Rajasthan

Churu

09/2012

Smt. Kamla Devi - Complainant(s)

Versus

LIC - Opp.Party(s)

LKG

18 Dec 2014

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 09/2012
 
1. Smt. Kamla Devi
Vill Rudhrol Teh Charkhi Dadri Distt Bhiwani Haryana
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
 
परिवाद संख्या-  09/2012
श्रीमति कमलादेवी पत्नि स्व. श्री विजयसिंह जाति जाट निवासी गांव रूदडोल पोस्ट उण तहसील चरखी दादरी व जिला भिवानी (हरियाणा)
......प्रार्थीया
बनाम
 
1.    शाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय सादुलपुर जिला चूरू
                                                 ......अप्रार्थी
दिनांक-   23.02.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1.    श्री ललित कुमार गौतम एडवोकेट  - प्रार्थीया की ओर से
2.    श्री सुशील शर्मा एडवोकेट        - अप्रार्थी की ओर से
 
 
1.    प्रार्थीया ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थीया के पति स्व. विजयसिंह के जीवन पर एक बीमा पोलिसी विपक्षी के द्वारा मंजूर की गई थी जिसके पोलिसी न0 500557458 है यह पोलिसी दिनांक 28.03.2000 को प्रारम्भ हुई थी जो टेबल संख्या 124.15 के अन्तर्गत थी जिसकी अर्द्धवार्षिक किश्त 4821 रूपये थी तथा बीमाधन 1,00,000 रूपये था। बीमाधारक ने अपनी पत्नि श्रीमति कमलादेवी को अपनी बीमा पोलिसी में नामित नियुक्त किया था। बीमाधारक की एक अन्य पोलिसी संख्या 500556536 भी विपक्षी द्वारा बीमाधन 1,00,000 रूपये के लिये मंजूर शुद्धा रही है। जिसमें भी प्रार्थीया ही नामित व्यक्ति रही है बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 11.03.2002 को एक दुर्घटना में हो गई। इस दिन बीमा पोलिसी चालू अवस्था में थी। अपने पति की बीमा पोलिसी (दोनो) का मृत्यु दावा प्रार्थीया के द्वारा विपक्षी के पास प्रस्तुत किये गये जिसमें से पोलिसी संख्या 500556536 के दावा का भुगतान मय बोनस के दिनांक 10.09.2002 को बीमाधन 1,00,000 रूपये दुर्घटना लाभी सहित का दुगुना मय बोनस के 2,11,149 रूपये का कर दिया गया लेकिन पेालिसी संख्या 500557458 के मृत्यु दावा का भुगतान नहीं किया। विपक्षी संख्या 1 के द्वारा दिनांक 30.08.02 को एक पत्र प्रार्थीया के पास भिजवाया गया जिसमें मृत्यु दावा को निरस्त करना लिखा है इसमें जो कारण वर्णित किया गया है वह यह है कि प्र0 9 में अपनी सभी पिछली पोलिसियों का विवरण दीजिये। उत्तर ‘‘निल‘‘ लिखा है जबकि बीमाधारक की एक पोलिसी संख्या 500556536 और थी जिसका उल्लेख नहीं किया गया था। उक्त कारण लिखते हुये मृत्यु दावा अस्वीकार कर दिया तथा 30 दिवस के भीतर क्षैत्रीय कार्यालय में पुर्नविचार के लिये आवेदन प्रस्तुत करेन का भी लिखा विपक्षी संख्या 2 के निर्णय से असहमत होते हुये प्रार्थीया के क्षैत्रीय कार्यालय में अपील पेश की जो अपील भी दिनांक 08.02.03 के पत्र ारा निरस्त करने की सूचना विपक्षी द्वारा दी गई।

