VIRENDRA CHANDRA WISHWKARMA filed a consumer case on 29 Mar 2022 against LIC in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/1/2020 and the judgment uploaded on 07 Apr 2022.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 01 सन् 2020
प्रस्तुति दिनांक 05.03.2020
निर्णय दिनांक 29.03.2022
विरेन्द्र चन्द्र विश्वकर्मा पुत्र स्वo कालीचरन विश्वकर्मा, मकान नं. 102, मौजा- पाण्डेय बाजार, शहर- आजमगढ़।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
याची ने अपने याचना पत्र में यह कहा है कि वह सिंचाई विभाग आजमगढ़ में सरकारी नौकरी में कार्यरत था। उसने पेंशन पॉलिसी नम्बर 290974796 दिनांक 28.03.1998 को विपक्षी संख्या 01 से लिया, जिसकी प्रीमियम धनराशि मुo 10,778/- रुपए प्रतिवर्ष थी जिसे याची विपक्षी संख्या 01 के यहाँ जमा करता रहा। याची ने पॉलिसी तय वार्षिक भुगतान जो दस वर्ष का था, बराबर बिना विलम्ब के नियमित जमा करता रहा और पॉलिसी में तय वार्षिक प्रीमियम की धनराशि दिनांक 23.07.2007 को अदा कर दिया। प्रीमियम की धनराशि व पेन्शन पॉलिसी की शर्तों के अनुसार दिनांक 23.08.2008 से याची को विपक्षी संख्या 01 से प्रतिवर्ष 23,634/- रुपए बतौर पेंशन मिलना था, लेकिन विपक्षी संख्या 01 ने पेंशन की धनराशि को भुगतान नहीं किया तो याची ने पेंशन की धनराशि के भुगतान के लिए विपक्षी संख्या 01 से बराबर सम्पर्क किया तो उसने मौखिक आश्वासन दिया। विपक्षी संख्या 01 के मौखिक आश्वासन के बाद भी उसने भुगतान नहीं किया तो याची ने दिनांक 15.05.2010 को अपने पेन्शन भुगतान के सम्बन्ध में ब्रान्च मैनेजर विपक्षी संख्या 01 व जोनल मैनेजर कानपुर को लिखित सूचना दिया, जिसके संज्ञान में भुगतान के सम्बन्ध में 24.02.2011 को पेन्शनर क्लर्क को भुगतान सम्बन्धित बिल बनाकर भुगतान का आदेश निर्गत हुआ। याची पेन्शनल क्लर्क व विपक्षी संख्या 01 से बराबर भुगतान हेतु आग्रह किया लेकिन वे आजकल का आश्वासन देते रहे, भुगतान न होने पर याची ने दिनांक 06.10.2012 को विपक्षी संख्या 01 व विपक्षी संख्या 02 व मण्डलीय कार्यालय गोरखपुर व मुख्य कार्यालय मुम्बई को रजिस्टर्ड डाक पत्र दिया, लेकिन उसका कोई संज्ञान विपक्षीगण व मण्डल कार्यालय गोरखपुर व मुख्य कार्यालय ने नहीं लिया, तब याची ने विपक्षीगण को दिनांक 21.04.2016 को लीगल नोटिस दिया। लीगल नोटिस देने के उपरान्त भी याची विपक्षीगण से अपने पेन्शन धनराशि के भुगतान के लिए व्यक्तिगत सम्पर्क करता रहा और विपक्षी संख्या 01 द्वारा केवल मौखिक आश्वासन मिलता रहा, लेकिन विपक्षी संख्या 01 द्वारा भुगतान नहीं किया गया। याची ने पुनः दिनांक 04.04.2017 को दूसरी लीगल नोटिस दिया। याची का दिनांक 28.03.2008 से जून सन् 2017 तक (9 वर्ष तीन माह) की बकाया धनराशि 2,18,616/- रुपया विपक्षीगण के यहाँ पेन्शन की धनराशि बकाया है, जिसको विपक्षीगण बावजूद नोटिस के अदा नहीं कर रहे हैं और अन्ततः दिनांक 05.06.2017 को वे भुगतान करने से इन्कार कर दिए। इसलिए पिटीशन दाखिल करने की आवश्यकता पड़ी। अतः याची का पेन्शन की बकाया धनराशि (28.03.2008 से जून सन् 2017 तक) 09 वर्ष 03 माह का मुo 2,18,616/- रुपया मय 12% वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान कराने का आदेश पारित किया जाए। साथ ही याची की पेन्शन का भुगतान मासिक या सालाना भविष्य में भी अदा कराने का आदेश पारित किया जाए तथा कुल खर्चा मुकदमा याची को दिलाया जाए।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि याची द्वारा अपने याचना पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में याची ने कागज संख्या 8/1व2 जीवन बीमा सुरक्षा पॉलिसी का छायाप्रति, कागज संख्या 8/3 प्रीमियम रसीद की छायाप्रति, कागज संख्या 8/4 मुख्य शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम को भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/7व8 बीमा कम्पनी को भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/9 भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय प्रथम सिविल लाईन आजमगढ़ द्वारा पॉलिसी से सम्बन्धित राशि अदा करने के सन्दर्भ में याची को भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/11व12 भारतीय जीवन बीमा निगम को भेजे गए पत्र की छायाप्रति तथा कागज संख्या 8/14 कम्पनी को लीगल एडवाइजर द्वारा भेजे गए पत्र की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
