TULSI DEVI filed a consumer case on 20 Feb 2015 against LIC SARDARSHAR in the Churu Consumer Court. The case no is 97/2013 and the judgment uploaded on 20 Mar 2015.
Rajasthan
Churu
97/2013
TULSI DEVI - Complainant(s)
Versus
LIC SARDARSHAR - Opp.Party(s)
GAJENDRA KHATRI
20 Feb 2015
ORDER
Heading1
Heading2
Complaint Case No. 97/2013
1. TULSI DEVI
VPO SATYU TARANAGAR CHURU
BEFORE:
HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
Subash Chandra MEMBER
Nasim Bano MEMBER
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू अध्यक्ष- षिव शंकर सदस्य- सुभाष चन्द्र सदस्या- नसीम बानो
परिवाद संख्या- 97/2013 तुलसी देवी पत्नी स्व. श्री मुकेश कुमार सोनी जाति राजपूत निवासीनी ग्राम सात्यंु तहसील तारानगर चूरू (राजस्थान) ......प्रार्थीया बनाम
1. भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड, जरिए शाखा प्रबन्धक शाखा कार्यालय, सरदारशहर 2. भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड, जरिए वरिष्ठ मंडल प्रबन्धक मंडल कार्यालय पोस्ट बाॅकस नम्बर 66, सागर रोड़ बीकानेर ......अप्रार्थीगण दिनांक- 12.03.2015 निर्णय द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर 1. श्री गजेन्द्र खत्री एडवोकेट - प्रार्थीया की ओर से 2. श्री संजीव वर्मा एडवोकेट - अप्रार्थीगण की ओर से
1. प्रार्थीया ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थीया के पति स्व. मुकेश कुमार ने अपने जीवनकाल में वर्ष 2009 में अप्रार्थी भारतीय जीवन बीमा निगम की सरदारशहर शाखा में अपने जीवन हेतु बीमा पाॅलिसी प्राप्त की थी जिसके नम्बर 502807559 व बीमाधन 4,00,000 रूपये था। उक्त पाॅलिसी में बीमा एजेन्ट द्वारा सहवन में स्व. मुकेश कुमार की पत्नी की बजाय भूलवश उसकी बहिन कमलादेवी सोनी पत्नी श्री राजकुमार सोनी निवासिनी चूरू को नाॅमिनी नियुक्त कर दिया गया था जिसके संशोधन की सूचना स्व. मुकेश द्वारा तत्समय ही अप्रार्थी बीमा निगम को दे दी थी जिनके द्वारा उक्त प्रार्थना- पत्र अप्रार्थी संख्या 2 को भिजवा दिया गया था और स्व. मुकेश से यह कहा गया कि बीमा पाॅलिसी सम्बंधी सारा काम मास्टर प्लान के तहत बीकानेर में संचालित किया जाता है ऐसी सूरत में अप्रार्थी संख्या 2 के द्वारा ही संशोधन किया जाकर आपको सूचित कर दिया जायेगा परन्तु उसकी सूचना मृतक को नहीं दी गई प्रार्थीया स्व. मुकेश कुमार की विवाहिता पत्नी व जायज वारिस है तथा उक्त श्रीमति कमला देवी को भी प्रार्थीया के उक्त परिवाद करने तथा स्व. मुकेश कुमार की मृत्यु बाबत क्लेम प्राप्त करने में कोई आपत्ति नहीं है जिसके प्रमाण स्वरूप श्रीमति कमलादेवी का सहमति स्वरूप शपथ- पत्र परिवाद के साथ संलग्न है। प्रार्थीया के पति स्व. मुकेश कुमार ने उक्त बीमा पाॅलिसी की किश्त रूप 9704 दिनांक 28.09.09 को जमा करवाये थे और प्रार्थीया के पति की उक्त बीमा पाॅलिसी चालू स्थिति में थी इसी दौरान दिनांक 15.01.10 को प्रार्थीया के पति की अचानक मृत्यु हो गई। प्रार्थीया के पति की मृत्यु के समय प्रार्थीया के पति की उपर वर्णित बीमा पाॅलिसी चालू हालत में थी। प्रार्थीया के पति की मृत्यु के पश्चात प्रार्थीया ने उक्त बीमा पाॅलिसी की नाॅमिनी श्रीमति कमलादेवी के जरिये बीमा पाॅलिसी क्लेम प्राप्ति बाबत दावा अप्रार्थी बीमा कम्पनी के सरदारशहर कार्यालय में प्रस्तुत कर दिया और क्लेम में संबंधित समस्त सभी दस्तावेजात व मूल पाॅलिसी बांड अप्रार्थी के पास जमा करवा दिये। 