जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
वाद संख्या 11/2009
श्रीमती ऊषा देवी,
पत्नी स्व श्री राधे लाल,
निवासिनी- ग्राम व पोस्ट केवली,
जनपद लखनऊ, उ0प्र0।
......... परिवादिनी
बनाम
भारतीय जीवन बीमा निगम,
मंडल कार्यालय, लखनऊ।
..........विपक्षी
उपस्थितिः-
श्री विजय वर्मा, अध्यक्ष।
श्रीमती अंजु अवस्थी, सदस्या।
निर्णय
परिवादिनी द्वारा यह परिवाद विपक्षी से बीमा धनराशि रू.5,00,000.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज, क्षतिपूर्ति हेतु रू. 5,00,000.00, वाद व्यय हेतु रू.10,000.00 तथा लीगल नोटिस का खर्चा रू.5,000.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
संक्षेप में परिवादिनी का कथन है कि उसके पति ने विपक्षी द्वारा संचालित बीमा गोल्ड पाॅलिसी के अंतर्गत दिनांक 28.03.2006 को पाॅलिसी सं.216156241 ली थी जिसका प्रीमियम रू.5,725.00 दिनांक 28.03.2006 को विपक्षी के यहां जमा किया गया। उपरोक्त पाॅलिसी की नियम एवं शर्तों के अनुरूप रू.5,00,000.00 का परिवादिनी के पति का बीमा था जिसमें परिवादिनी को नामिनी नामित किया है। उपरोक्त पाॅलिसी के अंतर्गत यदि जोखिम आरंभ होने की तिथि दिनांक 28.03.2006 से परिपक्वता की तिथि दिनांक 28.03.2026 के मध्य यदि पाॅलिसी धारक की मृत्यु होती है तो नामिनी रू.5,00,000.00 पाने की अधिकारिणी होगी। परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 05.05.2006 को हो गयी। परिवादिनी ने दिनांक 11.08.2008 को बीमा नियामक विकास प्राधिकरण को पत्र प्रेषित कर यह अवगत कराया कि परिवादिनी के
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पति बीमा फार्म स्वयं भरकर बीमा कार्यालय पर गये थे वहीं पर उनका मेडिकल भी हुआ था, परंतु पति की मृत्यु के उपरांत विपक्षी द्वारा बीमा धनराशि रू.5,00,000.00 का भुगतान न करके सेवा में कमी की गयी है। विपक्षी द्वारा परिवादिनी के पति द्वारा ली गयी उपरोक्त पाॅलिसी का मृत्यु दावा बिना किसी आधार के गलत तथ्यों को इंगित करते हुए निरस्त किया गया है जो कि बीमा गोल्ड पाॅलिसी के नियम व शर्तों के विपरीत है। परिवादिनी ने लगातार पत्राचार विपक्षी के कार्यालय से किया, परंतु कोई कार्यवाही विपक्षी द्वारा दावे के निस्तारण के संबंध में नहीं की गयी। दिनांक 31.03.2008 भारतीय जीवन बीमा निगम क्षेत्रीय प्रबंधक कानपुर द्वारा यह अवगत कराया गया कि पाॅलिसी धारक ने प्रस्ताव में स्वस्थ परीक्षण के समय 27.03.2006 को स्वास्थ्य परीक्षक के समक्ष उपस्थित न होकर अपने स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति का स्वास्थ्य परीक्षण करा कर फर्जी मेडिकल बनवाया है। इस संबंध में विपक्षी द्वारा मिथ्या कथन किया गया है, जबकि सत्यता यह है कि परिवादिनी के पति स्वयं चिकित्सक के समक्ष उपस्थित हुए थे एवं अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराया था। स्वास्थ्य परीक्षण से संतुष्ट होने के उपरांत विपक्षी द्वारा परिवादिनी के पति को बीमा गोल्ड स्कीम की पाॅलिसी जारी की गयी थी। इस प्रकार यह सिद्ध है कि विपक्षी ने बीमा करने से पूर्व स्वास्थ्य के संबंध में स्वास्थ्य परीक्षण करा कर पूर्ण रूप से संतुष्ट होने के उपरांत ही बीमा गोल्ड पाॅलिसी जारी की गयी थी। विपक्षी के समक्ष समस्त प्रपत्र को बीमे के दावे के निस्तारण हेतु समयावधि के अंदर प्रस्तुत किये थे। दिनांक 05.06.2008 को उक्त प्रपत्रों की अभिस्वीकृति देते हुए विपक्षी ने परिवादिनी को यह अवगत कराया था कि मृत्यु दावा के संबंध में यथासमय सूचित किया जायेगा, परंतु विपक्षी द्वारा आज तक बीमा धनराशि रू.5,00,000.00 नकद न देकर सेवा में कमी की है। विपक्षी ने दिनांक 31.03.2008 को मृत्यु दावा नामंजूर कर दिया तथा परिवादिनी ने विभिन्न तिथियों को पुनः आवेदन पत्र दिया जिस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। दावे के भुगतान न होने के कारण परिवादिनी ने अपने अधिवक्ता द्वारा विधिक नोटिस भी दी, परंतु विपक्षी द्वारा इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की गयी। अतः परिवादिनी द्वारा यह परिवाद विपक्षी से बीमा धनराशि रू.5,00,000.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज, क्षतिपूर्ति हेतु रू. 5,00,000.00, वाद व्यय हेतु रू.