2.    आगे प्रार्थीया ने बताया कि बीमाधारक के अपने बीमा प्रस्ताव के समय पिछली पोलिसी के तथ्य नहीं छुपाये प्रस्ताव पत्र के प्रश्न संख्या 2 अधिकृत आयु प्रमाण-पत्र का विवरण में पोलिसी संख्या 500556536 स्पष्ट लिखा हुआ है इस पोलिसी के विवरण के आधार पर नई पोलिसी स्वीकृत की गई है। बीमाधारक का बीमा करते समय विपक्षी के एजेन्ट के द्वारा पूर्व की पोलिसी की जानकारी मांगी गर्ठ तब उसने बीमा पोलिसी संख्या 500556536 के बारे में बतला दिया था तब बीमा प्रस्ताव एजेन्ट के द्वारा ही भरा गया था। प्रस्ताव के प्रश्न संख्या 2 में इसका उल्लेख भी कर दिया गया था। प्रश्न संख्या 9 में इसका उल्लेख नहीं किया तो यह एजेन्ट व विकास अधिकारी तथा निगम के प्रबन्धक की ही भूल है बीमाधारक की कोई गलती इसमें नहीं है। इसलिये तथ्य छुपाने के आधार पर विपक्षी द्वारा मृत्यु दावा निरस्त किया जाना कानून सम्मत नहीं है। प्रार्थीया अपने पति की पोलिसी संख्या 500557458 का क्लेम दुर्घटना लाभ सहित तथा बोनस सहित प्राप्त करने की अधिकारीण है साथ ही देरी से भुगतान करेन के कारण ब्याज राशि भी प्राप्त करने की अधिकारीणी है। पेालिसी संख्या 500557458 पूर्व पोलिसी संख्या 500556536 में अंकित आयु के आधार पर ही स्वीकृत की गई है पूर्व पोलिसी का क्लेम मिल चूका है इसलिये दूसरी पोलिसी का क्लेम नहीं दिया जाना न्यायसंगत नहीं है। इसलिए प्रार्थीया के स्व. पति की बीमा पोलिसी संख्या 500557458 का बीमाधन 100000 रूपये दुर्घटना लाभ सहित, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय की मांग की है।

3.    अप्रार्थी ने प्रार्थीया के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश किया कि पाॅलिसी संख्या 500557458 के अन्तर्गत दावा जो दिनांक 30.08.2002 का था उसके क्लेम को इस आधार पर निरस्त कर दिया गया क्योंकि एक माह मं ही दो पाॅलिसियां अलग-अलग समय पर प्रस्तावित की लेकिन पाॅलिसी संख्या 500557458 के अन्तर्गत बीमित ने पूर्व की पाॅलिसी संख्या 500556636 का विवरण नहीं दिया। यदि पाॅलिसी संख्या 500557458 में बीमित पूर्व की पाॅलिसी संख्या 500556536 का विवरण देता तो बीमित पूर्व की पाॅलिसी संख्या 500556536 का विवरण देता तो बीमित की जोखिम का मूल्यांकन दोनों पाॅलिसियों के अनुसार किया जाता एवं ऐसी स्थिति में विशेष रिपोर्ट (मेडिकल) ईसीजी किए जाते एवं उसके अनुसार बीमित की पाॅलिसी को स्वीकार/अस्वीकार किया जाता। इस कारण उपरोक्त परिवाद कानूनन चलने योग्य नहीं है। बीमित विजय सिंह ने पाॅलिसी संख्या 500556536 के प्रस्ताव/पाॅलिसी की जानकारी पाॅलिसी संख्या 500557458 के प्रस्ताव पत्र के काॅलम संख्या 9 में नहीं दी। इस प्रकार बीमित द्वारा जानबूझकर प्रथम पाॅलिसी के नम्बर न देकर कानूनन असत्य कथन किए गए हैं इस कारण कानूनन परिवाद चलने योग्य नहीं है। दिनांक 30.08.2002 को एक पत्र आया जिसमें मृत्यु दावे को अप्रार्थीगण ने निरस्त कर दिया। 2002 को प्रार्थना-पत्र जो अदालत में पेश किया उस समय 9 साल गुजर चुके थे। उस सूरत में कानूनन उक्त परिवाद अन्दर अवधि कतई नहीं है। इसलिए अन्दर मियाद न होने से प्रार्थना-पत्र निरस्त योग्य है।