2. आगे प्रार्थीया ने बताया कि नोमिनी मृतक की सम्पति का विधी की दृष्टि में मात्र रक्षक होता है और जिसका कर्तव्य मृतक के वास्तविक विधिक उत्तराधिकारीयों को मृतक की सम्पति सुपूर्द करना होता है और तब तक वह मात्र उस सम्पति का रक्षक होता है। उक्त बीमा दावा अप्रार्थी के पास प्रस्तुत किये जाने के पश्चात अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्राथी्रया को बीमा क्लेम का भुगतान किये जाने का आश्वासन दिया जाता रहा और समय व्यतीत किया जाता रहा परन्तु बीमा क्लेम का भुगतान नहीं किया गया तथा अन्त में अप्रार्थी संख्या 2 ने अपने पत्र दिनांक 04.05.2012 के जरिये प्रार्थीया के स्व. पति का बीमा क्लेम गलत व मिथ्या आधारों पर अस्वीकार कर दिया गया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी का उक्त कृत्य गम्भीर सेवादोष है तथा अस्वच्छ व्यापारिक गतिविधी है। अप्रार्थीगण के कृत्य से प्रार्थीया को गम्भीर मानसिक व शारीरिक पीड़ा हुई है। अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी ने बीमा किये जाने से पूर्व बीमाधारी का चिकित्सा परीक्षण करवाने के बाद उसी आधार पर ही बीमा करती है। प्रार्थीया का पति पोलिसी प्राप्त करते समय पूर्ण रूप से स्वस्थ था उसकी मृत्यु अचानक हुई थी फिर भी बीमा कम्पनी द्वारा बीमा गलत आधार पर निरस्त कर दिया जो अप्रार्थी बीमा कम्पनी का सेवादोष है। इसलिए प्रार्थीया बीमा होल्डर की पत्नि व जाईज वारिस होने पर यह परिवाद पेश कर पोलिसी नम्बर 502807559 का बीमाधन 4,00,000 रूपये मय ब्याज, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय की मांग की है। 3. अप्रार्थीगण ने प्रार्थीया के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश कर बताया कि प्रार्थीया ने अप्रार्थीगण के पास कोई मृत्यु दावा पेश नहीं किया गया है प्रार्थीया की ननद श्रीमति कमलादेवी ने गलत रूप से मृत्यु दावा पेश किया गया है जिसमें वास्तविकता को छुपाया गया है और परिवाद के मृत्यु दावा की जांच में प्रार्थीया ने वास्तविकता को नहीं बताया है। जबकि वास्तविकता है कि बीमाधारक बीमा संविदा से पूर्व कैन्सर की बीमारी से पीड़ित था जिसका ईलाज चल रहा था बीमाधारक ने दिनांक 28.11.2009 को पी.बी.एम. हाॅस्पिटल बीकानेर में भर्ती रह कर अपनी बीमारी का ईलाज करवाया था जिस के रजिस्ट्रेसन न. 29354 दिनांक 28.11.2009 है एवं रजिस्ट्रेसन न. 4534209 दिनांक 29.09.09 इस से पुर्व बीमाधारक ने अपना ईलाज करवाया था मगर बीमाधारक व श्रीमति कमला देवी ने जाबुझ कर तथ्यों को छिपाया है इस प्रकार उक्त बीमा क्लेम में स्व. श्री मुकेश कुमार, श्रीमति कमलादेवी, श्रीमति तुलसीदेवी व बीमा एजेन्ट सुभाषचन्द्र ने सभी एक राय होकर निगम के साथ छल कपट करने की नियत से यह गलत बीमा करवाई है और गलत रूप से निगम को नुकसान पहुंचाने की नियत से यह परिवाद पेश किया है बीमाधारक कैन्सर की लाईलाज बीमारी से पीड़ित होते हुये अपनी कैंसर बीमारी को छुपाया तथा दिनांक 20.09.09 को अपने स्व- जीवन बीमा प्रस्ताव पत्र की मद सं. 