जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
अध्यासीनः डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
पुरूशोत्तम सिंह..............................................सदस्य
उपभोक्ता वाद संख्या-411/2013
माधौ सिंह पुत्र स्व0 रामसिंह निवासी 124/68 डी0 ब्लाक गोविन्द नगर, कानपुर नगर।
................परिवादी
बनाम
1. षाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम षाखा बिल्हौर कानपुर नगर
2. मुख्य प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम, एल0आई0सी0 बिल्डिंग फूलबाग चैराहा, कानपुर नगर।
...........विपक्षीगण
परिवाद दाखिल होने की तिथिः 06.08.2013
निर्णय की तिथिः 22.02.2016
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1. परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि विपक्षीगण से परिवादी को पाॅसिल सं0-230761898 के रिफण्ड का पैसा रू0 15000.00 दिनंाक 28.01.06 से 15 प्रतिषत वार्शिक ब्याज सहित दिलाया जाये, भागदोड़, मानसिक, आर्थिक क्षति के रूप में रू0 10,000.00 तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय दिलाया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि विपक्षीगण अर्द्ध सरकारी संस्था हैं तथा अपना व्यापार बढ़ाने के लिए अपने अधीनस्थ एजेंटो की नियुक्ति करके उपभोक्ताओं को समझाकर बीमा कराने का कार्य करती है। विपक्षीगण के नियुक्त एजेंटों के द्वारा परिवादी से संपर्क कर बीमा कराये जाने हेतु अनुरोध किया। जिस पर परिवादी ने रू0 50,000.00 की पाॅलिसी जिसकी छमाही किष्त रू0 2903.00 दिनांक 28.01.02 को कराया, जिसका प्लान 106/15/12 पालिसी संख्या- 230761898 है। उक्त पाॅलिसी में रू0 15000.00 का रिफण्ड सन् 2006 में पाॅलिसी के प्लान के अनुसार परिवादी को प्राप्त होना था। परिवादी को उपरोक्त पाॅलिसी की रिफण्ड धनराषि रू0 15000.00 नहीं प्राप्त हुई तो
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परिवादी ने विपक्षी सं0-1 से संपर्क किया और लिखित रूप से अनुरोध किया। परिवादी पुनः दिनांक 09.08.12 को विपक्षी सं0-1 को लिखित पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि अभी तक परिवादी को उपरोक्त धनराषि रू0 15000.00 की चेक प्राप्त नहीं हुई है। जिस पर विपक्षी सं0-1 द्वारा दिनांक 13.08.12 को लिखित जवाब भेजकर यह कहा गया कि उपरोक्त पाॅलिसी में विधिमानता हितलाभ जो दिनांक 28.01.06 को देय था, वह हमारे कार्यालय द्वारा रू0 15000.00 चेक सं0-0664708 दिनांकित 28.01.06 द्वारा प्रदान किया जा चुका है, जो चेक निगम के खाते से दिनांक 29.03.06 को आहरित की जा चुकी है। विपक्षी सं0-1 द्वारा प्रेशित पत्र को प्राप्त करने के उपरान्त परिवादी अपने भारतीय स्टेट बैंक षाखा गोविन्द नगर पासबुक लेकर गया और विपक्षी सं0-1 से मिलकर यह अनुरोध किया कि परिवादी को आप द्वारा प्रेशित चेक सं0-0664708 प्राप्त नहीं हुई है और न ही परिवादी के खाते में उसका कोई भुगतान हुआ। आप अपने भुगतान दिनांक 29.03.06 को देखकर यह पता करे कि उक्त चेक का भुगतान किस खाते में किया गया है। जिस पर विपक्षी सं0-1 ने कहा कि इस बात का पता करके अवगत कराउॅंगा। लेकिन विपक्षी सं0-1 द्वारा उक्त चेक के भुगतान के सम्बन्ध में कुछ अवगत नहीं कराया गया। इस सम्बन्ध में परिवादी ने लिखित रूप से दिनांक 30.07.12 व 17.02.13 को रजिस्टर्ड पत्र भेजें जाने के उपरान्त आज तक विपक्षी द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया। अतः विवष होकर परिवादी को प्रस्तुत परिवाद याजित करना पड़ा।
3. विपक्षीगण की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र में उल्लिखित अन्यान्य अंषो का खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि बीमा पाॅलिसी के लिए विपक्षीगण द्वारा बीमा धारक पर किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं बनाया गया है। स्वीकार्य रूप से परिवादी ने पाॅलिसी संख्या-230761898, बीमित धनराषि रू0 50,000.00 की पाॅलिसी विपक्षीगण से दिनांक 28.01.12 को प्राप्त की थी, जिसकी छमाही प्रीमियम रू0 2903.00 थी। जिसमें रू0 15000.00 रिफण्ड पांच साल बाद विधिमानता हित लाभ जनवारी, 2006 में
