SMT PARVATI MISHRA filed a consumer case on 24 Oct 2016 against LIC in the Fatehpur Consumer Court. The case no is CC/58/2007 and the judgment uploaded on 26 Oct 2016.
समक्षः जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, फतेहपुर।
अध्यासीनः श्री धर्म विजय सिंह.................................................अध्यक्ष
श्री षैलेन्द्र नाथ.......................................................सदस्य
उद्घोशितः श्री धर्म विजय सिंह..................................................अध्यक्ष
उपभोक्ता परिवाद संख्या-58/2007
श्रीमती पार्वती मिश्रा पत्नी स्व0 अरूण कुमार मिश्रा, निवासी 181 मोहल्ला जहानपुर, कस्बा व पोस्ट-बिन्दकी, जिला-फतेहपुर।
...............परिवादिनी।
बनाम
1. भारतीय जीवन बीमा निगम षाखा कार्यालय लाल मार्केट दयानन्द चैराहा (ललौली चैराहा) कस्बा व पो0 बिन्दकी, जिला फतेहपुर द्वारा षाखा प्रबन्धक।
2. भारतीय जीवन बीमा निगम मण्डलीय कार्यालय जीवन विकास 16/98 महात्मा गांधी मार्ग कानपुर नगर द्वारा वरिश्ठ मण्डल प्रबन्धक।
...........विपक्षीगण।
परिवाद दर्ज रजिस्टर होने का दिनांकः-03.05.2007
बहस सुनने का दिनांकः-24.10.2016
निर्णय का दिनांकः-26.10.2016
ःःःनिर्णयःःः
परिवादिनी ने वर्तमान परिवाद इस आषय से प्रस्तुत किया है कि उसे विपक्षी सं0-2 से बीमा धनराषि मु0 2,00,000/- रू0 तथा उस पर बोनस तथा ब्याज दिलाया जाय तथा मानसिक, षारीरिक पीड़ा व भाग दौड़ की क्षतिपूर्ति मु0 25,000/- रू0 व वाद व्यय मु0 3,000/- रू0 भी दिलाया जाय।
परिवाद का संक्षेप में कथन यह है कि परिवादिनी के पति अरूण कुमार मिश्र, यूनाइटेड इण्डिया इन्ष्योरेन्स कं0लि0 फतेहपुर में विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत थे तथा अचानक दिनांक 21.6.2004 को उनकी मृत्यु हो गयी। उसके पति एक बीमा पालिसी नं0-232429978 प्लान नं0-014-16 जो दिनांक 28.9.2001 से प्रारम्भ होकर के दिनांक 28.9.2017 में मैच्योर होनी थी जिसकी बीमा धनराषि मु0 2,00,000/- रू0 विपक्षी सं0-2 के कार्यालय से थी, के धारक थे। उसके पति का उक्त बीमा उसके पति स्व0 अरूण कुमार मिश्र के छोटे भाई दिनेष कुमार मिश्र अभिकर्ता द्वारा उसके निज निवास कस्बा बिन्दकी में किया गया था तथा उक्त दिनेष कुमार मिश्र अभिकर्ता द्वारा बीमा किस्त
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उसके पति से उनके घर से ही ले जाते रहे हैं। उसके पति अनवरत यूनाइटेड इण्डिया इन्ष्योरेन्स कं0लि0 में दिनांक 18.6.2004 तक उपस्थित रहे तथा दिनांक 19.6.2004 को कवर नोट बीमा हेतु काटे थे। दिनांक 20.6.2004 को कुछ रिष्तेदारों से मिलने के लिये तथा बच्चों के कुछ खरीददारी के लिये कानपुर गये तथा रात्रि विश्राम किया। दिनांक 21.6.2004 को अचानक हृदय गति रूक जाने से उनकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु के पूर्व वह पूर्ण स्वस्थ थे। उसके पति मृत्यु के पूर्व बीमार नहीं रहे और न ही कभी बीमारी के बावत उससे या अन्य किसी को बताया था। उसके पति को कभी भी गम्भीर बीमारी नहंीं रही है और न ही किसी बीमारी का इलाज चला है। उसके पति ने अपनी पुत्री की षादी के सिलसिले में दिनांक 8.4.2004 से 23.4.2004 