11 में वैयक्तिक जानकारी में जानबुझकर समस्त तथ्यों में गलत इन्द्राज करवाकर निगम के साथ छल किया है बीमाधारक बीमा प्रस्ताव के समय कैंसर की बीमारी से ग्रसित था व कैंसर तीव्र अवस्था में थी इसी कारण से अपने मुल गांव को छेाड कर चूरू में रहते हुवे सरदारशहर में बीमा करवाई है जबकि चूरू में निगम का कार्यालय है इस प्रकार निगम का कोई सेवादोष नहीं है और ना ही अस्वच्छ व्यापारिक गतिविधि की श्रेणी में आता है प्रार्थीया ने निगम के साथ धोखाधड़ी करने का प्रयास किया है व निगम को तंग परेशान किया गया है प्रार्थीया को कोई मानसिक व शारीरिक पीड़ा नहीं हुई है बीमा धारक पाॅलिसी लिये जाने से पूर्व से ही इलाजरत रहा है इसी बीमारी के कारण बीमाधारी की मृत्यु हो जाने पर प्रार्थीया ने उक्त सत्यता को छिपाते हुये दावा क्लेम अपनी ननद श्रीमति कमलादेवी से करवाया उक्त दावा क्लेम पर निगम द्वारा जांच किये जाने पर बीमाधारी की कैंसर की बीमारी से मृत्यु होना साबित होेने पर अप्रार्थीगण ने संविदा शर्तों के अनुरूप कानूनन क्लेम खारिज किया है तथा प्रार्थीया कोई बीमा क्लेम प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। निगम के अनुसंधान से यह प्रमाणित होता है कि बीमाधारक कैंसर से पीड़ित था जिसके दस्तावेजात जवाब परिवाद के साथ संलग्न है और प्रार्थीया ने झुठे कथन कर परिवाद किया है श्रीमति कमलादेवी के दावा क्लेम को खारीज करने की सूचना अप्रार्थीगण द्वारा श्रीमति कमलादेवी को दी है जिस पर श्रीमति कमलादेवी ने अपील प्रस्तुत नहीं की है और गलत आधारों पर प्रार्थीया ने यह परिवाद पेश किया गया है जबकि प्रार्थीया को ऐसा कोई अधिकार व हक कानूनन नहीं है। स्व. मुकेश कुमार बीमा प्रस्ताव पत्र दिनांक 20.09.2009 के पूर्व से ही ब्ंदबमत न्तपदंतल ठसंककमत ूपजी ेमबण् ंइकवउपदंस ूंसस जैसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित था। जिसके लिए बीमित ने चिकित्सक से परामर्श लिया और बायोस्पी करवायी। मृतक मुकेश कुमार पीबीएम. हौस्पीटल, बीकानेर में भर्ती होकर इलाजरत रहा है जिस को प्रमाणित बीमाधारक के दस्तावेजात करते है निगम के अनुसंधान में बीमाधारक कैंसर बीमारी से पीड़ित था तथा बीमा धारक, उसकी बहस कमलादेवी व प्रार्थीया शुरू से ही झुठे कथन करने के आदि रहे है तथा मृतक का मृत्यु दावा क्ल्ेम करने वाली श्रीमति कमलादेवी व प्रार्थीया द्वारा मुकेश कुमार की मृत्यु का कारण अचानक मृत्यु होना दर्ज करवाया गया है प्रार्थीया श्रीमति तुलसीदेवी ने परिवाद में संलग्न दस्तावेज ग्राम पंचायत सांत्यु के संरपच के मृत्यु प्रमाण- पत्र में मुकेश कुमार की मृत्यु का कारण उल्टी दस्त होना दर्शाया है मृतक के मृत्यु दावा क्लेम करने वाली श्रीमति कमलादेवी ने बीमाधारक की मृत्यु का कारण हृदयघात से होना अंकित कर निगम को दी है अप्रार्थीगण ने प्रार्थीया का मृत्यु दावा खारीज करने के पश्चात् प्रार्थीया को सुचना दी और सुनवाई का अवसर देते हुये अपील का निवेदन किया। बीमाधारक मुकेश कुमार ने अपने बीमा प्रस्ताव- पत्र में वास्तविकता तथ्य को छिपाते हुये असत्य कथनों का अंकन किया है जो पूर्णतया साबित है बीमा अधिनियम 1938 की धारा 45 के आधार पर अप्रार्थीगण ने प्रार्थीया का मृत्यु दावा कानूनन खारीज किया है तथा प्रार्थीया किसी भी प्रकार का क्लेम प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। इस कारण प्रार्थीया को माननीय न्यायालय के समक्ष परिवाद पेश करने का कोई अधिकार नहीं है। 4. प्रार्थीया ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ- पत्र के अतिरिक्त कमलादेवी का शपथ- पत्र, खण्डन शपथ- पत्र, बीमा निरस्ती पत्र दिनांक 04.05.12, बीमा प्रस्ताव पत्र, मृत्यु प्रमाण- पत्र, सरंपच प्रमाण- पत्र, रसीद दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थीगण की ओर से जशपाल सिंह हंस का शपथ- पत्र, बीमा प्रस्ताव पत्र, मृत्यु प्रमाण- पत्र, सरंपच प्रमाण- पत्र, सुभाष चन्द्र के बयान, प्रार्थना- पत्र दिनांक 27.08.2010, फोटो प्रति रिपोर्ट मेडिकल बाबत दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। 5. पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है। 6. प्रार्थीया अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्येां को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थीया के स्व. पति मुकेश कुमार के द्वारा अपने जीवन काल में एक बीमा पोलिसी संख्या 502807559 क्रय की थी। जिसमें बीमाधारी ने उक्त पोलिसी क्रय की थी। बीमाधारी पूर्ण रूप से स्वस्थ था। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रश्नगत पोलिसी जारी करते समय अपने डाॅक्टर के द्वारा प्रार्थीया की चिकित्सक जांच भी करवायी गयी थी। प्रार्थीया अधिवक्ता ने आगे तर्क दिया कि उक्त पोलिसी में बीमाधारी ने नोमिनी अपनी बहन कमलादेवी को बनाया था। परन्तु बाद में नोमिनी के रूप में अपनी पत्नि का नाम संशोधन करने हेतु अप्रार्थीगण को सूचित किया। परन्तु इसी दौरान प्रार्थीया के पति की दिनांक 15.01.2010 को अचानक मृत्यु हो गयी। जिस पर प्रार्थीया की ननद कमला देवी ने परिवार की सहमति अनुसार अप्रार्थीगण के यहां समस्त मूल दस्तावेज प्रेषित कर क्लेम की मांग की। परन्तु अप्रार्थीगण ने प्रार्थीया का क्लेम यह कहते हुए कि बीमाधारी प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करने से पूर्व ही कैंसर की बीमारी से पीड़ित था के आधार पर प्रार्थीया का क्लेम खारिज कर दिया। प्रार्थीया अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्रार्थीया का पति प्रश्नगत पोलिसी क्रय करते समय पूर्ण रूप से स्वस्थ था। फिर भी अप्रार्थीगण ने प्रार्थीया के क्लेम को बिना किसी आधार बिना किसी दस्तावेज के खारिज कर दिया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवादोष की श्रेणी का है। इसलिए प्रार्थीया अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। 7. अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने अपनी बहस में प्रार्थीया अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्य तर्क यही दिया कि वास्तव में बीमाधारी प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करने से पूर्व ही ब्ंदबमत न्तपदंतल ठसंककमत ूपजी ेमबण् ंइकवउपदंस ूंसस जैसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित था। जिस हेतु बीमाधारी ने अपनी बाॅयोस्पी जांच भी करवायी थी। परन्तु प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करते समय बीमाधारी ने दिनांक 20.09.2009 को अपने स्वजीवन बीमा प्रस्ताव- पत्र में अपनी बीमारी के सम्बंध में उक्त तथ्य को जानबूझ कर छिपाया व बीमा प्रस्ताव- पत्र की चरण संख्या 11 में वैयक्तिक जानकारी में जानबूझ कर समस्त तथ्यों में गलत इन्द्राज करवाकर निगम के साथ छल किया है। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रार्थीया के क्लेम को जानबूझ कर तात्विक तथ्येां को छुपाने के आधार पर बीमा अधिनियम 1938 की धारा 45 के तहत सही रूप से खारिज कर दिया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह भी तर्क दिया कि प्रश्नगत पोलिसी स्व. बीमाधारी, उसकी बहन कमला व एजेन्ट ने गलत रूप से आपस में मिली- भगत कर बीमा कम्पनी को धोखे में रखते हुए प्राप्त की है। उपरोक्त समस्त आधारों से स्पष्ट है कि प्रश्नगत पोलिसी केवल बीमा कम्पनी को नुकसान पहुंचाने हेतु मिथ्या आधारों पर प्राप्त की गयी है जिसमें अप्रार्थीगण द्वारा क्लेम अस्वीकार करना कोई सेवादोष नहीं है। उक्त आधारों पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। 8. हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थीया के पति को प्रश्नगत पोलिसी संख्या 502807559 जारी करना, बीमाधारी की दिनांक 15.01.2010 को मृत्यु होना, दिनांक 04.05.2012 को अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम अस्वीकार करना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु केवल यह है कि क्या बीमाधारी प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करने से पूर्व कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रसित था जिसने पोलिसी क्रय करते समय उक्त तात्विक तथ्यों को छिपाया। यदि बीमा कम्पनी द्वारा तात्विक तथ्यों को छुपाने के सम्बंध में कोई आधार लिया जाता है तो उक्त तथ्यों को साबित करने का भार भी विधि अनुसार अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी पर होता है। ऐसा ही मत माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने न्यायिक दृष्टान्त एल0 आई0 सी0 बनाम श्रीमति जी एम चन्ना बसीमा 1996 (3) सीपीजे पेज 8 सुप्रीम कोर्ट में दिया है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने उक्त निर्णय में यह मत दिया है कि ज्ीम वदने चतवइंदकपए पद बंेमे व ितिंनकनसमदज ेनचचतमेेपवद व िउंजमतपंस ंिबजे तमेजे ीमंअपसल वद चंतजल ंससमहपदह तिंनक दंउमसल जीम पदेनतमतण् प्द जीपे तमेचमबजए जीम कमबपेपवद व िजीम भ्वदष्इसम ैनचतमउम बवनतज पद स्प्ब् अेण् ैउजण् ळण्डण् बींददंइंेमउउं ;1996;प्प्प्द्ध ब्च्श्र 8 ;ैब्द्ध उंल इम तममिततमक जव ूीमतम पज ूंे ीमंसक जींज जीम इनतकमद व िचतवअपदह जींज जीम पदेनतमक ींक उंकम ंिसेम तमचतमेमदजंजपवद ंदक ेनचचतमेेमक उंजमतपंस ंिबजे पे नदकवनइजमकसल वद जीम स्प्ब् व िपदकपंण् थ्नतजीमतउवतमए उमतम बवदबमंसउमदज व िेवउम ंिबजे ूपसस दवज ंउवनज जव बवदबमंसउमदज व िउंजमतपंस ंिबजे ंदक प िजीमतम पे तिंनकनसमदज ेनचचतमेेपवद व िउंजमतपंस ंिबजे पद जीम चतवचवेंसए जीम चवसपबल बवनसक इम अपजपंजमक वजीमतूपेम दवजण् अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी ने अपने तथ्य को साबित करने हेतु पत्रावली पर जो साक्ष्य दी है। उसमें मेडिकल रिकाॅर्ड डिपार्टमेन्ट एसोसियशन ग्रुप आॅफ हाॅस्पिटल, बीकानेर के द्वारा जारी फोटो प्रति है। जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त रिपोर्ट दिनांक 29.09.2009 की है। उक्त रिपोर्ट में फेमिली हिस्ट्री में प्रीवियस ट्रीटमेन्ट इन्टरवेशन सर्जरी में बाॅयोस्पी आॅनली दिनांक 03.11.2008 अंकित है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बहस के दौरान एक अन्य दस्तावेज जो कि सुभाष चन्द्र अप्रार्थी बीमा कम्पनी का एजेन्ट है, के बयानों की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त बयानों में सुभाष चन्द्र ने यह अंकित किया है कि ‘‘चूंकि प्रस्तावक इधर- उधर घूम कर कार्य करने वाला था इस कारण उसके आग्रह पर मैंने मेरे पत्राचार का पता, मेरे घर का पता प्रस्ताव- पत्र में दे दिया। मृतक का सरदारशहर में न कोई रिश्तेदार है और न वह कभी सरदारशहर में रहा और न ही वह प्रस्ताव के समय एकदम स्वस्थ था।‘‘ अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने उक्त रिपोर्ट के आधार पर तर्क दिया कि बीमाधारी ने अपनी कैंसर की बीमारी व बाॅयोस्पी की रिपोर्ट के तथ्य को अपने प्रस्ताव पत्र में छिपाया है। इसलिए प्रार्थीया कोई क्लेम प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। 