4.    प्रार्थीया ने अपने परिवाद मेें स्वयं का शपथ-पत्र, पत्र दिनांक 30.08.2002, 08.02.2003, आदेशिका दिनांक 02.09.2011, बीमा प्रस्ताव पत्र दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी की ओर से जवाब जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, फोटो प्रति प्रस्ताव, फोटो प्रति प्रार्थना-पत्र, मेडिकल सम्बंधित विवरण दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है।

5.    पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।

6.    प्रार्थीया अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थीया के स्व. पति विजय सिंह बीमाधारी ने अप्रार्थी से दो पोलिसी क्रम संख्या 500557458 व 500556536 क्रय की थी। उक्त दोनों पोलिसीयों में प्रार्थीया नोमिनी थी। प्रार्थीया के पति की दिनांक 11.03.2002 को दुर्घटना हो गयी। जिस पर प्रार्थीया ने अप्रार्थी के यहां मृत्यु दावा प्रस्तुत किया। अप्रार्थीगण ने प्रार्थीया को पोलिसी संख्या 500556536 का भुगतान दुर्घटना हित लाभ सहित प्रार्थीया को कर दिया। परन्तु अप्रार्थी ने पोलिसी संख्या 500557458 का भुगतान इस आधार पर निरस्त कर दिया कि प्रार्थीया के पति ने प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करते समय अपनी पूर्व पेालिसी संख्या का विवरण पेश नहीं किया। प्रार्थीया अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वास्तव में पेालिसी धारक ने अपनी पूर्व पोलिसी के तथ्य को नहीं छिपाया उसके द्वारा अधिकृत एजेण्ट को अपनी पूर्व पोलिसी के बारे में बता दिया था यदि एजेण्ट द्वारा प्रश्नगत पोलिसी के प्रस्ताव में पूर्व पोलिसी का विवरण नहीं उल्लेख किया तो उसके लिए बीमाधारक की कोई गलती नहीं है। अप्रार्थी ने केवल क्लेम के भुगतान की अदायगी से बचने हेतु उक्त मिथ्या आधार पर प्रार्थीया का क्लेम अस्वीकार कर दिया। अप्रार्थी का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से सेवादोष है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थीया अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए प्रथम तर्क यह दिया कि प्रार्थीया के स्व. पति ने प्रश्नगत पोलिसी संख्या 500557458 क्रय करते समय अपनी पूर्व पोलिसी संख्या 500556536 के विवरण को छिपाया अर्थात् स्व. बीमाधारी ने अपनी पूर्व पोलिसी के सम्बंध में अप्रार्थी बीमा कम्पनी को नहीं बताया। यदि बीमाधारी द्वारा प्रश्नगत पोलिसी क्रय करते समय पूर्व पोलिसी के बारे में बताया जाता तो बीमित की जोखिम का मूल्यांकन दोनों पोलिसीयों के अनुसार किया जाता और मेडिकल रिपोर्ट भी की जाती। परन्तु प्रार्थीया के स्व. पति ने उक्त तथ्य को छिपाया जो स्पष्ट रूप से बीमाधारी व अप्रार्थी बीमा कम्पनी के मध्य हुये अनुबन्ध का उल्लंघन है। प्रार्थीया के क्लेम का अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा तात्विक तथ्यों को छुपाने के आधार पर बिल्कुल सही रूप से खारिज किया है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह तर्क भी दिया कि प्रार्थीया का परिवाद स्पष्ट रूप से मियाद बाहर है। प्रार्थीया को वर्तमान प्रकरण में वर्ष 2002 में ही वाद कारण प्राप्त हो चूका था। जबकि प्रार्थीया ने यह परिवाद 9 वर्ष के बाद इस मंच में प्रस्तुत किया है जिस हेतु कोई पर्याप्त कारण भी प्रार्थीया द्वारा नहीं बताया गया। उक्त आधारों पर अप्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।