तक अर्जित अवकाष लिया था। चूॅंकि उक्त षादी कानपुर से हुयी थी इसलिये सभी इन्तजाम के लिये उसके पति को छुट्टी लेनी पड़ी थी। उसके पति की मृत्यु के बाद अभिकर्ता दिनेष कुमार मिश्र द्वारा बीमा प्राप्त करने हेतु उसके हस्ताक्षर आदि लेकर तथा क्लेम फार्म भरवा कर दाखिल करवाया तथा बीच-बीच मंे उससे खाली कागजातों में हस्ताक्षर करवा करके कार्यवाही करवाने की बात करता रहा तथा कई बार कानपुर ले जाकर के क्लेम के बावत औपचारिकताएं पूरी कराता रहा। वह अत्यधिक मानसिक रूप से आहत थी इसलिये विष्वास करके अपने देवर अभिकर्ता दिनेष कुमार मिश्र के कहने पर सभी जगह हस्ताक्षर बनाती रही। कई महीने बीत जाने के पश्चात् अभिकर्ता दिनेष कुमार मिश्र द्वारा उसको बताया गया कि अरूण कुमार मिश्र ने बीमा कम्पनी को झूॅठी सूचना दिया था इसलिये बीमा क्लेम नहीं देगी। उसके द्वारा दिनेष कुमार मिश्र से कहा गया कि तुमको मालूम है कि अरूण कुमार मिश्र को किसी प्रकार की बीमारी नहीं थी। तुमने इस बावत बीमा कम्पनी से क्यों नहीं कहा। अभिकर्ता दिनेष कुमार मिश्रा ने कहा कि बीमा कम्पनी के अधिकारी मुझ पर दबाव डाल रहे हैं कि अगर तुम अरूण कुमार मिश्र की बीमारी वाली बात नहीं लिखोगे तो तुम्हारी बीमा एजेन्सी छीन ली जायेगी इसलिये मुझे मजबूरी में यह झूंठी बात लिखनी पड़ रही है। उसने दिनेष कुमार मिश्र से भाई के प्रति गलत तथ्य देने के बावत कहा तो वह अपनी मजबूरी जताता रहा और उसकी किसी प्रकार की सहायता से मना कर दिया। उसके पति ने नर्सिंग होम या अस्पताल में भर्ती रहकर कभी इलाज नहीं कराया, न ही किसी गम्भीर बीमारी का उसके पति का इलाज होता रहा है और न ही किसी बीमारी की जानकारी थी। उसको विपक्षी
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सं0-2 के पास से एक पत्र प्राप्त हुआ जिस पर यह कहा गया कि उसके पति ने डी0जी0एच0 में गलत तथ्य अंकित कराया है इसलिये उनका क्लेम खारिज किया जाता है। उसके द्वारा इस बावत उनसे सूचना माॅगी गयी कि आप किस आधार पर कह रहे हैं कि उसके पति ने गलत सूचना दिया था किन्तु उसको बीमा कम्पनी द्वारा किसी प्रकार का साक्ष्य नहंीं दिया गया। उसको दिनांक 28.12.2006 को पुनः बीमा कम्पनी से पत्र प्राप्त हुआ जिस पर कहा गया कि उनका क्लेम खारिज किया जाता है। वह अगर सन्तुश्ट न हो तो लखनऊ में जोनल आफिस में प्रत्यावेदन देवें। उसके पति का बीमा क्रमषः पालिसी सं0-3110092717 रू0 25000/-, पालिसी सं0-230110126 रू0 15000/-, पालिसी सं0-311529796 रू0 25000/-, पालिसी सं0-310089752 रू0 50000/-, पालिसी सं0-231416668 रू0 15000/- व पालिसी सं0-231426436 रू0 25000/- के अन्तर्गत विपक्षी सं0-1 के यहाॅं से लिया था जिनका भुगतान विपक्षी सं0-1 द्वारा जरिये चेक सं0-283718 दिनांकित 22.12.04 रू0 84250/-, चेक सं0-283720 दिनांकित 22.12.04 रूपये 31932/-, चेक सं0-283719 दिनांकित 22.12.04 रू0 40450/-, चेक सं0-283717 दिनांकी 22.12.04 रूपये 31,290/-, चेक सं0-967283 दिनांकी 31.1.05 रूपये 51,027/- एवं चेक सं0-967285 दिनांकी 31.1.05 रूपये 27,550/- का किया जा चुका है। उसके पति द्वारा बिन्दकी में बीमा कराया गया था तथा बीमा किस्त भी बिन्दकी से दी जा रही थी। उसके द्वारा क्लेम फार्म आदि