तारीख हुक्म
हुक्म या कार्यवाही मय इनिषियल्स जज
परिवाद संख्या - 498/16
सरिता बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम ज्योति इन्दिरा काॅलोनी
झुन्झुनू तहसील व जिला झुन्झुनू जरिये शाखा प्रबन्धक
परिवाद सं. 499/16
सरिता बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम ज्योति इन्दिरा काॅलोनी
झुन्झुनू तहसील व जिला झुन्झुनू जरिये शाखा प्रबन्धक
परिवाद सं. 500/16
सरिता बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम ज्योति इन्दिरा काॅलोनी
झुन्झुनू तहसील व जिला झुन्झुनू जरिये शाखा प्रबन्धक
परिवाद सं. 501/16
संजना देवी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम ज्योति इन्दिरा काॅलोनी
झुन्झुनू तहसील व जिला झुन्झुनू जरिये शाखा प्रबन्धक
परिवाद सं. 502/16
संतोष देवी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम ज्योति इन्दिरा काॅलोनी
झुन्झुनू तहसील व जिला झुन्झुनू जरिये शाखा प्रबन्धक
परिवाद सं. 503/16
संतोष देवी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम ज्योति इन्दिरा काॅलोनी
झुन्झुनू तहसील व जिला झुन्झुनू जरिये शाखा प्रबन्धक
परिवाद सं. 504/16
संतोष देवी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम ज्योति इन्दिरा काॅलोनी
झुन्झुनू तहसील व जिला झुन्झुनू जरिये शाखा प्रबन्धक नम्बर व तारीख अहकाम जो इस हुक्म की तामिल में जारी हुए
23.01.2019
आदेश
सभी प्रार्थीगण की ओर से अधिवक्ता श्री जयसिंह एंव अप्रार्थीगण की ओर अधिवक्ता श्री एल.बी. जैन उपस्थित।
चूंकि उपरोक्त सातों परिवाद अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में तथ्य एंव विधि के प्रश्न समान है, अतः इनका निस्तारण एक साथ किया जा रहा है।
उक्त परिवाद सं. 498, 499 व 500 वर्ष, 2016 में दिनांक 30.11.2016 को एंव शेष सभी परिवाद दिनांक 01.12.2016 को सम्बन्धित प्रार्थी की ओर से इस आशय के प्रस्तुत किये गये है कि उसने अप्रार्थी से परिवाद के चरण सं. 1 में वर्णित तिथि पर बीमा पाॅलिसी सम्बन्धित टेबल संख्या व टर्म के प्रीमियम के लिए ली थी, जिसकी अवधि व प्रीमियम भी इनके परिवाद के चरण सं. 1 में वर्णित है। प्रार्थी के अनुसार बीमा करते समय अप्रार्थी द्वारा यह ठोस आश्वासन दिया गया था कि जब प्रार्थी चाहे बीमा पूंजी ब्याज सहित निकाल सकते है और पूर्ण मैच्योरिटी पर अधिक लाभ सहित निकाल सकते है। प्रार्थी को यह आश्वस्त किया गया था कि समस्त जमा राशि पर 8 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज देय होगा व बीमा पाॅलिसी को न्यूनतम 3 वर्ष के लिए चालू रखना होगा। आवश्यकता पड़ने पर वह पाॅलिसी को सरेण्डर कर सकते है। प्रार्थी ने अपने परिवाद के चरण सं. 5 में वर्णित प्रीमियम राशि जमा करवाई थी व पैसो की आवश्यकता होने पर उसने बीमा पाॅलिसी नियमानुसार समर्पित की तब प्रार्थी से उसके बैंक की फोटोप्रति व मूल बीमा बाॅण्ड लेकर आश्वस्त किया कि उसे समस्त जमा राशि पर ब्याज सहित भुगतान कर दिया जायेगा। प्रार्थीगण ने अपने अपने परिवाद के चरण सं. 6 में वर्णित अनुसार क्रमशः 14568, 8178, 9774, 12951, 15114, 7956 व 9906/रुपये जमा करवाये थे परन्तु उनके द्वारा अपनी अपनी बीमा पाॅलिसी समर्पित
करने पर उन्हे मात्र क्रमशः 7334, 4809, 4811, 5866, 7973, 4778 व 4811/रुपये का ही भुगतान किया गया है। इन तथ्यो के परिपेक्ष में सभी प्रार्थीगण ने अपने द्वारा अदा की गई कुल प्रीमियम राशि पर 8 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज, मानसिक संताप पेटे 50,000/रुपये व परिवाद व्यय पेटे 5,500/रुपये अप्रार्थी से दिलाये जाने की प्रार्थना की है।
