जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 212/2009/279/2010
श्रीमती चन्द्रकला तोलावत पत्नी स्व. श्री गौतमचंद तोलावत, निवासी-कांच के मंदिर के सामने, हीरावाडी, नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)। -प्रार्थी
बनाम
1. भारतीय जीवन बीमा निगम जरिये महाप्रबंधक, बीमा भवन, बीमा मार्ग, मुम्बई।
2. मंडलीय प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम, मंडल कार्यालय, जीवन प्रकाष, पोस्ट बाॅक्स नं. 66, जयपुर रोड, बीकानेर।
3. षाखा प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम, षाखा कार्यालय, कृशि उपज मंडी के सामने, नागौर।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री सुनील डागा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री विक्रम जोषी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 19.05.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादिया के पति गौतमचंद ने अपने जीवन काल में दिनांक 21.06.2007 को 5,00,000/- रूपये की एक जीवन बीमा पाॅलिसी संख्या 501982254 प्राप्त की थी। इस बीच दिनांक 13.07.2008 को परिवादिया के पति गौतमचंद की मृत्यु हो गई।। पाॅलिसी में परिवादिया नोमिनी होने के कारण उसने अप्रार्थीगण के यहां बीमा दावा पेष किया, जिसे अप्रार्थीगण ने दिनांक 20.05.2009 को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि उक्त पाॅलिसी के प्रस्ताव से पूर्व ही बीमित व्यक्ति चेस्ट पेन एसईएमआई बीमारी से पीडित था और उसने इलाज लिया था। जिस तथ्य को बीमित ने बीमा पाॅलिसी के प्रस्ताव में छिपाया है और तात्विक तथ्यों को छिपाकर धोखे से पाॅलिसी प्राप्त की है जबकि बीमित व्यक्ति कभी भी ह्दय रोग से पीडित नहीं रहा और न ही अस्पताल में भर्ती रहा। अप्रार्थीगण ने गलत आधार पर उसके बीमा दावे को खारिज किया है। जो कि उनकी सेवा में कमी है। अतः परिवादिया का परिवाद स्वीकार कर अप्रार्थीगण से इस बीमा पाॅलिसी का बीमा धन मय समस्त परिलाभ के 12 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज दर से ब्याज सहित दिलाया जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य परिलाभ भी दिलाये जावें।
2. अप्रार्थीगण का जवाब में मुख्य रूप से कहना है कि बीमित गौतमचंद ने बीमा पाॅलिसी के समय स्वास्थ्य सम्बन्धी तथ्यों को छिपाया है। उसने हस्तगत पाॅलिसी में अपने स्वास्थ्य के बारे में तात्विक जानकारी छिपाकर धोखे से बीमा धन राषि प्राप्त करने के दुराष्य से प्राप्त की है और प्रस्ताव तिथि से पूर्व ही वह एक्यूट मायो कार्डियो इन्फेक्षन की बीमारी से पीडित था तथा चिकित्सालय में भर्ती रहकर इलाज भी लिया था। यह तथ्य उसने छिपाये और प्रस्ताव में पूछे गये प्रष्नों का जानबूझकर गलत जवाब दिया। इस मामले में पाॅलिसी लेने के दो वर्श के भीतर बीमित की मृत्यु हो गई थी जिसके तहत ऐसे मामलों की धारा 45 बीमा अधिनियम के तहत जांच किया जाना आवष्यक हो गया। इस मामले में धारा 45 बीमा अधिनियम के तहत जांच करने पर दिनांक 14.08.2004 को ह्दय रोग सम्बन्धी इलाज के लिए बीमित के चिकित्सालय में भर्ती रहने की जानकारी प्राप्त हुई है। इसलिए परिवादिया का परिवाद अस्वीकार किया गया। अतः परिवादिया के परिवाद को खारिज किया जावे।