औपचारिकताएं भी बिन्दकी से ही की गयी हैं। उसका कोई सहारा नहीं है तथा उसकी दो पुत्रियों की उम्र लगभग 20 वर्श व 17 वर्श तथा एक पुत्र उम्र लगभग 14 वर्श हैं। उसकी कोई आमदनी न होने के बावजूद किसी प्रकार परिवार का जीवन यापन किया जा रहा है। उसको विपक्षी द्वारा सही सूचना नहीं दी जा रही है व जानबूझ कर परेषान किया जा रहा है। वह उपभोक्ता की श्रेणी में आती है। उसके बीमा क्लेम न दिये जाने पर विपक्षी सं0-2 द्वारा सेवा में त्रुटि व लापरवाही की गयी है। वह विपक्षी सं0-2 से बीमा धनराषि का मु0 2,00,000/- रू0 तथा अन्य लाभ व सुविधायें पाने की अधिकारिणी है।
परिवाद के समर्थन में परिवादिनी ने अपना षपथ पत्र-4 प्रस्तुत किया।
विपक्षीगण की ओर से प्रारम्भिक आपत्ति-8 प्रस्तुत की गयी।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन-10 प्रस्तुत किया गया। लिखित कथन में परिवाद की धारा-1 के सम्बन्ध में यह कहा गया है कि विनियमित व्यक्ति का
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यूनाइटेड इण्डिया इन्ष्योरेन्स कम्पनी, फतेहपुर क्षेत्र में होना स्वीकार है और यह स्वीकार है कि उनकी मृत्यु दिनांक 21.06.2004 को हो गयी किन्तु सही तथ्य यह है कि विनियमित व्यक्ति बहुत दिन से अस्वस्थ था। परिवाद की धारा-2 स्वीकार है और उक्त पालिसी विपक्षी सं0-2 से सम्बन्धित थी। परिवाद की धारा-3 स्वीकार नहीं है। प्रपोजल फार्म कानपुर नगर में दिनांक 14.10.2001 को पूर्ण किया गया। यहाॅंतक कि प्रपोजल फार्म के साथ संलग्न मेडिकल रिपोर्ट भी कानपुर नगर की है और डा0 षर्मा का प्रमाण पत्र दिनांक 14.10.2001 को कानपुर में जारी हुआ और इस पालिसी का रिवाइवल भी कानपुर में ही किया गया। परिवाद की धारा-3 के आरोप स्वीकार नहीं हैं। परिवाद की धारा-4 का कोई ज्ञान उत्तरदाता विपक्षीगण को नहीं है किन्तु यह कहना नितान्त मिथ्या है कि वह दिनांक 21.06.2004 के मृत्यु तक पूर्ण स्वस्थ थे। परिवाद की धारा-5 झूठा व गलत है और स्वीकार नहीं है। डा0 पवन मिश्रा की राय के अनुसार विनियमित व्यक्ति बहुत समय से हाईपरटेन्षन रोग से ग्रसित रहा है और विनियमित व्यक्ति ने कई चिकित्सकों से इस सम्बन्ध में राय लिया और उपचार कराया और अस्पताल में भी उपचार कराया है। विनियमित व्यक्ति के छोटे भाई दिनेष कुमार मिश्रा हैं किन्तु प्रपोजल फार्म स्वयं मृतक व्यक्ति विनियमित द्वारा अपने जीवनकाल में हस्ताक्षरित किया गया था और उसने स्वयं अपनी बीमारी के तथ्य छिपाये तथा प्रपोजल फार्म में अंकित नहंीं किये। आवेदक व उसके देवर के मध्य की बातचीत का ज्ञान उन सबको नहंीं है जिसके साबित करने की जिम्मेदारी आवेदक पर है। आवेदक पढ़ी लिखी है। उसने सुन समझ व पढ़कर अपने हस्ताक्षर अवष्य कराये होंगे, ऐसी न्यायिक अवधारणा है। भारतीय जीवन बीमा निगम के पास अखण्डनीय सबूत है कि विनियमित व्यक्ति बीमा होने के करीब 5 वर्श पूर्व से बीमारियों से ग्रसित था और उसने बीमा पालिसी धोखा देकर प्राप्त की। वह बहुत समय से हाईपरटेंषन का रोगी था जिस हेतु विनियमित व्यक्ति ने चिकित्सकों से सलाह ली, चिकित्सा भी कराई और यहाॅं तक कि अस्पताल में चिकित्सक से सलाह ली और इलाज कराया। विनियमित व्यक्ति ने जान बूझ कर झूठा व गलत तथ्य व वक्तव्य प्रपोजल फार्म में अंकित किया और एक चिकित्सा की सूचना एल0 आई0 सी0 से छिपाई । उसने अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में तथा कब से बीमार था यह भी छिपाया। यहाॅं तक कि पालिसी रिवाइवल के समय भी उसने गलत स्वास्थ्य के सम्बन्ध में उद्घोशणा की इसलिये पालिसी की षर्त व बीमा
