जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
परिवाद संख्या- 262/2013
संदीप कुल्हरी पुत्र श्री स्व. श्रीचन्द जाति जाट उम्र 30 वर्ष निवासी गंगा काॅलोनी, देवी मन्दिर के पीछे पीलानी जिला झुझुनूं
......प्रार्थी
बनाम
1. भारतीय जीवन बीमा निगम लि. कुर्रेशी सुपर बाजार तारानगर रोड़ सादुलपुर जिला चूरू जरिए शाखा प्रबन्धक
2. खण्ड मुख्य चिकित्सा अधिकारी राजगढ़ जिला चूरू
3. भारतीय जीवन बीमा निगम मण्डल कार्यालय ‘जीवन प्रकाष‘ रानाडे मार्ग अजमेर जरिए वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक
......अप्रार्थीगण
दिनांक- 02.02.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1. श्री धन्ना राम सैनी एडवोकेट - प्रार्थी की ओर से
2. श्री राकेश वर्मा एडवोकेट - अप्रार्थी संख्या 1 व 3 की ओर से
3. अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से - एक पक्षीय
1. प्रार्थी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थी कि बहिन रचना चैधरी ने अपने जीवन का बीमा अप्रार्थीगण की सैलेरी सैविंग स्कीम के अन्तर्गत दिंनाक 28.11.2006 को करवाया था उक्त पोलिसी सं. 500652719 है। उक्त बीमा पोलिसी की परिपक्वता तिथि 28.11.2026 है। बीमा प्रीमियम 565 रू. मासिक था उक्त बीमा पोलिसी करवाते समय प्रार्थी कि बहन रचना चैधरी अविवाहित थी प्रार्थी उक्त बीमा पोलिसी में नोमिनी है उक्त बीमा पोलिसी के अन्र्तगत बीमा धन एक लाख पांच हजार रूपये है। प्रार्थी कि बहिन ए.एन.एम. के पद पर अप्रार्थी सं. 2 के अधीन सेवारत थी। स्व. रचना चैधरी के वेतन मे से प्रति माह बीमा प्रीमियम की राषि काटे जाने के संबध में स्व. रचना चैधरी से अप्राथसं. 2 द्वारा लिखवाकर भी लिया गया था प्रार्थी की बहिन कि मृत्य बीमित अवधी में होने पर अप्रार्थीगण बीमा कलेम के भुगतान के लिए उतरदायी रहेे है। आगे बताया कि बीमित अवधी मेें ही दिनंाक 13.03.2008 को अस्वस्थ होने के कारण मृत्यु हो गई जिसकी सुचना प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण को दी गई थी दिनांक 25.03.2008 को एक प्रार्थना पत्र अप्रार्थी सं. 3 में को बीमा प्रपत्र मंगाने हेतु दिया था जिस पर उनके द्वारा प्रार्थी को बीमा प्रपत्र नही भिजवाया गया। जिस पर दिनंाक 25.11.11 को पुन एक प्रपत्र बीमा प्रपत्र मंगवाते हेतु अप्रार्थी सं. 3 को दिया तथा उसके साथ असल बीमा पाॅलिसी बांड अन्य दस्तावेजात भेजे थे उसके पष्चात प्रार्थी को बीमा क्लेम प्रपत्र प्राप्त हुए जो प्रार्थी द्वारा विधिवत रूप से भरकर सभी औपचारिकताए पूर्ण कर बीमा कंपनी को भिजवाए थे।
2. आगे प्रार्थी ने बताया कि दिनांक 08.12.2011 को अप्रार्थी सं. 3 द्वारा जारी किया हुआ एक पत्र प्रार्थी को मिला जिसमे उक्त बीमा पाॅलिसी चालु नही होना, कालातित होना बताया एवं फार्म सं. 142 में माह 1/08 से 3/08 तक के चालान कि प्रति भेजने का अंकन किया गया जिस पर दिनांक 06.02.2012 को फार्म सं. 142 अप्रार्थी सं.2 के कार्यालय से भरवाकर व प्रमाणित करवाकर अप्रार्थी सं. 3 को भिजवाया गया। जिसमेें अंकन किया गया कि माह जनवरी 2008 एवं फरवरी 2008 का वेतन बिल सं. 88 दिनांक 10.06.2009 को बनाया गया है तथा मृत्यु दिनांक 13.03.2008 को हो चुकी थी इस लिए स्ण्प्ण्ब् की कटौति नही की गयी है। दिनांक 22.02.2012 को अप्रार्थी सं. 3 द्वारा पाॅलिसी लेप्स मानकर बीमा क्लेम खारिज कर दिया गया अप्रार्थी सं. 