3. पूर्व में इसी जिला मंच द्वारा बहस सुनी जाकर दिनांक 28.01.2010 को पारित आदेष अनुसार परिवादिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते हुए अप्रार्थीगण को आदेष दिया गया कि बीमा पाॅलिसी अनुसार बीमा धन 5,00,000/- रूपये एवं बीमा पाॅलिसी के समस्त परिलाभ परिवादिया को अदा किये जायें। लेकिन जिला मंच द्वारा पारित उपर्युक्त आदेष से व्यथित होते हुए भारतीय जीवन बीमा निगम ने माननीय राज्य आयोग में अपील प्रस्तुत की, जिसे स्वीकार करते हुए माननीय राज्य आयोग ने अपने आदेष दिनांक 09.09.2010 अनुसार यह मामला इस जिला मंच को इस निर्देष के साथ रिमांड किया कि आदेष में दिये गये तथ्यों एवं बेड हेड टिकट (अन्र्तवासी रोगी षय्या षीर्श टिकट) प्रदर्ष ए 2 पर विचार करते हुए पुनः आदेष पारित किया जावे। माननीय राज्य आयोग के निर्देषानुसार पत्रावली इस जिला मंच में प्राप्त होने पर उसे पुनः पूर्व नम्बर पर दर्ज किया गया। दिनांक 25.11.2014 की आदेष तालिका अनुसार पक्षकारान को सुनने के पष्चात् मामले में प्रस्तुत प्रदर्ष ए 2 व प्रदर्ष ए 3 चिकित्सीय रिकाॅर्ड अनुसार मृतक का इलाज करने वाले सम्बन्धित चिकित्सक को समन करने का आदेष दिया गया तथा इसी अनुक्रम में दिनांक 12.05.2015 को डाॅ. जय माथुर एवं डाॅ. कृश्ण कुमार षर्मा का परीक्षण लेखबद्ध किया गया।
4. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गई, दोनों ही पक्षों ने मौखिक बहस के साथ लिखित बहस भी प्रस्तुत की, जिसका भी सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया।
5. परिवादिया के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादिया के पति मृतक गौतमचंद तोलावत ने अपने जीवन काल में अप्रार्थीगण से 5,00,000/- रूपये का बीमा करवाया था तथा बीमित अवधि में ही दिनांक 13.07.2008 को नागौर में उनकी मृत्यु हो गई, जिस बाबत् निर्धारित अवधि में बीमित व्यक्ति का मृत्यु दावा पेष किया गया लेकिन अप्रार्थीगण ने बिना किसी युक्तियुक्त एवं मनगढंत आधार पर क्लेम यह कहकर खारिज कर दिया कि बीमित व्यक्ति ने तथ्यों को छिपाते हुए गलत रूप से तथ्य पेष किये। परिवादिया के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण द्वारा प्रस्तुत प्रलेख प्रदर्ष ए 2 व प्रदर्ष ए 3 बीमित व्यक्ति (मृतक) से सम्बन्धित नहीं रहे हैं तथा इन दोनों प्रलेखों में व्यक्ति का नाम, उम्र, पता एवं पिता के नाम में पर्याप्त अन्तर रहा है। यह भी तर्क दिया गया है कि बीमित व्यक्ति की आयु को देखते हुए बीमा पाॅलिसी जारी करने से पूर्व चिकित्सीय परीक्षण भी करवाया जाना था लेकिन इस बाबत् अप्रार्थीगण ने कोई स्पश्ट तथ्य प्रकट नहीं किया है। परिवादिया के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि प्रदर्ष ए 2 व प्रदर्ष ए 3 के अनुसार मृतक का इलाज करने वाले चिकित्सक ह्दय रोग विषेशज्ञ नहीं रहे हैं तथा न ही मृतक को किसी ह्दय रोग विषेशज्ञ के पास रैफर ही किया गया था। ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि बीमित व्यक्ति ह्दय रोग से पीडित रहा हो एवं उसकी मृत्यु भी ह्दय रोग के कारण हुई हो। परिवादिया के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि बीमा पाॅलिसी हेतु प्रस्ताव भरते समय बीमित व्यक्ति ने किसी तथ्य को नहीं छिपाया है बल्कि उसके द्वारा दिये गये सभी जवाब सही एवं सत्य थे। लेकिन उसके बावजूद अप्रार्थीगण ने गलत आधार पर परिवादिया का क्लेम खारिज किया है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार किया जाकर बीमा धन राषि मय ब्याज दिलायी जाने के साथ ही मानसिक संताप एवं हर्जा राषि भी दिलाई जावे। परिवादिया के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) 2005 एन.