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के अनुसार भारतीय जीवन बीमा निगम मण्डलीय कार्यालय कानपुर ने क्लेम को अस्वीकार किया और जोनल क्लेम स्टैण्डिंग कमेटी (जोनल क्लेम रिवाइन्ड कमेटी) ने भी उक्त निर्णय की पुश्टि की। जो प्रपोजल फार्म अरूण कुमार मिश्र ने पूर्ण किया व हस्ताक्षरित किया व दाखिल किया है उसके अनुसार उनके चार बच्चे हैं। परिवादी ने इस तथ्य को छिपाया है और परिवाद में विवरण गलत दिया है। क्लेम अस्वीकृत करने की सूचना परिवादी को दिनांक 31.3.07 को जरिये निबन्धित पत्र उसके बिन्दकी के पते पर भेजी गयी जो उसने प्रदर्षित किया था, डिवीजनल आफिस कानपुर द्वारा भेजी गयी। इसके पूर्व दिनांक 28.12.2006 को भी निबन्धित डाक से उसे सूचित किया गया। यह कहना नितान्त मिथ्या है कि विपक्षी ने किसी तरह से कोई देरी अपनी तरफ से कीे है और यह भी गलत है कि परिवादी जिला फतेहपुर जीवन बीमा निगम के अन्तर्गत है। विनियमित व्यक्ति कानपुर नगर के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में हो सकते हैं। विपक्षी सं0-2 द्वारा सेवा की त्रुटि में कोई लापरवाही नहीं की गयी है और न किसी तरह से परिवादिनी को विपक्षी सं0-2 ने परेषान किया व सेवा में त्रुटि की। विपक्षी सं0-2 तथाकथित बीमा धनराषि मु0 2,00,000/- रू0 तथा अन्य लाभ प्रदान करने का उत्तरदायी नहीं है और न परिवादिनी उन्हें प्राप्त करने की अधिकारिणी है। अपरोत्तर में यह वर्णित किया गया है कि विनियमित व्यक्ति ने यह पालिसी सी0बी0ओ0 तृतीय कानपुर नगर से प्राप्त की है और वहीं पंजीकृत हुई। विनियमित व्यक्ति कानपुर नगर में ही बीमा प्रपोजल को पूर्ण करके वहीं हस्ताक्षरित किया और दाखिल किया। प्रपोजल के साथ संलग्न चिकित्सक प्रमाण पत्र कानपुर नगर में ही सम्पादित हुई व हो रही है। यहाॅंतक कि जीवन बीमा निगम बिन्दकी षाखा भी जनपद फतेहपुर से ही सम्बन्धित है न कि कानपुर से है। परिवादिनी ने क्लेम फार्म कानपुर नगर में जमा किया। विनियमित व्यक्ति सी0बी0ओ0 तृतीय कानपुर नगर का ही उपभोक्ता था। जनपद फतेहपुर का किसी भी षाखा का उपभोक्ता नहीं था इसलिये परिवादिनी को वाद दाखिल करने का अधिकार नहीं है। बिन्दकी षाखा भारतीय जीवन बीमा निगम में किसी किस्म की कार्यवाही संचालित होने के घटनाक्रम के अभिकथन स्वयं परिवादिनी ने किया न प्रतिकर माॅगा न आरोप लगाये, उसे गलत पक्ष बनाया गया है। दावा परिवाद इस न्यायाधिकरण में चलने योग्य नहीं है। परिवाद में सभी प्रतिकर विपक्षी सं0-2 जो कानपुर नगर मंे स्थित है और वहीं के जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम के अधिकार क्षेत्र में
