Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/79/2017

ANURAG KUMAR - Complainant(s)

Versus

LIC - Opp.Party(s)

TIRTH RAJ

08 Aug 2019

ORDER

1

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 79 सन् 2017

प्रस्तुति दिनांक 18.04.2017

                                                                                                निर्णय दिनांक 08.08.2019

अनुराग कुमार उम्र तखo 28 साल पुत्र स्वo गुलाब राय उर्फ गुलाबचन्द भण्टू साकिन मौजा- गोवर्धनपुर, पोस्ट- रासेपुर, तहसील व थाना- मेंहनगर, जिला- आजमगढ़। हालमुकाम- रघुवंशी जनरल स्टोर्स ब्रह्मस्थान सहादतपुरा, तहसील- सदर, जनपद- मऊ।

     .........................................................................................परिवादी।

बनाम

  1. क्षेत्रीय प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम क्षेत्रीय, कार्यालय गोरखपुर।
  2. शाखा प्रबन्धक, भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय- सैदपुर गाजीपुर, जिला- गाजीपुर।
  3. श्रीराम यादव पुत्र श्री पवारू (बीमा अभिकर्ता भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा- सैदपुर) साकिनि- टोड़रपुर, पोस्ट- रासेपुर, तहसील व थाना- मेंहनगर, जिला- आजमगढ़।
  4.  

उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा राम चन्द्र यादव “सदस्य”

  •  

कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह विपक्षीगण का उपभोक्ता है। क्योंकि विपक्षी द्वारा परिवादी के पिता स्वर्गीय गुलाब राय उर्फ गुलाब चन्द (भण्टू) की जीवन बीमा पॉलिसी संख्या 288783105 डी.ओ.सी. दिनांक 21.03.2012 को पॉलिसी बेची थी जिसका प्रीमियम 2426/- रुपये था। परिपक्वता राशि 2,50,000/- रुपया और बीमित व्यक्ति के मृत्यु के बाद नामिनी को पैसा मिलना था। परिवादी नामिनी है। उसके पिता ने अपने जीवनकाल में अपनी सारी किस्त जमा किया। उसके पिता की मृत्यु दिनांक 22.04.2015 को हो गयी। उनके क्रियाकर्म के बाद हम परिवादी ने विपक्षी संख्या 03 ने बीमा राशि के भुगतान के सन्दर्भ में कहा, जिस पर उनके द्वारा परिवादी से पॉलिसी का क्लेम क्लियर होने के बाद बीमित राशि आपके खाते में यूनियन बैंक में चली जाएगी। दिनांक 19.11.2016 को परिवादी के खाते में 7,154/- रुपये प्राप्त हुआ जिससे परिवादी को आश्चर्य हुआ। उसने विपक्षी संख्या 03 से सम्पर्क किया तो उसने कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया। परिवादी ने विपक्षी संख्या 03 व 02 से इस सन्दर्भ में बार-बार आग्रह किया कि वह पॉलिसी के अनुरूप बीमित राशि का भुगतान करावें, परन्तु उनके द्वारा कोई भी उपक्रम नहीं किया गया। जिस पर बाध्य होकर परिवादी ने अपने वकील के माध्यम से विधिक नोटिस भेजा। जिसके जवाब में दिनांक 02.03.2017 को                                                         P.T.O.

 

 

2

परिवादी के अधिवक्ता को प्रेषित किया गया, जिसमें उनके द्वारा प्रदत्त धनराशि 7,154/- रुपये को पूर्ण भरपाई मानकर जवाब दिया गया था और यह बताया गया कि किस्त सितम्बर 2014 के बाद प्रदान नहीं किया गया। अतः विपक्षीगण को आदेशित किया जाए कि वह सम्पूर्ण धनराशि 2,50,000/- रुपये क्षतिपूर्ति 50,000/- रुपया तथा वाद व्यय विपक्षीगण द्वारा प्रदत्त 7,154/- रुपये को समायोजित करते हुए प्रदान करें।

परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 7/1 नोटिस, 7/2 रसीद रजिस्ट्री, 7/3 प्रीमियम जमा करने की रसीद प्रस्तुत किया है।