सी.जे. 181 (एन.सी.) लाइफ इंष्योरेंस काॅरपोरेषन आॅफ इण्डिया बनाम डाॅ. पी.एस. अग्रवाल- इस मामले में माननीय राश्ट्रीय आयोग का मत रहा है कि अस्पताल से प्राप्त की गई सूचना प्राथमिक साक्ष्य नहीं मानी जा सकती।
(2.) 2008 सी.टी.जे. 780 (सी.पी.) (एस.सी.डी.आर.सी.) न्यू इण्डिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम मोहिन्द्र कौर- इस मामले में माननीय राज्य आयोग ने आदेष के पैरा संख्या 5 में अभिनिर्धारित किया है कि ष्। उमतम ीपेजवतल हपअमद पद जीम ीवेचपजंस पेचव ंिबजव पे व िदव बवदेमुनमदबम ंे ीपेजवतल ंसवदम बंददवज इम जतमंजमक ंे अंसपक हतवनदक जव तमचनकपंजम ं बसंपउए ूीपसम पज पे ं ेमजजसमक संू जींज पद बंेम व ितिंनकनसमदज ेनचचतमेेपवद व िउंजमतपंस पदवितउंजपवद वदने ीमंअपसल तमेजे वद जीम चंतजल ंससमहपदह तिंनकण्ष्
6. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि बीमित व्यक्ति (मृतक) ने बीमा पाॅलिसी हेतु प्रस्ताव भरते समय एवं अपने स्वास्थ्य परीक्षण की दिनांक 28.06.2007 को चिकित्सक द्वारा स्वास्थ्य सम्बन्धी परीक्षण किये जाते समय यह बताया था कि उसे कोई बीमारी नहीं है तथा न ही उसने किसी अस्पताल में भर्ती रहकर अपनी किसी बीमारी का इलाज ही करवाया है। लेकिन पत्रावली पर इस बाबत् पर्याप्त सबूत है कि बीमित व्यक्ति प्रस्ताव फार्म भरने की दिनांक 21.06.2007 के पूर्व से ही ह्दय रोग से पीडित था और प्रदर्ष ए 2 के अनुसार बीमित व्यक्ति ने इस सम्बन्ध में राजकीय चिकित्सालय, नागौर में दिनांक 14.08.2004 से दिनांक 19.08.2004 तक भर्ती रहते हुए अपना इलाज भी करवाया था, जिसकी पुश्टि डाॅ.जय माथुर से कथनों से होती है। उनका तर्क रहा है कि बाद में बीमित व्यक्ति की मृत्यु भी दिनांक 13.07.2008 को राजकीय चिकित्सालय, नागौर में हुई है।
अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि बीमित व्यक्ति की मृत्यु पाॅलिसी जारी करने से एक वर्श के भीतर ही हुई है तथा पाॅलिसीधारक (मृतक) ने प्रस्ताव फार्म भरते समय एवं स्वास्थ्य परीक्षण के समय वास्तविक तथ्यों को छिपाते हुए गलत तथ्य प्रकट किये, ऐसी स्थिति में बीमा अधिनियम की धारा 45 के प्रावधान अनुसार मृत्यु दावा सही रूप से खारिज किया गया।
अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि न्यायालय में आकर डाॅ.जय माथुर और डाॅ.कृश्ण कुमार षर्मा द्वारा सषपथ किये गये कथनों से यह तथ्य पूर्णतः साबित है कि प्रदर्ष ए 2 व प्रदर्ष ए 3 दोनों ही मृतक बीमाधारक के रहे हैं, जिससे स्पश्ट है कि पाॅलिसी धारक बीमा प्रस्ताव भरने की दिनांक 21.06.2007 से पूर्व ही ह्दय रोग से पीडित था। ऐसी स्थिति में परिवादिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे। उन्होंने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) 2006 (4) सी.सी.सी. 203 (सुप्रीम कोर्ट) ओरियन्टल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम मुनि महेष पटेल
(2.) ए.आई.आर. 2008 सुप्रीम कोर्ट 420 पी.जे. चाको बनाम चैयरमेन एल.आई.सी.