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स्थित है इसलिये इस न्यायाधिकरण को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है। उत्तरदाता विपक्षीगण ने कोई सेवा सम्बन्धी त्रुटि नहीं की है। कोई रकम ब्याज अदा करने का उत्तरदायी नहीं है। किसी भी देर की उसे सूचना भी दी गयी है। जोनल आफिस के निर्णय के विरूद्ध अपील अम्बुट्स मैन के यहाॅ परिवादी ने नहीं की। इस सम्बन्ध में उसे दिनांक 28.12.06 के उक्त दफ्तर का पता भी भेजा गया था। प्रस्तुत परिवाद उक्त अपील न होने के कारण खारिज होने योग्य है।
परिवादिनी ने मौखिक साक्ष्य में अपना साक्ष्य षपथ पत्र-28 प्रस्तुत किया।
परिवादिनी ने लिखित साक्ष्य में 5/1 नो क्लेम पत्र की फोटोकापी, 5/2 प्रीमियम की फोटोकापी, 5/3 नियोजक (मालिक) का प्रमाण पत्र की फोटोकापी, 5/4 मण्डल प्रबन्धक, मण्डल कार्यालय, कानपुर को लिखे गये पत्र की फोटोकापी, 5/5 सी0आर0एम0 मण्डल कार्यालय, कानपुर को लिखे गये पत्र की फोटोकापी, 5/6 भारतीय जीवन बीमा निगम के प्रबन्धक (दावा) द्वारा परिवादिनी को लिखे गये पंजीकृत पत्र की फोटोकापी, 5/7 नो क्लेम पत्र की फोटोकापी, 5/8 प्रीमियम की फोटोकापी, 5/9 इन्ष्योरेन्स की फोटोकापी व 5/10 मैनेजर (क्लेम) भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा परिवादिनी को लिखे गये पत्र की फोटोकापी प्रस्तुत किया।
विपक्षीगण की ओर से मौखिक साक्ष्य में श्री के0के0 त्रिपाठी मुख्य प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम, सिविल लाइन, फतेहपुर का षपथ पत्र-27 प्रस्तुत किया गया।
विपक्षीगण की ओर से लिखित साक्ष्य में 15/1 लिस्ट से 15/2 मैनेजर (क्लेम) भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा परिवादिनी को लिखे गये पंजीकृत पत्र की फोटोकापी, 15/3 सीनियर डिवीजनल मैनेजर, एल0आई0सी0 आफ इण्डिया को लिखे गये पत्र की फोटोकापी, 15/4 सी0आर0एम0, मण्डल कार्यालय, कानपुर को परिवादिनी द्वारा लिखे गये पत्र की फोटोकापी, 15/5 मैनेजर (क्लेम्स) भारतीय जीवन बीमा निगम को लिखे गये पत्र की फोटोकापी, 15/6 डा0 पवन मिश्रा को लिखे गये पत्र की फोटोकापी व 15/7 चिकित्सक का प्रमाण पत्र की फोटोकापी प्रस्तुत किया गया। 23/1 लिस्ट से 23/2 स्वजीवन बीमा प्रस्ताव पत्र की फोटोकापी व 23/4 स्वास्थ्य के सम्बन्ध में व्यक्तिगत प्रकथन की फोटोकापी प्रस्तुत किया गया तथा 35/1 लिस्ट से 35/2 मूल पालिसी की फोटोकापी प्रस्तुत किया गया।
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परिवादिनी ने लिखित बहस में कागज सं0-11 प्रस्तुत किया।
विपक्षीगण की ओर से लिखित बहस मंे कागज सं0-16 प्रस्तुत किया गया।
उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया गया।
विपक्षीगण की ओर से इस बात को रखा गया कि परिवाद में सभी प्रतिकर विपक्षी सं0-2 जो कानपुर नगर में स्थित है और वहीं के जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम के अधिकार क्षेत्र में स्थित है इसलिये इस न्यायाधिकरण को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादिनी द्वारा जो अनुतोश की माॅग की गयी है वह विपक्षी सं0-2 से की गयी है जबकि परिवाद की धारा-17 में इस बात का वर्णन किया गया है कि वह विपक्षीगण से बीमा धनराषि मु0 2,00,000/- रू0 व उस पर बोनस तथा ब्याज, मानसिक, षारीरिक पीड़ा व भागदौड़ की क्षतिपूर्ति में मु0 25,000/- रू0 व वाद व्यय में मु0 3,000/- रू0 पाने की अधिकारिणी है। इस प्रकार अपने अधिकार की माॅग परिवादिनी विपक्षीगण से कर रही है जब कि अनुतोश की माॅग वह विपक्षी सं0-2 से कर रही है। यहाॅं इस बात का वर्णन करना उचित है कि विपक्षी सं0-2 के यहाॅं से बीमा कराया गया है जबकि उसकी षाखा विपक्षी सं0-1 है जो जनपद फतेहपुर में स्थित है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-11 में जिला पीठ की अधिकारिता का वर्णन किया गया है जो निम्न हैः-
