ARUN KUMAR SRIVASTAVA filed a consumer case on 05 Jan 2021 against LIC in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/86/2013 and the judgment uploaded on 12 Jan 2021.
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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 86 सन् 2013
प्रस्तुति दिनांक 19.06.2013
निर्णय दिनांक 05.01.2021
अरुण कुमार श्रीवास्तव पुत्र विश्वनाथ लाल श्रीवास्तव, ग्राम- देवरिया लाला, पोस्ट- देवरिया बुजुर्ग, तहसील- आलापुर, जनपद- अम्बेडकर नगर।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने अपनी पत्नी के नाम से दिनांक 19.03.2006 को एक लाख रुपए का जीवन बीमा पॉलिसी क्रय किया था, जिसकी पॉलिसी संख्या 293353657 है और वार्षिक अदायगी 4224/- रुपया है। जीवन बीमा क्रय करते समय परिवादी की पत्नी पूरी तरह से स्वस्थ थी। जून 2006 में उसकी पत्नी श्रीमती मीना श्रीवास्तव अचानक तीव्र ज्वर से पीड़ित हो गयी जिसका इलाज परिवादी ने डॉक्टरिं से कराया किन्तु फायदा न होने के कारण वह दिनांक 13.07.2006 को एस.जी.पी.जी.आई. लखनऊ ले गया। वह अपनी पत्नी का 05.08.2006 तक वहां इलाज कराया और उपरोक्त हॉस्पिटल में 05.08.2006 को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। घर पर आने पर उसकी पत्नी पूरी तरह से स्वस्थ थी। इस बीच 10.08.2006 को उसकी पत्नी की तबियत अचानक पुनः खराब हो गई और उन्हें पुनः पी.जी.आई. लखनऊ में भर्ती कराया, जहाँ इलाज के दौरान दिनांक 13.08.2006 को उनका देहान्त हो गया। परिवादी ने अपनी पत्नी के मृत्यु के पश्चात् दावा बीमा प्रस्तुत किया और सारी औपचारिकताएं पूरा किया और सारे कागजात भी लगाए। उसके बावजूद भी विपक्षी संख्या 01 ने उसके दावे को स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचना छिपाए जाने के कारणों से दिनांक 30.09.2007 को निरस्त कर दिया। अतः परिवादी को विपक्षी द्वारा जीवन बीमा पॉलिसी संख्या 293353657 का दावा धनराशि मुo एक लाख रुपया मय 12% वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान कराए जाने हेतु आदेश पारित किया जाए तथा आर्थिक व मानसिक क्षति हेतु 50,000/- रुपया भी दिलवाया जाए।
P.T.O.
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परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
कागज संख्या 14ग जीवन बीमा की तरफ से प्रस्तुत जवाबदावा है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में यह कहा है कि धारा-45 बीमा अधिनियम 1938 के अनुसार बीमा पॉलिसी जारी होने की तिथि से दो साल के अन्दर यदि पॉलिसीधारक की मृत्यु हो जाती है तो जाँच अधिकारी द्वारा मृत्यु के कारणों की जाँच की जाती है और तार्किक तथ्यों को छिपाने की स्थिति में पॉलिसी खण्ड कर दी जाती है। प्रस्तावक द्वारा बीमा प्रस्ताव में उल्लिखित तथ्यों को पूरी तरह से सत्य मानकर बीमा कम्पनी द्वारा जोखिम वहन किया जाना स्वीकार अथवा अस्वीकार किया जाता है। प्रस्तावक द्वारा प्रस्ताव पत्र के अन्त में यह स्पष्ट घोषणा की जाती है कि उसके प्रस्ताव पत्र में दिए गए सारे तथ्यों को सुनकर, समझकर हस्ताक्षर किया है। वास्तविकता यह है कि श्रीमती मीना पत्नी अरुण कुमार विपक्षी संख्या 01 के यहां से टेबुल/टर्म 174/20/20 के अन्तर्गत जीवन बीमा मुo एक लाख का कराया था, जिसका प्रीमियम रु. 