2 द्वारा बीमा कम्पनी के एजेन्ट के रूप कार्य किया जा रहा था प्रीमियम काटने का दायित्व अप्रार्थी सं. 2 का रहा है। अप्रार्थी सं. 2 द्वारा बीमा प्रीमियम वेतन नही बनने के कारण नही काटा गया जो कि एक तकनिकी त्रुटि है। जिसके लिए प्रार्थी की कोई त्रुटि नही है पाॅलिसी प्रीमियम ड्यु होने पर, पाॅलिसी लेप्स होने से पूर्व अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रीमियम जमा नही किया गया तथा अप्रार्थी सं. 2 नियोजक द्वारा भी प्रीमियम जमा कराने हेतु किसी प्रकार का नोटिस जारी नही किया गया बीमा प्रीमियम स्वचालित प्रक्रिया से समय समय पर जमा होता रहा है इस का इस कारण प्रीमियम ड्यु होने, जमा नही होने का ज्ञान है प्रार्थी को कतई नही रहा है। इस कारण प्रार्थी द्वारा प्रीमियम जमा करवाया जाना सम्भव नही रहा है। सेलेरी सैविंग स्कीम में सीधा प्रीमियम जमा करवायें जाने का कोई प्रावधान भी नही है।
3. आगे प्रार्थी ने बताया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी का दायित्व था कि प्रीमियम डयू होने, पाॅलिसी लेप्स होने से पूर्व प्रार्थी को नोटिस जारी करते, सूचना देते इसी प्रकार नियोजक अप्रार्थी सं. 2 का भी दायित्व था कि वो प्रीमियम कटोति कर बीमा कम्पनी को भेजनें में असमर्थ थे तो प्रार्थी को सूचना देतंे। अप्रार्थी सं. 2 द्वारा अप्राथी बीमा कम्पनी के एजेंण्ट के रूप में कार्य किया जा रहा था। इस कारण अप्रार्थी सं. 2 द्वारा की गई त्रुटि के लिए प्रतिनिहित रूप से भी बीमा कम्पनी उतरदायी है वास्तव मे उक्त पाॅलिसी लेप्स पाॅलिसी की श्रेणी में नही आती है। अप्रार्थीगण बीमा क्लेम का भुगतान करने के लिए उतरदायी है। अप्रार्थीगण द्वारा उक्त बीमा क्लेम खारिज करने से पूर्व प्रार्थी को सुनवाई का अवसर प्रदान नही किया गया है, मेकेनिकल वे मे बीमा क्लेम खारिज किया गया है जो कि अप्रार्थीगण द्वारा दी जा रही सेवाओं में गम्भीर त्रुटि है तथा अस्वच्छ व्यापारिक गतिविधि है। प्रार्थी द्वारा बार-बार निवेदन करने पर भी कोई सुनवाई नही करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों के विरूद्व है। इसलिए बीमा पोलिसी संख्या 500652719 के बीमा धन की राशि 1,05,000 रूपये मय ब्याज, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय की मांग की है।
4. अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश किया कि परिवाद-पत्र मियाद बाहर होने से कानूनन माननीय मंच में चलने योग्य नहीं है क्योंकि जेर परिवाद बीमा पाॅलिसी धारक मृतका रचना चैधरी की बीमा पाॅलिसी संख्या 500652719 में जनवरी 2008 से देय बकाया प्रीमियम मृत्यु दिनांक 13.03.08 तक वेतन स्त्रोत से जमा नहीं होने से परिणामस्वरूप पाॅलिसी व्यपगत ;स्ंचेमद्ध हो जाने से एवं तत्समय व्यपगत पॅालिसी की जानकारी होने के बावजूद किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही इस पाॅलिसी बाबत नहीं किए जाने एवं परिवाद 2 वर्ष की अवधि पश्चात गलत कानूनी सलाह के आधार पर सूचना नोटिस पर वादकारण 15.01.2013 उत्पन्न करवाया जाकर प्रस्तुत किए जाने से मामला मियाद बाहर होने से चलने योग्य नहीं है, चूंकि इसी रचना चैधरी बीमा पाॅलिसी धारक एक अन्य बीमा पाॅलिसी संख्या 195571163 जो प्रभावशील (चालू) स्थिति में थी का भुगतान निगम द्वारा विधिवत कर दिया था परन्तु जेंर परिवाद पाॅलिसी देय बीमा प्रीमियम के अभाव में व्यपगत हो जाने से इसका भुगतान विधि सम्मत नहीं होने से नहीं किया गया है चूंकि इस बात का प्रार्थी को ज्ञान होने के पश्चात रचना पाॅलिसी धारक की मृत्यु के विहित 2 वर्ष की अवधि के कानूनी कार्यवाही नहीं किए जाने वाद आधार व वादकारण समाप्त हो जाने से परिवाद मियाद बाहर होने से खारिज योग्य है जो खारिज फरमाया जावे।