9. प्रार्थीया अधिवक्ता ने अप्रार्थीगण अधिवक्ता के उक्त तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि बीमाधारी प्रश्नगत पोलिसी क्रय करने से पूर्व पूर्ण रूप से स्वस्थ था। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रश्नगत पोलिसी जारी करने से पूर्व बीमाधारी का चिकित्सक परीक्षण भी करवाया था और पूर्ण रूप से जांच करने के पश्चात ही प्रश्नगत पोलीसी जारी की गयी थी। इस सम्बंध में प्रार्थीया ने इस मंच का ध्यान 3 सी.पी.जे. 2014 पेज 221 एन.सी. बजाज एलाईंस लाईफ इन्श्योरेन्स काॅरपोरेशन एण्ड अदर्स बनाम राजकुमार न्यायिक दृष्टान्त की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया उक्त न्यायिक दृष्टान्त में राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्धारित किया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी के अधिकृत डाॅक्टर द्वारा बीमाधारी के स्वास्थ्य की जांच उपरान्त पोलिसी जारी की जाती है तो बीमा कम्पनी पूर्व बीमारी के आधार पर क्लेम खारिज नहीं कर सकती। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थीया अधिवक्ता के उक्त तर्कों के खण्डन स्वरूप कोई तर्क या दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया। चूंकि पूर्व में यह उल्लेखित किया गया है कि बीमाधारी प्रश्नगत पोलिसी क्रय करने से पूर्व कैंसर से पीड़ित था, तथ्य को साबित करने का भार बीमा कम्पनी पर था। बीमा कम्पनी ने मंच के समक्ष अपने तथ्य को साबित करने हेतु जो दस्तावेज मुख्य रूप से प्रस्तुत किये है। वह बीकानेर उप अधिक्षक के द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट की प्रति है जो विधि अनुसार द्वितीय साक्ष्य के रूप में है। उक्त रिपोर्ट में फैमेली हिस्ट्री में बीमाधारी के द्वारा दिनांक 03.11.2008 को बाॅयोस्पी किया जाना अंकित किया है। परन्तु उक्त रिपोर्ट केवल फोटो प्रति है जिसे अन्य विश्वसनीय साक्ष्य के बिना हम इसे विश्वसनीय नहीं मान सकते। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने उक्त रिपोर्ट के साथ ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया जो उक्त रिपोर्ट को साबित करे। प्रार्थीया ने अपने खण्डन शपथ- पत्र में उक्त रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों को इन्कार किया है इसलिए मंच की राय में अप्रार्थीगण को अपनी रिपोर्ट को साबित करने हेतु बीकानेर अस्पताल से बीमाधारी के बीमारी के सम्बंध में मूल दस्तावेज प्राप्त कर उक्त फोटो प्रति दस्तावेज को साबित करना चाहिए था जो अप्रार्थीगण ने नहीं किया। इसके अतिरिक्त अप्रार्थीगण अपने तथ्य को साबित करने हेतु बीमाधारी के ईलाज करने वाले डाॅक्टर का शपथ- पत्र प्रस्तुत कर या हाॅस्पीटल का मूल रिकाॅर्ड या प्रमाणित प्रतिलिपि प्रस्तुत कर अपने तथ्य को साबित कर सकते थे। परन्तु अप्रार्थीगण ने अपने उक्त तथ्य को साबित करने हेतु बीमाधारी का ईलाज करने वाले डाॅक्टर का शपथ- पत्र प्रस्तुत किया और ना ही हाॅस्पीटल का मूल रिकाॅर्ड या प्रमाणित प्रतिलिपि प्रस्तुत की। यदि अप्रार्थीगण द्वारा बीमाधारी का ईलाज करने वाले डाॅक्टर का शपथ- पत्र पेश नहीं किया जाता है तो यह नहीं माना जा सकता है कि बीमाधारी प्रश्नगत पोलिसी क्रय करने से पूर्व कैंसर से पीड़ित था। ऐसा ही मत माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त 3 सी.