SHANTI DEVI filed a consumer case on 16 Sep 2014 against LIC OF INDIA in the Jaipur-I Consumer Court. The case no is CC/1062/2008 and the judgment uploaded on 22 May 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर प्रथम, जयपुर
समक्ष: श्री राकेश कुमार माथुर - अध्यक्ष
श्रीमती सीमा शर्मा - सदस्य
श्री ओमप्रकाश राजौरिया - सदस्य
परिवाद सॅंख्या: 1062/2008
शान्ती देवी पत्नी स्व0 श्री मोहन लाल सैनी, निवासी पडालों की ढ़ाणी, जोड़ला पावर हाऊस, ग्राम हरमाड़ा, जिला जयपुर (राज0)
परिवादी
ं बनाम
1. प्रधान प्रबंधक, एल.आई.सी. आॅफ इण्डिया, मण्डल कार्यालय, अम्बेडकर सर्किल, भवानी संिह रोड़, जयपुर (राजस्थान)
2. प्रबंधक शाखा कार्यालय, एल.आई.सी. आॅफ इण्डिया, सुभाष नगर शोपिंग सेंटर, शास्त्री नगर, जयपुर Û
विपक्षी
अधिवक्तागण :-
श्री महेश शर्मा - परिवादी
श्री अरविन्द कुमार शर्मा - विपक्षी एल आई सी
परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक: 29.09.08
आदेश दिनांक: 13.02.2015
परिवाद में अंकित तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिया के पति ने विपक्षी से एक पाॅलिसी सॅंख्या 191775872 ले रखी थी जो दिनांक 29.03.2000 को ली थी जिसकी समस्त किश्तों की अदायगी नियमित रूप से विपक्षी संस्था को करता रहा है । परिवादिया के पति का दिनांक 07.02.2003 को देहावसान हो जाने के बाद विपक्षी के यहां भुगतान के सम्बन्ध मेें सम्पर्क किया गया परन्तु विपक्षी द्वारा क्लेम का भुगतान नहीं किया गया और दिनांक 10.06.2008 को सूचित किया कि क्लेम खारिज कर दिया गया है। दिनांक 11.06.2008 को विपक्षी को विधिक नोटिस भी दिया परन्तु फिर भी क्लेम राशि का भुगतान नहीं किया गया इस प्रकार विपक्षी ने सेवादोष कारित किया है । परिवादी ने प्रश्नगत पाॅलिसी का भुगतान मय ब्याज व पूर्ण लाभ सहित दिलवाए जाने, परिवाद खर्चा 10,000/- रूपए, मानसिक व शारीरिक परेशानी के लिए 50,000/- रूपए दिलवाए जाने का निवेदन किया है ।
विपक्षी की ओर से परिवाद मियाद बाहर पेश होने की आपत्ति उठाई गई है । विपक्षी का कथन है कि परिवादिया के पति का गुर्दे सम्बन्धी बीमारी से पीडि़त होेने का उल्लेख किया गया है । विपक्षी का कथन है कि बीमा पाॅलिसी लेने से पूर्व लगभग 1998 से परिवादिया का पति गुर्दे की बीमारी से पीडि़त था जिस तथ्य को परिवादिया के पति ने जानबूझ कर बीमा कम्पनी से छिपाया और बीमा प्रस्ताव पत्र के प्रश्नों के उत्तर जानबूझकर गलत दिए जिस कारण परिवादिया के पति का मृत्यु दावा नियमानुसार विधिनुसार ही खारिज किया गया है जिसमें कोई सेवादेाष नहीं किया गया है अत: परिवाद-पत्र खारिज किया जावे ।
मंच द्वारा दोनों पक्षों को सुना गया एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया ।
इस प्रकरण में मुख्य बिन्दु यह उभरा है कि क्या यह परिवाद अवधि बाधित है ?