5. आगे जवाब दिया कि पाॅलिसी धारक द्वारा वेतन स्त्रोत से प्रीमियम अदायगी भुगतान के तहत प्रस्ताव संख्या 09/12/2006 के जरिये 28.11.2006 से पाॅलिसी संख्या 500652719 बीमाधन 1,05,000 रूपये मासिक बीमा प्रीमियम राशि 565 रूपये अदायगी करार के तहत ली गई थी। बीमा प्रीमियम विभाग के लेखा विभाग वेतन भुगतान प्राधिकारी द्वारा वेतन से कटौती कर हर माह बीमा निगम को भिजवाया करार में तय हुआ था जिसके तहत प्रथम अदेय प्रीमियम जनवरी 2008 को प्रारम्भ हुआ इसके पश्चात वर्ष 2008 मार्च तक किसी प्रकार का बीमा प्रीमियम बीमा निगम में समय पर नहीं पहुंचने से पाॅलिसी कालातीत हो जाने से इसके तहत किसी प्रकार की क्लेम राशि देय नहीं है। पाॅलिसी धारक मृतका रचना चैधरी मृत्यु पूर्व ॅमहदमतश्े ळतंअपवउजवेपे कनम ंबनजम चतमेमनजंजपवद उनसजपेलेजमउ पदअवसअमउमदज से पीडित चली आ रही थी जिसके कारण विभाग से लम्बे अवकाश पर जयपुर दुर्लभजी हाॅस्पिटल में उपचारधीन चलते रहने से दौरान उसकी दिनांक 13.03.2008 को मृत्यु हो गई चूंकि पाॅलिसी धारक मृतका रचना लम्बे चिकित्सक अवकाश के चलते उसका जनवरी 2008 से मार्च 2008 तक वेतन बिल तैयार नहीं होने से उक्त अवधि के वेतन से बीमा प्रीमियम राशि की कटौती होकर निगम कार्यालय में नहीं पहूंचने से बीमा पाॅलिसी कालातीत ;स्ंचेमद्ध हे जाने से एवं कालातीत देय अवधि का प्रीमियम पाॅलिसी धारक द्वारा व्यक्तिशः जमा नहीं करवाये जाने से बीमा पाॅलिसी को इसके तहत किसी भी प्रकार की विभागीय क्लेम देय नहीं है। इस बाबत विभागीय अनुसंधान से प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत बीमा धारक के वेतन बीमा पाॅलिसी प्रीमियम कटौती सम्बंधी दस्तावेजात संलग्न जवाब पेश है। इस प्रकार से प्रार्थी किसी प्रकार का अनुतोष परिवाद-पत्र में मांगे अनुसार प्राप्ति का अधिकारी नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने की मांग की।
6. प्रार्थी की ओर से अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, खण्डन शपथ-पत्र, प्रदर्स सी 1 से सी 11 दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है। अप्रार्थीगण की ओर से जे.एस. हंस का शपथ-पत्र, पत्र दिनांक 23.11.2011, मृत्यु का कारण प्रमाण-पत्र, बीमा पोलिसी, पोलिसी की कटौती विवरण, प्रीमियम स्टेटमेन्ट दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है।
7. पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
8. प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दया कि बीमाधारी रचना चैधरी ने अप्रार्थीगण से एक बीमा पोलिसी संख्या 500652719 सैलरी स्कीम के तहत क्रय की थी। बीमाधारी अप्रार्थी संख्या 2 के अधीन सेवारत थी। अप्रार्थी बीमा कम्पनी को प्रीमियम की राशि बीमाधारी के सैलरी में से अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा कटौती की जाकर भिजवायी जानी थी इस हेतु बीमाधारी ने अप्रार्थी संख्या 2 का अधिकृत किया हुआ था। प्रार्थी अधिवक्ता ने आगे तर्क दिया कि बीमाधारी की बीमित अवधि में ही दिनांक 13.03.2008 को मृत्यु हो गयी जिस पर प्रार्थी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी को बीमा प्रपत्र मंगवाने हेतु पत्र दिया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी से जो दस्तावेज की मांग की गयी वह सभी दस्तावेज प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी बीमा कम्पनी को विधिवत रूप से भिजवा दिये। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने वांछित सभी दस्तावेज भिजवाये जाने के बावजूद दिनांक 22.02.2012 को बीमाधारी की पोलिसी लेप्स होने के आधार पर परिवाद खारिज कर दिया। प्रार्थी अधिवक्त ने तर्क दिया कि वास्तव में यदि माह जनवरी व फरवरी 2008 की बीमा प्रीमियम अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा कटौती की जाकर अप्रार्थी बीमा कम्पनी को नहीं भेजा गया तो उसके लिए बीमाधारी उत्तरदायी नहीं थी। यह भी तर्क दिया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने भी बीमाधारी को कोई सूचना या नोटिस इस बाबत नहीं दिया कि बीमाधारी का प्रीमियम माह जनवरी व फरवरी का बीमा विभाग को नहीं भेजा गया। जबकि यदि अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा बीमाधारी की सैलरी स्कीम में से सैलरी नहीं बनने के कारण बीमा प्रीमियम की कटौती की जाकर बीमा कम्पनी को नहीं भेजी गयी तो अप्रार्थी बीमा कम्पनी को इस सम्बंध में नोटिस दिया जाना चाहिए था। अप्रार्थीगण द्वारा अपने दायित्व से बचने हेतु प्रार्थी का बीमा क्लेम खारिज किया गया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवादोष है। उक्त आधार पर परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि वास्तव में प्रश्नगत पोलिसी के प्रस्ताव से पूर्व बीमाधारी व अप्रार्थी बीमा कम्पनी के मध्य यह करार तय हुआ था कि बीमा प्रीमियम विभाग के लेखा विभाग, वेतन भुगतान प्राधिकारी द्वारा वेतन से कटौती कर हर माह बीमा कम्पनी को भिजवाया जायेगा। परन्तु बीमाधारी व अप्रार्थी संख्या 2 के द्वारा जनवरी 2008 से मार्च 2008 तक किसी प्रकार का बीमा प्रीमियम बीमा कम्पनी को नहीं भिजवाया गया जिस कारण बीमाधारी की पोलिसी कालातीत हो चूकी थी। यह भी तर्क दिया कि बीमाधारी की मृत्यु मार्च 2008 में हुई थी व बकाया प्रीमियम दिनांक 13.03.2008 तक जमा नहीं होने के तथ्य का ज्ञान प्रार्थी को था। उक्तानुसार प्रार्थी को यह परिवाद मार्च 2008 के दो वर्ष के अन्दर-अन्दर पेश करना चाहिए था। परन्तु प्रार्थी ने यह परिवाद वर्ष 2013 में प्रस्तुत किया है जो कि स्पष्ट रूप से मियाद बाहर है। उक्त आधारों पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
9. हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में बीमाधारी स्व. रचना चैधरी के द्वारा अप्रार्थी बीमा विभाग से सैलरी स्कीम के तहत प्रश्नगत पोलिसी 500652719 क्रय करना, उक्त पोलिसी के बीमित अवधि में ही बीमाधारी की दिनांक 13.03.2008 को स्वास्थ्य खराब होने की वजह से मृत्यु होना व अप्रार्थीगण द्वारा दिनांक 22.02.2012 को प्रार्थी का क्लेम खारिज करना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु यह है कि बीमाधारी के प्रीमियम माह जनवरी व फरवरी सैलरी में से कटौती नहीं होने के कारण अप्रार्थी बीमा कम्पनी के पास नहीं पहुंचा जिस कारण प्रनश्गत पोलिसी कालातीत हो गयी। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह तर्क दिया कि यह स्वीकृत तथ्य है कि बीमाधारी की प्रश्नगत पोलिसी पेटे जनवरी व फरवरी माह का प्रीमियम बीमा आयोग को नहीं पहुंचा जिस कारण प्रश्नगत पोलिसी कालातीत हो गयी। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस के दौरान इस मंच का ध्यान कटौती विवरण दिनांक 06.02.2012 की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। कटौती विवरण जो कि अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा दिनांक 06.02.2012 को जारी किया गया है। उक्त विवरण में यह अंकित है कि माह जनवरी 2008 व फरवरी 2008 का वेतन बिल संख्या 88 दिनांक 10.06.2009 को बनाया गया जबकि मृत्यु दिनांक 13.03.2008 को हो चूकी थी। इसलिए एल.आई.सी. की कटौती नहीं की गयी। अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता ने उक्त दस्तावेज के आधार पर तर्क दिया कि बीमाधारी की पोलिसी पेटे माह जनवरी व फरवरी का प्रीमियम बीमा आयोग को नहीं भेजा गया। इसलिए प्रश्नगत पेालिसी कालातीत हो गयी। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने बहस के दौरान इस मंच का ध्यान न्यायिक दृष्टान्त एस.पी. सिविल रीट पेटीशन संख्या 5696/2003 निर्णय दिनांक 07.02.2008 रमेश चन्द्र बनाम मेनेजर क्लेम सैलरी स्कीम, 1 सी.पी.जे. 2006 पेज 117 राज्य आयोग जयपुर की ओर दिलाया। जिनका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। न्यायिक दृष्टान्त एस.पी. सिविल रीट पेटीशन संख्या 5696/2003 निर्णय दिनांक 07.02.2008 रमेश चन्द्र बनाम मेनेजर क्लेम सैलरी स्कीम में माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय ने बीमा कम्पनी के द्वारा सैलरी स्कीम में से प्रीमियम की कटौती होकर प्राप्त नहीं होने के आधार पर पोलिसी को लेप्स मान कर क्लेम खारिज करने का उचित ठहराया। उक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण के तथ्यों से भिन्न होने के कारण पूर्णत चस्पा नहीं होते है।
10. प्रार्थी अधिवक्ता ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि बीमाधारी ने अप्रार्थी संख्या 2 को अपनी पोलिसी हेतु अधिकृत किया था। अप्रार्थी संख्या 2 ने प्रश्नगत पोलिसी की पेटे एजेन्ट का कार्य किया है। यह भी तर्क दिया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी भी एजेन्ट के रूप में कार्य करती है। यदि बीमाधारी की सैलरी में से जनवरी व फरवरी 2008 का वेतन नहीं बनने के कारण प्रीमियम नहीं कटा तो उसके लिए बीमाधारी उत्तरदायी नहीं है और बीमा कम्पनी अपने उत्तरदायित्व से नहीं बच सकती। बहस के दौरान प्रार्थी अधिवक्ता ने न्यायिक दृष्टान्त 3 सी.पी.जे. 1999 पेज 15 एस.सी., 1 सी.पी.जे. 1994 पेज 5 एन.सी., 3 सी.पी.जे. 1997 पेज 48 एन.सी. की ओर ध्यान दिलाया जिनका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। 3 सी.पी.जे. 1999 पेज 15 एस.