जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
वाद संख्या 655/2012
श्री अजय सिंह,
पुत्र श्री पूरनलाल,
निवासी- 448/830, नेपियर रोड,
भाग-2, घासमंडी, ठाकुरगंज, लखनऊ।
......... परिवादी
बनाम
1. क्षेत्रीय प्रबंधक,
भारतीय जीवन बीमा निगम,
उत्तर मध्य क्षेत्रीय कार्यालय, 16/78,
महात्मा गांधी मार्ग, कानपुर।
2. प्रबंधक, नगर शाखा,
द्वितीय तल, जीवन भवन-2,
नवल किशोर रोड, हजरतगंज,
लखनऊ।
..........विपक्षीगण
उपस्थितिः-
श्री विजय वर्मा, अध्यक्ष।
श्रीमती अंजु अवस्थी, सदस्या।
श्री राजर्षि शुक्ला, सदस्य।
निर्णय
परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण से बीमे की धनराशि रू.5,00,000.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज, क्षतिपूर्ति के रूप में रू.50,000.00 तथा वाद व्यय दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
संक्षेप में परिवादी का कथन है कि परिवादी की माता स्व0 शीला ने एक पाॅलिसी सं.217622565 विपक्षीगण से ली थी जिसमें परिवादी नामिनी है। परिवादी की माता का देहावसान दिनांक 22.12.2009 को
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हो गया था जिसके पश्चात्् परिवादी ने विपक्षी से दिनांक 23.03.2010 को बीमे की धनराशि का भुगतान करने के लिए दावा किया था तथा विपक्षीगण द्वारा भुगतान हेतु परिवादी से बीमे से संबंधित समस्त मूल प्रपत्र ले लिये गये थे। विपक्षीगण द्वारा दिनांक 01.04.2010 को पत्र द्वारा परिवादी से मूल पाॅलिसी बांड की मांग की गयी थी। पत्र की प्राप्ति के पश्चात्् परिवादी ने मूल पाॅलिसी बांड तथा दावा फार्म विपक्षी सं0 2 के पास जमा कर दिया। विपक्षी सं0 2 द्वारा पत्र दिनांक 30.08.2010 द्वारा परिवादी से क्लेम फार्म ए, सी व अन्य कागजातों की मांग की गयी जिसे परिवादी ने विपक्षी सं0 2 को तुरंत भेज दिया। परिवादी ने विपक्षी सं0 2 द्वारा मांगी गयी समस्त औपचारिकताएं समय से पूरी कर दी थी। विपक्षीगण द्वारा जारी पत्र दिनांक 31.03.2011/20.05.2011 द्वारा परिवादी के दावे को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि पाॅलिसी कराते समय बीमाकर्ता द्वारा सही जानकारी छिपाई गयी थी। परिवादी ने दिनांक 10.01.2011 को तथा उसके बाद विपक्षीगण को कई प्रार्थना पत्र दावे के संबंध में दिये, किंतु विपक्षीगण द्वारा परिवादी के प्रार्थना पत्रों का न तो कोई जवाब दिया गया और न ही कोई कार्यवाही की गयी। उपरोक्त पाॅलिसी करवाते समय विपक्षीगण के बीमा एजेंट द्वारा जो औपचारिकताएं बताई जाती है उसे ही बीमाधारक पूरा करता है तथा स्व0 शीला ने भी बीमा एजेंट द्वारा बताई गयी समस्त औपचारिकताएं पूर्ण की थी तथा विपक्षीगण द्वारा उपरोक्त पाॅलिसी का मृत्यु दावे का भुगतान न किया जाना अन्याय एवं धोखाधड़ी है। परिवादी के दावे पर कोई कार्यवाही न किये जाने के कारण परिवादी ने दिनांक 23.04.2012 को विधिक नोटिस अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षी सं0 1 को भेजा जिसका आज तक कोई जवाब नहीं दिया गया। विपक्षीगण के उपरोक्त कृत्य से परिवादी को अनेक मानसिक एवं आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। अतः परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण से बीमे की धनराशि रू.5,00,000.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज, क्षतिपूर्ति के रूप में रू.50,000.00 तथा वाद व्यय दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