‘‘11. जिला पीठ की अधिकारिताः-(1) इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, जिला पीठ को ऐसे परिवादों को ग्रहण करने की अधिकारिता होगी जहाॅं माल या सेवा का मूल्य और दावा प्रतिकर, यदि कोई है, बीस लाख रूपये से अधिक नहीं है।
(2) परिवाद ऐसे जिला पीठ में संस्थित किया जाएगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर-
(क) विरोधी पक्षकार, या जहाॅं एक से अधिक विरोधी पक्षकार हैं वहाॅं विरोधी पक्षकारों में से हर एक परिवाद के संस्थित किए जाने के समय वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करता है या कारबार करता है या उसका षाखा कार्यालय है, या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है, अथवा
(ख) जहाॅं एक से अधिक विरोधी पक्षकार हैं वहाॅं विरोधी पक्षकरों में से कोई
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भी विरोधी पक्षकार परिवाद के संस्थित किए जाने के समय वास्तव मंे और स्वेच्छा से निवास करता है या कारबार करता है या उसका षाखा कार्यालय है या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है, परंतु यह तब जबकि ऐसी अवस्था में या तो जिला पीठ की इजाजत दे दी गई है या जो विरोधी पक्षकार पूर्वोक्त रूप में निवास नहीं करते या कारबार नहीं करते या उसका षाखा कार्यालय नहीं है या अभिलाभ के लिए स्वयं काम नहीं करते, वे ऐसे संस्थित किए जाने के लिए उपमत हो गए हैं, अथवा
(ग) वाद हेतुक पूर्णतः या भागतः पैदा होता है।‘‘
विपक्षी सं0-2 का षाखा कार्यालय विपक्षी सं0-1 है जो जनपद फतेहपुर में स्थित है। इस सम्बन्ध में विपक्षीगण की ओर से अन्य कोई बात प्रस्तुत नहीं की गयी, अतः यह स्पश्ट होता है कि जो परिवादिनी द्वारा वर्तमान परिवाद प्रस्तुत किया गया है उसके सुनने का क्षेत्राधिकार वर्तमान फोरम को है। जहाॅतक विपक्षी सं0-2 से याचना करने का प्रष्न है वह विपक्षीगण के एकल स्वरूप होने के कारण विपक्षीगण के सम्बन्ध में माना जायेगा और जो भी आदेष होगा वह विपक्षीगण के सम्बन्ध में होगा। सिर्फ विपक्षी सं0-2 के सम्बन्ध में अलग से कोई आदेष नहीं हो सकता है।
कागज सं0-5/1 नो क्लेम पत्र की फोटोकापी के अवलोकन से यह स्पश्ट होता है कि दिनांक 14.10.2001 को बीमाधारक द्वारा स्वास्थ्य के सम्बन्ध में गलत सूचना दी गयी और दिनांक 10.1.2004 को भी बीमाधारक द्वारा स्वास्थ्य के सम्बन्ध में गलत व्यक्तिगत प्रकथन प्रस्तुत किया गया। दिनांक 14.10.2001 को जो स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सूचना दी गयी उसमें निम्नलिखित सूचना का वर्णन नो क्लेम में है, जो निम्न हैः-
फनमेजपवद व िच्तवचवेंस वित ।ेेनतंदबम ।देूमते
11(क) क्या आपने पिछले पांच वर्शों के भीतर किसी ऐसी छव
बीमारी के लिये, जिसमे एक सप्ताह से अधिक समय
तक उपचार की आवष्यकता रही हो किसी चिकित्सक
से परामर्ष किया है?