सी. दिल्ली इलेक्ट्रीक सप्लाई अन्डरटेकिंग बनाम बसन्ती देवी एण्ड अदर्स में माननीय उच्चतम न्यायालय ने सैलरी स्कीम के तहत विभाग व बीमा कम्पनी के दायित्वों, अधिकारों व एजेन्ट को विस्तृत रूप से विवेचन किया है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया कि उपभोक्ता मंच के समक्ष कार्यवाही उपभोक्ताओं के सरंक्षण हेतु की जाती है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय उच्चतम न्यायालय ने सैलरी स्कीम के तहत प्रीमियम की कटौती नहीं होने से क्लेम खारिज करना उचित नहीं माना व बीमा कम्पनी तथा कर्मचारी विभाग को कुछ हद तक दोषी माना। उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण पर पूर्णत चस्पा होते है। वर्तमान प्रकरण में अप्रार्थी बीमा कम्पनी का यह तर्क कि किश्तें नहीं जमा होने पर पोलिसी कालातीत हो चूकी थी जिस हेतु स्वंय बीमाधारी उत्तरदायी है। इस सम्बंध में हम इन्श्योरेन्स एक्ट 1938 की धारा 50 का उल्लेख करना उचित समझते है। धारा 50 इस प्रकार है। छवजपबम व िवचजपवदे ंअंपसंइसम जव जीम ंेेनतमक वद जीम संचेपदह व िं चवसपबल. ।द प्देनतमत ेींससए ख्इमवितम जीम मगचपतल व िजीतमम उवदजीे तिवउ जीम कंजम वद ूीपबी जीम चतमउपनउे पद तमेचमबज व िं चवसपबल व िसपमि पदेनतंदबम ूमतम चंलंइसम इनज दवज चंपकण्, हपअम दवजपबम जव जीम चवसपबल.ीवसकमत पदवितउपदह ीपउ व िजीम चवजपवदे ंअंपसंइसम जव ीपउ ख्नदसमेे जीमेम ंतम ेमज वितजी पद जीम चवसपबल,ण् उक्त धारा से यह स्पष्ट है कि यदि बीमित अवधि में किश्तें समय पर जमा नहीं होती है तो बीमा कम्पनी बीमित को नोटिस देकर सुचित करेगी। परन्तु इस प्रकरण में अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बीमाधारी को उसकी बकाया किश्तों के सम्बंध में ऐसा कोई नोटिस नहीं दिया गया। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि किश्त समय पर जमा करवाने हेतु बीमाधारी स्वंय उत्तरदायी है।
11. उपरोक्त सम्बंध में हम माननीय राज्य आयोग के नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त अपील संख्या 856/2011 शिक्षा विभाग बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम निर्णय दिनांक 19.12.2014 का हवाला देना उचित पाते है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय राज्य आयोग ने यह निर्धारित किया कि यदि सैलरी स्कीम के तहत किसी कर्मचारी की किसी कारणवश कोई किश्त कटौती होकर बीमा कम्पनी को जमा नहीं होती है तो उसके लिए बीमा कम्पनी ही इंश्योरेन्स एक्ट 1938 धारा 50 की रोशनी में उत्तरदायी है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण पर पूर्णत चस्पा होते है। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि बीमाधारी की प्रश्नगत पोलिसी कालातीत हो चूकी थी। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने अपनी बहस में द्वितीय तर्क यह दिया कि प्रश्नगत पेालिसी में प्रीमियम जनवरी 2008 का बकाया हुआ था व बीमाधारी की मृत्यु 13.03.2008 को हुई थी जिसकी जानकारी प्रार्थी को भली-भान्ति थी। प्रार्थी का परिवाद विधि अनुसार जनवरी 2008 के दो वर्ष के अन्दर-अन्दर अर्थात् जनवरी 2010 में प्रस्तुत होना चाहिए था। जबकि प्रार्थी ने यह परिवाद दिनांक 15.01.2013 अर्थात् परिवाद हेतुक से 3 वर्ष बाद प्रस्तुत किया है जो स्पष्ट रूप से कालबाधित है। प्रार्थी अधिवक्ता ने अप्रार्थी अधिवक्ता के उक्त तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि विधि अनुसार प्रार्थी को यह परिवाद अप्रार्थी बीमा कम्पनी के द्वारा प्रार्थी के क्लेम को खारिज करने की दिनांक के दो साल के अन्दर-अन्दर पेश करना था। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी का क्लेम दिनांक 22.02.2012 को अस्वीकार किया है जिसके अनुसार प्रार्थी यह परिवाद 21.02.2014 तक इस मंच में प्रस्तुत करने का अधिकारी था परन्तु प्रार्थी ने उक्त दिनांक से पूर्व ही दिनांक 06.06.2013 को मंच में परिवाद प्रस्तुत कर दिया। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि परिवाद मियाद बाहर है। प्रार्थी अधिवक्ता ने बहस के दौरान इस मंच का ध्यान पत्र दिनांक 08.12.2011 प्रदर्स सी 6 व पत्र दिनांक 22.02.2012 प्रदर्स सी 1 दस्तावेजों की ओर ध्यान दिलाया जिनका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। प्रदर्स सी 1 व प्रदर्स सी 6 के अवलेाकन से स्पष्ट है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी को उसके क्लेम हेतु जनवरी 2008 से मार्च 2008 तक सैलरी स्कीम से वेतन कटौती हेतु चालान की रकम ट्रेजरी टोकन नम्बर, ट्रेजरी का नाम, बैंक का नाम, प्रपत्र डी.ओ./ए.जी./142 भिजवाने हेतु लिख्ेा थे। उक्त प्रपत्र के अभाव में प्रार्थी की पोलिसी लेप्स है, भी अंकित किया गया था। उपरोक्त पत्रों से स्पष्ट है कि प्रार्थी का क्लेम अप्रार्थी बीमा विभाग ने दिनांक 22.02.2012 को खारिज किया है। उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम की धारा 24 ए0 के अनुसार केाई भी परिवाद इस मंच में वादकारण से दो वर्ष के अन्दर-अन्दर पेश किया जा सकता है। यदि कोई परिवाद उक्त अवधि में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता तो उपभोक्ता मंच उक्त निर्धारित अवधि के बाद भी परिवाद स्वीकार कर सकती है, बशर्ते की शिकायतकर्ता के पास उक्त निर्धारित अवधि में परिवाद पेश नहीं करने हेतु उचित आधार हो। वर्तमान प्रकरण में यह देखना है कि प्रार्थी को वाद कारण कब प्राप्त हुआ। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि जैसे ही प्रश्नगत पोलिसी के पेटे किश्त ड्यू होगी उसी दिन से प्रार्थी को वाद कारण प्राप्त होता है जबकि प्रार्थी अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि जब तक अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रार्थी का क्लेम अस्वीकार नहीं कर दिया जाता तब तक प्रार्थी को निरन्तर वादहेतुक प्राप्त है। प्रार्थी अधिवक्ता के उक्त तर्कों से हम पूर्णत सहमत है क्योंकि माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपने विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों में यही मत दिया है। इस सम्बंध में हम माननीय राष्ट्रीय आयोग ने लक्ष्मी बाई बनाम आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड एण्ड अदर्स रीविजन पेटिशन 3118-3144/2010 में यह अभिनिर्धारित किया कि जब तक बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम को इन्कार नहीं कर दिया जाता तब तक वाद हेतुक निरन्तर बना रहता है। इसी प्रकार 2013 सी.पी.जे. 4 पेज 607 एन.सी. में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने देवेन्द्र सिंह बनाम आॅरियन्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड में माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायिक दृष्टान्त स्टेट बैंक आॅफ इंडिया बनाम बी.एस. एग्रीकल्चर इण्डस्ट्री 2009 का हवाला देते हुए यह अभिनिर्धारित किया कि बीमा कम्पनी के अन्तिम निर्णय तक वाद हेतुक निरन्तर जारी रहता है। 2012 सी.पी.जे. 3 पेज 522 एन.सी. इफकोटोकियो जनरल इंश्योरेन्स कम्पनी एण्ड अदर्स बनाम गोगक टेक्सटाईल लिमिटेड कम्पनी में माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने पैरा संख्या 11 में यह अभिनिर्धारित किया कि मियाद इन्कारी से शुरू हेाती है न कि नुकसानी से। इसी प्रकार 2012 सी.