BINDI BALA YADAV filed a consumer case on 03 Dec 2019 against LIC in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/71/2009 and the judgment uploaded on 24 Dec 2019.
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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 71 सन् 2009
प्रस्तुति दिनांक 30.03.2009
निर्णय दिनांक 03.12.2019
श्रीमती बिन्दु बाला यादव, वयस्क, पत्नी श्री अपरबल यादव, एडवोकेट निवासिनी मोहल्ला नरौली, निकट टैक्सी स्टैण्ड पोस्ट व तहसील- सदर, जिला- आजमगढ़। पत्राचार हेतु पता- C/O. श्री अपरबल यादव, एडवोकेट दीवानी कचहरी, आजमगढ़, 276001. ...........................................................................................................परिवादी।
बनाम
..............................................................................................विपक्षी प्रथम पक्ष।
..........................................................................................विपक्षी द्वितीय पक्ष।
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा राम चन्द्र यादव “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि विपक्षी संख्या 01 के यहाँ से उसने जीवन बीमा पॉलिसी संख्या 290115490 लिया जिसका प्लान/टर्म 74/15, बीमित धनराशि 50,000/- रुपये व प्रारम्भ तिथि 28.11.1993 एवं मेच्योरिटी तिथि 28.11.2008 एवं सालाना प्रीमियम 4,063/- रुपये थी। जिसका एजेन्ट विपक्षी संख्या 02 जितेन्द्र प्रसाद यादव एवं विकास अधिकारी विपक्षी संख्या 03 रहे हैं। विपक्षी संख्या 02 ने हमारे पति का भी जीवन बीमा किया है जिसकी पॉलिसी संख्या 290110043 है तथा विपक्षी संख्या 02 के आवास पर बराबर आने-जाने के कारण उसके पति का विपक्षी संख्या 02 पर काफी विश्वास था। विपक्षी संख्या 02 पहले हमारे व हमारे पति की जीवन बीमा पॉलिसी की प्रीमियम की धनराशि हमारे आवास पर आकर ले जाता था और विपक्षी संख्या 01 के यहाँ जमा कर रसीद भी दे जाता था। 2003 में पॉलिसी के विरुद्ध मनी बैक देय था एवं विपक्षी संख्या 02 परिवादिनी की पॉलिसी बॉण्ड माग कर ले गया एवं विपक्षी संख्या 01 के यहां से मनी बैक की रकम का चेक हमें प्राप्त हुआ। परन्तु बारहा मांग किये जाने पर भी विपक्षी संख्या 02 ने हमारा पॉलिसी बाण्ड हमें वापस नहीं किया अलबत्ता इसे अपने पास सुरक्षित रखे जाने की बात कहता रहा एवं आपसी वैश्वासिक संबंधों के कारण परिवादिनी ने P.T.O.
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इसे अन्यथा नहीं लिया। फरवरी, 2007 में परिवादिनी के पति द्वारा यह ज्ञात हुआ कि विपक्षी संख्या 02 द्वारा विपक्षी संख्या 01 के विभिन्न कर्मियों एवं विपक्षी संख्या 03 की मिलीभगत से अपने पॉलिसीधारकों के साथ काफी बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी किया है। उसके पति ने जीवन बीमा पॉलिसी का विपक्षी संख्या 01 के यहां से स्टेटस निकलवाया और तब ज्ञात हुआ कि विपक्षी संख्या 02 ने हमारे पति की जीवन बीमा पॉलिसी की किश्त रु. 