विपक्षीगण द्वारा लिखित कथन दाखिल किया गया जिसमें मुख्यतः यह कथन किया गया है कि परिवादी की माता स्व0 शीला द्वारा एक पाॅलिसी सं.217622565 वर्ष 2008 में विपक्षी निगम से ली गयी थी
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जिसकी आरंभ तिथि 28.12.2008 थी एवं इसकी प्रथम प्रीमियत किश्त दिनांक 31.12.2008 को देय थी तथा जिसमें परिवादी को नाॅमिनी बनाया गया था। बीमाधाकर की मृत्यु पाॅलिसी लेने के मात्र 11 माह 22 दिन के बाद दिनांक 22.12.2009 को गुर्दे की बीमारी के कारण हुई थी जिसका इलाज विवेकानंद पाॅलीक्लीनिक संस्थान तथा एरा मेडिकल कालेज में बहुत दिनों तक चलता रहा और जिसके पश्चात् परिवादी द्वारा मृत्यु दावे हेतु आवेदन करते हुए पाॅलिस से संबंधित समस्त मूल प्रपत्र विपक्षी के कार्यालय में जमा किये गये थे। बीमाधारक द्वारा पाॅलिसी लेते समय अपनी बीमारी से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य छिपाए गए थे जिसके आधार पर विपक्षी द्वारा परिवादी के पक्ष में मृत्यु दावे के भुगतान से इंकार किया गया जिसकी सूचना परिवादी को पत्र द्वारा दिनांक 10.01.2011 को दी गयी। दिनांक 20.05.2011 को दावा निरस्त कर दिया गया क्योंकि मृत्यु का कारण गुर्दे की बीमारी था जिसके लिए दिनांक 07.06.2009 को बीमाधारक को विवेकानंद अस्पताल में भर्ती किया गया। वह 06 माह पूर्व अर्थात्् 07.12.2008 से गुर्दे की बीमारी से पीडि़त थी। दिनांक 07.12.2008 प्रस्ताव से पूर्व की अवधि है। अतः बीमाधारक ने पाॅलिसी करवाते समय अपनी बीमारी को विपक्षी निगम से छिपाया था। इस तथ्य की पुष्टि हेतु बीमाधारक द्वारा विपक्षी निगम से बीमा लेते समय व्यक्तिगत जानकारी अंकित करने हेतु भरा जाने वाला फार्म बी, विवेकानंद अस्पताल के डाॅक्टर का कथन, फार्म ए दावेदार अजय का कथन व फार्म बी-1 मृतका का कथन एवं फार्म सी अंत्येष्टि क्रिया के दौरान उपस्थित साक्ष्य का कथन छः माह की अवधि के तथ्य को सिद्ध करते हैं। निगम द्वारा मृतक बीमाधारक अथवा दावेदार को दी जाने वाली अपनी सेवाओं के दायित्व को निभाने में कोई कमी नहीं की गयी है। दावेदार ने मृतका की पाॅलिसी का धन प्राप्त करने हेतु तथ्यों को छिपाते हुए दावा प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत परिवाद सव्यय निरस्त होने योग्य है।
परिवादी द्वारा विपक्षीगण के लिखित कथन का उत्तर मय संलगनक 1 दाखिल किया गया।
परिवादी ने अपना शपथ पत्र मय 6 संलग्नक दाखिल किया है। परिवादी की ओर से लिखित बहस भी दाखिल की गयी। विपक्षीगण
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द्वारा श्री आर.जे. सरोज, प्रशासनिक अधिकारी (विधि) का शपथ पत्र मय संलग्नक 4 एवं लिखित कथन के साथ 5 संलग्नक दाखिल किये गये हैं।
पक्षकार के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
इस प्रकरण में यह तथ्य निर्विवादित है कि परिवादी की माता स्वर्गीय शीला देवी द्वारा रू.5.00 लाख की जीवन बीमा पाॅलिसी विपक्षीगण से दिनांक 28.12.2008 को ली गयी थी। यह भी तथ्य निर्विवादित है कि बीमा धारक श्रीमती शीला देवी की मृत्यु दिनांक 22.12.2009 को हो गयी थी। विवादित बिंदु, परिवादी के अनुसार यह है कि विपक्षीगण द्वारा गलत आधार पर उसके दावे को अस्वीकार करके विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गयी है, जबकि विपक्षीगण के अनुसार बीमाधारक द्वारा बीमा पाॅलिसी लेते समय आवश्यक एवं महत्वपूर्ण तथ्य को छिपाया गया जिसके कारण परिवादी का दावा निरस्त किया गया और विपक्षीगण द्वारा कोई भी सेवा में कमी नहीं की गयी है।