पी.जे. 2 पेज 312 एन.सी. में माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने चम्बल फर्टीलाईज एण्ड केमीकल लि. बनाम इफकोटोकियो जनरल इंश्योरेन्स कम्पनी में पैरा संख्या 6 में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिनिर्धारित किया कि प्ज पे जीम कंजम व ितमचनकपंजपवद व िजीम पदेनतंदबम बसंपउए ूीपबी उंल ंसेव इम जतमंजमक ंे जीम कंजम व िंबबतनंस व िजीम बंनेम व िंबजपवद ंदक चमतपवक व िसपउपजंजपवद व िजूव लमंते चतमेबतपइमक नदकमत ैमबजपवद 24 । व िजीम ।बज उंल इम तमबावदमक तिवउ जीम कंजम व िेनबी तमचनकपंजपवदण् उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्तों की रोशनी में प्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्रार्थी को निरन्तर वाद हेतुक प्राप्त था। जब तक कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रार्थी के परिवाद अस्वीकार नहीं कर दिये गये हो। वर्तमान प्रकरण में यह स्वीकृत है कि प्रार्थी का क्लेम दिनांक 22.02.2012 को अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा खारिज किया गया था उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्तों के दृष्टिगत प्रार्थी को वाद कारण दिनंाक 22.02.2012 को प्राप्त हुआ और प्रार्थी ने वाद कारण की दिनांक से 2 वर्ष के अन्दर-अन्दर दिनांक 06.06.2013 को इस मंच में परिवाद पेश कर दिया। उपरेाक्त न्यायिक दृष्टान्तों की रोशनी के दृष्टिगत अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि प्रार्थी का परिवाद मियाद बाहर हो। अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रार्थी का क्लेम अस्वीकार करना मंच की राय में सेवादोष है। चूंकि अप्रार्थी संख्या 2 ने भी प्रार्थी के प्रकरण के निस्तारण में असहयोग किया है। यहां तक कि अप्रार्थी संख्या 2 बावजूद तामिल इस मंच में उपस्थित नहीं हुआ और ना ही अपनी ओर से कोई जवाब या स्पष्टीकरण मंच में प्रस्तुत किया इसलिए प्रार्थी के अभिवचन व साक्ष्य अप्रार्थी संख्या 2 के विरूद्ध अखण्डनीय रही है जिस हेतु कुछ हद तक अप्रार्थी संख्या 2 भी उत्तरदायी है। प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध प्रार्थी अधिवक्ता द्वारा दिये गये तर्कों, प्रस्तुत दस्तावेजों व न्यायिक दृष्टान्तों की रोशनी के आधार पर स्वीकार किये जाने योग्य है।
अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर उसे इस मंच द्वारा निम्न अनुतोष दिया जा रहा है।
(क.) अप्रार्थी संख्या 1 व 3 बीमा कम्पनी को आदेश दिया जाता है कि वह प्रार्थी को स्व. बीमाधारी रचना चैधरी के द्वारा क्रय की गयी पोलिसी संख्या 500652719 का बीमाधन की राशि 1,05,000 रूपये समस्त प्रलाभों सहित अदा करें व उक्त राशि पर परिवाद की दिनांक 06.06.2013 से 9 प्रतिशत वार्षिक दर से साधारण ब्याज भी ताअदायगी तक अदा करेंगे।
(ख.) अप्रार्थी संख्या 2 को आदेश दिया जाता है कि वह प्रार्थी को 5,000 रूपये परिवाद व्यय के रूप में अदा करेगा।
अप्रार्थीगण को आदेष दिया जाता है कि वह उक्त आदेष की पालना आदेष कि दिनांक से 2 माह के अन्दर-अन्दर करेंगे।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 02.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर
सदस्य सदस्या अध्यक्ष