7.    हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थीया द्वारा अप्रार्थी से दो पोलिसी क्रम संख्या 500557458 व 500556536 क्रय किया जाना, जिसमें से पोलिसी संख्या 500556536 क्लेम प्रार्थीया को प्राप्त होना। प्रार्थीया के पति की दिनांक 11.03.2002 को दुर्घटना में मृत्यु होना व विवादित पोलिसी संख्या 500557458 का क्लेम दिनांक 30.08.2002 के पत्र द्वारा अस्वीकृत किया जाना स्वीकृत तथ्य है। वर्तमान प्रकरण में विवादक बिन्दु यह है कि क्या प्रार्थीया का परिवाद का परिवाद मियाद बाहर है तथा बीमाधारी ने प्रश्नगत पोलिसी करवाते समय प्रस्ताव पत्र में गलत विवरण देकर तात्विक तथ्य को छुपाया है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में प्रथम तर्क यह दिया कि चूंकि प्रार्थीया ने वर्तमान परिवाद से पूर्व जिला स्थायी लोक अदालत, चूरू में एक प्रार्थना-पत्र प्रश्नगत पोलिसी के सम्बंध में लिया था जो प्रकरण संख्या 201/2003 पर दर्ज होकर दिनांक 02.09.2011 को प्रार्थीया के प्रार्थना-पत्र पर विड्रा किया गया। इस प्रकार प्रार्थीया ने यह परिवाद करीब 9 वर्ष बाद इस मंच में प्रस्तुत किया है जो कि स्पष्ट रूप से मियाद बाहर है। यह भी तर्क दिया कि प्रार्थीया ने धारा 24 ए0 उपभोक्ता अधिनियम के तहत जो देरी हेतु प्रार्थना-पत्र दिया है उसमें देरी के लिये कोई पर्याप्त कारण भी नहीं लिया इसलिए प्रार्थीया का परिवाद मियाद के आधार पर खारिज योग्य है। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थीया द्वारा धारा 24 ए0 उपभोक्ता अधिनियम के तहत मियाद हेतु प्रार्थना-पत्र भी दिया है। बहस के दौरान अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त प्रार्थना-पत्र का जवाब दिया था। प्रार्थना-पत्र व उक्त विवादक बिन्दु का निस्तारण इस पैरा में एक साथ ही किया जा रहा है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने बहस के दौरान इस मंच का ध्यान 2001 एन.सी.जे. पेज 396 एन.सी., 2002 एन.सी.जे. पेज 129 व 320 एन.सी., 2003 एन.सी.जे. पेज 540 एन.सी., 2007 एन.सी.जे. पेज 591 एन.सी., 2010 एन.सी.जे. पेज 151 एन.सी. न्यायिक दृष्टान्तों की ओर ध्यान दिलाया जिनका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त सभी न्यायिक दृष्टान्तों में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिनिर्धारित किया कि प्रार्थी इस बात से ड्यूटी बाउंड है कि वह मंच में निर्धारित समय में परिवाद प्रस्तुत नहीं करने हेतु पर्याप्त कारण वर्णित करे। माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त सुनील कुमार बनाम न्यू मण्डी टाउनशीप सी.पी.जे. 4 पेज 241 में यह अभिनिर्धारित किया कि यदि प्रार्थी द्वारा प्रत्येक दिन की देरी हेतु पर्याप्त कारण नहीं दिया है तो देरी क्षमा योग्य नहीं है। उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी में अप्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्रार्थीया का परिवाद केवल मियाद के बिन्दु पर ही खारिज किया जावे।