(3.) 2009 (2) डब्ल्यू.एल.सी. (सुप्रीम कोर्ट) सतवंत कौर संधु बनाम न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी
(4.) 2008 सी.टी.जे. 705 (सी.पी.) (एन.सी.डी.आर.सी.) एल.आई.सी. आॅफ इंडिया बनाम श्रीमती विजय चैपडा
(5.) 2009 (1) सी.पी.आर. 187 (एन.सी.) एल.आई.सी. आॅफ इंडिया बनाम श्रीमती एम. भवानी
(6.) 2011 डी.एन.जे. (सी.सी.) 62 एल.आई.सी. आॅफ इंडिया बनाम श्रीमती विमला वर्मा
(7.) 2011 एन.सी.जे. 871 (एन.सी.) श्रीमती भंवरी देवी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम
(8.) 2012 एन.सी.जे. 43 (एन.सी.) एल.आई.सी. आॅफ बनाम श्रीमती षकुंतला देवी
(9.) राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा अपील संख्या 64/07 भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम श्रीमती आभा षर्मा वगैरहा में पारित निर्णय दिनांकित 24.08.2007
(10.) राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर द्वारा अपील संख्या 143/07 एल.आई.सी. आॅफ इंडिया बनाम विद्युत कुमार षर्मा वगैरहा में पारित आदेष दिनांक 31.05.2010
7. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये गये तर्कों एवं प्रतितर्कों पर मनन कर उनके द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त वर्णित न्याय निर्णयों में माननीय न्यायालयों द्वारा अभिनिर्धारित मत के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री के साथ-साथ बहस के दौरान पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये गये तर्कों को देखते हुए यह स्वीकृत स्थिति है कि इस मामले में परिवादिया के पति गौतमचंद तोलावत द्वारा अपने जीवन काल में एक जीवन बीमा पाॅलिसी लेने हेतु दिनांक 21.06.2007 को प्रस्ताव किया गया तथा अप्रार्थी जीवन बीमा निगम की ओर से गौतमचंद तोलावत के जीवन पर 5,00,000/- रूपये की पाॅलिसी दिनांक 09.07.2007 को जारी की गई।
पक्षकारान में यह भी स्वीकृत स्थिति है कि पाॅलिसीधारक गौतमचंद की मृत्यु दिनांक 13.07.2008 को नागौर में हुई, जो कि बीमा पाॅलिसी जारी होने की दिनांक से दो वर्श की अवधि के भीतर हुई है।
पक्षकारान में इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है कि बीमाधारक गौतमचंद ने प्रस्ताव भरते समय दिनांक 21.06.2007 को एवं इस बाबत् स्वास्थ्य परीक्षण की दिनांक 28.06.2007 को चिकित्सक द्वारा पूछे जाने पर यही कथन किया कि उसे कोई बीमारी नहीं रही है एवं उसने कभी भी किसी बीमारी के लिए अस्पताल में भर्ती रहकर ईलाज भी नहीं करवाया है।
पक्षकारान में इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है कि अप्रार्थीगण द्वारा बीमित व्यक्ति की ओर से परिवादिया द्वारा प्रस्तुत मृत्यु दावा इस आधार पर खारिज कर दिया कि पाॅलिसीधारक ने पाॅलिसी कराते समय अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जान बूझकर असत्य कथन किये और सही जानकारी छिपाई गई जबकि पाॅलिसीधारक प्रस्ताव तिथि के पूर्व से ही ब्ीमेज चंपद ।ब्डप् रोगों से पीडित था एवं अस्पताल में भर्ती रहकर लगातार ईलाज भी ले रहा था।