कागज संख्या 11क² विपक्षीगण द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र में किए गए कथनों की धारा 02,03व04 को स्वीकार किया है, शेष सभी कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि परिवादी को प्रतिपक्षी के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करने का कार्य कारण उत्पन्न व प्राप्त नहीं है। दावा परिवादी मात्र इसी आधार पर निरस्त होने योग्य है। परिवादी ने प्रतिपक्षी के क्षेत्रीय प्रबन्धक एवं शाखा प्रबन्धक को पक्षकार बनाया है, जबकि इन्श्योरेन्स ऐक्ट 1956 की धारा 3(2) के अनुसार पक्षकार केवल भारतीय जीवन बीमा निगम को ही बनाया जा सकता है और भारतीय जीवन बीमा निगम के विरुद्ध वाद दाखिल किया जा सकता है। अतः परिवाद पत्र की सूची से निगम के क्षेत्रीय प्रबन्धक एवं शाखा प्रबन्धक को निकालने की प्रार्थना की जाती है। विपक्षी वादी को भुगतान करने के लिए तैयार है। भुगतान प्राप्त करने के लिए वादी को कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी है यथा ऑप्शन लेटर/नेफ्ट/अदर डिटेल्स भर कर देना है जिसमें बैंक का नाम एवं खाता संख्या (जिसमें भुगतान प्राप्त करना चाहते हैं) आदि की लिखिति सूचना दी जानी है। विपक्षी के मुख्य प्रबन्धक द्वारा स्वयं भी जाकर उक्त कार्य के लिए वादी से कहा गया, बहुत बार जाकर समझाया गया किन्तु वादी द्वारा विल्कुल सहयोग नहीं किया गया। वादी द्वारा ज्योंही उक्त औपचारिकताएं पूरी कर दी जाएंगी, त्योंही विपक्षी निगम के नियमानुसार भुगतान करने के लिए तैयार है। जितनी (मासिक या तिमाही या छमाही या वार्षिक मोड रखा जाता है के आधार पर राशि की गणना की जाएगी) पेन्शन का एरियर है वह भुगतान की जाएगी तथा अगली ड्यू डेट पर सीधे खाते में क्रेडिट की जाएगी।
विपक्षीगण द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
पक्षकारों को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षी ने अपने जवाबदावा के पैरा 03व04 में यह स्वीकार किया है कि ‘विपक्षी वादी को भुगतान करने के लिए तैयार है। भुगतान प्राप्त करने के लिए वादी को कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी हैं यथा ऑप्शन लेटर/नेफ्ट/अदर डिटेल्स भर कर देना है जिसमें बैंक का नाम एवं खाता संख्या (जिसमें भुगतान प्राप्त करना चाहते हैं) आदि की लिखिति सूचना दी जानी है। विपक्षी के मुख्य प्रबन्धक द्वारा स्वयं भी जाकर उक्त कार्य के लिए वादी से कहा गया, बहुत बार जाकर समझाया गया किन्तु वादी द्वारा विल्कुल सहयोग नहीं किया गया। वादी द्वारा ज्योंही उक्त औपचारिकताएं पूरी कर दी जाएगी, त्योंही विपक्षी निगम के नियमानुसार भुगतान करने के लिए तैयार है। जितनी पेन्शन का एरियर है वह भुगतान की जाएगी तथा अगली ड्यू डेट पर सीधे काते में क्रेडिट की जाएगी।’
उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी द्वारा विपक्षी के जवाबदावा के धारा-03 में उल्लिखित औपचारिकताओं को पूरा करने के उपरान्त परिवादी को पेन्शन की बकाया धनराशि/एरियर मुo 2,18,616/- रुपया (रु. दो लाख अट्ठारह हजार छः सौ सोलह मात्र) अन्दर 30 दिन अदा करे तथा परिवादी के पेन्शन का भुगतान भविष्य में मासिक या सालाना नियमित रूप से अदा करते रहें।
पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 29.03.2022
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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