8.    प्रार्थीया अधिवक्ता ने अप्रार्थी अधिवक्ता के उक्त तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि वास्तव में वर्तमान प्रकरण में मियाद का बिन्दु विवादक ही नहीं है क्योंकि अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रार्थीया के प्रकरण दिनांक 08.02.2013 को खारिज किया था और प्रार्थीया ने वर्ष 2003 में ही अप्रार्थी बीमा कम्पनी के विरूद्ध जिला स्थायी लोक अदालत में क्लेम हेतु अपना प्रार्थना-पत्र पेश कर दिया था और उक्त प्रकरण जिला स्थाई लोक अदालत में प्रार्थीया ने दिनांक 02.09.2011 को जिला स्थाई लोक अदालत की अनुमति से प्रार्थना-पत्र विड्रा किया और वर्ष 2011 में ही यह परिवाद पुनः प्रार्थीया ने इस मंच में मियाद के प्रार्थना-पत्र के सहित प्रस्तुत कर दिया था। बहस के दौरान प्रार्थीया अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान जिला स्थाई लोक अदालत, चूरू की आदेशिका दिनांक 02.09.2011 की प्रमाणित प्रतिलिपि की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त आदेशिका में जिला स्थाई लोक अदालत, चूरू के द्वारा प्रार्थीया को परिवाद पुनः इस मंच में प्रस्तुत करने के अधिकारों के साथ विड्रा करने की अनूमति दी गयी है। प्रार्थीया के प्रार्थना-पत्र में अप्रार्थी बीमा कम्पनी के द्वारा विरोध किया गया था। परन्तु जिला स्थाई लोक अदालत, चूरू द्वारा अप्रार्थी बीमा कम्पनी के विरोध को खारिज करते हुए प्रार्थीया को इस मंच में परिवाद प्रस्तुत करने की अनुमति दी। मंच की राय में माननीय जिला स्थाई लोक अदालत, चूरू के निर्णय अनुसार प्रार्थीया का प्रकरण विधि अनुसार अन्दर मियाद है। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि प्रार्थीया का परिवाद कालबाधित है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्त मियाद के बिन्दु के सम्बंध में तथ्यों से भिन्न होने के कारण चस्पा नहीं होते। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी अपने द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्तों से कोई लाभ प्राप्त करने की अधिकारी नहीं हैै।

9.    अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में द्वितीय तर्क यह दिया कि बीमाधारी ने प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करते समय प्रस्ताव पत्र के कोलम संख्या 9 में अपनी पूर्व पोलिसी की जानकारी नहीं दी। अर्थात् पूर्ण विवरण न देकर तात्विक तथ्यों को छुपाया है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस के दौरान इस मंच का ध्यान बीमाधारी के द्वारा प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करते समय भरे गये सवजीवन बीमा प्रस्ताव पत्र की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता ने उक्त प्रस्ताव पत्र की चरण संख्या 9 की ओर ध्यान दिलाते हुए तर्क दिया कि बीमाधारी ने चरण संख्या 9 में अपनी पिछली अन्य पोलिसीयों के सम्बंध में बीमा एजेन्ट को कोई भी जानकारी नहीं दी। यह सही है कि चरण संख्या 9 में किसी भी पोलिसी के सम्बंध में कोई विवरण अंकित नहीं है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त चरण संख्या 9 के तहत तर्क दिया कि यदि बीमाधारी द्वारा पूर्व पोलिसी के बारे में बीमा एजेन्ट को बताया जाता तो बीमित की जोखिम का मूल्यांकन दोनों पोलिसीयों के अनुसार किया जाता और विशेष मेडिकल रिपोर्ट भी तैयार की जाती। बीमित द्वारा जानबूझ कर प्रथम पोलिसी का विवरण न देकर तात्विक तथ्य छुपाये है। इसलिए प्रार्थीया प्रश्नगत पोलिसी के पेटे कोई क्लेम प्राप्त करने की अधिकारणी नहीं है।  अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस के दौरान इस मंच का ध्यान 2012 एन.सी.जे. पेज 821 व 904 एन.सी. की ओर ध्यान दिलाया जिनका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। पेज संख्या 821 न्यू इण्डिया इंश्योरेन्स कम्पनी लि. बनाम के. एम. बाबू रेडी की चरण संख्या 5 में माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने यह निर्धारित किया कि । बवदजतंबज व िपदेनतंदबम पे इंेमक वद नजउवेज ंिपजी व िजीम चंतजपमे ंदक प िजीमतम पे संबा व िइवदंपिकमे वद चंतज व िपदेनतमक ंज जीम जपउम व िउंापदह चतवचवेंसए जीम पदेनतमत पद मगमतबपेम व िपजे तपहीज उंल कमदल जीम पदेनतंदबम बसंपउण् इसी प्रकार पेज संख्या 904 में नेशनल कन्ट्रोलिंग इक्यूपमेन्ट इन्ड. बनाम नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्धारित किया कि ॅीमतम चंतजल ीपउेमस िंिपसमक जव चतवकनबम तमसमअमदज कमजंपस इमवितम वितनउ जीमद तमरमबजपवद जव बवउचसंपदज पे रनेज ंदक चतवचमत ण् इसी प्रकार अप्रार्थी अधिवक्ता ने 2010 एन.सी.जे. पेज 304 एन.सी. लाईफ इन्श्योरेन्स काॅ. आॅफ इण्डिया बनाम श्रीमति भग्या में माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने यह निर्धारित किया कि ैपदबम तमेचवदकमदजध्बवउचसंपदंदज जींज पदकममक ेनचचतमेेमक उंजमतपंस पदवितउंजपवद ूपजी तमहंतक जव जीम बपतनउेजंदबम जीमद जीमतम पे दवत वचजपवद इनज जव ीवसक जींज जीमतम ींे इममद ेनचतमेेपवद व िउंजमतपंस ंिबजण् 2011 एन.सी.जे. पेज 871 एन.सी. में माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने यह निर्धारित किया कि प् िजीम सपमि पदेनतमक कवमे दवज कपेबसवेम जीम बवततमबज ंिबजे पद जीम चतवचवेंस वितउए कपेमदजपजसम जव तंपेम जीम चवसपबल ंउवनदजण्  इसी प्रकार 2013 एन.सी.जे. पेज 618 एन.सी. एल.आई.सी. इण्डिया एण्ड अदर्स बनाम श्री राधेश्याम केडि़या में माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने यह निर्धारित किया कि ॅीमद स्प्ब् ींे इममद बंतमनिस पद उंापदह ंद मगचतमेे चतवअपेपवद पद तनसमेध्तमहनसंजपवद ूीपबी ंतम ेजंजनजवतल पद दंजनतम पदकपबंजपदह जींज जीम ंहमदजे ंतम दवज ंनजीवतपेमक जव बवससमबज ंदल उवदमल वत ंबबमचज ंदल तपेा वद इमींस िव िस्प्ब् ेव स्प्ब् बंददवज इम ीमसक सपंइसम वित जीम ंबज व िीपे ंहमदजण्  अप्रार्थी अधिवक्ता ने उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी में तर्क दिया कि बीमाधारी ने प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करते समय अपनी पूर्व पोलिसी के विवरण के तथ्य को छिपाया। इसलिए उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी के तहत प्रार्थीया का परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।

