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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 197 सन् 2014
प्रस्तुति दिनांक 16.10.2014
निर्णय दिनांक 11.10.2018
सुशीला देवी पत्नी स्वo मनिराम ग्राम व पोस्ट- मालटाड़ी, जिला- आजमगढ़। .........................................................................याची।
बनाम
- शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम, शाखा कार्यालय प्रथम आजमगढ़।
- मण्डलीय प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम मण्डल कार्यालय तारा मण्डल रोड जिला- गोरखपुर।
..................................................................................विपक्षीगण।
उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव
अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-
परिवादिनी ने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसके पति मनिराम दिनांक 08.07.2009 को 1,00,000/- रुपया का बीमा, जिसकी किश्त छमाही 4521/- रुपया थी शाखा कार्यालय प्रथम आजमगढ़ से कराया था और जिसका पॉलिसी नं. 295343985 था। बीमा कराते वक्त उसके पति पूरी तरह स्वस्थ थे। उन्हें कोई बीमारी नहीं थी। केवल गैस की समस्या थी। दिनांक 26.02.2012 से 06.03.2012 तक वे बनारस में भर्ती रहे और स्वस्थ होकर वापस आ गए। घर आने पर पेट दर्द होने के कारण दिनांक 23.03.2012 को उनकी मृत्यु हो गयी। याचिनी के पति ने 50,000/- रुपये का एक और बीमा करवाया था, जिसका भुगतान हो गया है। वादिनी के पति का बीमा कराते समय बीमा कम्पनी के डॉक्टर ने स्वस्थ बताया और पूरी तरह जाँच-पड़ताल के बाद ही उनका बीमा किया था। परिवादिनी अपने पति के मृत्यु के बाद क्लेम हेतु विपक्षी से सम्पर्क किया तो। उन्होंने उसका मृत्यु क्लेम दिनांक 30.01.2014 को खारिज कर दिया और बताया कि पॉलिसी पुनर्चलन तिथि के एक वर्ष पूर्व से परिवादिनी आई.बी.एस. नाम की बीमारी से पीड़ित था। जिसको छिपाकर उसने
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बीमा कराया था। विपक्षी गण उसे हैरान व परेशान कर रहे हैं। अतः उन्हें आदेशित किया जाए कि 1,00,000/- रुपया परिवादिनी को अदा करें और मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिए 40,000/- रुपये और वाद शुल्क के लिए 1,000/- रुपया अदा करें। समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 6 के रूप में परिवादिनी ने एल.आई.सी. द्वारा लिखा गया पत्र प्रस्तुत किया है, जिसमें यह कहा गया है कि परिवादिनी का पति धोखे से बीमा करवाया था। पुनर्चलन तिथि एक वर्ष पूर्व से वह आई.बी.एस. नाम के बीमारी से पीड़ित था। कागज संख्या 6/1 सुशीला देवी द्वारा प्रबन्धक बीमा लोकपाल को लिखा गया पत्र, कागज संख्या 6/3 सर्टिफिकेट ऑफ हॉस्पिटल ट्रीटमेन्ट जो कि दिनांक 24.11.2013 को बीमा कम्पनी द्वारा करवाया गया था। 6/4 निर्वाचन कार्ड की छायाप्रति, कागज संख्या 07 डॉक रसीद प्रस्तुत किया है।
विपक्षी ने जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा है कि परिवादिनी को यह परिवाद प्रस्तुत करने का कोई हक हासिल नहीं है। उसका पति जीवन बीमा कालातीत होने के पश्चात् उसका पुनर्चलन कराया गया था। लेकिन उसने अपने बीमारी को छिपाया था। उसके द्वारा बतायी गयी बातों को सत्य मानकर उसका बीमा करवाया गया था। बीमा कम्पनी उसे झूठा पाने पर पॉलिसी को कभी भी निरस्त कर सकती है। मनिराम पुत्र जमुनाराम ने अपने जीवन काल में पॉलिसी संख्या 290570173 मुo 50,000/- रुपये व जोखिम तिथि 28.03.1994 था, कराया था। दूसरा बीमा पॉलिसी 295343985 मुo 1,00,000/- रुपया व जोखिम तिथि 08.07.2009 का करवाया था। दोनों में उसने अपने पत्नी को नॉमिनी लिखा था। मुo 1,00,000/- बीमा पॉलिसी मनिराम के जीवन काल में 2011 में कालातीत हो गयी। उसने 20.03.2012 को पुनर्जीवित कराया। बाद में दिनांक 23.03.2012 को परिवादिनी ने यह सूचना दिया कि उसके पति को कैन्सर हो जाने के कारण बनारस ले जाते समय उनकी मृत्यु हो गयी। पुनर्चलन के 3 दिन बाद ही
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बीमित व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात् उसकी जांच-पड़ताल की गयी तो पता लगा कि उसे एक वर्ष पहले से ही आई.बी.एस. (इरेटिव बॉवेल रिन्ड्रोम) नामक गम्भीर व घातक बीमारी थी। बीमित व्यक्ति द्वारा वास्तविक तथ्यों को छिपाने के कारण दिनांक 20.03.2012 को अपने को पूर्णतः स्वस्थ व रोगमुक्त बताकर बीमा का पुनर्चलन कराया था। सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करने के पश्चात् दिनांक 20.01.2014 को मृतक दावा को निरस्त कर इसकी सूचना परिवादिनी को दे दी गयी। परिवादिनी का बीमा स्वीकार होने योग्य नहीं है। अतः खारिज किया जाए।
जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षीगण ने इस तरह का कोई भी प्रमाण पत्र अपने जवाबदावा के प्रस्तुत नहीं किया है, जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट हो सके कि मृतक मनिराम को बीमा कराते वक्त कौन-सी बीमारी थी। परिवादिनी की ओर से भी इस तरह का कोई प्रलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है। विपक्षीगण ने केवल जवाबदावा में यह कह दिया है कि परिवादिनी ने उन्हें सूचना दिया था कि उसके पति को कैन्सर हो गया है व बनारस ले जाते समय उनकी मृत्यु हो गयी है, लेकिन इसके समर्थन में कोई प्रलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। यहां इस बात का भी उल्लेक कर देना आवश्यक है कि मनिराम ने अपने बीमा का पुनर्चलन कराया था और यह बीमा दिनांक 08.07.2009 को हुआ था। जबकि मनिराम की मृत्यु दिनांक 23.03.2012 को हुई है। नियमानुसार भारतीय जीवन बीमा निगम किसी भी व्यक्ति का बीमा अपने डॉक्टर द्वारा बीमाकृत व्यक्ति का मेडिकल चेकअप कराने के बाद ही करती है। ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी का यह कर्तव्य था कि वह यह सिद्ध करें कि मृतक मनिराम को कौन-सी घातक बीमारी थी, लेकिन बीमा कम्पनी इस सन्दर्भ में कोई भी प्रलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है।
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उपरोक्त विवेचन से मेरे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या 01 को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को मुo 1,00,000/- (एक लाख रुपया) रुपया अन्दर तीस दिन अविलम्ब भुगतान करें। उपरोक्त धनराशि पर दावा दाखिल करने की तिथि से अंतिम भुगतान तक 09% वार्षिक ब्याज देय होगा। परिवादिनी को विपक्षीगण उसके मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिए 20,000/- (बीस हजार रुपया) रुपये एक मुस्त अदा करें।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)