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10,000.00 तथा लीगल नोटिस का खर्चा रू.5,000.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी द्वारा अपना लिखित कथन दाखिल किया गया जिसमें मुख्यतः यह कथन किया गया है कि परिवादिनी के पति ने विपक्षी द्वारा संचालित बीमा गोल्ड पाॅलिसी के अंतर्गत दिनांक 28.03.2006 को एक पाॅलिसी सं.216156241 ली गयी थी जिसमें परिवादिनी को नाॅमिनी बनाया गया है। बीमा गोल्ड पाॅलिसी के नियम व शर्तों के अनुरूप परिवादिनी के पति का रू.5,00,000.00 का बीमा था। ंउपरोक्त पाॅलिसी के अंतर्गत जोखिम आरंभ होने की तिथि अर्थात् 28.03.2006 से परिपक्वता की तिथि दिनांक 28.03.2026 थी। परिवादिनी के पति द्वारा प्रस्ताव प्रपत्र भरकर उस पर हस्ताक्षर किया था। विपक्षी कार्यालय में मेडिकल नहीं किया जाता है। यह मेडिकल डा. के क्लिनिक पर होता है और परिवादी के पति ने डा. के समक्ष स्वयं उपस्थिति न होकर किसी अन्य व्यक्ति को प्रस्तुत किया जो प्रस्ताव पत्र तथा मेडिकल रिपोर्ट पर किये गये हस्ताक्षर से सिद्ध होता है। प्रस्ताव पत्र पर किये गये हस्ताक्षर का मिलान थ्वतमदेपब ब्वदेनसजंदजे. ैतप डवींद च्तंांेी ळनचजं ;त्मजकण् ळवअजण् थ्वतमदेपब म्गचमतजद्धए म्गण् ैण्च्ण् प्दबींतहम भ्ंदकूतपजपदह न्दपज व िथ्वतमदेपब ैबपमदबम स्ंइवतंजवतल न्ण्च्ण् ळवअजण्.ब्.2।ए टपहलंद छंहंतए डंींदंहंतए स्नबादवू से कराया गया जो भिन्न पाये गये। बीमा धारक की मृत्यु बीमा लेने के महज 1 माह 4 दिन बाद ही स्वाभाविक रूप से होना बताया गया है जिससे सिद्ध होता है कि मृतक श्री राधेलाल का स्वास्थ्य पहले से ही ठीक नहीं था। यह कार्य निगम को धोखा देकर बीमा प्राप्त करने के आशय से किया गया था जिसके कारण बीमा अधिनियम 45 के आधार पर परिवादिनी का दावा निरस्त कर दिया गया तथा उसकी सूचना परिवादिनी को भेजी गई थी। विपक्षी ने परिवादिनी को दिनांक 31.03.2008 दावा निरस्त होने की सूचना पंजीकृत डाक द्वारा प्रेषित की थी जिसके बाद परिवादिनी ने क्षेत्रीय प्रबंधक कानपुर को अपील की थी। क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर र्ने व्.ब्त्ब् ;ब्संपउ त्मअपमू ब्वउउपजजममद्ध के समक्ष दावे पर पुर्नविचार के लिये प्रस्तुत किया जहां समिति ने मंडल कार्यालय लखनऊ के दावा निरस्त करने के निर्णय को सही माना और परिवादिनी को यह अवगत कराया कि बीमा धारक ने
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प्रस्तावित पाॅलिसी के अंतर्गत नियमानुसार कराए जाने वाले स्वास्थ्य परीक्षण के समय 27.03.2006 को स्वास्थ्य परीक्षक के समक्ष स्वयं उपस्थित न होकर किसी अन्य व्यक्ति का फर्जी मेडिकल परीक्षण करवाकर फर्जी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर पाॅलिसी जारी करवा ली थी जिस कारण परिवादिनी का दावा अमान्य किया गया। बीमा धारक का निगम से बीमा लिये जाने के 1 माह 4 दिनों के अंदर मृत्यु हो जाने के कारण मृत्यु दावा अल्पावधि मृत्युदावा ;मंतसल कमंजी बसंपउद्ध की श्रेणी में आता है एवं इस प्रकार के मृत्यु दावों की सतर्कता पूर्वक पूर्ण जांच आवश्यक होती है। अल्पावधि मृत्यु दावे के निस्तारण में बीमाधारक के प्रस्ताव से पूर्व स्वास्थ्य/बीमारी के संबंध मंे बीमारी के इतिहास एवं इलाज के संबंध में मृत्यु के कारण, मृत्यु की परिस्थितियां, अंतिम इलाज संबंधी महत्वपूर्ण विवरणों/तथ्यों तथा प्रस्तावक/बीमाधारक द्वारा प्रस्ताव पत्र में प्रदर्शित अन्य तथ्यों की सघन व संपूर्ण जांच दावा निस्तारण का आवश्यक एवं महत्वपूर्ण अंग है। यह भी पता लगाना आवश्यक