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देय था, जो दिनांक 28.01.06 को विपक्षीगण द्वारा भुगतान किया जा चुका है, जो कि परिवादी द्वारा भारतीय स्टेट बैंक बिल्हौर से आहरण किया जा चुका है। इसी प्रकार परिवादी द्वारा दूसरा विधिमानता हित लाभ चेक सं0- 0344476 दिनांकित 28.01.06 के माध्यम से प्राप्त कर चुका है। परिवादी द्वारा विपक्षीगण के ऊपर झूठा एवं मनगढंत आरोप लगाया जा रहा है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद कलुषित भावना से ग्रसित होकर प्रस्तुत किया गया है। परिवादी द्वारा दिनांक 29.03.06 को विधिमानता हित लाभ आहरित करने के 7 साल व्यतीत हो जाने के बाद दिनांक 30.07.12 को लिखित सूचना विपक्षी सं0-1 के यहां भेजी गयी। जबकि उपरोक्त विधि मानता हित लाभ जनवरी 2006 में प्राप्त होना था। जनवरी,2006 से दिनांक 30.06.12 तक कोई पत्राचार परिवादी द्वारा विपक्षी से नहीं किया गया है तथा अपने परिवाद पत्र में भी समय-सीमा के बावत कोई भी स्पश्ट वर्णन नहीं किया है। परिवादी ने चेक आहरित होने के 7 वर्श बाद वाद दायर किया है। इस सम्बन्ध में मा0 राश्टीय आयोग द्वारा असकरन बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम रिवीजन पिटीषन नं0-1346/2003 के मामले में परिवाद काल सीमा से बाधित होने के कारण सव्यय खारिज किया गया है। अतः परिवादी का परिवाद सव्यय खारिज किया जाये। विपक्षीगण द्वारा परिवादी के प्रार्थनापत्र दिनांकित 30.07.12 के निस्तारण हेतु भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर कानपुर नगर से संपर्क कर दिनांक 13.08.12 को ही पंजीकृत डाक द्वारा परिवादी के पास स्पश्ट सूचना प्रेशित कर बेहतर सेवा प्रदान की गयी है कि आपके पत्रांक कार्यालय में प्राप्त दिनांक 09.08.12 के सम्बन्ध में विदित कराना है कि आपकी पाॅलिसी सं0-230761898 जो माधौ सिंह के जीवन पर है, आपके विधि मानता हित लाभ को दिनांक 28.01.06 को देय था, हमारे कार्यालय द्वारा देय भुगतान, दिनांक 28.01.06 को धनराषि रू0 15000.00 चेक सं0-0664708 द्वारा आहरित किया जा चुका है। परिवादी द्वारा बैंक षाखा बिल्हौर कानपुर नगर व डाक विभाग को विपक्षी न बनाकर कानूनन विधिक भूल की है। जबकि विपक्षी उत्तरदाता जीवन बीमा निगम भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर से लगातार पत्राचार कर रहा है और अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कर रहा
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है। परिवादी भुगतान प्राप्त कर चुकने के बाद भी झूठा आरोप लगा रहा है। इसीलिए परिवादी ने सम्बन्धित बैंक से पत्राचार भी नहीं किया और न ही विपक्षी पार्टी बनाया है। अतः परिवाद सव्यय खारिज किया जाये।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 08.01.15 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में पाॅलिसी की प्रति, विपक्षी द्वारा परिवादी को प्रेशित पत्र दिनांकित 13.08.12 की प्रति एवं परिवादी द्वारा विपक्षी को प्रेशित पत्र दिनांकित 30.07.12 व 17.02.13 की प्रतियां दाखिल किया है।
विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
6. विपक्षीगण ने अपने कथन के समर्थन में ज्ञान प्रकाष पाण्डेय, प्रबन्धक (विधि एवं आ0सं0वि0) का षपथपत्र दिनांकित 25.04.15 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में स्टेटमेंट की प्रति, भारतीय स्टेट बैंक द्वारा विपक्षी को प्रेशित पत्र दिनांकित 10.10.13 की प्रति दाखिल किया है।
निष्कर्श
7. फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक परिषीलन किया गया।
उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि प्रस्तुत मामले में प्रमुख विवाद का विशय यह है कि परिवादी को उसकी पाॅलिसी सं0-230761898 का रू0 15000.00 रिफण्ड प्राप्त नहीं हुआ। जबकि विपक्षीगण की ओर से प्रष्नगत पाॅलिसी स्वयं के कार्यालय द्वारा जारी किया जाना स्वीकार किया गया है। किन्तु परिवादी के उपरोक्त कथन का खण्डन करते हुए विपक्षीगण द्वारा यह कहा गया है कि विपक्षीगण के कार्यालय द्वारा परिवादी के नाम दिनांक 28.01.06 को चेक सं0-0664708 धनराषि रू0 15000.00 की विधिमानता हित लाभ रजिस्टर्ड डाक द्वारा उसके पते पर प्रेशित की गयी है तथा जिसे परिवादी ने दिनांक
