Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/110/2017

USHA AGRAWAL - Complainant(s)

Versus

LIC - Opp.Party(s)

HARENDRA NATH YADAV

04 May 2019

ORDER

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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 110 सन् 2017

    प्रस्तुति दिनांक 21.07.2017

                                     निर्णय दिनांक 04/05/2019

ऊषा अग्रवाल पत्नी मुकुन्दचन्द अग्रवाल ग्राम व पोस्ट- शाहगढ़, जनपद- आजमगढ़।

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बनाम

  1. भारतीय जीवन बीमा निगम बजरिये शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा नं. 01 रैदोपुर।
  2. मण्डल प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम मण्डल कार्यालय गोरखपुर।

.....................................................................................विपक्षीगण।

उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव

 

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अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-

परिवादिनी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने विपक्षीगण के अभिकर्ता के आग्रह पर उसकी एक जीवन बीमा मनी बैक पॉलिसी स्कीम के तहत टेबल सं. 128-20 पॉलिसी संख्या 291676282 बीमा राशि 50,000/- रुपया जिसकी वार्षिक किश्त मुo 4000/- रुपया का बीमा दिनांक 28.05.2001 को कराया। विपक्षीगण के अभिकर्ता ने याचिनी को बताया कि इस प्लान में बीमा कराने पर बीमा की तिथि से प्रत्येक 5 वर्ष में बीमित राशि का 20% यानी 10,000/- रुपया मनी बैक के रूप में प्राप्त होगा। यदि किसी कारणवश यह मनी बैक की धनराशि देय तिथि तक प्राप्त नहीं होती है तो देय तिथि से भुगतान के तिथि तक उस मनी बैक धनराशि पर 11% चक्रवृद्धि ब्याज भी देय होगा। बीमा दिनांक 28.05.2001 से याचिनी को क्रमशः मनी बैक धन राशि दिनांक 5/2006 व 5/2011 एवं 5/2016 में 20% धनराशि मनी बैक मिलनी चाहिए थी। लेकिन विपक्षीगण ने नियम के विरूद्ध निर्धारित समय में कोई मनी बैक धनराशि का भुगतान नहीं किया। विपक्षीगण ने याचिनी को                                                           P.T.O.

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बिना दो चक्र का भुगतान किये तीसरे चक्र का मनी बैक का भुगतान चेक संख्या 499818 दिनांक 31.03.2017 मुo 10,000/- रुपया का किया। उक्त भुगतान 5/2016 में विपक्षीगण को करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और न ही मई 2016 से मनी बैक का भुगतान की तिथि 31.03.2017 तक उस पर देरी का ब्याज दिया। विपक्षीगण ने दो चक्र मनी बैक का निर्धारित समय 5/2006 एवं 5/2011 को मनी बैक की धनराशि मुo 20,000/- रुपये का भुगतान नहीं किया है। अतः उन्हें विधिक नोटिस दी गयी है। अतः विपक्षीगण को आदेशित किया जाए कि वह शर्तों के मुताबिक प्रथम चक्र, द्वितीय चक्र की मनी बैक धनराशि मुo 10,000/-, 10,000/- को क्रमशः 5/2017 तक 11% चक्रवृद्धि ब्याज के साथ 31,516/- व 18,703 रुपया भी दें, तृतीय चक्र को निर्धारित समय 5/2016 के मनी बैक धनराशि 10,000/- रुपया का भुगतान 10 माह देरी से किये जाने का 11% चक्रवृद्धि ब्याज की दर से भी दें और शारीरिक व मानसिक कष्ट के लिए 30,000/- रुपया भी अदा करें।

परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में याचिनी ने कागज संख्या 7/1 भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा कराए गए बीमा की छायाप्रति, कागज संख्या 7/3 कानूनी नोटिस, कागज संख्या 7/5 मुख्य प्रबन्धक द्वारा नोटिस का दिये गये जवाब की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।

विपक्षीगण द्वारा कागज संख्या 12/1 जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के पैरा एक को अस्वीकार किया है और परिवाद पत्र के पैरा दो अस्वीकार करते हुए यह कहा है कि विपक्षीगण द्वारा 50,000/- रुपया बीमित धनराशि के लिए पॉलिसी संख्या 291676282 निर्गत किया जाना व इस बीमा पॉलिसी में आवश्यक औपचारिकताओं के पूरा किये जाने पर प्रत्येक पांच वर्ष पर बीमित धनराशि का 20% जीवित हित लाभ का भुगतान किये जाने का प्रावधान होना स्वीकार है। परिवाद पत्र के पैरा तीन के सम्बन्ध में यह कहा गया है कि जिस प्रकार का उल्लेख किया                                                      P.T.O.