होता है कि कहीं कोई महत्वपूर्ण/वास्तविक तथ्य छिपाया तो नहीं गया है। अतः विभागीय जांच का प्राविधान है एवं इसी प्राविधान के अंतर्गत विभागीय जांच करी/कराई गयी जिसमें पता चला कि मृतक श्री राधे लाल ने मेडिकल करते समय चिकित्सक के समक्ष अपने स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को प्रस्तुत करके मेडिकल कराया था क्योंकि उसका स्वास्थ ठीक नहीं था। यह तथ्य फोरेंसिक रिपोर्ट से जानकारी में आयी जिसके आधार पर परिवादी दावा निरस्त करके विपक्षी ने परिवादिनी को बीमा दावा अमान्य होने की सूचना विधिवत रूप से दिनांक 31.03.2008 को भेजी थी। परिवादिनी द्वारा जो तथ्य मृतक बीमाधारक के संबंध में प्रस्तुत किए गए हैं वे संदिग्ध प्रतीत होते हैं। विपक्षी मृतक बीमाधारक के दावे के भुगतान के संबंध में कई बार जांच कराई गई जिसमें यह प्रकाश में आया कि मृतक की लाश गांव के बाहर लवारिस पायी गई थी लेकिन लाश का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया जिससे मृत्यु का सही कारण पता नहीं चल सका। विपक्षी द्वारा ग्राहक की सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। परिवादिनी का दावा विधि विरूद्ध होने के कारण स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है, अतः परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है।
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परिवादिनी द्वारा अपना शपथ पत्र मय संलग्नक 14 तथा 11 कागजात अपने परिवाद पत्र के साथ दािखल किये गये। परिवादिनी द्वारा लिखित बहस दाखिल की गयी। विपक्षी द्वारा श्री अशोक कुमार खरे, विधिक प्रशासनिक अधिकारी का शपथ पत्र मय 18 कागजात दाखिल किया गया। विपक्षी द्वारा लिखित बहस मय संलग्नक 6 दाखिल की गयी।
उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
अब देखना यह है कि क्या परिवादिनी के पति बीमा धारक स्वर्गीय श्री राधे लाल द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर बीमा पाॅलिसी हेतु प्रस्ताव प्रपत्र भरकर बीमा पाॅलिसी प्राप्त की या नहीं तथा क्या विपक्षी द्वारा बीमा धारक श्री राधे लाल की मृत्यु पर परिवादिनी के मृत्यु दावे को निरस्त करके सेवा में कमी की गयी है या नहीं और क्या परिवादिनी बीमे की धनराशि प्राप्त करने की अधिकारिणी है या नहीं।
इस प्रकरण में परिवादिनी के पति द्वारा दिनांक 28.03.2006 को एक पाॅलिसी सं.216156241 बीमित राशि रू.5.00 लाख हेतु ली गयी थी जिसका प्रीमियम रू.5,725.00 परिवादिनी के पति द्वारा बीमा किया गया था। परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 05.05.2006 को हो गयी थी। परिवादिनी द्वारा विपक्षी से बीमे की धनराशि रू.5.00 लाख के भुगतान हेतु मृत्यु दावा प्रस्तुत करने पर विपक्षी द्वारा उक्त दावे को निरस्त कर दिया गया। परिवादिनी द्वारा मृत्यु दावा निरस्त किये जाने पर उसके द्वारा परिवाद दायर किया गया। विपक्षी के अनुसार बीमा धारक की मृत्यु बीमा पाॅलिसी लेने के मात्र 1 माह 4 दिन के अंदर हो गयी थी जिसके कारण दावे की गहन जांच करने पर यह दृष्टिगत हुआ कि बीमा धारक द्वारा अपने स्वास्थ्य का परीक्षण किसी अन्य व्यक्ति को खड़ा करके चिकित्सक के समक्ष करा लिया गया था और इस प्रकार से धोखा देकर स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया। साथ ही विपक्षी के अनुसार चूंकि बीमा पाॅलिसी लेने के मात्र 1 माह 4 दिन बाद ही बीमा धारक की मृत्यु हो गयी, अतः स्पष्ट है कि बीमा लेते समय बीमा धारक स्वस्थ नहीं था और उसने अपने स्वास्थ्य की सही स्थिति को छिपाकर बीमा प्राप्त किया था और इसी कारण से उसके द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को चिकित्सीय परीक्षण हेतु खड़ा करके बीमा पाॅलिसी प्राप्त की