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29.03.06 को विपक्षी निगम के खाते से आहरित कर चुका है। विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गयाहै कि दिनांक 30.07.12 को उपरोक्त आहरण के 7 वर्श बाद परिवादी द्वारा लिखित सूचना विपक्षी सं0-1 के कार्यालय में भेजी गयी, जबकि उपरोक्त विधिमानता हित लाभ जनवरी 2006 में प्राप्त होना था। अतः परिवाद कालबाधित होने के कारण खारिज किया जाये। विपक्षीगण की ओर से एक तर्क यह भी किया गया है कि विपक्षीगण लगातार भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर कानपुर से पत्राचार द्वारा संपर्क किया जा रहा है। क्योंकि उक्त बैंक से उपरोक्त धनराषि परिवादी द्वारा आहरित की गयी है। किन्तु परिवादी द्वारा भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर को पक्षकार न बनाये जाने के कारण परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
उपरोक्तानुसार उपरोक्त विशय पर उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा अपने कथन के समर्थन में सूची के साथ एक किता असल बीमा प्रति दिनांकित 19.06.13 तथा स्वयं के द्वारा विपक्षीगण को पंजीकृत डाक द्वारा प्रेशित पत्र दिनांकित 30.07.12 एवं 17.02.13 की प्रतियां प्रस्तुत की गयी हैं। परिवादी की ओर से ही मूल पत्र दिनांकित 13.08.12 प्रेशित द्वारा वरिश्ठ षाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम बहक परिवादी प्रस्तुत किया गया है। जबकि विपक्षीगण की ओर से प्रति षपथपत्र के साथ संलग्नक ’क’ के रूप में विपक्षी बीमा कंपनी की चेक इनकैष किये जाने से सम्बन्धित स्टेटमेंट की सत्यापित प्रति दाखिल की गयी है, जिसमें दिनांक 28.01.06 को प्रष्नगत चेक सं0-0664708 बावत रू0 15000.00 दिनांक 29.03.06 को इनकैष किया जाना प्रमाणित होता है। विपक्षी की ओर से संलग्नक ’ख’ के रूप में वरिश्ठ षाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम बिल्हौर को प्रेशित पत्र द्वारा एन.के. गर्ग षाखा प्रबन्धक भारतीय स्टेट बैंक बिल्हौर की सत्यापित प्रति प्रस्तुत की गयी है। उक्त पत्र के अवलोकन से विदित हेाता है कि उपरोक्त चेक सं0-0664708 भारतीय स्टेट बैंक खटीमा द्वारा भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर में प्रस्तुत की गयी थी, जिसका भुगतान
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सर्विस कलेक्षन के माध्यम से किया गया हे। इसके अतिरिक्त अन्य कोई विवरण षाखा प्रबन्धक भारतीय स्टेट बैंक बिल्हौर द्वारा नहीं दिया गया है। विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त प्रलेखीय साक्ष्यों से यह सिद्ध नहीं हेाता है कि विपक्षी द्वारा प्रेशित उपरोक्त चेक सं0-0664708 का आहरण परिवादी द्वारा किया गया है।
जहां तक विपक्षीगण का यह कथन है कि परिवादी का परिवाद धारा-24 उपभेाक्ता संरक्षण अधिनियम से बाधित है। इस सम्बन्ध में पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित हेाता है कि परिवादी की ओर से सूची के साथ विपक्षीगण को प्रेशित पत्र दिनांकित 30.07.12 एवं 17.02.13 की कार्बन प्रतियां प्रस्तुत की गयी हैं। परिवाद दिनांक 06.08.13 को फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। जिससे यह सिद्ध होता है कि फोरम के समक्ष परिवाद समयावधि में प्रस्तुत किया गया है। क्योंकि परिवादी के कथनानुसार जब विपक्षी द्वारा उसके उपरोक्त पत्रों के अनुपालन में भी प्रष्नगत विधिमानता हित लाभ नहीं दिया गया, तब उसके द्वारा विवष होकर परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षीगण की ओर से विधि निर्णय असकरन बजाज बनाम लाइफ इंष्योरेन्स कार्पोरेषन आॅफ इण्डिया, रिवीजन पिटीषन नं0-1346/2003 आदेष 14.10.05 द्वारा मा0 राश्टीय आयोग एवं विधि निर्णय यू0पी0 को- आॅपरेटिव यूनियन बनाम लाइफ इंष्योरेन्स कार्पोरेषन आॅफ इण्डिया, रिवीजन पिटीषन सं0-2766/2007 निर्णीत दिनांकित 12.09.11 द्वारा मा0 राश्टीय आयोग नई दिल्ली में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है। मा0 राश्टीय आयोग का संपूर्ण सम्मान रखते हुए स्पश्ट करना है कि तथ्यों की भिन्नता के कारण उपरोक्त विधि निर्णय का लाभ प्रस्तुत मामले में लागू नहीं होता है। क्योंकि प्रस्तुत मामला उपरोक्त प्रस्तर में दिये गये निश्कर्श से यह सिद्ध होता है कि परिवादी द्वारा फोरम के समक्ष समयावधि में परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षीगण की ओर से एक तर्क यह भी किया गया है कि परिवादी भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर को पक्षकार नहीं बनाया गया है,