इस सम्बन्ध में परिवादिया का कथन है कि उसे उसका बीमा दावा निरस्त करने की सूचना 10.06.2008 को प्राप्त हुई । इसके विपरीत विपक्षी का सशपथ कथन है कि परिवादिया का बीमा दावा खारिज करने की सूचना उसे दिनांक 18.11.2003 को ही रजिस्टर्ड पत्र से दे दी गई थी जिसके बाद परिवादिनी ने बीमा दावा निरस्त करने केे आदेश को चुनौती दी थी जिसमें भी उसका दावा अस्वीकार करने का आदेश सही माना गया जिसकी सूचना भी दिनांक 14.02.2004 के पत्र द्वारा उसे दे दी गई थी । परिवादिनी की ओर से इस तथ्य को चुनौती नहीं दी गई है कि उसने क्षेत्रीय कार्यालय में पुनःनिरीक्षण करने का अनुरोध किया था। बगैर दावा निरस्तारण के पुन: निरीक्षण करने का कोई अवसर ही नहीं उत्पन्न होता है । अत: ऐसी परिस्थिति में यह तथ्य स्वीकार्य है कि परिवादिनी का बीमा दावा निरस्त कर दिया गया था जिसकी सूचना 18.11.2003 को दी गई थी और जिसका पुन: निरीक्षण भी उसने करवाया था । यदि दिनांक 14.02.2004 को भी सूचना प्रेषित किया जाना माना जाए तब भी यह परिवाद करीब 4 साल की अवधि बीत जाने केे बाद पेश किया गया है जो स्पष्टत: अवधि बाधित है ।
बीमा कम्पनी द्वारा यह भी आपत्ति उठाई गई है कि परिवादिया का पति , जिसका बीमा दावा मांगा जा रहा है , पहले से ही गुर्दे के रोग से पीडि़त था और उसने इस तथ्य को छिपाकर विपक्षी बीमा कम्पनी से पाॅलिसी प्राप्त की थी । विपक्षी के अधिकारी ने शपथ-पत्र द्वारा यह दर्शाया है कि जो बीमा प्रस्ताव पत्र परिवादिया के पति ने प्रस्तुत किया उसमें सारी सूचनाएं गलत दी गई जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने पिछले 5 साल में किसी भी चिकित्सक या अस्पताल से किसी भी प्रकार का इलाज प्राप्त नहीं किया है तथा यह भी कहा है कि वह किडनी, लंग्स, ब्रेन, लीवर, स्टोमक, हार्ट की किसी भी बीमारी से ग्रस्त नहीं है तथा अपने स्वास्थ्य को अच्छा बताया है । इसके विपरीत विपक्षी की ओर से सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर केे डिस्चार्ज वाउचर की फोटोप्रति अनेक्सचर-2 प्रस्तुत की है जिसमें उसे गुर्दे रोग से पीडि़त बताया है । साथ में मोनिलेक अस्पताल के चिकित्सा परिपत्र भी पेश किए हैं यह सभी 2001 और 2003 से सम्बन्धित हैं अर्थात यह कहा जा सकता है कि परिवादिया का पति बीमा पाॅलिसी प्राप्त करने से पूर्व से ही गुर्दे के रोग से पीडि़त था और गुर्दे के रोग से ही उसकी मृत्यु हुई है । इस प्रकार से परिवादिया के पति ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया और गलत जानकारी बीमा कम्पनी को दी है । चिकित्सा परिपत्र पेश किए गए हैं उनसे स्पष्ट है कि परिवादिया का पति बीमा पाॅलिसी प्राप्त करने से पूर्व से ही किडनी की बीमारी से पीडि़त था और इस प्रकार उसने गलत सूचना देकर बीमा पाॅलिसी प्राप्त की थी जिसका कोई लाभ मामले की परिस्थितियों में नहीं दिया जा सकता है ।
अत: इस समस्त विवेचन के आधार पर परिवादिया का यह परिवाद खारिज किया जाता है । प्रकरण का खर्चा दोनों पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे ।
निर्णय आज दिनांक 13.02.2015 को लिखाकर सुनाया गया।
( ओ.पी.राजौरिया ) (श्रीमती सीमा शर्मा) (राकेश कुमार माथुर)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
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