10. प्रार्थीया अधिवक्ता ने उक्त तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि वास्तव में स्व. बीमाधारी ने प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करते समय अपनी पूर्व पोलिसी का विवरण अप्रार्थी बीमा कम्पनी के अधिकृत एजेन्ट का बताया था जिसके द्वारा बीमाधारी की पूर्व पोलिसी का नम्बर काॅलम संख्या 9 की बजाय काॅलम संख्या 1 में लिख दिया। बहस के दौरान प्रार्थीया अधिवक्ता ने बीमा प्रस्ताव पत्र की ओर ध्यान दिलाया जिसका पूनः अवलोकन किया गया। यह सही है कि बीमा प्रस्ताव पत्र में काॅलम संख्या 1 में अधिकृत आयु प्रमाण-पत्र का विवरण के साथ बीमाधारी की पूर्व पोलिसी का नम्बर 500556536 अंकित किया हुआ है। यह स्वीकृत तथ्य है कि प्रश्नगत प्रस्ताव पत्र अप्रार्थी बीमा कम्पनी के अधिकृत एजेन्ट के द्वारा भरा गया है। यदि एजेन्ट के द्वारा बीमाधारी की पूर्व पोलिसी का विवरण गलत काॅलम में भर दिया तो उसमें लिये बीमाधारी को उतरदायी ठहराया जाना उचित नहीं है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने अपने जवाब के समर्थन में किसी भी अधिकारी का कोई शपथ-पत्र या कोई ऐसी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की जिससे यह साबित हो कि बीमाधारी ने अपनी प्रश्नगत पोलिसी क्रय करते समय पूर्व पोलिसी के विवरण को छुपाया गया हो। वैसे भी वर्तमान में अप्रार्थी बीमा कम्पनी के पास सभी पोलिसीयां आॅनलाईन फिड है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी के द्वारा प्रार्थीया की प्रश्नगत पोलिसी के प्रस्ताव को स्वीकार करते समय प्रस्ताव-पत्र में अंकित विवरण का अच्छी तरह से जांच की है। उसके पश्चात ही बीमाधारी को प्रश्नगत पोलिसी जारी की है और बीमाधारी की मृत्यु भी प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करने के दो वर्ष बाद हुई है जो स्वीकृत तथ्य है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी अपने तथ्य को सिद्ध करने हेतु अपने अधिकृत एजेन्ट को साक्ष्य में प्रस्तुत कर साबित कर सकती थी परन्तु अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा अपने अधिकृत एजेन्ट को ना तो इस मंच में पेश किया और ना ही उसे प्रश्नगत पोलिसी के सम्बंध में कोई स्पष्टीकरण या जांच हेतु बुलाया हो ऐसा कोई दस्तावेज भी पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया। वैसे भी एजेन्ट की गलती हेतु प्रार्थीया को दोषी नहीं ठहराया जा सकता ऐसा ही मत माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त 3 सी.पी.जे. 2014 पेज 582 सहारा इण्डिया लाईफ इन्श्योरेन्स क. लि. एण्ड अदर्स बनाम रायनी रामायनजनायूलू में दिया है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने पैरा संख्या 3 में यह मत दिया कि प्देनतमक वत ीमत समहंस तमचतमेमदजंजपअमे ेीवनसक दवज ेनििमत वित वउपेेपवदे ंदक बवउउपेेपवदे इल ंहमदजण् उक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण के तथ्यों से पूर्णत चस्पा होते है क्योंकि वर्तमान प्रकरण में तो बीमाधारी ने अपनी पूर्व पोलिसी का विवरण एजेन्ट को बता दिया था और एजेन्ट द्वारा प्रस्ताव पत्र की चरण संख्या 9 की बजाय 1 में पोलिसी पोलिसी का विवरण अंकित भी किया है। माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने उक्त न्यायिक दृष्टान्त में यह भी मत दिया कि पूर्व पोलिसी का विवरण नहीं देना मेटेरियल फेक्ट नहीं है। इसलिए मंच की राय में अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी के दृष्टिगत प्रार्थीया का परिवाद खारिज करना स्पष्ट रूप से सेवादोष है। प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थी बीमा कम्पनी के विरूद्ध स्वीकार किये जाने योग्य है।