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता की ओर से यह तर्क दिया गया है कि बीमाधारक द्वारा पाॅलिसी लेते समय सही जानकारी छिपायी गयी थी, जबकि वास्तविकता में बीमाधारक श्रीमती शीला देवी पाॅलिसी लेने के समय गुर्दे के रोग से पीडि़त थी जिसके लिए उन्होंने चिकित्सक से परामर्श किया था एवं अपना इलाज भी कराया था, किंतु मृतक ने अपनी बीमारी से संबंधित तथ्यों को अपने प्रस्ताव पत्र/व्यक्तिगत प्राक्कथन में प्रकट नहीं किया। चूंकि बीमा सही तथ्यों को छिपाते हुए कराया गया था और चूंकि मृतक पाॅलिसी लेते समय ही गुर्दे के रोग से पीडि़त थी जिसके कारण ही उसकी मृत्यु हो गयी, अतः विपक्षीगण द्वारा परिवादी के दावे को सही प्रकार से निरस्त किया गया है और किसी भी प्रकार की सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि मृतक बीमाधारक ने अपने प्रस्ताव पत्र में बीमारी के संबंध में कोई भी तथ्य अंकित नहीं कराया है। विपक्षीगण की ओर से बीमा धारक द्वारा बीमा पाॅलिसी लेते समय गुर्दे की बीमारी से पीडि़त होने के संबंध में परिवादी द्वारा दिये गये बयान की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है जिसमें परिवादी द्वारा कहा गया है कि मृत्यु होने का तात्कालिक कारण (गुर्दे रोग के कारण) है अर्थात् स्वयं परिवादी के
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अनुसार गुर्दे रोग के कारण उसकी मां श्रीमती शीला देवी की मृत्यु हुई थी। इस तथ्य के संबंध में श्री राजेश लाल द्वारा एक प्रमाण पत्र जो दाह संस्कार के संबंध में दिया गया है में भी कहा गया है कि बीमाधारक की मृत्यु गुर्दे के रोग के कारण हुई थी।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या बीमाधारक पाॅलिसी लेते समय गुर्दे के रोग से पीडि़त थी या नहीं।
इस संबंध में विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा बीमाधारक द्वारा विवेकानंद पाॅलीक्लीनिक में कराये गये इलाज से संबंधित चिकित्सीय आख्याएं उपलब्ध करायी गयी है। साथ ही विवेकानंद पाॅलीक्लीनिक द्वारा एक चिकित्सीय प्रमाण पत्र दिनांक 10.05.2010 की फोटोप्रति भी दाखिल की गयी है जिसमें बीमाधारक को सर्वप्रथम बीमारी के लिए जून, 2009 में चिकित्सक से परामर्श किया जाना दर्शाया गया है। इसी से संबंधित इरा लखनऊ मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल में दिनांक 01.06.2009 में पैथोलाॅजी रिपोर्ट में ेमतनउ बमतंजपदपदम को 2.40 दर्शाया गया है जो कि सामान्य मानक से अधिक था। इस तथ्य को स्वयं परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने स्वीकार किया कि दिनांक 01.06.2009 को निश्चित रूप से ेमतनउ बमतंजपदपदम का बढ़ा होना यह तथ्य दर्शाता है कि बीमाधारक उक्त समय गुर्दे रोग से पीडि़त थी। यहीं पर विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता की ओर से यह तर्क दिया गया है कि विवेकानंद पाॅलीक्लीनिक के चिकित्सीय प्रमाण पत्र दिनांक 10.05.2010 में बीमाधारक को 6 माह पूर्व से इस बीमारी से ग्रसित बताया गया था, अतः विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार जून, 2009 से 6 माह पूर्व से गुर्दे की बीमारी से ग्रसित होने का तात्पर्य यह होता है कि दिसम्बर, 2008 में जब बीमा प्रस्ताव पत्र भरा गया था तब बीमाधारक गुर्दे के रोग से पीडि़त थी। इसके अतिरिक्त विपक्षीगण की ओर से विवेकानंद पाॅलीक्लीनिक अस्पताल का चिकित्सा प्रमाण पत्र की फोटोप्रति भी दाखिल की गयी है जिसमें बीमा धारक को ब्त्थ् अर्थात्् ब्ीतवदपब त्मदंस थ्ंपसनतम का केस पाया गया था और ब्ीतवदपब बीमारी का मतलब काफी लंबे समय से चली आ रही बीमारी होती है। ब्ीतवदपब को व्गवितक कपबजपवदंतल में निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया गया हैः- (ेचमबपंससल व िं कपेमंेमद्ध संेजपदह वित ं सवदह जपउमण् अतः उक्त परिभाषा के आधार पर भी यह स्पष्ट है कि बीमाधारक मृतक