11(ड) क्या आप मधुमेह, क्षय, उच्च या निम्न रक्तचाप, छव
नासूर, मिर्गी, आंत उतरना, पोतों का बढ़ना अथवा
किसी अन्य रोग से पीड़ित रहे हैं या इस समय पीड़ित हैं।
11(झ) सामान्यतः आपके स्वास्थ्य की स्थिति कैसी है? ल्मे
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दिनांक 10.1.2004 को स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जो व्यक्तिगत प्रकथन
प्रस्तुत किया गया जिसका उल्लेख नो क्लेम में है वह निम्न हैः-
‘‘फनमेजपवद वद क्ळभ् वित त्मअपअंस ।देूमते
2. उपर्युक्त पालिसी से सम्बन्धित अपने प्रस्ताव पत्र छव
की तिथि से क्या आप कभी निम्न में से किसी रोग
से पीड़ित रहे है। या इस समय पीड़ित हैं?
(1) दमा, यक्षमा या फेफड़ों से सम्बन्धी कोई अन्य रोग? छव
(2) उच्च रक्तचाप या हृदय सम्बन्धी कोई अन्य रोग? छव
(5) मधुमेह, आत उतरना, पोते बढ़ना नासूर या कुश्ठ रोग? छव
4. क्या आप इस समय पूर्ण स्वस्थ हैं? ल्मे‘‘
दिनांक 14.10.2001 व दिनांक 10.1.2004 से सम्बन्धित जो बीमा धारक द्वारा सूचना दी गयी है वह कागज सं0-23/2 स्वजीवन बीमा प्रस्ताव पत्र व कागज सं0-23/4 स्वास्थ्य के सम्बन्ध में व्यक्तिगत प्रकथन है। उपरोक्त दी गयी सूचना के सम्बन्ध में विपक्षीगण की ओर से यह बात रखी गयी कि उक्त सूचनाएं गलत हैं और बीमा प्रस्ताव करने के 5 वर्श पूर्व से ही बीमाधारक हाइपरटेन्षन से पीड़ित था और उसने स्वास्थ्य से सम्बन्धित व्यक्ति से सलाह लिया ओर अस्पताल में उपचार कराया और उक्त सूचना को बीमाधारक द्वारा बीमा प्रस्ताव के समय और बाद में स्वास्थ्य के सम्बन्ध में व्यक्तिगत प्रकथन में छिपाया। इस प्रकार स्वास्थ्य के तथ्य सम्बन्धी सूचना को बीमाधारक द्वारा छिपाया गया और इसी कारण बीमा को नो क्लेम किया गया। इस सम्बन्ध में यहाॅं इस बात का वर्णन करना उचित है कि विपक्षीगण को आदेषित किया गया कि डाक्टर का मूल प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें। इस सम्बन्ध में विपक्षीगण की ओर से मौखिक बताया गया कि जो फोटोस्टेट कागज पत्रावली पर है उसके अलावा और कोई अभिलेख उसके अभिरक्षा में नहीं हैं। इस प्रकार कागज सं0-15/7 चिकित्सक का प्रमाण पत्र जो मृतक की अन्तिम बीमारी के समय उपचार करने वाला चिकित्सक द्वारा भरा गया है, के अलावा कोई अभिलेख पत्रावली पर नहीं है जिसमे लगभग 5 साल पूर्व से मृतक के हाइपरटेन्षन की बीमारी की बात लिखी है। उक्त प्रलेख के अलावा अन्य कोई भी प्रलेख चिकित्सा के बावत नहीं है। जिस समय बीमा प्रस्ताव भरा गया उसके पूर्व का कोई भी उपचार से सम्बन्धित चिकित्सीय प्रमाण पत्र विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत नहंीं किया गया। दिनांक 14.10.2001 को स्वजीवन बीमा प्रस्ताव पत्र भरा गया। उसके पूर्व
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का कोई भी उपचार से सम्बन्धित चिकित्सीय प्रमाण पत्र बीमाधारक के सम्बन्ध में विपक्षीगण ने प्रस्तुत नहीं किया और जो दिनांक 10.1.2004 को स्वास्थ्य के सम्बन्ध में व्यक्तिगत प्रकथन किया गया उसके सम्बन्ध में भी उसके पूर्व का कोई भी चिकित्सीय उपचार से सम्बन्धित प्रमाण पत्र विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत नहंीं किया गया। सिर्फ मृत्यु के समय डाक्टर ने जो बातें वर्णित कीं