अप्रार्थी ने उक्त सभी परिवादो में अपने जवाब में इस आशय की प्रारम्भिक आपत्ति अंकित की है कि प्रार्थी ने लम्बी अवधि के लिए बीमा पाॅलिसी बाबत संविदा की थी लेकिन पूर्ण अवधि तक पाॅलिसी नही चलाकर मात्र तीन वर्ष के प्रीमियम देने के बाद पाॅलिसी का स्वेच्छया समर्पण कर समर्पित वैल्यू प्राप्त कर ली, जिसके बाद से बीमा संविदा पक्षकारो के बीच समाप्त हो गई है। जीवन बीमा के प्रीमियम की तुलना किसी बैंक में जमा कराई गई राशि से नही की जा सकती है। गारण्टीकृत अभ्यर्पण मूल्य के अनुसार सभी प्रार्थीगण को देय समर्पित मुल्य का भुगतान किया गया है। बीमा पाॅलिसी के प्रावधानो के अन्तर्गत ही बीमाधारी को भुगतान देय हो सकता है। प्रार्थी ने अपनी बीमा पाॅलिसी समर्पित करने के बाद डिस्चार्ज फार्म सं. 5074 समझकर भुगतान प्राप्त किया है, जिसमें यह स्पष्टतया अंकित है कि पाॅलिसी का समर्पण उसके हित में नही है एंव समर्पण मूल्य उसके द्वारा जमा कराये गये प्रीमियम की राशि से भी कम होगा इन्ही तथ्यो को मदवार जवाब में दोहराते हुए जवाब के साथ प्रार्थीगण की बीमा पाॅलिसी, डिस्चार्ज फार्म, स्टेट्स रिपोर्ट प्रदर्श क्रमशः आर 1 लगायत आर 3 के रुप में सलंग्न करते हुऐ प्रार्थीगण के परिवाद खारिज करने की प्रार्थना की गई है।
बहस के दौरान पक्षकारो की ओर से क्रमशः अपने अपने परिवाद व जवाब में वर्णित तथ्यो को दोहराया गया है। साथ ही अप्रार्थी की ओर से II (2013) CPJ 366 (NC), II (2013) CPJ 386 (NC), III (2014) CPJ 258 (NC), II(2010) CPJ 50 (NC) के न्यायिक निर्णयो की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया गया है।
उपरोक्त II (2013) CPJ 366 (NC) के न्यायिक निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिमत व्यक्त किया है कि यदि एक बार कोई बीमाधारी अपने क्लेम के सम्बन्ध में पूर्ण व अन्तिम सैटलमेंट के डिस्चार्ज वाउचर पर हस्ताक्षर कर देता है तो उसे अपने क्लेम बाबत दुबारा विवाद उठाने की तब तक अनुज्ञा नही दी जा सकती है जब तक वह यह स्थापित नही कर दे कि undue influence, fraud, misrepresentation or coercion etc. से नही लिये गये हो।II (2013) CPJ 386 (NC) के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिमत व्यक्त किया है कि यदि एक बार बीमाधारी अपने क्लेम बाबत बिना किसी शर्त के कोई राशि स्वीकार कर लेता है और चैक का भुगतान प्राप्त कर लेता है, तो बीमाधारी व बीमा कम्पनी के बीच क्रमशः उपभोक्ता व सेवा प्रदाता के सम्बन्ध समाप्त माने जायेगें। III (2014) CPJ 258 (NC) के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने बीमा प्रावधानो के अन्तर्गत
बीमा कम्पनी द्वारा बीमाधारी को उसकी पाॅलिसी का समर्पित मुल्य अदा किया जाना समीचीन माना है। II (2010) CPJ 50 (NC) के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिमत व्यक्त किया है कि समर्पित बीमा पाॅलिसी बाबत Paid-up Value पर कोई बोनस देय नही होगा।
हमने उपरोक्त न्यायिक निर्णयो में प्रतिपादित सिद्वान्तो से सादर मार्ग दर्शन प्राप्त किया है।
मौजूदा मामले में र्निविवादित रुप से सभी प्रार्थीगण ने अपनी अपनी बीमा पॅालिसी स्वेच्छया समर्पित कर समर्पित मुल्य का भुगतान प्राप्त कर लेने के पश्चात अपने अपने द्वारा जमा कराई गई पूर्ण प्रीमियम राशि व उस पर 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज चाहा है, जिसका कोई प्रावधान बीमा पाॅलिसी में वर्णित नही है। सभी प्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता हमारे समक्ष प्रार्थीगण के क्लेम के औचित्य को स्पष्ट नही कर पाये है जबकि प्रार्थीगण द्वारा बीमा पाॅलिसी समर्पित करते समय भरे गये डिस्चार्ज फार्म व गारण्टीकृत अभ्यर्पण मूल्य के प्रावधानो को देखते हुए हमारे सुविचारित मत में प्रार्थीगण द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त परिवाद पूर्णतया सारहीन है एंव अप्रार्थी की ओर से उद्वरित उपरोक्त न्यायिक निर्णयो पर अवलम्ब रखते हुए प्रार्थीगण के यह परिवाद खारिज कियेे जाने योग्य है।
उपरोक्त विवेचन के सार रुप में प्रार्थीगण के यह परिवाद खारिज किये जाते है।
आदेश आज दिनांक 23 जनवरी,2019 को लिखया जाकर सुनाया गया।
बाद पालना पत्रावली फैशल शुमार अंकित की जावे।
शिवकुमार शर्मा महेन्द्र शर्मा