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श्रीमती शीला देवी काफी समय से गुर्दे के रोग से पीडि़त थी। बीमाधारक को विवेकानंद पाॅलीक्लीनिक अक्टूबर, 2009 में भर्ती करके इलाज किया गया था और दिनांक 17.10.2009 को डिसचार्ज किया गया था। विवेकानंद पाॅलीक्लीनिक में भी बीमाधारक का इलाज गुर्दे रोग के लिए किया गया जैसा कि अस्पताल के डाॅ0 देवाशीष शाह की आख्या से भी स्पष्ट होता है जिसमें बीमाधारक को ब्ीतवदपब अर्थात्् दीर्घ स्थायी पुराने गुर्दे रोग से पीडि़त होना दर्शाया गया है। डाॅ0 शाह की उपरोक्त रिपोर्ट में यह तथ्य भी अंकित है कि बीमाधारक सप्ताह में दो बार भ्ंमउवकपंसलेपे पर भी थी और जिस समय रोगी को डिस्चार्ज किया गया उस समय उसकी दशा बतपजपबंस थी। गुर्दे से संबंधित बीमारी की अवस्था यह दर्शाती है कि बीमाधारक काफी समय से उपरोक्त रूप से पीडि़त थी, किंतु इस संबंध में उसके द्वारा अपने प्रस्ताव पत्र में अंकित नहीं किया गया है कि वह किसी रोग से ग्रसित थी। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि बीमाधारक बीमा पाॅलिसी लेते समय किसी रोग से ग्रसित नहीं थी इसलिए उसके द्वारा अपने प्रस्ताव पत्र में किसी रोग से ग्रसित होना नहीं बताया गया है और यदि वे किसी रोग से ग्रसित थी तो उसका जो परीक्षण डाॅक्टर द्वारा किया गया था उसमें उसके किसी रोग से ग्रसित होने का तथ्य डाॅक्टर द्वारा सामने लाया जा सकता था, किंतु डाॅक्टर द्वारा चिकित्सीय परीक्षण करते समय उसे किसी रोग से ग्रसित होना नहीं पाया गया, अतः यह नहीं कहा जा सकता कि बीमाधारक द्वारा किसी महत्वपूर्ण तथ्य या बीमारी को अपने प्रस्ताव पत्र में छिपाया गया, किंतु इस संबंध में विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रस्ताव के समय चिकित्सीय परीक्षण करते हुए डाॅक्टर को बीमाधारक द्वारा बीमारी के संबंध में नहीं बताया गया था जिस कारण यह तथ्य सामने नहीं आ सका कि बीमाधारक गुर्दे रोग से ग्रसित थी क्योंकि चिकित्सीय परीक्षण करने वाले चिकित्सक बीमाधारक के बताये हुए तथ्यों के आधार पर ही चिकित्सीय परीक्षण करता है और इस प्रकरण में ऐसा कोई तथ्य प्रत्यक्षतः दृष्टिगत नहीं हुआ जिस आधार पर चिकित्सक यह अवधारणा करता कि बीमाधारक गुर्दे रोग से पीडि़त थी। बीमाधारक का मात्र ई0सी0जी0 किया गया था जिसमें कोई असामान्यता नहीं पायी गयी थी। गुर्दे की बीमारी की जानकारी के लिए यह आवश्यक है कि रोगी
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के खून एवं यूरिन का परीक्षण कराया जाए जिसके आधार पर ही यह कहा जा सकता है कि रोगी गुर्दे रोग से पीडि़त है या नहीं, अतः ऐसी स्थिति में संबंधित चिकित्सक जिसके द्वारा बिना उपरोक्त परीक्षण कराए यह नहीं जाना जा सकता था कि बीमाधारक गुर्दे के रोग से पीडि़त थी या नहीं जब तक कि स्वयं बीमाधारक ही यह तथ्य चिकित्सक के सामने न लाती, किंतु इस प्रकरण में बीमा धारक द्वारा ऐसा कोई भी कथन गुर्दा रोग तो क्या अन्य किसी रोग के संबंध में नहीं बताया गया। इन परिस्थितियों में यह नहीं कहा जा सकता कि चूंकि चिकित्सक द्वारा बीमाधारक को गुर्दे की बीमारी से ग्रसित होना नहीं बताया गया, अतः प्रस्ताव पत्र भरते समय बीमाधारक गुर्दे रोग से पीडि़त नहीं थी। इस संबंध में विपक्षीगण की ओर से मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा रिवीजन पेटिशन सं.2091/2007 माया देवी बनाम जीवन बीमा निगम में पारित निम्नलिखित विधि व्यवस्था का उल्लेख किया गया हैः-
