जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
अध्यासीनः डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
उपभोक्ता वाद संख्या-244/2011
हीरालाल गौतम पुत्र स्व0 देवी दयाल गौतम निवासी ब्लाक नं0-11/42, मकान नं0-27 अ कृश्णा नगर थाना चकेरी, कानपुर नगर।
................परिवादी
बनाम
षाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम नगर षाखा कार्यालय नं0-5 स्वरूप नगर, कानपुर नगर द्वारा षाखा प्रबन्धक।
...........विपक्षी
परिवाद दाखिल होने की तिथिः 31.03.2011
निर्णय की तिथिः 30.05.2016
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःः निर्णयःःः
1. परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि परिवादी को विपक्षी से रू0 24,219.00 की क्षति के अतिरिक्त ब्याज तथा रू0 10,000.00 अन्य खर्च व खर्च मुकद्मा रू0 5000.00 दिलाया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी ने विपक्षी बीमा कंपनी से पाॅलिसी सं0-233407362 तालिका अवधि 174-16 बीमा गोल्ड दिनांक 26.02.05 को लिया, जिसकी वार्शिक प्रीमियम किस्त रू0 18,035.00 थी। परिवादी ने दिनांक 26.02.05 से 26.12.08 तक रू0 72,140.00 नियमित जमा करता रहा। परिवादी दिनंाक 31.03.08 को सेवा से निवृत्त हो गया तब धनाभाव के कारण उक्त प्रीमियम जमा नही कर पाया। परिवादी ने उक्त प्रीमियम में दिनांक 26.12.05 से 26.12.08 तक रू0 कुल रू0 72,140.00 जमा किया। परिवादी को धनराषि की सख्त जरूरत पड़ने पर दिनंाक 17.01.11 को षाखा प्रबन्धक विपक्षी से संपर्क किया और अपनी आर्थिक स्थिति बतायी कि परिवादी की पाॅलिसी से जमा धन व उससे मिलने वाला लाभ कैसे प्राप्त होगा। परिवादी की पूरी बात सुनकर विपक्षी ने परिवादी से अपनी पाॅलिसी सरेन्डर करने की सलाह
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दी और कहा कि उक्त पाॅलिसी में जमा धन के साथ उचित लाभ भी मिल जायेगा और परिवादी की आर्थिक स्थिति का निपटारा हो जायेगा। परिवादी ने विपक्षी की राय पर विष्वास करके दिनांक 21.01.11 को अपनी उपरोक्त पाॅलिसी विपक्षी के यहां जमा कर दिया। परिवादी को दिनांक 28.01.11 को चेक सं0-0770224 दिनांकित 24.01.11 धनराषि रू0 17921.00 जरिये डाक प्राप्त हुई। परिवादी ने दिनांक 26.12.05 से 26.12.08 तक रू0 72,140.00 अपनी उक्त पाॅलिसी में जमा की, जिसमें से नकदी को रू0 30000.00 की वापिसी सन् 2009 को प्राप्त हुई और रू0 17921.00 दिनंाक 28.11.1 को चेक द्वारा प्राप्त हुए। इस प्रकार परिवादी को विपक्षी द्वारा कुल रू0 47,921.00 भुगतान किया गया। जिससे परिवादी को आर्थिक क्षति रू0 24,219.00 की हुई। विपक्षी ने परिवादी के साथ धोखाधड़ी व गलत राय देकर उससे पाॅलिसी सरेन्डर करायी और परिवादी के द्वारा जमा धन में भी रू0 24,219.00 की आर्थिक क्षति पहुॅचाई। यदि परिवादी को विपक्षी गलत राय नहीं देता, तो परिवादी अपनी उपरोक्त पाॅलिसी सरेन्डर नहीं करता। परिवादी ने दिनांक 29.11.11 को जब विपक्षी से संपर्क किया तो विपक्षी ने सही जवाब नहीं दिया और कहा कि जो धनराषि परिवादी को दी गयी है, वह काफी है। परिवादी ने विपक्षी को एक रजिस्र्ड नोटिस नं0-4501 दिनांकित 01.02.11 जरिये डाक भेजा, जिसका विपक्षी ने संतोशजनक उचित जवाब नहीं दिया। फलस्वरूप परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3. विपक्षी बीमा कंपनी की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके यह परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि परिवादी ने एक जीवन बीमा पाॅलिसी तालिका अवधि 174-16 दिनांकित 26.02.05 को बीमा किष्त धन रू0 18035.00 जमा करके बीमा गोल्ड पाॅलिसी लिया था, जिसका पाॅलिसी नं0-233407362 है, जो विपक्षी द्वारा जारी की गयी थी। परिवादी ने अपनी उपरोक्त पाॅलिसी का प्रीमियम दिनंाक 26.02.05 से 26.12.08 तक जमा किया है। संविदा के अनुसार प्रीमियम का निर्धारण बीमा धारक की आयु