             अतः प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर उसे निम्न अनुतोष दिया जा रहा है।
(क.) अप्रार्थी को आदेष दिया जाता है कि वह प्रार्थीया को उसके पति द्वारा क्रय की गयी बीमा पाॅलिसी संख्या 500557458 का बीमा धन 1,00,000 रू. (अखरे रूपये एक लाख) दुर्घटना लाभ व अन्य समस्त प्रलाभों सहित तथा उस पर 9 प्रतिषत वार्षिक दर से साधारण ब्याज आषा गर्ग बनाम यूनाईटेड इंडिया इंष्योरेन्स कम्पनी 2005 सी0 पी0 जे0 पेज 269 एन. सी. की रोषनी में प्रार्थीया के पति की मृत्यु दिनांक 11.03.2002 के 3 माह पष्चात दिनांक 10.06.2002 से ताअदागी तक अदा करेगा।
(ख.) अप्रार्थी को आदेष दिया जाता है कि वह प्रार्थीया को 10,000 रू. मानसिक प्रतिकर व 5,000 रू. परिवाद व्यय के रूप में भी अदा करेंगे।
                अप्रार्थी को आदेष दिया जाता है कि वह उक्त आदेष की पालना आदेष कि दिनांक से 2 माह के अन्दर-अन्दर करेंगे।
 
 
सुभाष चन्द्र                                   षिव शंकर
सदस्य                                      अध्यक्ष
 
निर्णय आज दिनांक  23.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
 
 
सुभाष चन्द्र                                   षिव शंकर
सदस्य                                      अध्यक्ष

 

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
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