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गया है वह विपक्षीगण को स्वीकार नहीं है। क्योंकि परिवादिनी द्वारा आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा न किये जाने के कारण उसे देय विद्यमानता हित लाभ का भुगतान नहीं किया जा सकता है। जिसके लिए परिवादिनी स्वयं जिम्मेदार है। परिवाद पत्र के पैरा 04 ता 11 अस्वीकार किया गया है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि परिवादिनी को परिवाद पत्र प्रस्तुत करने का अधिकार हासिल नहीं हैं। वह आवश्यक तथ्यों को छिपाते हुए अनुतोष की याचना की है। परिवादिनी द्वारा ली गयी बीमा पॉलिसी के नियम व शर्तों के अनुसार उसे प्रत्येक पांच वर्ष के अन्तराल पर मूल जीवन बीमा पॉलिसी प्रस्तुत कर इस पर पृष्ठांकन कराने पर 20% जीवित हित लाभ का भुगतान किए जाने का प्रावधान है। यदि परिवादिनी नियत दिनांक पर विद्यमानता हित लाभ न लेना चाहे तो ऐसी स्थिति में विद्यमानता हित लाभ की देय तिथि के एक माह पूर्व उसे विपक्षीगण के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर अपने मन्तव्य से अवगत कराना होता है और केवल उस स्थिति में पॉलिसी की पूर्णावधि तिथि पर पॉलिसीधारक को विद्यमानता हित लाभ की रकम पर समय-समय पर घोषित की जाने वाली ज्यादा दर से ब्याज का भुगतान किया जाता है, परन्तु इस मामले में परिवादिनी ने न तो विद्यमानता हित लाभ की देय तिथि के एक माह पूर्व कोई प्रार्थनापत्र दिया न ही विद्यमानता हित लाभ की देय तिथि पर अपना पॉलिसी बाण्ड ही पृष्ठांकन के लिए प्रस्तुत किया, जिसके कारण परिवादिनी को माह मई 2006 , मई 2011 व मई 2016 में देय विद्यमानता हित लाभ की रकम का भुगतान नहीं किया जा सकता है। बहरहाल, कालान्तर में निगम की शाखाओं का कम्प्यूटरीकरण हो जाने एवं निगम द्वारा पॉलिसीधारक द्वारा विद्यमानता हित लाभ प्राप्त करने हेतु मूल पॉलिसी बाण्ड का पृष्ठांकन हेतु प्रस्तुत करने की शर्त को समाप्त कर दिए जाने कारण माह मई 2016 में देय विद्यमानता हित लाभ की रकम रूपये 10,000/- मात्र का चेक दिया गया। परिवादिनी द्वारा समस्त नियमों से अवगत होते हुए भी अभी तक मैनडेट फॉर्म भरकर प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादिनी के जिन विद्यमानता हित लाभ की रकम का भुगतान नहीं किया गया है                                                          P.T.O.

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उनका भुगतान पूर्णावधि पर नियमानुसार देय ब्याज के साथ किया जाएगा। समस्त तथ्यों व परिस्थितियों से अवगत होने के कारण ही माह मई 2006 में परिवादिनी की उपरोक्त पॉलिसी के सापेक्ष प्रथम विद्यमानता हित लाभ की रकम देय होने व माह मई 2011 में परिवादिनी की उपरोक्त पॉलिसी के सापेक्ष द्वितीय विद्यमानता हित लाभ की रकम देय होने के बावजूद उसने कोई प्रार्थना पत्र अथवा शिकायत पत्र प्रस्तुत नहीं किया तथा महज दुनियावी लालच में पड़कर गलतबयानी करती रही। परिवादी का परिवाद समय समय से बाधित है। इस मंच को इस परिवाद को सुनवाई का क्षेत्राधिकार हासिल नहीं है। विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

