Rajasthan

Churu

15/2011

ANJANA SONI - Complainant(s)

Versus

LIC SADULPUR - Opp.Party(s)

Dhanna Ram saini

14 Jan 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 15/2011
 
1. ANJANA SONI
VPO SATYU TARANAGAR CHURU
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

प्रार्थीया की ओर से श्री धन्नाराम सैनी अधिवक्ता उपस्थित। अप्रार्थी संख्या 1 व 2 की ओर से श्री सुशील शर्मा अधिवक्ता उपस्थित। अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से श्री राजेन्द्र राजपुरोहित अधिवक्ता उपस्थित। प्रार्थीया अधिवक्ता ने अपनी बहस मे तर्क दिया कि अप्रार्थी सं. 3 प्रार्थीया के घर आया और उससे भारतीय जीवन बीमा निगम की विषेश पाॅलिसी मनी प्लस के बारे मे बताया अप्रार्थी सं. 3 की बातो से प्रभावित होकर प्रार्थीया ने 10,000/-रू लगातार तीन वर्ष अप्रार्थी के यहा जमा करवाये और तीन वर्ष 10 माह बाद अप्रार्थीगण ने बिना प्रार्थीया की अनुमति के उक्त पाॅलिसी अपने स्तर पर सरेन्डर करवा दी जिस कारण प्रार्थीया को 30,000/-रू का नुकसान हुआ प्रार्थीया अधिवक्ता ने बहस के दौरान अपने द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-पत्र पर तर्क दिया कि परिवाद में वर्णित समर्पण डिस्काउंटेड मूल्य के भुगतान प्रपत्र पर अंजना सोनी प्रार्थीया के हस्ताक्षर नहीं है। उक्त हस्ताक्षर अप्रार्थी संख्या 3 सागरमल भाटीवाल व तत्कालिक शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम ने आपस में साज व षडयंत्र कर समर्पण प्रपत्र पर हस्ताक्षर किये है या किसी से करवाये है। इसलिए उक्त सागरमल भाटीवाल तथा तत्कालीन शाखा प्रबन्धक भारतीय जीवन बीमा निगम के विरूद्ध धारा 193 भारतीय दण्ड संहिता में प्रसंज्ञान लिया जाकर बाद विचारण दण्डित किया जावे व उक्त समर्पण पत्र जांच हेतु थाना अधिकारी तारानगर को भिजवाया जावे। प्रार्थीया अधिवक्ता ने उपरोक्त आधारो के दृष्टिगत परिवाद व प्रार्थना पत्र स्वीकार करने का तर्क दिया अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थीया अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि वास्तव मे प्रार्थीया स्वयं द्वारा ही अपनी पाॅलिसी को बन्द करवाते हुए जितने रूपये भुगतान योग्य बनते थें बिना किसी आपत्ति के प्रार्थीया ने प्राप्त कर लिए उपरोक्त राशि प्राप्त करते समय प्रार्थीया ने कभी कोई आपत्ति नही की । यह भी तर्क दिया कि इस मंच को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने स्तर पर समर्पण पत्र को जांच हेतु थाना अधिकारी के समक्ष भेजे तथा प्रार्थीया स्वयं द्वारा अप्रार्थीगण पर धोखा व मिथ्या साक्ष्य गढने का आरोप लगाया है इसलिए इस मंच को यह परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार नही है। उक्त आधार पर प्रार्थना-पत्र व परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण मे ं प्रार्थीया ने अनुतोष यह चाहा है कि प्रार्थीया को नुकसानी के 30,000 रूपये मय ब्याज दिलावाये जावे व अपने खण्डन शपथ-पत्र में यह स्पष्ट कथन किया है कि समर्पण पत्र पर उसके हस्ताक्षर नहीं है। वास्तव में समर्पण पत्र पर किस के हस्ताक्षर है। इस तथ्य का ज्ञान बिना हस्तलिपिक विशेषज्ञ की रिपोर्ट के नहीं चल सकता और जब तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं हो इस प्रकरण का निस्तारण किया जाना उचित व न्यायोचित नहीं है क्येांकि यह भी विचारणीय बिन्दु है कि अप्रार्थीगण विभाग बिना मूल पोलिसी बाॅण्ड के सरेण्डर किये भुगतान नहीं करते। मूल पोलिसी बाॅण्ड समर्पण के समय किस के पास था इस तथ्य का भी पता लगाना आवश्यक है क्येांकि प्रार्थीया ने अपने परिवाद में यह कथन किया है कि मूल पोलिसी बाॅण्ड अप्रार्थी संख्या 3 के पास ही था जिसने कभी भी प्रार्थीया को उक्त मूल बाॅण्ड या उसकी प्रति उपलब्ध नहीं करवायी। प्रार्थीया स्वंय द्वारा भी अप्रार्थी सख्ंया 3 से मूल बाॅण्ड की प्रति पोलिसी जारी होने की दिनांक 30.03.2007 से समर्पण की दिनांक तक मांग क्यों नहीं की? आदि तथ्य की जांच होनी है। मंच अपने स्तर पर उक्त तथ्यों की जांच नहीं कर सकता। वैसे भी धारा 193 के प्रार्थना-पत्र निस्तारण