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इसलिए परिवाद पक्षकारों के असंयोजन के दोश के कारण खारिज किये जाने येाग्य है। इस सम्बन्ध में परिवादी की ओर से यह तर्क किये गये हैं कि चूॅकि उसको उपरोक्त धनराषि विपक्षी बीमा कंपनी से प्राप्त होनी थी भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर उपरोक्त धनराषि देने के लिए उत्तरदायित्व नहीं था। इसलिए भारतीय स्टेट बैंक बिल्हौर को परिवादी द्वारा पक्षकार नहीं बनाया गया। इस सम्बन्ध में उभयपक्षों को उपरोक्तानुसार सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि विपक्षी बीमा कंपनी का कथन है कि प्रष्नगत धनराषि रू0 15000.00 चेक सं0- 0664708 के द्वारा भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर से आहरित की गयी है। जबकि भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर के षाखा प्रबन्धक द्वारा विपक्षीगण को पत्र लिखकर यह अवगत कराया गया कि उपरोक्त चेक भारतीय स्टेट बैंक खटीमा के द्वारा उनके यहां प्रस्तुत की गयी थी, जो कि सर्विस कलेक्षन के माध्यम से आहरित की गयी है। भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर के द्वारा यह नहीं कहा गया कि उक्त चेक परिवादी माधौ सिंह के द्वारा अपने खाते में आहरित की गयी है। अतः फोरम इस मत का है कि प्रष्नगत चेक के आहरण-वितरण का विवाद विपक्षीगण एवं भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर के मध्य है और प्रष्नगत विधिमानता हितलाभ का विवाद परिवादी एवं विपक्षीगण के मध्य है। इसलिए प्रस्तुत मामले में परिवादी द्वारा भारतीय स्टेट बैंक षाखा बिल्हौर को पक्षकार न बनाया जाना आवष्यक नहीं है। अतः फोरम का यह मत है कि परिवाद पक्षकारों के असंयोजन के दोश से दूशित नहीं है। परिवादी द्वारा अपने षपथपत्रीय तथा प्रलेखीय साक्ष्यों से यह साबित किया जा चुका है कि उसे प्रष्नगत विधिमानता हित लाभ रू0 15000.00 प्राप्त नहीं हुआ है। विपक्षीगण अपना कथन साबित नहीं कर सकें हैं।
उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं उपरोक्तानुसार दिये गये निष्कर्श से फोरम इस निर्णय पर पहुॅचता है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से परिवादी को प्रष्नगत विधिमानता हितलाभ रू0 15000.00 मय 8 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से परिवाद प्रस्तुत करने की
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तिथि से तायूम वसूली हेतु तथा परिवाद व्यय दिलाये जाने हेतु स्वीकार किये जाने योग्य है। जहां तक परिवादी की ओर से याचित अन्य उपषम का प्रष्न है- उक्त याचित उपषम के लिए परिवादी की ओर से कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण परिवादी का प्रस्तुत परिवाद उक्त अतिरिक्त याचित उपषम के लिए स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
ःःःआदेषःःः
8. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षीगण, परिवादी को उसके जीवन बीमा पाॅलिसी संख्या- 230761898 से सम्बन्धित विधिमानता हित लाभ रू0 15000.00 जो कि दिनांक 28.01.06 को देय थी, को प्रस्तुत परिवाद योजित करने की तिथि से तायूम वसूली 8 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से अदा करे तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय भी अदा करे।
(पुरूशोत्तम सिंह) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर। फोरम कानपुर नगर।
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
(पुरूशोत्तम सिंह) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर। फोरम कानपुर नगर।