परिवादिनी ने जीवन स्नेह बीमा से सम्बन्धित सबूत भी प्रस्तुत किया है और 10,000/- रुपये का चेक की छायाप्रति भी प्रस्तुत किया है।

सुनवाई के दौरान परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आए, वादहू विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता भी उपस्थित आए और अपना पक्ष प्रस्तुत किया। परिवादिनी द्वारा बीमा पॉलिसी कागज संख्या 7/1 प्रस्तुत किया गया है, जिसमें बीमा शर्तों का उल्लेख किया गया है। इस बीमा पॉलिसी में इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है कि यदि कोई धनराशि समय से नहीं दी जाती है तो उस पर 11.50% की दर से चक्रवृद्धि ब्याज देय होगा। परिवादिनी द्वारा कागज संख्या 19/3 एक अन्य सबूत प्रस्तुत किया गया है, जिसमें विशेष लाभ की कुल कई पैरा में व्याख्या की गयी है। इसके पैरा एक में यह लिखा है कि उत्तर-जीविता लाभ देय होने के पश्चात् पॉलिसीधारक इसके देय होने की तिथि या उसके पश्चात् कभी भी इस विकल्प का प्रयोग कर सकता है, लेकिन यदि यह लाभ बाद में प्राप्त किया जाता है तो इसके साथ 11% चक्रवृद्धि दर से और अधिक उत्तरृजीविता लाभ देय होगा। यह पैरा उसी स्थिति में लागू होगा जबकि बीमा की अवधि पूर्ण हो गयी हो। इस बीमा की अवधि 2021 में पूर्ण होनी है। अतः यह प्रावधान इस परिवाद के तथ्य एवं परिस्थितियों ग्राह्य नहीं है। यहां इस बात का भी उल्लेख कर देना                                                         P.T.O.

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आवश्यक है कि वर्ष सन् 2011 तक बीमा का कार्य मैनुअल होता था और उसके पश्चात् वह कार्य कम्प्यूटर से होने लगा। इस पत्रावली में कागज संख्या 7/5 मुख्य शाखा प्रबन्धक द्वारा परिवादी के अधिवक्ता श्री गौरी शंकर यादव एडवोकेट को पत्र लिखकर सूचित किया गया है। उपरोक्त के सम्बन्ध में श्रीमती ऊषा अग्रवाल की पॉलिसी संख्या 291676282 के द्वारा दिनांक 28.05.2001 को प्लॉन नं. 128 के तहत बीमा लिया गया था। जिसके तहत विद्यमानता हित लाभ को देय तिथि मई 2011 एवं मई 2016 में होना है। पॉलिसी के नियमानुसार बोनस पर चक्रवृद्धि ब्याज देय नहीं होगा। उन्होंने यह भी लिखा है कि पॉलिसी धारक मूल पॉलिसी दस्तावेज शाखा मे देकर इन्डोर्समेन्ट कराना आवश्यक है, जो हमारे रिकार्ड के अनुसार पॉलिसी में नहीं दिया गया है। विपक्षी के अधिवक्ता ने अपने बहस के दौरान तथा जवाबदावा में यह लिखा है कि बीमा पॉलिसी के कम्प्यूटराइजेशन के पूर्व जो देय धनराशि थी उसे परिवादिनी नियमानुसार कार्यवाही करके बीमा कार्यालय में प्राप्त कर सकती हैं। उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है।

आदेश

परिवादिनी को आदेशित किया जाता है कि वह बीमा कार्यालय में जाकर कम्प्यूटराइजेशन के पूर्व अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को पूरा करके अपने द्वारा मांगी गयी धनराशि को प्राप्त कर सकती हैं।

 

 

राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                     (सदस्य)                          (अध्यक्ष)

                         दिनांक 04/05/2019

यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                   (सदस्य)                          (अध्यक्ष)

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