15,512/- एवं उसकी पॉलिसी की माहवार किश्त जो नवम्बर 2005 में देय मैं 8,627/- रुपये नहीं जमा किया है और यह भी ज्ञात हुआ कि विपक्षी संख्या 01 के यहां से पॉलिसी के विरुद्ध दिनांक 29.09.2005 को रु. 29,750/- रुपये का ऋण मंजूर व वितरित कर दिया गया है। जिसके सम्बन्ध में परिवादिनी ने न तो कभी आवेदन किया था न तो इस सम्बन्ध में कोई भी हस्ताक्षर ही किया है न हमें किसी प्रकार के ऋण की कोई आवश्यकता है। परिवादिनी ने विपक्षी संख्या 02 को माह नवम्बर, 2005 में प्रीमियम की रकम रुपये 4,063/- एवं माह नवम्बर 2006 में प्रीमियम की रकम 4,063/- का भुगतान किया है जिसे विपक्षी संख्या 02 ने उसके साथ विश्वासघात करके विपक्षी संख्या 01 के यहाँ जमा ही नहीं किया और कथित ऋण के सम्बन्ध में पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि विपक्षी संख्या 02 ने विपक्षी संख्या 03 एवं अन्य कर्मचारियों की मिलीभगत से हमारे पॉलिसी बॉण्ड को विपक्षी संख्या 01 के अभिलेखों पर हमारे जाली व फर्जी हस्ताक्षर बनाते हुए रुपये 29,750/- मात्र का ऋण मंजूर करवा लिया एवं ऐसी ऋण की राशि विपक्षी संख्या 01 के एकाउन्ट पेयी चेक संख्या 979604 के द्वारा वितरित हुई। ऋण राशि के सम्बन्ध में जारी चेक के लिए भी विपक्षी संख्या 01 का दायित्व था कि वह चेक को सही व्यक्ति तक पहुंचाना सुनिश्चित करे, परन्तु विपक्षी संख्या 01 की लापरवाही एवं असावधानी के कारण यह चेक भी विपक्षी संख्या 02 को बिना किसी एथारिटी आदि के प्रदान कर दिया गया। इसके पूर्व विपक्षी संख्या 01 के यहां से जारी समस्त चेक हमें रजिस्टर्ड डाक से मिले थे। परन्तु प्रश्नगत चेक को विपक्षी संख्या 02 ने हमारे निर्देश के बगैर प्राप्त कर लिया। उसके नाम से ऋण के चेक को विपक्षी संख्या 02 ने विपक्षी संख्या 04 के यहां फर्जी हस्ताक्षर से उसके नाम का खाता खोला और उसे दे दियि। कालान्तर में विपक्षी संख्या 01 के जानिब से पत्र सन्दर्भ 285/सतर्कता/9811 दिनांक 27.06.2008 प्राप्त हुआ। परन्तु इसमें महज उसका नाम विपक्षी संख्या 01 के यहाँ से हुए जाली व फर्जी ऋण का चेक नम्बर व रकम सही लिखी थी, परन्तु ऋण की तिथि 22.09.2006 लिखी थी। जिस पर उसके पति के जानिब से पत्र दिनांक 28.07.2008 प्रेषित कर पुनः आवश्यक अनुतोष की याचना किया परन्तु फिर भी विपक्षी संख्या 01 के स्तर से कोई भी कार्यवाही नहीं हुई। पॉलिसी मेच्योर होने पर विपक्षी संख्या 01 हमारी शिकायतों की अनदेखी करते हे अपने पत्र दिनांक 28.11.2008 के साथ उसकी पॉलिसी की कुल परिपक्वता मूल्य. रू. 62,450/- में से कथित ऋण की रकम रू. 29,750/- एवं ब्याज रू. 9,632/- टोटल रू. 39,382/- की कटौती करते हुए मेच्योरिटी राशि के तौर पर महज रु. 23,068/- की रकम का चेक प्रदान किया। पॉलिसी की बहुत ही कम मेच्योरिटी राशि मिलने के बाद परिवादिनी बहुत हैरान व परेशान हुई। उसे बहुत ही कम धनराशि मिली थी। विपक्षी द्वितीय पक्ष भी सेवाओं की त्रुटि आदि के कारण उपरोक्त रकम को विपक्षीगण प्रथम पक्ष के साथ ही संयुक्ततः एवं पृथक-पृथक आधार पर अदा करने के लिए जिम्मेदार हैं, बहरहाल विपक्षी तृतीय पक्ष को इस परिवाद में उनसे सम्बन्धित सूचनाए उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पक्षकार मुकदमा बनाया जा रहा है। P.T.O.
