीगण ने अभी तक क्लेम का निस्तारण नहीं किया।

2.            अप्रार्थीगण ने यह कहा है कि जुम्मा की मृत्यु का मामला अतिषीघ्र मृत्यु की श्रेणी में आता है। जांच के दौरान बीमित के भाई ने एक पत्र अप्रार्थी को उपलब्ध कराया, जिसमें जुम्मा की मृत्यु कैंसर से होना बताया। बीमा अधिनियम की धारा 45 के तहत षीघ्र मृत्यु दावा होने के कारण सम्पूर्ण जांच के बाद दावे का निस्तारण किया जावेगा। परिवादी ने मंच में जांच के दौरान ही मामला प्रस्तुत कर दिया। प्री मैच्योर है, खारिज किया जावे। इसके पष्चात् अप्रार्थीगण की ओर से श्री सुनील कुमार सरीन, प्रबन्धक, विधि, भारतीय जीवन बीमा निगम, मण्डल कार्यालय बीकानेर की ओर से एक षपथ पत्र दिनांक 18.11.2015 को जवाब पेष करने के पष्चात प्रस्तुत किया गया। जिसमें मुख्य रूप से यह आरोप लगाया गया कि मृतक जुम्मा ने विवादित पाॅलिसी दिनांक 27.08.2013 के पूर्व भी अप्रार्थीगण से एक बीमा पाॅलिसी ली हुई थी। जिसमें जुम्मा की जन्म तिथि 01.01.1960 बताई गई थी। विवादित पाॅलिसी में प्रस्तावक ने दस दिन पूर्व पैन-कार्ड बनवाया व उसने अपनी जन्मतिथि 20.04.1968 दर्षाई। इस प्रकार से विवादित पाॅलिसी में आयु सम्बन्धी गलत घोशणा कर पाॅलिसी प्राप्त की एवं विवादित पाॅलिसी से पूर्व पाॅलिसी के तथ्य को छिपाया। इसलिए क्लेम को निरस्त करते हुए दिनांक 28.02.2015 को परिवादी को निरस्तीकरण की सूचना भेज दी।

 

3.            दिनांक 16.12.2015 को परिवादी की ओर से अप्रार्थीगण के उक्त षपथ-पत्र के खण्डन में षपथ-पत्र प्रस्तुत हुआ है। मुख्य रूप से कहा गया है कि बीमा एजेंट को पूर्व बीमा के सम्बन्ध में जानकारी देनी थी। परिवादी के पिता केवल साक्षर थे, जुम्मा ने अभिकर्ता के कहने पर प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये थे। विवादित बीमा करने से पूर्व चिकित्सा अधिकारी से जुम्मा का मेडिकल करवाया गया था।

परिवादी पिता की मृत्यु के पष्चात् धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार काफी समय तक घर से बाहर नहीं निकल सका, धार्मिक रीति रिवाज पूरे करने के पष्चात् परिवादी ने अप्रार्थी को षीघ्र ही सूचना दे दी। विवादित बीमा प्रस्ताव अंगे्रजी भाशा में भरा हुआ है जबकि परिवादी के पिता हिन्दी भी पढना नहीं जानते।

 

4.            बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया। यह निर्विवाद है कि प्रार्थी के पिता ने अप्रार्थीगण से विवादित पाॅलिसी दिनांक 27.08.2013 को ली हुई थी। जुम्मा की मृत्यु भी पाॅलिसी लेने के पष्चात् दिनांक 16.09.2013 को फौत हो गई थी। दस्तावेज से यह भी प्रकट है कि  जुम्मा ने विवादित पाॅलिसी से पूर्व ही अप्रार्थीगण से एक जीवन बीमा पाॅलिसी ली हुई थी। मंच में परिवादी प्रस्तुत करने के पष्चात् अप्रार्थीगण ने परिवादी का क्लेम निरस्त कर दिया। परन्तु परिवाद प्रस्तुत होने के पष्चात् जवाब अप्रार्थीगण का जो जवाब प्रस्तुत हुआ उसमें परिवादी के क्लेम को इसलिए समय पर निस्तारित नहीं किया कि जुम्मा की मृत्यु के सम्बन्ध में जांच चल रही थी। जांच के दौरान बीमित के भाई ने अर्थात् जुम्मा के भाई ने अप्रार्थीगण जांच अधिकारी को एक पत्र उपलब्ध करवाया था कि जुम्मा कैंसर से ग्रसित था। यहां यह उल्लेख करना सुसंगत एवं उचित होगा कि जुम्मा के जांच रिपोर्ट एवं अन्य कोई दस्तावेजात प्रस्तुत नहीं हुए हैं।

 

5.            विद्वान अधिवक्ता अप्रार्थीगण का तर्क है कि विवादित बीमा पाॅलिसी से पूर्व परिवादी के पिता ने जो बीमा पाॅलिसी ली हुई थी। उसमें उसकी आयु 01.01.1960 दर्षायी हुई थी। जबकि विवादित बीमा पाॅलिसी के प्रस्ताव में 20.04.1968 दर्षायी हुई थी। यदि पूर्व पाॅलिसी प्रस्तावक के द्वारा प्रस्ताव में प्रकट की जाती तो बीमा कम्पनी जुम्मा का स्वास्थ्य परीक्षण करवाती परन्तु सही जन्म तिथि नहीं बतलाई इसलिए विषिश्ठ जांच नहीं करवा सके।

 

