Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/147/2014

PRATIMA KUNWAR - Complainant(s)

Versus

LIC - Opp.Party(s)

PARAS NATH TIWARI

14 Sep 2021

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 147 सन् 2014

प्रस्तुति दिनांक 11.08.2014

                                                                                                 निर्णय दिनांक 14.09.2021

प्रतिमा कूंवर पत्नी स्वo दुर्गेश सिंह, ग्राम व पोस्ट- सिरिहिरा, थाना- चाँद, जिला- कैमूर, हाल मुकाम प्रतिमा कूंवर पिता सुरेन्द्र सिंह ग्राम- इसिया, पोस्ट- बराढ़ी, थाना- चैनपुर, जिला- कैमूर (भभुआ) बिहार।

     ......................................................................................परिवादिनी।

बनाम

    शाखा प्रबन्धक, शाखा कार्यालय नं. 01 भारतीय जीवन बीमा निगम,    ऑफिसर्स कॉलोनी के नजदीक सिविल लाईन आजमगढ़, जिला-   आजमगढ़ (यू.पी.) पिन कोड- 276001    

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उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

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कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”

परिवादिनी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि दिनांक 20.08.2010 को भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय नं. 1 आजमगढ़ द्वारा प्राधिकृत एजेन्ट योगेन्द्र सिंह, शिवाजी नगर, हारी पट्टी आजमगढ़ जिनका एजेन्सी कोड नं. 7161285 है, परिवादिनी के गाँव में परिवादिनी के घर आए और परिवादिनी के पति दुर्गेश सिंह को अपने कम्पनी के नियम को समझाए। परिवादिनी के पति दुर्गेश सिंह उनके कम्पनी के योजना संख्या 133 (तिगुना लाभ वन्दोवस्ती योजना तहत समय 30 वर्षों हेतु 5,00,000/- रुपए का अपना बीमा कराने हेतु सहमत हो गए। परिवादिनी के पति से एजन्ट अपने कम्पनी के कुछ फार्म पर तथा कुछ सादे कागज पर हस्ताक्षर कराए एवं ड्राइवरी लाइसेन्स तथा स्कूल सर्टिफिकेट की छायाप्रति लिए और 5,00,000/- रुपए बीमा धान का अर्ध वार्षिक किस्त 10634/- रुपए भी लिए। परिवादिनी के पति दुर्गेश सिंह को दिनांक 21.08.2010 को साथ लेकर डॉक्टरी जाँच कराने हेतु आजमगढ़ ले गए जहाँ पर दिनांक 22.08.2010 को भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा नं. 01 आजमगढ़ द्वारा प्राधिकृत डॉक्टर जे.पी. श्रीवास्तव के यहाँ डाक्टरी जांच कराए। भारतीय जीवन बीमा निगम परिवादिनी के पति दुर्गेश सिंह का प्रस्ताव फार्म पाने के बाद अपने नियमानुसार उन्हें बीमा योग्य सही पाकर रुपया जमा करने हेतु आदेश दे दिया। परिवादिनी के पति के बाम्बे में टेम्पो चलाते थे। दुर्भाग्यवश परिवादिनी के पति को दिनांक 22.09.2010 को एकाएक मस्तिष्क ज्वर हो जाने के कारण डाक्टरी उपचार पूर्व बाम्बे में ही अपने घर शिवशक्ति चावल गेट नं. 