हेतु मंच को धारा 195 व 340 दण्ड प्रक्रिया संहिता की कार्यवाही में जाना पडे़गा जिसके सम्बंध में हम न्यायिक दृष्टान्त 2005 एपेक्स कोर्ट जजमेन्ट पेज 568 सुप्रीम कोर्ट
इकबाल सिंह मारवा एण्ड अदर्स बनाम मिनाक्षी मारवा एण्ड अदर्स का हवाला देना उचित समझते है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय उच्चतम न्यायालय ने धारा
195 (1) बी0 2 एण्ड धारा 340 का विस्तार से विवेचन किया है और विवेचन करने के पश्चात माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पैरा संख्या 25 व 26 में यह अभिनिर्धारित किया
है कि Under section 95 (1)(B)(ii) Cr. P.C. would be attracted only when the offences enumerated in the said provision have been committed with respect to a document after it has been produced or given in evidence in a proceeding in any Court i.e. during the time when the document was in custodia legis. प्रार्थीया अधिवक्ता के स्वंय के कथनानुसार प्रश्नगत दस्तावेज अप्रार्थीगण ने स्वंय तैयार किया है या किसी से तैयार करवाया है। उसके पश्चात् इस मंच में प्रस्तुत किया। उक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी में धारा 95 ;1द्ध;ठद्ध;पपद्ध ब्तण् च्ण्ब्ण् वर्तमान प्रकरण में लागु नहीं होती है। वैसे भी इस मंच के द्वारा प्रकरणों का निस्तारण संक्षिप्त प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है। संक्षिप्त प्रक्रिया से प्रश्नगत समर्पण पत्र के कुट रचित होने के तथ्य का विचारण नहीं किया जा सकता। यदि विस्तृत साक्ष्य लेकर जांच प्रक्रिया अपनाई जाती है तो उपभोक्ता अधिनियम का उदेश्य ही विफल हो जायेगा तथा विधि अनुसार इस मंच को अन्तर्गत धारा 13 व 14 के तहत मूल परिवाद की कार्यवाही के दौरान मूल परिवाद में धारा 193 भारतीय दण्ड संहिता के तहत प्रसंज्ञान लिये जाने का क्षैत्राधिकार नहीं है। मंच को केवल धारा 27 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम के तहत ही न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्राप्त है। इसलिए प्रार्थीया अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-पत्र अन्तर्गत धारा 195 दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 के अन्तर्गत खारिज किया जाता है। चूंकि मूल परिवाद में प्रार्थीया स्वंय द्वारा फ्रोड व चिटिंग का कथन अप्रार्थीगण के विरूद्ध किया है, मंच का ऐसे प्रकरण में भी कोई क्षैत्राधिकार नहीं है जहां पर किसी फ्राॅड एवं चिटिंग का एलिगेशन किया गया हो। ऐसा ही मत माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त 2 सी.पी.जे. 2014 पेज 196 राकेश कुमार बनाम आई.सी.आई.सी.आई. में दिया है। उपरोक्त आधारों व कारणों के दृष्टिगत मंच की राय में प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है। चूंकि प्रार्थीया नाबालिग है जो स्वंय अपने स्तर पर निर्णय लेने में सक्षम नहीं है। यदि प्रार्थीया ने अपने स्तर पर समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर भी कर दिये तो भी विधि अनुसार अप्रार्थीगण उसको सरेण्डर मानकर भुगतान नहीं कर सकते जब तक की उस पर प्रार्थीया के प्राकृतिक संरक्षक के द्वारा सहमति न दे दी गयी हो। इसलिए प्रार्थीया पुलिस थाना में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने हेतु स्वतन्त्र है और अन्वेक्षण अधिकारी की रिपोर्ट के बाद यदि अप्रार्थीगण के विरूद्ध कोई अपराध बनना पाया जाता है तो प्रार्थीया पुनः मंच में परिवाद पेश करने के लिए स्वतन्त्र है। अतः प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

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