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एवं पाॅलिसी की अवधि पर आधारित होता है। संविदा की षर्तों के अनुसार बीमा धारक द्वारा अपनी जीवन बीमा पाॅलिसी का किष्त धन जमा करने की उसकी अपनी जिम्मेदारी होती है कि वह किष्त धन जमा करे या न जमा करे, यह उसका व्यक्गित निर्णय हेाता है। बीमा प्रीमियम जमा न करने की स्थिति में पाॅलिसी लैप्स हो जाती है। परिवादी द्वारा दिनांक 12/2008 तक ही प्रीमियम जमा किया गया है फलस्वरूप प्रीमियम के अभाव में पाॅलिसी 12/2009 से लैप्स हो चुकी थी। परिवादी ने किसी प्रकार की बातचीत न तो षाखा प्रबन्धक से लिखित रूप से की और न ही मौखिक रूप से किया। उक्त कथन परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में रंगत देने के लिए लिखा है। परिवादी ने अपने पत्र दिनांकित 21.10.11 के द्वारा उक्त पाॅलिसी को सरेन्डर करने की प्रार्थना की। सम्बन्धित षाखा ने उक्त पाॅलिसी को सरेण्डर कर सरेण्डर धनराषि का भुगतान नियमानुसार परिवादी को अविलम्ब कर दिया। यदि परिवादी षाखा प्रबन्धक व विपक्षी निगम के कर्मचारी से संपर्क किया होता, तो विपक्षी निगम कभी पाॅलिसी सरेण्डर करने की सलाह नहीं देते। परिवादी ने अपनी स्वेच्छा व अपनी आवष्यकता की पूर्ति करने के बावत अपनी बीमा गोल्ड पाॅलिसी को दिनांक 21.01.11 को निगम के षाखा कार्यालय में सरेण्डर कर भुगतान करने हेतु जमा किया है। उक्त पाॅलिसी सरेण्डर के बाद बीमाधारक व विपक्षी निगम के मध्य संविदा समाप्त हो गयी तथा विपक्षी निगम एवं परिवादी के मध्य उपभोक्ता का सम्बन्ध भी समाप्त हो गया। परिवादी अब विपक्षी निगम का उपभोक्ता नहीं है। विपक्षी द्वारा सेवा में कोई कमी या त्रुटि कारित नहीं की गयी है। विपक्षी निगम ने परिवादी को उक्त पाॅलिसी के अंतर्गत दिसम्बर, 2009 को विद्यमानता हितलाभ धनराषि रू0 30000.00 चेक सं0-003690 दिनांक 26.12.09 को कर दिया था और जब बीमा धारक ने अपनी उपरोक्त पाॅलिसी विपक्षी कार्यालय में दिनांक 21.01.11 को सरेण्डर किया, तो उस दिन तक जो पाॅलिसी में अभ्यर्पण मूल्य बनता था, बीमाधारक को जरिये चेक दिनांक 24.01.11 को रू0 17,921.00 भुगतान कर दिया गया, जिसे परिवादी ने प्राप्त किया और बैंक द्वारा भुगतान भी
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प्राप्त कर लिया गया है। इस प्रकार विपक्षी निगम ने पाॅलिसी सेवा षर्तों के अनुसार सेवा देने में कोई कमी या त्रुटि नहीं किया है। बिना किसी वाद कारण के परिवाद प्रस्तुत किया गया है, जो श्रवण योग्य नहीं है।
4. परिवादी ने जवाबुल जवाब प्रस्तुत करते हुए विपक्षी द्वारा प्रस्तुत जवाब दावा में उल्लिखित तथ्यों का प्रस्तरवार खण्डन किया है और परिवाद पत्र में स्वयं द्वारा उल्लिखित तथ्यों की पुनः पुश्टि की है।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 11.04.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची कागज सं0-1 के साथ संलग्न कागज सं0-1/1 लगातय् 1/7 दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
6. विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में राजकुमार, प्रबन्धक का षपथपत्र दिनांकित 24.07.13 एवं ज्ञान प्रकाष पाण्डेय, प्रबन्धक का षपथपत्र दिनांकित 26.11.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में कागज सं0-2/1 लगायत् 2/7 दाखिल किया है।
