SEEMA filed a consumer case on 06 Sep 2021 against LIC in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/198/2014 and the judgment uploaded on 30 Sep 2021.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 198 सन् 2014
प्रस्तुति दिनांक 16.10.2014
निर्णय दिनांक 06.09.2021
सीमा यादव पत्नी स्वo राजेन्दर प्रसाद यादव साकिन- बर्जला पोस्ट- कोइरियापार, जिला- मऊ।
......................................................................................परिवादिनी।
बनाम
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादिनि ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसके पति राजेन्दर प्रसाद यादव अपने जीवन काल में अपने नाम से विपक्षी संख्या 01 की शाखा से बीमा धन 375000/- रुपया का जीवन बीमा दिनांक 28.11.2009 को तालिका अवधि 14/18 बीमा किश्त छमाही मुo 10349/- रुपया पाoनo 295581770 के अन्तर्गत कराया जिसमें परिवादिनी नामिनी व पत्नी है। उसके पति पुलिस विभाग में नौकरी करते थे। वह विभाग से घर कार्य हेतु छुट्टी से घर आए थे। अचानक सीने में दर्द होने के कारण हृदय गति रुक जाने की वजह से दिनांक 17.04.2010 को समय करीब 5 बजे सायं घर पर उनकी मृत्यु हो गयी उनका कोई दवा इलाज नहीं हुआ था। बीमा कराते समय वह काफी स्वस्थ थे। उनको कोई बीमारी नहीं थी। परिवादिनी ने शाखा कार्यालय में प्रार्थना पत्र दिया। शाखा कार्यालय से याचिनी को दावा क्लेम फार्म मिला। जिसे भरकर बॉण्ड सहित शाखा कार्यालय में जमा किया। शाखा कार्यालय प्रपत्र संख्या 3787 (दावा प्रपत्र ई) नियोजन का प्रमाण पत्र फार्म व प्रपत्र दो 3787 (फार्म बी) चिकित्सक प्रमाण पत्र परिवादिनी को प्राप्त हुआ जिसे परिवादिनी नियोजन (मालिक) प्रमाण पत्र प्रपत्र संख्या 3787 (दावा प्रपत्र ई) पुलिस विभाग से भरवाकर जमा किया और प्रपत्र संख्या 3784 फार्म बी, चिकित्सक प्रमाण पत्र नहीं जमा किया क्योंकि परिवादिनी के पति का कोई दवा इलाज नहीं हुआ था। परिवादिनी के पति को कोई कैंसर या कोई प्राण घातक ऐसी कोई बीमारी नहीं थी। उसके पति बीमा कराते समय काफी स्वस्थ थे तथा दवा इलाज हेतु कहीं भर्ती नहीं थे। यदि किसी का जीवन बीमा लम्बा होता है तो विपक्षीगण के विभाग द्वारा स्वयं पॉलिसीधारक का मेडिकल कराया जाता है। इसके बाद पॉलिसीधारक का बीमा विभाग द्वारा स्वीकृत किया जाता है। इस प्रकार परिवादिनी के पति को कोई बीमारी नहीं थी। यदि कोई बीमारी कैंसर आदि होता तो विपक्षीगण द्वारा परिवादिनी के पति का बीमा नहीं किया जाता। पॉलिसीधारक व भारतीय जीवन बीमा निगम के बीच एक पारस्परिक परम् सद्भाव संविदा होती है जिसका पालन बीमा कम्पनी विपक्षीगण ने नहीं किया। अतः परिवादिनी को विपक्षीगण से मुo 3,75,000/- रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया जाए तथा विपक्षीगण को यह आदेश दिया जाए कि वे परिवादिनी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति हेतु 20,000/- रुपए तथा वाद व्यय व अधिवक्ता शुल्क 5,000/- रुपए कुल 4,00,000/- रुपए मय ब्याज अदा करे।
परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादिनी द्वारा कागज संख्या 6/1 मृत्यु दावा अस्वीकृति का प्रमाण पत्र, कागज संख्या 6/2 परिवादिनी द्वारा प्रबन्धक बीमा लोकपाल एल.आई.सी. को लिखे गए पत्र की प्रति, कागज संख्या 6/3 बैंक पासबुक की छायाप्रति, कागज संख्या 15 दावा अर्हता पत्रक, कागज संख्या 15/2 सीमा यादव द्वारा लिखे गये पत्र की प्रति, कागज संख्या 15/3 मण्डल कार्यालय गोरखपुर नियोजन (मालिक) का प्रमाण पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 15/4 नागेन्द्र यादव का बतौर बयान शपथ पत्र, कागज संख्या 15/5 आधार कार्ड की छायाप्रति, कागज संख्या 15/6 डी.एल. की छायाप्रति, कागज संख्या 15/7 सुखराम यादव का बतौर बयान शपथ पत्र तथा कागज संख्या 15/8 आधार कार्ड की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
कागज संख्या 8क विपक्षीगण द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उन्होंने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उन्होंने यह कहा है कि परिवादिनी को परिवाद प्रस्तुत करने का कोई हक हासिल नहीं था। बीमा का अनुबन्ध पारस्परिक परम् सद्भाव के सिद्धान्त पर आधारित है। यह सत्य है कि तथ्यों के बारे में जो जानकारी करारनामे के एक पक्ष अर्थात् बीमा प्रस्तावक के पास उपलब्ध रहती है वह दूसरे पक्ष अर्थात् विपक्षी नगम के पास नहीं रहती है। इसलिए प्रस्तावक की पूर्णरूपेण यह जिम्मेदारी है कि वह सभी बाते जो अनुबन्ध के विषय में निर्णय देने के लिए निगम के फैसले पर प्रभाव डालेगी, निकम के समक्ष स्पष्ट रूप से रखे। भले ही प्रस्तावक की दृष्टि में वे बाते महत्वपूर्ण न हो। बीमे के सभी करार में यह जिम्मेदारी प्रस्तावक की है कि वह न केवल वे बाते जो कि उसके विचार के अनुसार महत्वपूर्ण हो बल्कि प्रस्ताव सम्बन्धी सभी महत्वपूर्ण तथ्य निगम के समक्ष रखे। किसी भी दस्तावेज में गलत बयानी भेद छुपाकर अथवा धोखेबाजी करके यदि निगम से बीमा प्रस्ताव की स्वीकृत प्राप्त कर ली है तो ऐसे करार से उत्पन्न हुए दावे अपने आप रद्द हो जाएंगे और निगम उसके लिए कतई जिम्मेदार नहीं होगा। जीवन बीमा अनुबन्ध प्रस्तावक एवं जीवन बीमा निगम के मध्य एक महत्वपूर्ण संविदा होती है जो पारस्परिक परम् सद्भाव व विश्वास पर आधारित होती है। प्रस्तावक द्वारा प्रस्ताव पत्र के माध्यम से दिए गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में सम्पूर्ण जानकारी दी जाती है। बीमा अधिनियम 1938 की धारा 45 के अनुसार बीमा पॉलिसी जारी होने की तिथि से दो साल के बाद ही सम्बन्धित बीमा पॉलिसी निर्विवाद होती है, परन्तु दो साल के अन्दर किसी भी बीमा पॉलिसी को विधितः निर्विवाद नहीं माना जाता है। इस मामले के तथ्य इस प्रकार हैं कि श्री राजेन्द्र प्रसाद यादव पुत्र श्री सुखराम यादव निवासी ग्राम बरजला पोस्ट कोइरियापार जिला मऊ ने अपने जीवन पर विपक्षी संख्या 01 के यहाँ से टेबुल/टर्म 14/18/18 के अन्तर्गत जीवन बीमा पॉलिसी संख्या 295581770 बीमा रकम रु. 