4,224/- वार्षिक , जोखिम तिथि 27.03.2006 लिया था। श्रीमती मीना कुमारी ने उस बीमा में अपने पति को नामिनी नियुक्त किया था। पॉलिसी लेने के पश्चात् बीमाधारक की 13.08.2006 को मृत्यु हुई, जिससे पॉलिसी कालान्तर 04 माह 16 दिन था। अतएव यह पॉलिसी निर्विवाद न होने के कारण इसके सम्बन्ध में नियमानुसार जाँच करायी गयी तो यह पाया गया कि उसने स्वयं कुछ तथ्यों को छिपाया था। जाँच के दौरान यह पाया गया कि उसकी मृत्यु एस.जी.पी.जी.आई. लखनऊ में सिस्टेमिक लुपस इरीथेमेटोसस रोग से पीड़ित होने के कारण दिनांक 13.08.2006 को बीमा प्रारंभ तिथि से 4 माह 16 दिन बाद इलाज के दौरान हुई थी। एस.जी.पी.जी.आई. लखनऊ से प्राप्त प्रपत्र बी,बी1 व बी.एच.टी. के अनुसार बीमाधारक बीमा लेने के पूर्व से पॉलीयारथ्रूटिस रोग से पांच वर्ष तर पस्टुला ओवर बॉडी रोग से पिछले तीन वर्षों से तथा मधुमेह रोग से 6 माह से पीड़ित दिया गया गया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मीना कुमारी ने तथ्यों को छिपाया था और उसने धोखे में रखकर बीमा करा लिया। अतः परिवाद खारिज किया जाए।
भारतीय जीवन बीमा निगम की तरफ से अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी द्वारा कागज संख्या 24ग बीमा की पॉलिसी, कागज संख्या 24ग/8,24ग/9 चिकित्सा सम्बन्धी प्रमाण-पत्र व कागज संख्या 24ग/10 बीमा पॉलिसी के निरस्तीकरण के सम्बन्ध में आदेश प्रस्तुत किया गया है।
बहस के दौरान कोई उपस्थित नहीं था। अतः पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के पैरा 03 में यह कथन किया गया है
P.T.O.
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कि धारा-45 बीमा अधिनियम 1938 के अनुसार बीमा पॉलिसी जारी होने की
तिथि से दो साल के अन्दर पॉलिसीधारक की मृत्यु होने पर जाँच अधिकारी द्वारा मृत्यु के कारणों की जाँच की जाती है और कोई तार्किक तथ्य छिपाने की स्थिति में बीमा खण्डित कर दिया जाता है। परिवाद पत्र के पैरा 02 में यह कथन किया है कि दिनांक 19.03.2006 को मीना कुमारी ने एक लाख रुपए की पॉलिसी क्रय किया था जिसका वार्षिक किश्त 4,224/- रुपए थी। परिवादी की पत्नी बीमा कराए जाने के पांच माह के अन्दर ही मर गयी थी। विपक्षी बीमा कम्पनी का यह कथन है कि नियमानुसार तथ्य छिपाए जाने सम्बन्धी विषय का अन्वेषण करवाया गया तो यह पाया गया कि बीमाधारक ने अपनी बीमारी को छिपाकर बीमा करवाया है और उस आधार पर उसका बीमा रद्द कर दिया गया। यह बीमारी जब किसी व्यक्ति का इम्यूनो सिस्टम कमजोर पड़ जाता है तो उसे होती है, जिससे कि उसके जोड़ों को, चमड़ों को, किडनी को, ब्लड सेल को, ब्रेन को, हर्ट को तथा लंग को प्रभावित करती है। बीमा कराए जाने वक्त यह सुनिश्चित है कि बीमा कम्पनी ने अपने डॉक्टर द्वारा बीमाधारक का स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया होगा। बीमा कम्पनी द्वारा प्रलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है और यह बीमारी किसी व्यक्ति को कभी भी हो सकती है। अतः बीमा कम्पनी का यह कहना गलत है कि बीमा कराने के समय ही उसे उपरोक्त बीमा थी, जिसकी वजह से उसकी मृत्यु हुई। यह बीमारी दवाओं से भी ठीक हो जाती है।
उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या 01 को आदेशित किया जाता है कि वह अन्दर 30 दिन परिवादी को मुo 1,00,000/- (रु. एक लाख मात्र) रुपया अदा करे, जिस पर परिवाद दाखिला के दिन से अन्तिम भुगतान तक परिवादी 09% वार्षिक ब्याज पाने का हकदार होगा। परिवादी को आर्थिक व मानसिक क्षति के लिए मुo10,000/- (रु. दस हजार मात्र) रुपया भी अदा करें।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 05.01.2021
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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