उसी के आधार पर विपक्षीगण की ओर से यह बात रखी गयी, जबकि डा0 पवन मिश्रा द्वारा उक्त आषय का कोई षपथ पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। इस प्रकार कैसे उन्होंने 5 वर्श पूर्व से हाइपरटेन्षन की बीमारी से ग्रसित होने की बात वर्णित की, यही साबित नहीं होता है। जब तक कि पूर्व के उपचार से सम्बन्धित चिकित्सीय प्रमाण पत्र न हों तब तक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में कोई भी अवधारणा नहीं की जा सकती। जो चिकित्सक का प्रमाण पत्र कागज सं0-15/7 प्रस्तुत किया गया है उसके आधार पर मृतक के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में कोई अवधारणा नहंीं की जा सकती। इस प्रकार जो नो क्लेम स्वास्थ्य की गलत सूचना के बावत विपक्षीगण द्वारा किया गया है वही उचित नहीं है और इस प्रकार यह स्पश्ट है कि विपक्षीगण ने नो क्लेम करके सेवा में कमी की है और अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन नहंीं किया है।
चूॅंकि परिवादिनी नामिनी की हैसियत से परिवाद प्रस्तुत की है इस प्रकार वह उपभोक्ता की श्रेणी में है और वर्तमान परिवाद उपभोक्ता विवाद का है। विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गयी है, अतः परिवादिनी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार होने योग्य है और परिवादिनी विपक्षीगण से बीमित धनराषि मु0 2,00,000/- रू0 (दो लाख रूपये) व निहित बोनस पाने की अधिकारिणी है। साथ ही साथ परिवादिनी विपक्षीगण से बीमित धनराषि मु0 2,00,000/- रू0 (दो लाख रूपये) पर परिवाद दर्ज करने की तिथि 03.05.2007 से उसके अन्तिम वसूली तक 7 प्रतिषत वार्शिक ब्याज पाने की अधिकारिणी है। इसके साथ ही परिवादिनी विपक्षीगण से मानसिक, षारीरिक पीड़ा, भाग दौड़ व वाद व्यय की मद में मु0 8,000/- रू0 (आठ हजार रूपये) भी पाने की अधिकारिणी है।
आदेष
परिवादिनी का परिवाद स्वीकार किया जाता है। परिवादिनी विपक्षीगण से बीमित धनराषि मु0 2,00,000/- रू0 (दो लाख रूपये) व निहित बोनस पाने की अधिकारिणी है। साथ ही परिवादिनी बीमित धनराषि मु0
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2,00,000/- रू0 (दो लाख रूपये) पर परिवाद दर्ज करने कीे तिथि 03.05.2007 से उसके अन्तिम वसूली तक 7 प्रतिषत वार्शिक ब्याज पाने की अधिकारिणी है। इसके साथ ही साथ परिवादिनी विपक्षीगण से मानसिक, षारीरिक पीड़ा, भाग दौड़ व वाद व्यय की मद में मु0 8,000/- रू0 (आठ हजार रूपये) भी पाने की अधिकारिणी है।
विपक्षीगण को आदेषित किया जाता है कि वह परिवादिनी को उपरोक्त वर्णित धनराषि व निहित बोनस एक महीना के अन्दर अदा करें।
(षैलेन्द्र नाथ) (धर्म विजय सिंह)
सदस्य, अध्यक्ष,
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम,जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम,
फतेहपुर। फतेहपुर।
26.10.2016 26.10.2016
निर्णय एवं आदेष आज खुले मंच से हस्ताक्षरित व दिनांकित होकर उद्घोशित किया गया।
(षैलेन्द्र नाथ) (धर्म विजय सिंह)
सदस्य, अध्यक्ष,
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम,जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम,
फतेहपुर। फतेहपुर।
26.10.2016 26.10.2016
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