8. इस मंच के समक्ष निर्णित करने हेतु मुख्य बिन्दु यही है कि, ष्क्या पाॅलिसीधारक गौतमचंद तोलावत ने पाॅलिसी कराते समय अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जानबूझकर असत्य कथन कर वास्तविक तथ्यों को छिपाया?ष्
इस बिन्दु को साबित करने का पूर्ण भार अप्रार्थी पक्ष पर ही रहा है। अप्रार्थी पक्ष की ओर से इस तथ्य को साबित करने हेतु मुख्य रूप से राजकीय चिकित्सालय, नागौर से जारी बेड हेड टिकट प्रदर्ष ए 2 का अवलम्बन लिया गया है एवं इस प्रदर्ष ए 2 को साबित करने के लिए पाॅलिसीधारक गौतमचंद का इलाज करने वाले चिकित्सक डाॅ.जय माथुर के परीक्षण की ओर न्यायालय/मंच का ध्यान आकर्शित किया गया है। यद्यपि परिवादिया के विद्वान अधिवक्ता की आपति रही है कि अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रलेख प्रदर्ष ए 2 एवं प्रदर्ष ए 3 मृतक गौतमचंद से सम्बन्धित नहीं है लेकिन इस सम्बन्ध में उपर्युक्त दोनों ही प्रलेखों का सावधानीपूर्वक अवलोकन करने के साथ-साथ इन प्रलेखों को जारी करने वाले चिकित्सक क्रमषः डाॅ.जय माथुर एवं डाॅ.कृश्ण कुमार षर्मा के कथनों का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि यह दोनों ही प्रलेख मृतक गौतमचंद तोलावत से ही सम्बन्धित रहे हैं। जहां तक इन प्रलेखों में पीडित व्यक्ति के नाम, उम्र, पता एवं पिता के नाम सम्बन्धी अंतर का प्रष्न है तो यह अंतर अत्यन्त ही गौण प्रकृति के रहे हैं एवं ऐसे मामूली अंतर के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि यह दोनों प्रलेख मृतक गौतमचंद तोलावत से सम्बन्धित न होकर किसी अन्य व्यक्ति के रहे हों।
9. डाॅ.जय माथुर ने दिनांक 12.05.2015 को परीक्षण के समय बताया है कि वह दिनांक 14.08.2004 को राजकीय चिकित्सालय नागौर में कनिश्ठ विषेशज्ञ के पद पर कार्यरत था तथा उस दिन गौतमचंद पुत्र लक्ष्मीमल तोलावत को इंडोर पेषेंट के रूप में भर्ती कर परीक्षण किया। गौतमचंद सीने में दर्द की षिकायत पर भर्ती हुए तथा जांच पर ब्लड प्रेषर 226/120 होना पाया। जो अत्यधिक था, ऐसी स्थिति में अस्थाई निदान के तौर पर ऐक्यूट एन्टेरो सेप्टल एमआई था, मरीज को ह्दयघात का उपचार किया था। इस साक्षी द्वारा बताया गया है कि मरीज का एस.जी.ओ.टी. बढा हुआ था जो 118.4 थी, सामान्यतः यह वेल्यू 40 होती है, लेकिन सामान्य वेल्यू अस्पताल की रिपोर्ट में अंकित नहीं है। सी.पी.के.-एम.बी. मरीज की 26 यूनिट थी, जो ह्दय का एंजाइम है। मरीज की सी.पी.के.-एम.बी. बढी हुई थी, जो सामान्यतः 20 तक होता है। मरीज के लक्षण तथा जांचों के आधार पर मैंने यह पाया कि हार्ट एटेक का उपचार किया था, जो विवरण प्रदर्ष ए 2 राजकीय चिकित्सालय के बेड हेड टिकिट में दर्ज है। मैंने मरीज को घर पर चैक किया था और उसे अस्पताल में भर्ती होने हेतु एडवाइज किया था। मेरी इसी राय के आधार पर मरीज भर्ती हुए थे। जिसका बेड हेड टिकिट मय मेरी स्लीप प्रदर्ष ए 2 दर्ज है। मैंने मरीज को आइसोड्रिल (सोरबिटेªट) जुबान के नीचे रखने के लिए तथा डिस्परीन स्टेªप्टो काईजिन जो खून के थके को दूर करने के लिए दी थी। मरीज मेरी देखरेख में दिनांक 14.08.2004 से चिकित्सालय में 19.08.2004 तक जैर इलाज भर्ती रहा था तथा 19.08.2004 को मरीज के स्वयं के रिक्वेस्ट पर डिस्चार्ज किया गया। जिसका इन्द्राज बेड हेड टिकिट पर प्रदर्ष ए 2 पर जी से एच है। प्रदर्ष ए 2 मेरे द्वारा ही तैयार किया गया है।