विपक्षी संख्या 02 की तरफ से जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा गया है कि उसके द्वारा पॉलिसी किया जाना स्वीकार है और जोखिम की तिथि 21.03.2012 व देय अर्धवार्षिक प्रीमियम 2426/- रुपया थी। शेष कथन अस्वीकार है। बीमित धनराशि ढाई लाख के बजाय एक लाख रुपया ही थी। परिवाद का पैरा 03 अस्वीकार किया गया है। आगे यह कहा गया है कि बीमित व्यक्ति द्वारा पॉलिसी को माह मार्च 2014 के बाद कोई प्रीमियम न जमा करना स्वीकार है तथा परिवादी का यह कथन हरगिज स्वीकार नहीं है कि मार्च 2015 का प्रीमियम जमा किया है। बहरहाल, परिवादी द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों के आधार पर बीमित व्यक्ति श्री गुलाब राय की मृत्यु होना स्वीकार है। परिवाद पत्र का पैरा 05 स्वीकार है और 6 अस्वीकार है। परिवाद पत्र का पैरा 7,8,10 अस्वीकार है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि परिवादी ने सही तथ्यों को छिपाकर परिवाद प्रस्तुत किया है। भारतीय जीवन बीमा निगम सैदपुर शाखा जिला गॉजीपुर भारतीय जीवन बीमा निगम मण्डल कार्यालय वाराणसी के अधीनस्थ शाखा है जिसका क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर में स्थित है। परिवादी के पिता के जीवनकाल में ही उपरोक्त जीवन बीमा पॉलिसी कालातीत हो गयी। गुलाब राय मार्च 2014 का प्रीमियम जमा नहीं किया। उसके पश्चात् माह सितम्बर 2014 या उसके बाद तक प्रीमियम नहीं जमा किया। जिसके कारण माह अक्टूबर 2014 के अन्त में उपरोक्त जीवन बीमा पॉलिसी कालातीत हो गयी। परिवादी को अनुकम्पा धनराशि प्रदान कर दी गयी। अतः ऐसी स्थिति में परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है।

विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 13/1 जीवन सरल की पॉलिसी छायाप्रति, शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा द्वारा जारी पत्र, कागज संख्या 13/3 अनुकम्पा धनराशि 7,154/- रुपये प्राप्त करके अनुराग कुमार द्वारा                                                            P.T.O.

 

 

3

किए गए दस्तखत की छायाप्रति, इसके पश्चात् एक कागज और की छायाप्रति प्रस्तुत की गयी है।

परिवादी अनुपस्थित। विपक्षी उपस्थित। विपक्षी को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने परिवाद में यह कहा है कि उसके पिता की मृत्यु दिनांक 22.04.2015 को हो गयी थी। उसने बीमा कम्पनी को नोटिस भेजा था। नोटिस के जवाब में बीमा कम्पनी ने यह कहा कि उसके पिता ने सितम्बर 2014 के बाद कश्त नहीं जमा किया। इसलिए उसका बीमा बन्द कर दिया गया। विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा है कि परिपक्वता की तिथि पर एक लाख रुपये की धनराशि मिलनी थी, लेकिन परिवादी ने गलत ढंग से परिवाद पत्र में ढाई लाख रुपये की धनराशि प्रदर्शित किया है। जवाबदावा का पैरा 18 में यह कहा गया है कि बीमा पॉलिसी कालातीत होने के बाद उसने कभी भी पुनर्चलन आदि नहीं कराया गया। अतः कालातीत पॉलिसी के सम्बन्ध में परिवादी विपक्षी संख्या 02 का उपभोक्ता नहीं है। परिवादी को अनुकम्पा धनराशि प्रदान कर दी गयी है। अतः वह दाखिल नहीं कर सकता है। विपक्षी संख्या 02 ने कागज संख्या 13/3 की छायाप्रति प्रस्तुत किया है, जिसमें 7,154/- रुपये की अनुकम्पा धनराशि परिवादी ने प्राप्त कर इस पर अपना हस्ताक्षर बनाया है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि वह मृतक का एक मात्र वारिश था। उसने परिवाद पत्र में केवल अपने को मृतक का नामिनी बनाया है। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “चलम्मा बनाम तिलागी एवं अन्य 2010 ए.सी.जे. 1487 सुप्रीम कोर्ट” का यदि अवलोकन करने तो इस न्याय निर्णय में यह अभिधारित किया है कि इन्श्योरेन्स पॉलिसी में केवल नामिनी का नाम दर्ज होने से वह इन्श्योरेन्स की धनराशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। मृतक के केवल विधिक वारिश ही उक्त धनराशि को प्राप्त करने के लिए हकदार है। परिवादी अनुकम्पा धनराशि प्राप्त कर उस पर अपना हस्ताक्षर किया है। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “ओरिएण्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड वर्सेस सोनी चेरिन II (1994) सी.पी.जे. 13 सुप्रीम कोर्ट” का यदि हम अवलोकन करें तो माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अभिधारित किया है कि कोई भी व्यक्ति पॉलिसी में लिखी गयीं बातों से इन्कार नहीं कर सकता। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि अनुकम्पा धनराशि के फॉर्म जो उसने हस्ताक्षर किया है वह गलत किया है। एल.आई.सी. की शर्तों में यह लिखा हुआ है कि अनुकम्पा धनराशि एल.आई.सी. के मेहरबानी पर आधारित होता है जिसको कि वह प्रदान करती है और परिवादी ने उसे प्राप्त कर लिया है। चूंकि परिवादी ने अनुकम्पा धनराशि प्राप्त कर लिया है। अतः वह इसके पश्चात् बीमा कम्पनी का कन्ज्यूमर नहीं माना जा सकता है।

 

 

 

 

4

                                                           उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद खण्डित किए जाने योग्य है।

आदेश

परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

 

 

 

 

                                                राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                   (सदस्य)                         (अध्यक्ष)

 

                              दिनांक 08.08.2019

                                            यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

                                            राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                            (सदस्य)                          (अध्यक्ष)

 

 

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