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गयी। इस प्रकरण में विपक्षी की ओर से बीमा धारक द्वारा जो अपना चिकित्सीय परीक्षण कराया गया था उसके संबंध में जो हस्ताक्षर प्रपत्र पर बनाये गये थे उनमें चिकित्सीय परीक्षण के समय किये गये हस्ताक्षर, बीमा धारक द्वारा जो हस्ताक्षर अपने प्रस्ताव प्रपत्र में किये गये थे उनसे भिन्न पाये गये। इस संबंध में थ्वतमदेपब ब्वदेनसजंदजे. ैतप डवींद च्तंांेी ळनचजं ने अपनी आख्या दिनांक 30.03.2008 जिसकी फोटोप्रति दाखिल की गयी है, में यह निष्कर्ष निकाला है कि जिस व्यक्ति द्वारा चिकित्सीय परीक्षण के समय हस्ताक्षर श्री राधे लाल की तरह से किये गये थे वह हस्ताक्षर बीमा प्रस्ताव में किये गये हस्ताक्षर से पूर्णतया भिन्न है और उनमें किसी भी प्रकार की कोई समानता नहीं है। श्री गुप्ता द्वारा यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि प्रस्ताव पत्र भरने वाले श्री राधे लाल द्वारा चिकित्सीय परीक्षण प्रपत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये गये थे। श्री गुप्ता जो कि अवकाश प्राप्त राजकीय थ्वतमदेपब विशेषज्ञ है उनके द्वारा जो आख्या दी गयी है उस पर अविश्वास करने का कोई भी कारण नहीं है। स्पष्ट है कि बीमा धारक श्री राधे लाल द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को खड़ा करके चिकित्सीय परीक्षण कराया गया। इस कारण चिकित्सीय परीक्षण में किये गये हस्ताक्षर बीमा प्रस्ताव पत्र में किये गये हस्ताक्षर से पूर्णतया भिन्न है। इन परिस्थितियों में वस्तुतः इसी आधार पर परिवादिनी का यह परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है फिर भी न्याय हित में अन्य बिंदुओं का भी विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि साक्ष्य से यह भी स्पष्ट होता है कि बीमा धारक गांव के पास मृत पाया गया था उसकी मृत्यु का तात्कालिक कारण हृदय गति का रूक जाना बताया गया है, किंतु पुनः उल्लेखनीय है कि बीमा धारक का कोई भी पोस्टमार्टम नहीं कराया गया है और न ही किसी अस्पताल में उन्हें ले जाकर परीक्षण कराया गया है। इन परिस्थितियों में वस्तुतः बीमा धारक की मृत्यु किस कारण से हुई यह तथ्य सुस्पष्ट नहीं होता है, अतः मृत्यु का कारण भी संदेहास्पद ही नजर आता है। इन परिस्थितियों में जबकि मृत्यु का कारण संदेहास्पद है एवं बीमा धारक द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को खड़ा करके अपना चिकित्सीय परीक्षण कराया गया हो, मात्र यह दर्शाता है कि बीमा धारक द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर एक बड़ी धनराशि हेतु अपना बीमा कराया गया। चूंकि धोखे के आधार पर किसी
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अन्य व्यक्ति का चिकित्सीय परीक्षण कराकर बीमा धारक द्वारा बीमा कराया गया है, अतः ऐसी स्थिति में विपक्षी द्वारा परिवादिनी के मृत्यु दावे को निरस्त करने का उचित कारण था, अतः यह नहीं कहा जा सकता कि विपक्षी द्वारा परिवादिनी के मृत्यु दावे को निरस्त करके किसी प्रकार की कोई सेवा में कमी की गयी है। चूंकि विपक्षी द्वारा किसी भी प्रकार की कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है, अतः परिवादिनी का यह परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
(अंजु अवस्थी) (विजय वर्मा)
सदस्या अध्यक्ष
दिनांकः 2 सितम्बर, 2015