10. परिवादी पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्वारा डाॅ.जय माथुर से विस्तृत रूप से जिरह की गई है लेकिन जिरह में इस साक्षी ने ऐसा कोई कथन नहीं किया है जिसके आधार पर यह माना जा सके कि मृतक गौतमचंद पुत्र लक्ष्मीमल तोलावत दिनांक 14.08.2004 को सीने में दर्द की षिकायत पर अस्पताल में भर्ती न हुआ हो तथा दिनांक 19.08.2004 तक अस्पताल में ही भर्ती रहते हुए उसका ईलाज न किया गया हो। इस साक्षी द्वारा जिरह में स्पश्ट किया गया है कि प्रदर्ष ए 2 के साथ ही मरीज की जांच रिपोर्ट संलग्न है। इस साक्षी ने यह भी स्पश्ट किया है कि मरीज की सी.पी.के.-एम.बी. आदि की जांच करवाई गई थी तथा दिनांक 18.08.2004 को इसे रिपिट करवाने की भी सलाह दी गई थी। इस साक्षी द्वारा स्पश्ट किया गया है कि मरीज को स्वयं की रिक्वेस्ट पर ही दिनांक 19.08.2004 को डिस्चार्ज किया गया था। पत्रावली पर उपलब्ध बेड हेड टिकिट प्रदर्ष ए 2 के साथ-साथ डाॅ.जय माथुर के कथनों का अवलोकन करें तो यह तथ्य पूर्णतया साबित है कि पाॅलिसीधारक (मृतक) गौतमचंद पुत्र लक्ष्मीमल तोलावत सीने में दर्द की षिकायत पर दिनांक 14.08.2004 को राजकीय चिकित्सालय, नागौर में भर्ती हुआ था, जहां ह्दय रोग के सम्बन्ध में उसकी विभिन्न जांचें भी हुई तथा 14.08.2004 से लगातार 19.08.2004 तक अस्पताल में भर्ती रहकर ईलाज भी प्राप्त किया। लेकिन पाॅलिसीधारक (मृतक) गौतमचंद द्वारा बाद में जीवन बीमा पाॅलिसी हेतु प्रस्ताव फार्म भरते समय एवं इस सम्बन्ध में स्वास्थ्य परीक्षण की दिनांक 28.06.2007 को स्वास्थ्य सम्बन्धी पूछे गये प्रष्नों का सही उतर न देकर तथ्यों को छिपाया गया। बीमा प्रस्ताव फार्म के काॅलम संख्या 11 अनुसार पूछे गये प्रष्नों का जवाब देते हुए पाॅलिसीधारक ने अपने स्वास्थ्य की स्थिति सामान्यतः अच्छी बताते हुए यही बताया है कि उसे सामान्य जांच, देखभाल या उपचार आदि के लिए किसी अस्पताल में दाखिल नहीं किया गया तथा वह कभी किसी रोग से पीडित नहीं रहा। जबकि पत्रावली पर उपलब्ध बेड हेड टिकट प्रदर्ष ए 2 एवं इसके समर्थन में प्रस्तुत डाॅ.जय माथुर के कथनों के आधार पर यह तथ्य साबित है कि पाॅलिसीधारक गौतमचंद सीने में दर्द की षिकायत के साथ दिनांक 14.08.2004 से 19.08.2004 तक राजकीय चिकित्सालय, नागौर में भर्ती रहा था, जहां ह्दय रोग से सम्बन्धी जांच होने के साथ उसका ईलाज भी हुआ था।
11. पत्रावली पर उपलब्ध अन्य बेड हेड टिकट प्रदर्ष ए 3 भी पाॅलिसीधारक गौतमचंद पुत्र लक्ष्मीमल तोलावत का ही रहा है। जिसके अनुसार मृतक गौतमचंद सीने में दर्द की षिकायत के साथ दिनांक 13.07.2008 को सुबह 10.45 ए.एम. पर राजकीय चिकित्सालय, नागौर में भर्ती हुआ था, जहां हार्टअटैक से सम्बन्धी उसका ईलाज हुआ, लेकिन पूरी कोषिष के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका तथा उसी दिन 12.05 पी.एम. पर उसकी मृत्यु हो गई। इस बेड हेड टिकट प्रदर्ष ए 3 को साबित करने हेतु डाॅ.कृश्ण कुमार षर्मा का परीक्षण लेखबद्ध हुआ है। जिसके द्वारा न्यायालय में किये गये कथनों के आधार पर भी इसी तथ्य की पुश्टि होती है कि गौतमचंद तोलावत ह्दय सम्बन्धी रोग से पीडित था तथा छाती में दर्द, पसीना व घबराहट की षिकायत को लेकर अस्पताल के आई.सी.यू. वार्ड में भर्ती हुआ, जिसके लक्षणों पर उसे हार्टअटैक का ईलाज षुरू किया गया था।