श्भ्मत बवदजमदजपवद जींज जीपे कपेमंेम ूंे दवज कमजमबजमक ंज जीम जपउम व िउमकपबंस मगंउपदंजपवद इल जीम कवबजवते व ित्मेचवदकमदजध्प्देनतंदबम ब्वउचंदल कवमे दवज बंततल उनबी बतमकपइपसपजल इमबंनेम ंे पे ूमसस ादवूदए जीमेम बीमबा.नचे ंतम हमदमतंस पद दंजनतम ंदक कव दवज पदबसनकम चंजीवसवहपबंसध्इसववक जमेज मजबण्श्
उपरोक्त व्यवस्था में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने यह निर्णीत किया है कि चिकित्सीय परीक्षक द्वारा किये गये इस प्रकार के चिकित्सीय परीक्षण का अधिक महत्व नहीं होता क्योंकि ऐसे परीक्षण सामान्य प्रकृति के होते हैं और वे पैथोलोजिकल/खून की जांच के आधार पर नहीं होते है। इन परिस्थितियों में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के निर्णय को दृृष्टिगत रखते हुए परिवादी को इस बात का कोई लाभ नहीं मिल सकता कि बीमाधारक का चिकित्सीय परीक्षण करने पर भी उसे गुर्दे रोग से पीडि़त नहीं पाया गया था। जो अभिलेखीय साक्ष्य विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत किये गये हैं उसमें विवेकानंद पाॅलीक्लीनिक, इरा लखनऊ मेडिकल कालेज एवं हाॅस्पिटल की चिकित्सीय आख्याएं एवं डाॅ0 विमल गुप्ता एवं डाॅ0 देवाशीष शाह द्वारा बीमाधारक से संबंधित चिकित्सीय प्रमाण पत्र दिये गये हैं उनसे यह तथ्य सुस्पष्ट हो जाता है कि बीमाधारक मृत्यु के काफी समय पूर्व
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से ही गुर्दे रोग से पीडि़त चल रही थी और इसी कारण उसे इलाज हेतु दिनांक 01.06.2009 को इरा लखनऊ मेडिकल कालेज एवं हास्पिटल में भर्ती किया गया था और बाद में अक्टूबर, 2009 में विवेकानंद पाॅलीक्लीनिक में भर्ती किया गया था। उपरोक्त चिकित्सीय अभिलेखों के परिप्रेक्ष्य में इस प्रकरण के तथ्यों का अवलोकन करने पर यह दृष्टिगत होता है कि बीमाधारक की रू.5.00 लाख की जीवन बीमा पाॅलिसी 47 वर्ष की आयु में ली गयी थी और उसके मात्र 6 माह बाद ही उसकी गुर्दे की बीमारी इतनी बढ़ गयी थी कि उसे अस्पताल में जून 2009 में भर्ती होना पड़ा और इलाज के बाद ठीक न होने पर अक्टूबर, 2009 में फिर भर्ती होना पड़ा और अंततः उसकी मृत्यु पाॅलिसी लेने के मात्र एक वर्ष बाद ही गुर्दा रोग से हो गयी। यह तथ्य इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि, जैसा कि ऊपर विवेचित हो चुका है, बीमाधारक को अपने गुर्दे रोग से पीडि़त होने के संबंध में ज्ञान था, किंतु फिर भी उसके द्वारा उपरोक्त तथ्य को छिपाते हुए अपना बीमा कराया गया। मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त निर्णय में यह पाया है कि बीमा पाॅलीसी संविदा नजउवेज हववक ंिपजी पर आधारित होती है और चूंकि बीमाधारक द्वारा उपरोक्त संविदा के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया गया, अतः विपक्षीगण द्वारा परिवादी के दावे को निरस्त करके सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है तथा परिवादी का परिवाद निरस्त होने योग्य है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
(राजर्षि शुक्ला) (अंजु अवस्थी) (विजय वर्मा)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
दिनांकः 20 मार्च, 2015