पी.जे. 2014 पेज 552 एन.सी. एस.बी.आई. लाईफ इन्श्योरेन्स कम्पनी लि. बनाम हरविन्द्र कोर में दिया है। उक्त प्रकरण में ईलाज करने वाला डाॅक्टर न तो मंच के समक्ष प्रस्तुत हुआ और न ही उसने कोई शपथ- पत्र पत्रावली पर प्रस्तुत किया केवल डिसचार्ज कार्ड की फोटो प्रति को आधार मानते हुए अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने क्लेम खारिज किया था जिसे माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी का सेवादोष माना है। इसी प्रकार माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त 4 सी.पी.जे. 2014 पेज 580 एन.सी. आई.सी.आई.सी.आई. प्रुडेन्शियल लाईफ इन्श्योरेन्स बनाम विना शर्मा एण्ड अदर्स में राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्धारित किया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा जब तक कोई विश्वसनीय साक्ष्य पूर्व बीमारी के सम्बंध में प्रस्तुत नहीं कर दी जाती तब तक यह नहीं माना जा सकता कि बीमाधारी द्वारा तात्विक तथ्यों को छुपाया गया है। उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण पर पूर्णत चस्पा होते है क्योंकि वर्तमान प्रकरण में भी अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा ऐसा कोई विश्वसनीय दस्तावेज पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया जिसमें यह साबित हो कि बीमाधारी ने प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करते समय बीमारी के सम्बंध में किसी तात्विक तथ्य को छुपाया हो। अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा ईलाज के सम्बंध में जो फोटो प्रति प्रस्तुत की है वह पोलिसी में प्रस्ताव दिनांक 28.09.2009 के बाद दिनांक 29.09.2009 का है जो कि स्पष्ट रूप से प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करने के बाद का है। अप्रार्थीगण ने ऐसा भी कोई दस्तावेज पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया जिससे यह साबित हो कि अप्रार्थीगण ने दिनांक 03.11.2008 को बाॅयोस्पी टेस्ट करवाया हो। यदि अप्रार्थीगण द्वारा प्रस्तुत फोटो प्रति पर मनन करे व तर्कों को माने तो बीमाधारी को अपने कैंसर होने का ज्ञान दिनांक 03.11.2009 को हो गया था परन्तु बीमाधारी को कैंसर जैसी बीमारी का ज्ञान होने पर उसके द्वारा किसी प्रकार का कोई ईलाज करीब 1 वर्ष तक न लिया जाना विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता। अप्रार्थीगण द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज से यह साबित होता है कि जब बीमाधारी ने दिनांक 03.11.2008 को बाॅयोस्पी करवायी तो उसमें कैंसर की बीमारी नहीं पायी गयी। इसीलिए बीमाधारी ने दिनांक 03.11.2008 के बाद कैंसर से सम्बंधित कोई ईलाज नहीं लिया गया यदि दिनांक 03.11.2008 को बीमाधारी को कैंसर की बीमारी का ज्ञान होता तो उसके द्वारा अपनी बीमारी के सम्बंध मंे ईलाज भी लिया जाता। जो कि चिकित्सय प्रमाण के अनुसार कैमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, हाॅर्मथेरेपी आदि होते है परन्तु अप्रार्थीगण द्वारा ऐसा कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह साबित हो कि बीमाधारी ने दिनांक 03.11.2008 को बाॅयोस्पी करवायी हो व इसके बाद चिकित्सा पद्धती के अनुसार उपरोक्त ईलाज लिये हो। इसलिए अप्रार्थीगण अधिवक्ता का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि बीमाधारी को प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करने से पूर्व अपनी कैंसर सम्बंधित बीमारी का ज्ञान था और उसने प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करते समय अपनी बीमारी को छिपाया हो। 10. अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने अपनी बहस में द्वितीय तर्क यह दिया कि बीमाधारी ने प्रश्नगत पोलिसी अप्रार्थी के एजेन्ट से मिलकर प्राप्त की है। अप्रार्थीगण ने अपने तथ्य को साबित करने हेतु सुभाष चन्द्र एजेन्ट के जो बयान प्रस्तुत किये है जिनका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। बाद अवलोकनार्थ मंच अप्रार्थीगण अधिवक्ता के उक्त तर्कों से सहमत नहीं है क्येांकि अप्रार्थीगण के जवाब के अनुसार जब अप्रार्थीगण ने प्रकरण में जांच करवायी थी तो उसे अपने एजेन्ट की मिली- भगत के तथ्य का ज्ञान होते हुए भी अप्रार्थीगण के द्वारा अपने एजेन्ट के विरूद्ध कोई कार्यवाही की गई हो ऐसा दस्तावेज भी अप्रार्थीगण द्वारा पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया गया। वैसे भी एजेन्ट की गलती हेतु प्रार्थीया को दोषी नहीं ठहराया जा सकता ऐसा ही मत माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त 3 सी.पी.जे. 2014 पेज 582 सहारा इण्डिया लाईफ इन्श्योरेन्स क. लि. एण्ड अदर्स बनाम रायनी रामायनजनायूलू में दिया है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने पैरा संख्या 3 में यह मत दिया कि प्देनतमक वत ीमत समहंस तमचतमेमदजंजपअमे ेीवनसक दवज ेनििमत वित वउपेेपवदे ंदक बवउउपेेपवदे इल ंहमदजण् उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी इस तथ्य को साबित करने में विफल रही है कि प्रार्थीया के पति द्वारा प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करने से पूर्व ब्ंदबमत न्तपदंतल ठसंककमत ूपजी ेमबण् ंइकवउपदंस ूंसस जैसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित था। इसलिए मचं की राय में प्रार्थीया अधिवक्ता द्वारा दिये गये तर्कों, दस्तावेजों व न्यायिक दृष्टान्तों की रोशनी के दृष्टिगत अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थीया के क्लेम को अस्वीकार करना अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी का सेवादोष है। प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी के विरूद्ध स्वीकार किये जाने योग्य है। अतः प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर उसे निम्न अनुतोष दिया जा रहा है। (क.) अप्रार्थीगण को आदेष दिया जाता है कि वह प्रार्थीया को उसके पति द्वारा क्रय की गयी बीमा पाॅलिसी संख्या 502807559 का बीमा धन 4,00,000 रू. (अखरे रूपये चार लाख) अन्य समस्त प्रलाभों सहित तथा उस पर 9 प्रतिषत वार्षिक दर से साधारण ब्याज परिवाद की दिनांक 06.08.2012 से ताअदायगी तक अदा करेंगे। (ख.) अप्रार्थीगण को आदेष दिया जाता है कि वह प्रार्थीया को 10,000 रू. मानसिक प्रतिकर व 5,000 रू. परिवाद व्यय के रूप में भी अदा करेंगे। अप्रार्थीगण को आदेष दिया जाता है कि वह उक्त आदेष की पालना आदेष कि दिनांक से 2 माह के अन्दर- अन्दर करेंगे।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर सदस्य सदस्या अध्यक्ष निर्णय आज दिनांक 12.03.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर सदस्य सदस्या अध्यक्ष
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
[ Subash Chandra]
MEMBER
[ Nasim Bano]
MEMBER
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