12. उपर्युक्त विवेचन से स्पश्ट है कि पाॅलिसीधारक (मृतक) गौतमचंद तोलावत पाॅलिसी हेतु प्रस्ताव फार्म भरने एवं इस बाबत् स्वास्थ्य परीक्षण की दिनांक 28.06.2007 से पूर्व भी सीने में दर्द की षिकायत से पीडित था एवं इस सम्बन्ध में ईलाज हेतु दिनांक 14.08.2004 से 19.08.2004 तक राजकीय चिकित्सालय, नागौर में भर्ती रहते हुए ईलाज करवाया था, जहां उसके ह्दय रोग के सम्बन्ध में विभिन्न जांचें भी करवाई गई तथा चिकित्सक द्वारा इन जांचों को रिपिट करने की भी सलाह दी गई थी। यद्यपि परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की यह आपति रही है कि डाॅ.जय माथुर एवं डाॅ.कृश्ण कुमार षर्मा दोनों ही ह्दय रोग विषेशज्ञ नहीं रहे हैं तथा न ही गौतमचंद को किसी ह्दय रोग विषेशज्ञ से ईलाज करवाने हेतु सलाह ही दी गई है, लेकिन इस सम्बन्ध में बेड हेड टिकट प्रदर्ष ए 2 तथा प्रदर्ष ए 3 के साथ-साथ मृतक गौतमचंद का ईलाज करने वाले दोनों चिकित्सकों द्वारा न्यायालय में किये गये कथनों का अवलोकन करें तो प्रथम दृश्टया यही प्रतीत होता है कि पाॅलिसीधारक गौतमचंद दोनों बार सीने में दर्द की षिकायत को लेकर अस्पताल में भर्ती हुआ था, जहां उसकी ह्दय रोग सम्बन्धी जांचें करवाते हुए ही इस सम्बन्ध में इलाज प्रारम्भ किया गया था। ऐसी स्थिति में यह भी स्पश्ट है कि प्रस्ताव फार्म भरते समय एवं स्वास्थ्य परीक्षण की दिनांक 28.06.2007 को स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रष्न पूछे जाने के समय पाॅलिसीधारक (मृतक) को उपर्युक्त समस्त तथ्यों का ज्ञान था, लेकिन उसके बावजूद मृतक द्वारा उपर्युक्त तथ्यों को जानबूझकर प्रकट न कर छिपाते हुए बीमा पाॅलिसी प्राप्त की गई तथा बीमा पाॅलिसी प्राप्त करने के बाद दो वर्श की अवधि के अंदर ही दिनांक 13.07.2008 को पाॅलिसीधारक गौतमचंद की राजकीय चिकित्सालय, नागौर में सीने में दर्द होने पर हार्टअटैक से मृत्यु हो गई। अप्रार्थीगण द्वारा भी बीमा अधिनियम की धारा 45 के प्रावधान अनुसार पाॅलिसीधारक (मृतक) का मृत्यु दावा प्रदर्ष 6 अनुसार इसी आधार पर खारिज किया गया है कि पाॅलिसीधारक ने बीमा हेतु प्रस्ताव के समय एवं स्वास्थ्य परीक्षण के समय अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जानबुझकर असत्य कथन कर सही जानकारी छिपायी। ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि अप्रार्थीगण ने पाॅलिसीधारक का मृत्यु दावा खारिज कर किसी प्रकार का सेवा दोश किया हो। परिणामतः परिवादिया द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
13. परिणामतः परिवादिया श्रीमती चन्द्रकला द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विरूद्ध अप्रार्थीगण खारिज किया जाता है। खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करे।
14. आदेष आज दिनांक 19.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या