01 शन्ता कूज मुम्बई पूरब में ही उनका मृत्यु हो गया। जिनका दाह संस्कार परिवार के लोगों द्वारा मुम्बई श्मशान घाट पर कर दिया गया। परिवादिनी अपने पति दुर्गेश सिंह के मृत्यु के बाद अपने पति द्वारा कराए गए बीमा का मृत्यु लाभ राशि पाने हेतु विपक्षी के पास अपने पित के साथ दिनांक 03.12.2010 को जाकर आवेदन की विपक्षी द्वारा आवेदन ले लिए परन्तु प्राप्ति बनाने से इन्कार किए तथा बोले कि तुम मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ आवेदन करोगी तब जाकर मृत्यु दावा राशि भुगतान करने हेतु नियमानुसार कार्यवाही यहाँ से की जाएगी। क्योंकि परिवादिनी के पति नामिनी परिवादिनी को ही बनाए थे। परिवादिनी अपने भाई के पास बाम्बे गई परिवादिनी के भाई भी बाम्बे में टेम्पो चलाते हैं। बहुत परेशानी के बाद परिवादिनी को अपने पति दुर्गेश सिंह का मृत्यु प्रमाण पत्र दिनांक 25.07.2011 को मुम्बई महानगर पालिका से प्राप्त हुआ। परिवादिनी की तबियत खराब रहने के कारण कुछ विलम्ब से विपक्षी के पास मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति के साथ आवेदन निबंधित डॉक संख्या ए1157 दिनांक 31.10.2011 के द्वारा भेजी तो विपक्षी ने मार्गदर्शन दिया कि मृत्यु प्रमाण पत्र किसी सक्षम अधिकारी से सत्यापित कराकर देवें। परिवादिनी की तबियत खराब हो जाने के कारण कुछ विलम्ब से विपक्षी द्वारा मांगे गए कागजात को उनके द्वारा दिए गए निर्देशानुसार सम्पुष्ट कर एवं कराकर तथा मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति को मिथलेश कुमा सिन्हा नोटरी भभुआ से अभिप्रमाणित कराकर मूल दस्तावेज के साथ निबंधित डॉक संख्या ए आरएफ 032611445आईएन. दिनांक 30.05.2012 के द्वारा भेज दी। विपक्षी द्वारा परिवादिनी से दावा के सम्बन्ध में सभी औपचारिकताएं पूरा करा लेने के बाद भी किसी प्रकार की सूचना नहीं देने पर परिवादिनी अपने पिता के साथ विपक्षी के कार्यालय में जाकर अपनी द्वारा के सम्बन्ध में दिनांक 27.06.2012 को पूछी तो वहां बताया गया कि आपका क्लेम आवश्यक कार्यवाही हेतु मण्डल कार्यालय गोरखपुर भेज दिया गया है। आप वहां जाकर मिलिए तब पता चलेगा कि क्या हो रहा है। परिवादिनी पैसे के अभाव में गोरखपुर नहीं जा सकी वापस घर अपने पिता के साथ चली आई। परिवादिनी मण्डल कार्यालय गोरखपुर के पास अपनी दावा के सम्बन्ध में आवेदन निबंधित डाक संख्या आरएफ.001623007 आई.एन. दिनांक 30.06.2012 को भेजी। परिवादिनी द्वारा मण्डल कार्यालय गोरखपुर को भेजे गए आवेदन दिनांक 30.06.2012 का जवाब किसी प्रकार का नहीं आने पर परिवादिनी अपने पिता के साथ मण्डल कार्यालय गोरखपुर के कार्यालय में दिनांक 02.08.2012 को मिली जहाँ पर कार्यालय द्वारा बताया गया कि आपका क्लेम विभाग के आपकी नजदीकी शाखा कार्यालय भभुआ को जाँच कर भुगतान हेतु भेज दिया गया है। क्योंकि कम्पनी का ऐसा ही नियम है। आप वहीं जाकर आवेदन शीघ्र भुगतान हेतु करें। परिवादिनी मजबूर होकर दिनांक 08.08.2012 को एल.आई.सी. के शाखा कार्यालय भभुआ में गयी और वहाँ राशि भुगतान हेतु आवेदन करने हेतु प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन सुनवा नहीं हुआ। परिवादिनी को विपक्षी द्वारा काफी हैरान व परेशान किया जा रहा है। अतः विपक्षी को आदेशित किया जाए कि वह परिवादिनी को 16,00,000/- लाख रुपए तथा मृत्यु की तिथि से भुगतान की तिथि तक 18% वार्षिक ब्याज के साथ अदा करे।   

परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादिनी द्वारा कागज संख्या 9/1ता9/5 जिला उपभोक्ता फोरम कइमपुर भभुआ के निर्णय की छायाप्रति, कागज संख्या 9/8 व 9/9 स्वजीवन बीमा प्रस्ताव पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 9/10 डॉक्टर द्वारा कराए गए मेडिकल रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 9/13 कराए गए एल.आई.सी. तालिका की छायाप्रति, कागज संख्या 9/16 मृत्यु प्रमाण पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 9/17 व 9/18 शाखा प्रबन्धक को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 9/19 एल.आई.सी. शाखा कार्यालय नं. 01 सिविल लाइन्स आजमगढ़ द्वारा जारी परिवादिनी को दिए गए पत्र की छायाप्रति जिसमें कि उसे अभिलेख प्रस्तुत करने का आदेश दिया हुआ था। कागज संख्या 9/21 मृत्यु दावा भुगतान करने हेतु दिए गए प्रार्थना पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 9/22 दावेदार का बयान की छायाप्रति, कागज संख्या 9/23 पहिचान तथा दाह संस्कार का प्रमाण पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 9/27 मण्डल प्रबन्धक को दिए गए पत्र की छायाप्रति तथा कागज संख्या 9/29 शाखा प्रबन्धक को दिए गए पत्र की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।   

कागज संख्या 20क विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि मृतक बीमाधारक स्वo दुर्गेश सिंह ने विपक्षी के शाखा कार्यालय एक आजमगढ़ से ताoअo133-30, बीमाधन रु. 5,00,000/- का बीमा तीन गुना रिस्क कवर योजना वाली पॉलिसी लिया था, यानि यह पॉलिसी सामान्य मृत्यु की दशा में भी तीन गुना रिस्क कवर यानि रु. 15,00,000/- है। परिवादिनी के कथनानुसार बीमाधारक दुर्गेश सिंह की तथाकथित मृत्यु दिनांक 22.09.2010 को मुम्बई में हो गयी। परिवादिनी द्वारा मृत्यु की सूचना देने पर विपक्षी द्वारा दावा भुगतान हेतु आवश्यक दावा प्रपत्र भेजे गए कि उक्त प्रपत्र को भरकर शीघ्र भेजें। जिससे दावा पर निर्णय लिया जा सके। बीमा निगम के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई पॉलिसी 03 वर्ष नहीं चलती है और मृत्यु दावा उत्पन्न होने पर मृत्यु कारणों की जाँ कराया जाना आवश्यक होता है। परिवादिनी ने अपने दावा प्रपत्र 3783 जो दावेदार का बयान प्रपत्र होता है, में उल्लिखित किया है कि बीमाधारक की मृत्यु मस्तिष्क ज्वर के कारण हुई, किन्तु इलाज की पर्चियों को प्रस्तुत नहीं किया गया। अतः उसका कोई इलाज किसी डाक्टर के यहाँ न होना यह तथाकथित मृत्यु को सन्देह के घेरे में ला देता है। बीमाधरक की मृत्यु पॉलिसी लेने के बहुत ही कम समय यानी मात्र 27 दिन के अन्तराल पर होना सूचित है। विपक्षी द्वारा मृतक बीमाधारक के गांव व निवास कर रहे शिवशक्ति गेट नं. 01 शान्ताकूज मुम्बई से जाँच कराई गयी, किन्तु दोनों स्थानों के जाँचों से बीमाधारक की पहचान अभी तक नहीं हो पायी है। प्रथम जाँच अधिकारी जो उसके गांव के पता पर जाँच किया दावा को पूर्णतया संदिग्ध बताया है। बीमाधारक के स्थायी व अस्थायी पता भभुआ बिहार व मुम्बई पर जाँच कराई गयी तो उक्त दोनों जगहों पर बीमाधारक के बारे में उनके अगल-बगल के लोगों ने पहचानने में असमर्थता जताई। जिससे यह पता नहीं चल सका कि बीमाधारक कौन है और उसकी मृत्यु कब और कैसे हुई। परिवादिनी ने अनुचित लाभ लेने के उद्देश्य से जान-बूझकर वाद को राज्य आयोग लखनऊ में विविध वाद सं. 02/2014 दाखिल कर वाद को जिला फोरम आजमगढ़ से जिला फोरम चन्दौली ट्रान्सफर करने के लिए माo न्यायालय से अनुरोध किया। जिसको माo राज्य आयोग लखनऊ ने अपने आदेश दिनांक 29.05.2014 द्वारा ट्रान्सफर करने से इन्कार कर दिया। निगम द्वारा जब जाँच में बीमाधारक दुर्गेश सिंह के बारे में स्थायी व अस्थायी पते पर जब पता नहीं चला तो निगम द्वारा परिवादिनी से दिनांक 30.09.2013 को पंजीकृत पत्र भेजकर पूछा गया कि मुम्बई स्थित आवास के अगल-बगल के लोगों का नाम बताए तथा दाह संस्कार का प्रमाण पत्र दें, तथा उनसे यह भी पूछा गया कि आपको किस डाक्टर ने बताया कि बीमाधारक को मस्तिष्क ज्वर था, परन्तु परिवादिनी द्वारा उक्त पत्र का कोई उत्तर नहीं दिया गया। जिसके कारण उक्त दावा को बिना निर्णित किए निगम के बट्टे खाते में डाल दिया गया। परिवादिनी गलत आधार पर दावा प्रस्तुत करके विपक्षी को हैरान व परेशान करने के उद्देश्य से वाद दाखिल किया है। अतः निरस्त किया जाए।  

विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी द्वारा कागज संख्या 23/1 जिसमें मण्डल कार्यालय गोरखपुर द्वारा जाँच कराया गया जो मुम्बई में पूछने पर मृतक को कोई नहीं जानता था की प्रति, कागज संख्या 23/2 श्री एस.एन. गुरे द्वारा एल.आई.सी. एम.डी.ओ. थर्ड मुम्बई को इस आशय के पत्र की छायाप्रति है जिसमें यह कहा गया है कि इन्वेस्टीगेशन होने पर सूचित किया जाएगा। कागज संख्या 23/3ता23/6 क्लेम इन्क्वायरी की छायाप्रति तथा कागज संख्या 23/7व23/8 माo राज्य आयोग लखनऊ द्वारा पारित आदेश की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।

दिनांक 25.08.2010 को दुर्गेश सिंह का बीमा कराकर एजेन्ट ने उनको रसीद आदि व पॉलिसी दे दिया। दिनांक 22.09.2010 को दुर्गेश सिंह की मृत्यु मस्तिष्क ज्वर से मुम्बई में हो गयी। आर्थात् भारतीय जीवन बीमा अधिनियम की धारा 45 के अनुसार यदि बीमा कराए जाने के 02 वर्षों के अन्दर बीमाधारक की मृत्यु हो जाती है तो वह बीमा संदिग्ध माना जाएगा और बीमा कम्पनी द्वारा उसकी बकायदा जाँच की जाएगी। बीमा कम्पनी ने उसकी जाँच करवाई। कागज संख्या 23/3ता23/6 जाँच रिपोर्ट है जिसमें मात्र यह कहा गया है कि परिवादिनी द्वारा अभिकथित पते पर पता लगया गया कि बीमाधारक को पहचाने वाला कोई नहीं है। लेकिन जाँच रिपोर्ट में यह कहीं भी नहीं कहा गया है कि बीमाधारक को बीमा कराने के पूर्व कोई बीमारी थी अथवा नहीं यदि यह सिद्ध हो जाता कि बीमाधारक को बीमा कराते वक्त पहले से कोई बीमारी थी तो परिवादिनी का क्लेम इस आधार पर निरस्त किया जा सकता था, लेकिन इस सन्दर्भ में जाँच आख्या में किसी बात का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। बीमा कम्पनी को यह स्वीकृत है कि बीमाधारक की मृत्यु हो गयी थी। बीमा कम्पनी ने अपने जवाबदावा के पैरा 04 में यह कहा है कि परिवादिनी द्वारा जिला फोरम कइमपुर भभुआ में परिवाद प्रस्तुत किया गया था जो दिनांक 13.05.2010 को निर्णित हो गया। जिसके उपरान्त उसी वाद कारण को दिनांक 19.06.2013 को इस माo जिला फोरम के समक्ष परिवाद पत्र प्रस्तुत के उपरान्त दिनांक 13.05.2010 से विलम्ब हेतु कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। परिवादिनी का यह दूसरी याचिका है जो चलने योग्य नहीं है। अतः परिवाद पत्र खारिज किए जाने योग्य है। कागज संख्या 9/1ता9/5 जिला उपभोक्ता फोरम कइमपुर भभुआ का पारित निर्णय है जिसमें यह कहा गया है कि यह इस फोरम को परिवाद का निर्णय करने का क्षेत्राधिकार नहीं है। यह निर्णय दिनांक 10.05.2013 को पारित किया गया था और प्रस्तुत परिवाद दिनांक 19.06.2013 को दाखिल कर दिया गया। परिवाद