3,75,000/- जोखिम तिथि 28.11.2009 लिया था। श्री राजेन्द्र प्रसाद यादव ने उक्त पॉलिसी में अपनी पत्नी श्रीमती सीमा यादव को नामिनी नियुक्त किया था। श्री राजेन्द्र प्रसाद यादव ने बीमा पॉलिसी प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत प्रस्ताव पत्र दिनांक 27.12.2009 को भरते समय जानबूझ कर अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में प्रस्ताव पत्र के स्वास्थ्य सम्बन्ध में गलत सूचना दिया। अल्पकालिक मृत्यु दावा (जोखिम तिथि 28.11.2009 से दो वर्ष के अन्दर का मृत्यु दावा) होने के कारण विपक्षीगण द्वारा मामले की जाँच की गयी। जाँच में पाया गया कि मृतक बीमाधारक ने मृत्यु पूर्व दिनांक 12.02.2008 से डॉo के.पी. सिंह सिटी हड्डी हास्पिटल बाईपास रोड सहादतपुरा मऊ के यहाँ से इलाज कराया था। जिनसे सम्पर्क करने पर डॉo के.पी. सिंह द्वारा जारी किया गया दवा का दिनांक 12.02.2008 से प्रारम्भ पर्चा मिला जिसके अनुसार मृतक का इलाज दिनांक 12.02.2008 से 04.03.2008 तक निरन्तर रूप से हुआ था। डॉo के.पी. सिंह द्वारा अपने रिपोर्ट में ‘बायोप्सी टेकेन एण्ड सेन्ट टू आर.एम.एल. लैब लखनऊ फॉर हिस्टोपैथोलॉजिकल रिपोर्ट’ (कैंसर की जाँच) की जानकारी दी गयी। पुनः दिनांक 04.03.2008 को उक्त चिकित्सक द्वारा मृतक बीमाधारक को एस.पी.जी.आई. लखनऊ भेजा गया एवं उक्त चिकित्सक द्वारा अपने रिपोर्ट में ‘रेफर टू एस.जी.पी.जी.आई. विथ बायोप्सी रिपोर्ट फॉर एक्सपर्ट ओपिनियन एण्ड मैनेजमेन्ट’ लिखा है, जिससे पूर्णतः स्पष्ट है कि मृतक को कैंसर हुआ था। उसका इलाज वर्तमान बीमा पॉलिसी लेने के पूर्व कराया गया था। बीमाधारक बीमा कराते वक्त अपनी बीमारी को छिपाया था। विपक्षी की तरफ से कोई भी सेवा में कमी नहीं की गयी। अतः परिवाद पत्र निरस्त किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी द्वारा कागज संख्या 19/19 सुखराम यादव के बयान की छायाप्रति, कागज संख्या 19/20 नागेन्द्र यादव के बयान की छायाप्रति, कागज संख्या 19/28 व 19/29 एस.के. पैथोलॉजी सहादतपुरा मऊ के रिपोर्ट की छायाप्रति तथा कागज संख्या 19/30 सिटी हड्डी हॉस्पिटल सहादतपुरा मऊ के डॉo के.पी. सिंह के पर्चे की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
उभय पक्षों को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षी द्वारा न्याय-निर्णय “ब्रॉन्च मैनेजर बजाज एलियान्ज लाईफ इन्श्योरेन्स कं.लि.एवं अन्य बनाम दलबीर कौर, सिविल अपील नं. 3397/2020 एस.सी.” प्रस्तुत किया गया है, जिसमें माo उच्चतम न्यायालय ने यह अभिधारित किया है कि ‘बीमाधारक तथा बीमा कम्पनी का व्यवहार परम् सद्भाव पूर्ण होता है, यदि बीमा करते वक्त बीमाधारक अपनी किसी बीमारी को छिपाता है और उसकी मृत्यु बीमा कराने के दो साल के अन्दर हो जाती है तो उसके प्रतिनिधि बीमा का लाभ प्राप्त नहीं कर सकते हैं’। चूंकि यह न्याय निर्णय इस परिवाद के तथ्यों एवं परिस्थितियों में पूरी तरह ग्राह्य है। अतः ऐसी स्थिति में हमारे विचार से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 06.09.2021
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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