6.            इसके खण्डन में विद्वान अधिवक्ता परिवादी का यह तर्क है कि विवादित बीमा प्रस्ताव के साथ जुम्मा ने (प्रस्तावक) पैन-कार्ड एवं वोटर आईडेन्टी कार्ड दोनों उपलब्ध करवाये थे और पैन कार्ड में 20.04.1968 जन्म तिथि अंकित है। वोटर आईडेन्टी कार्ड में 01.01.1995 को जुम्मा की आयु 35 वर्श दर्षायी हुई है। जुम्मा सद्भावी प्रस्तावक था। अप्रार्थीगण का यह विधिक कर्तव्य था कि यदि उनके द्वारा जुम्मा का विषिश्ठ स्वास्थ्य परीक्षण करवाना था तो उन्हें बीमा प्रस्ताव में प्रस्तावक द्वारा दर्षायी गई आयु एवं निर्वाचन पहचान पत्र में दर्षायी गई आयु की भिन्नता के बारे में प्रस्तावक से स्पश्टीकरण लेना चाहिए था एवं इस पर आपति उठानी चाहिए थी। जुम्मा का बीमा के समय स्वास्थ्य परीक्षण भी हुआ है। बिना किसी कारण के अप्रार्थीगण ने परिवादी के क्लेम को पूर्व में तो समय पर निस्तारित नहीं किया। जो कि सेवा में कमी है तत्पष्चात् मंच में आने के बाद बिना किसी आधार के निरस्त किया है। जो कि पूर्णतः सेवा दोश है।

7.            उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों दस्तावेजात तथा उक्त तर्कों पर विचार करने के पष्चात् हमारा यह दृढ मत है कि अप्रार्थीगण ने परिवादी के बीमा क्लेम को बिना किसी आधार के अनुचित रूप से निरस्त किया है क्योंकि अप्रार्थीगण की ओर से ही जो दस्तावेज बीमा प्रस्ताव प्रस्तुत किया है, उसमें प्रस्तावक के द्वारा पैन-कार्ड एवं वोटर आईडेन्टी कार्ड प्रस्तुत करना बताया है। जो कि अप्रार्थीगण की ओर से प्रस्तुत किये गये हैं। अप्रार्थीगण का यह विधिक कर्तव्य था कि उक्त दोनों दस्तावेजात में आयु के सम्बन्ध में जो भिन्नता है उसकी जांच करते और संतुश्ट नहीं होने पर बीमा प्रस्ताव निरस्त करते। इसके अलावा बीमा प्रस्ताव में अप्रार्थीगण के चिकित्सक डाॅ.एच.आर. नेहरा के द्वारा जुम्मा के स्वास्थ्य की जांच की गई है, जिसमें जुम्मा के स्वास्थ्य को सही होना बताया है। इस प्रकार से जुम्मा द्वारा विवादित पाॅलिसी से पूर्व ली गई पाॅलिसी के तथ्य को प्रकट नहीं करने का कोई विपरित प्रभाव बीमा पाॅलिसी पर पडना प्रकट नहीं होता है।

विद्वान अधिवक्ता प्रार्थी की ओर से माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान जयपुर अपील संख्या 674/2014 आईडीवीआई फैडरल लाईफ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम श्री रामेष्वर प्रसाद जैन दिनांक 07.10.2015 न्यायिक दृश्टांत प्रस्तुत हुआ है। जिसमें माननीय राज्य आयोग ने माननीय उच्चतम न्यायालय के सतवन्तकौर संधु बनाम न्यू इण्डिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम विद्या देवी व अन्य (2012) सीपीजे 288 (एनसी), कोमल षर्मा, दीपक कुमार षर्मा आदि बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम व अन्य 1 (2013) सीपीजे 606 (एनसी) वाले मामलों का अविलम्ब लेते हुए उक्त में प्रतिपादित सिद्धांतों के आधार पर यह अभिनिर्धारित किया कि पूर्व पाॅलिसियों के सम्बन्ध में जानकारी नहीं देना सप्रेषन आॅफ मेटेरियल फैक्ट नहीं है। इस आधार पर दावा निरस्त नहीं किया जा सकता।

विद्वान अधिवक्ता अप्रार्थी की ओर से रीविजन पीटिषन नम्बर 382 एवं 383/2011 एलआईसी आॅफ इण्डिया बनाम विद्या देवी एवं अजयकुमार नेषनल कन्जूमर डिस्प्यूट रेड्रषल कमीषन, नई दिल्ली दिनांक 16.07.2012 न्यायिक दृश्टांत प्रस्तुत किया। इसमें प्रतिपादित सिद्धांत के बारे में कोई दो मत नहीं हो सकते किन्तु वर्तमान केस के तथ्यों से भिन्न है।

 

8.            इस प्रकार परिवादी अपना परिवाद विरूद्ध अप्रार्थीगण साबित करने में सफल रहा है। परिवादी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता है तथा आदेष दिया जाता है किः-

 

 

 

आदेश

 

9.            अप्रार्थीगण, परिवादी को बीमित राषि 5,00,000/- रूपये परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख से तारकम वसूली 9 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से एक माह में अदा करे। साथ ही अप्रार्थीगण, परिवादी को परिवाद व्यय के 5,000/- रूपये भी अदा करें।

 

 

                आदेश आज दिनांक 16.12.2015 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

              ।बलवीर खुडखुडिया।    ।बृजलाल मीणा।   ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।

                                     सदस्य               अध्यक्ष               सदस्या

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Brijlal Meena]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya]
MEMBER

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