में परिसीमा उपभोक्ता फोरम कइमपुर भभुआ के निर्णय से गिना जाएगा। इस प्रकार यह परिवाद निर्धारित समय के अन्दर प्रस्तुत किया गया है। अतः इस सन्दर्भ में विपक्षी द्वारा जवाबदावा में किया गया वर्णन गलत है। कागज संख्या 9/16 गवर्नमेन्ट ऑफ महाराष्ट्रा हेल्थ डिपार्टमेन्ट म्यूनिसिपल कार्पोरेशन ऑफ ग्रेटर मुम्बई द्वारा जारी प्रमाण पत्र है यहाँ इस बात का उल्लेख कर दिना आवश्यक है कि जीवन बीमा निगम अधिनियम 1956 द्वारा संस्थापित कार्पोरेशन फार्म की छायाप्रति कागज संख्या 9/8ता9/11 है। कागज संख्या 9/8 में दुर्गेश सिंह का जो पता लिखा गया है उसमें दुर्गेश सिंह पुत्र सुरेन्द्र सिंह ग्राम इसियां पोस्ट- बशही कैमूर भभुआ बिहार लिखा हुआ है जबकि मृत्यु प्रमाण पत्र कागज संख्या 9/16 में मृतक का नाम दुर्गेश सिंह भगवान लिखा गया है। उसके पिता का नाम भगवान सिंह लिखा हुआ है और स्थाई पता में ग्राम- सिरिहिरा, पोस्ट ऑफिस- सिरिहिरा, पुलिस स्टेशन- चांद, जिला कैमूर (भभुआ) बिहार, इण्डिया लिखा हुआ है। कागज संख्या 9/23 पहिचान तथा दफनाने या दाह संस्कार का प्रमाण पत्र है जिसमें मृतक का पूरा नाम दुर्गेश सिंह लिखा हुआ है। इस प्रकार कागज संख्या 9/23 व कागज संख्या 9/16 में भिन्नता है। परिवादिनी ने बीमा कर्ता का जो पता परिवाद पत्र में दिया है वह पता इन दोनों से नहीं मिलता है। इस प्रकार यह सुनिश्चित कर पाना संभव नहीं है कि वास्तव में बीमाधारक की मृत्यु हुई है अथवा नहीं। यह सिद्ध करने का भार परिवादिनी के ही ऊपर था, लेकिन वह कोई संतोषजनक प्रमाण पत्र नहीं दे पायी है, जो प्रमाण पत्र उसके द्वारा प्रस्तुत किया गया है वह संदिग्ध है। ऐसी स्थिति में हमारे विचार से परिवाद अस्वीकार होने योग्य है। 

 

आदेश

                                                          परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

 

 

 

 

                                                                         गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह 

                                                      (सदस्य)                             (अध्यक्ष)

 

    दिनांक 14.09.2021

                                              यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

                                               गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह

                                                                 (सदस्य)                           (अध्यक्ष)

 

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