निष्कर्श
7. फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक परिषीलन किया गया।
उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी का मुख्य कथन यह है कि परिवादी द्वारा विपक्षी कंपनी से दिनांक 26.02.05 से 26.12.08 तक की अवधि के लिए एक बीमा पाॅलिसी सं0-233407362 दिनंाक 26.02.05 को लिया था, जिसकी वार्शिक प्रीमियम किष्त रू0 18,035.00 थी। परिवादी कतिपय कारणों से दिनांक 26.12.08 के बाद अपनी वार्शिक प्रीमियम किष्त जमा नहीं कर सका। दिनांक 26.12.08 तक परिवादी द्वारा कुल रू0 72,140.00 जमा किया गया था। विपक्षी की ओर से, परिवादी के द्वारा किये गये उपरोक्त कथन को स्वीकार किया गया है।
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विवाद का विशय यह है कि क्या विपक्षी ने परिवादी के साथ धोखाधड़ी व गलत राय देकर, उससे पाॅलिसी सरेण्डर करायी, जिससे परिवादी के द्वारा जमा किये गये धन में भी रू0 24,219.00 आर्थिक क्षति परिवादी को हुई। विपक्षी द्वारा परिवादी के उपरोक्त कथन को झूठा व असत्य बताया गया है। विपक्षी द्वारा यह कहा गया है कि परिवादी को प्रष्नगत पाॅलिसी सरेण्डर करने की कोई लिखित व मौखिक राय नहीं दी गयी है। पत्रावली के परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा षपथपत्र के अतरिक्त अन्य कोई प्रलेखीय साक्ष्य अपने उपरोक्त कथन के समर्थन में प्रस्तुत नहीं किया गया है। विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि जिन तथ्यों को अन्य प्रलेखीय साक्ष्यों से साबित किया जा सकता है, उन तथ्यों को षपथपत्र के द्वारा साबित नहीं माना जायेगा।
विपक्षी की ओर से यह कथन किया गया है कि बीमा पाॅलिसी की षर्तों के अनुसार परिवादी द्वारा प्रष्नगत पाॅलिसी अभ्यर्पित करने के पष्चात अभ्यर्पण की धनराषि परिवादी को अदा कर दी गयी है, जो परिवादी द्वारा प्राप्त कर ली गयी है। विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि अभ्यर्पण धनराषि जमा करने से पूर्व विपक्षी निगम ने परिवादी को उक्त पाॅलिसी के अंतर्गत दिसम्बर, 2009 को तत्कालीन विद्यमानता हित लाभ धनराषि रू0 30000.00 चेक सं0-003690 दिनांक 26.12.09 को अदा कर दी गयी थी। परिवादी की ओर से विपक्षी के उपरोक्त कथन से इंकार नहीं किया गया है।
उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में फोरम इस मत का है कि परिवादी द्वारा अपने कथन को साबित करने के लिए कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये गये हैं।
विपक्षी बीमा कंपनी की ओर से अपने कथन के समर्थन में विधि निर्णय एल0आई0सी0 आॅफ इण्डिया बनाम अनिल पी0 टड्कालकर रिवीजन पिटीषन नं0-633/1994 लीगल डायजिस्ट जनवरी-अप्रैल, 99 में प्रति पादित विधिक सिद्धांत की ओर से फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है।
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मा0 राश्ट्रीय आयोग का संपूर्ण सम्मान रखते हुए स्पश्ट करना है कि प्रस्तुत मामले में उपरोक्त विधि निर्णय का लाभ विपक्षी को प्राप्त होता है।
उपरोक्त प्रस्तरों में दिये गये कारणों के आधार पर फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
ःःःआदेषःःः
8. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध खारिज किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(पुरूशोत्तम सिंह) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम
कानपुर नगर। कानपुर नगर।
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
(पुरूशोत्तम सिंह) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम
कानपुर नगर। कानपुर नगर।