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साथ ही यह भी कि यदि विपक्षी संख्या 05 के स्तर से किसी प्रकार की त्रुटि, लापरवाही या असावधानी अथवा सेवाओं की अल्पता पायी जाए तो ऐसी स्थिति में विपक्षी संख्या 05 के विरुद्ध भी दादरसी प्रदान किए जाने हेतु याचना की है। अतः माननीय फोरम द्वारा विपक्षीगण को पृथक-पृथक व संयुक्ततः के आधार पर अथवा जिस भी विपक्षी को जिम्मेदार पाया जाए उसके विरुद्ध उसकी उपरोक्त जीवन बीमा पॉलिसी संख्या 290115490 के विरुद्ध धारा-15 परिवाद पत्र हाजा में वर्णित नुकसानात की राशि रू. 72,508/- मय ब्याज दिलवाया जाए।
परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादिनी द्वारा चेक एमाउन्ट प्राप्त करने की रसीद प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी संख्या 05 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, लेकिन उसे पक्षकार मुकदमा से काट दिया गया है।
विपक्षी संख्या 04 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा गया है कि उसके विरुद्ध कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं होता है। उसके यहाँ बचत खाता संख्या 405214 दिनांक 23.09.2005 ई. को उक्त खाते में चेक संख्या 979604 दिनांक 22.09.2005 को जमा किया गया तथा उसका नियमानुसार भुगतान भी किया गया। याचा का यह कहना गलत है कि विपक्षी ने सारे नियमों का उल्लंघन किया। अतः परिवाद खारिज किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने परिवाद पत्र समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी संख्या 01 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया गया है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि विपक्षी संख्या 02 उसके अभिकर्ता थे और उसी ने बीमा करवाया था। बीमा शर्तों के अनुसार जीवित हित लाभ माह नवम्बर 2003 का 12,500/- रूपये का चेक संख्या 0466786 दिनांक 16.12.2003 को भुगतान किया गया था। उक्त पॉलिसी के अन्तर्गत परिवादिनी द्वारा माह नवम्बर 2003 से प्रीमियम न जमा करने के कारण पॉलिसी लैप्स थी जिसे परिवादिनी द्वारा ऋण राशि 29,750/- से लेकर दिनांक 22.09.2005 को पुनर्चलन कराया तथा पॉलिसी पर देय प्रीमियम माह नवम्बर 2003 से माह नवम्बर 2004 का प्रीमियम व ब्याज को समायोजित करते हुए शेष ऋण रू. 20,720/- रुपये का चेक संख्या 979604 दिनांक 22.09.2005 को दिया। पॉलिसी की पूर्णावधि तिथि 28.11.2008 को परिपक्वता मूल्य 62,450/- रुपये से पालिसी पर स्वीकृत ऋण राशि 29,750/- व ब्याज 9,632/- कुल धनराशि 39,382/- रुपये समायोजित करके शेष धनराशि 23,068/- का भुगतान कर दिया गया। विपक्षी ने किसी भी प्रकार की सेवा में कमी नहीं किया है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने परिवाद पत्र समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षीगण के अनुपस्थिति में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवाद पत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादिनी के साथ जो भी फ्राड किया गया है वह विपक्षी संख्या 01 के एजेन्ट द्वारा किया गया है। यदि हम न्याय निर्णय “हंसद जे. शाह एवं अन्य बनाम ली.सी. एल.आई.सी. इण्डिया” जो कि 04.04.1997 को माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा निस्तारित किया गया है। इसमें यह कहा गया है कि एल.आई.सी. का एजेन्ट बीमा की धनराशि का प्रीमियम प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है। चूंकि विपक्षी संख्या P.T.O.
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02 व 03 विपक्षी संख्या 01 के एजेन्ट हैं। अतः उपरोक्त न्याय निर्णय के आलोक में उनके द्वारा कृत कार्य के लिए विपक्षी संख्या 01 उत्तरदायी नहीं है। यहाँ इस बात का भी उल्लेख कर देना आवश्यक है कि मुकदमा एल.आई.सी. एजेन्ट व डाकघर के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है। ऐसी स्थिति में हमारे विचार से परिवाद मिसज्वाइंडर ऑफ पार्टी के दोष से बाधित है।
उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है।
आदेश
परिवाद खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 03.12.2019
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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