आदेश
शिकायतकर्ता ने यह शिकायत इस फोरम के समक्ष इस आशय का लाया है कि वह भारतीय जीवन बीमा निगम का पॉलिसी धारक है, उसने भारतीय जीवम बीमा निगम से निम्न पॉलिसी लिया।
a. पॉलिसी नंबर 58184090 जो मूल्य 15000 रु० का था, जो दिनांक 15.04.1984 से शुरू होता था। जिसकी परिपक्वता तिथि अप्रैल 2004 तथा परिपक्वता धन राशि 25000 रु० थी।
b. पॉलिसी नंबर 75398906 जो 20000 रु० की थी। उसके प्रारंभ होने की तिथि 28.03.1986 और परिपक्वता तिथि मार्च 2006 थी।
c. पॉलिसी नंबर 60148261 जो 10000 रु० मूल्य का था। तथा दिनांक 06.08.1981 से प्रारंभ है जिसकी परिपक्वता फरवरी 2006 थी और जिसकी परिपक्वता राशि 22500 रु० थी।
d. पॉलिसी नंबर 530282232 जो 15000 रूपये की थी, जिसके प्रारंभ होने की तिथि 28.12.1991 जिसकी परिपक्वता तिथि दिसम्बर 2006 तथा परिपक्वता धनराशि 26250 रु० था।
e. पॉलिसी नंबर 530131951 जो 20000 रु० की धनराशि की थी, दिनांक 28.10.1989 से शुरू होता था, जिसकी परिपक्वता तिथि ऑक्टूबर 2009 थी, परिपक्वता राशि 40000 थी।
f. पॉलिसी नंबर 60148605 जो दिनांक 05.01.1982 ख़रीदा गया था। मूल्य 15000 रु० था। परिपक्वता तिथि ऑक्टूबर 2011, परिपक्वता धनराशि 42500 रु० थी। कुल धनराशि 250000 रु० सभी उपरोक्त पॉलिसी का बोनस की धनराशि को छोड़कर दिया जाता है। आवेदक का यह भी कथन है कि उसने प्रीमियम की धनराशि सभी छह पॉलिसी का धनराशि जमा किया लेकिन बीमारी एवं कुछ अन्य घरेलू समस्या के कारण परिवादी चार साल तक निरंतर उपरोक्त बीमा की प्रीमियम की धनराशि जमा नहीं कर सका। विपक्षी बीमा पॉलिसी के सभी प्रीमियम को जमा करने के लिए तैयार है वह इस सन्दर्भ में बराबर भारतीय जीवम बीमा निगम के कार्यालय गया, सभी छह बीमा पॉलिसी को पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया जो कि परिवादी के नाम से थी।
आवेदक का यह भी कथन है कि सभी छह पॉलिसी का पॉलिसी बैग गायब हो गया जो कि परिवादी के नाम से थी। विपक्षी LIC ने परिवादी से कहा कि बिना पॉलिसी बैग के पुनः जीवित नहीं किया जा सकता इसके लिए परिवादी बराबर विभाग जाता रहा लेकिन विभाग से यही उत्तर दिया जाता रहा कि उसका पॉलिसी रिकॉर्ड एवं बैग विभाग से गायब है जिसे खोजा जा रहा है लेकिन मिल नहीं रहा है। एक दिन विभाग से उन्हें सन्देश गया कि पॉलिसी बैग के बिना भी पॉलिसी को पुनः जीवित किया जा सकता है,अतः उस पर विश्वास करके परिवादी दिनांक 05.05.2000 को 2601 रु० पॉलिसी नंबर 60148261 में जमा किया, जिसे LIC द्वारा उचंठ खाते में जमा कर दिया और उक्त पॉलिसी को अबतक पुनर्जीवित नहीं किया गया। परिवादी सभी पॉलिसी के प्रीमियम को एक बार में जमा करने को तैयार है, विपक्षी LIC मैच्योरिटी परिपक्वता धनराशि ब्याज के साथ 250750 रु० का भुगतान कर दें।
परिवादी का यह भी कथन है कि परिवादी के अनुरोध करने के वाद भी विपक्षी द्वारा उसकी समस्या के निराकरण हेतु कोई कार्यवाही नहीं किया गया, अपितु दिनांक 13.06.2014 को इस आशय का नोटिस भेजा गया कि LIC पर किये गए हाउसिंग लोन के कर्ज को सूद के साथ भुगतान कर दें।
परिवादी का यह भी कथन है कि विपक्षी के उक्त कृत्य से असंतुष्ट होकर उसने दिनांक 28.07.2014 को विपक्षी को नोटिस निर्गत किया लेकिन विपक्षी द्वारा अथवा उसके अधिवक्ता द्वारा कोई नोटिस नहीं लिया गया अंत में परिवादी के द्वारा यह शिकायत पत्र विपक्षीगण के विरुद्ध दाखिल किया गया और फोरम से अनुरोध किया गया कि विपक्षी को यह आदेश दें कि परिवादी की खो गयी सभी छह पॉलिसी बैग को तलाश कर परिवादी को उपलब्ध करावे तथा विपक्षी को यह भी आदेश देने की कृपा करे कि वह परिवादी से सभी छह पॉलिसी की प्रीमियम की धनराशि प्राप्त करके सभी छह पॉलिसी को पुनर्जीवित कर दें इसके आलावा विपक्षी की यह भी आदेश दिया जाए कि वह परिवादी को सभी पॉलिसी के कुल परिपक्वता धनराशि मूल्य 250750 रु० सूद सहित एवं बोनस के साथ परिवादी को उपलब्ध करावें। साथ साथ दो लाख मानसिक क्षति एवं वाद खर्चा विपक्षी से दिलाने की कृपा करे।
विपक्षी के तरफ से उसके विद्धवान अधिवक्ता उपस्थित हुए, उन्होंने अपना व्यान तहरीर दाखिल किया। उन्होंने अपने व्यान तहरीर में स्पष्ट किया है कि परिवादी ने जैसा परिवाद पत्र दाखिल किया है वह चलने योग्य नहीं है। उसके द्वारा तथ्यों के आधार पर विपक्षी के विरुद्ध यह मुकदमा दाखिल किया गया है।
यह परिवाद पत्र विबंधन, त्यजन तथा स्वीकृति के दोष से बाधित है, यह परिवाद पत्र काल बाधित है परिवाद पत्र में पक्षकारों का दोष है।
विपक्षीगण का यह भी कथन है कि उससे द्वारा कुल छह पॉलिसी लिया गया जिसमें 05818401 दिनांक 15.04.1984 मूल्य 25500 रु० दूसरी पॉलिसी नंबर 75397906 दिनांक 28.03.1986 मूल्य 20000 रु० तीसरी पॉलिसी नंबर 60148261 दिनांक 06.08.1981 मूल्य 10000 रु० पॉलिसी नंबर 530282232 दिनांक 18.12.1991 पॉलिसी नंबर 530131951 दिनांक 28.09.1989 मूल्य 20000 रु० पॉलिसी नंबर 60140605 दिनांक 05.01.1982 मूल्य 15000 रु० लिया यह कथन सत्य है।
विपक्षी का यह भी कथन है कि परिवादी ने होम लोन के लिए OYH स्किम के तहत 75000 रु० दिनांक 26.06.1990 को आवेदन दिया दिनांक 26.06.1990 को रुपया 70000 स्वीकृत हुआ, परिवादी ने सारे सेवा शर्तों को स्वीकार कर लिया। स्वीकृत सेवा शर्तों के अनुसार परिवादी को 13.5 % प्रतिवर्ष सूद के दर पर तथा अतिरिक्त 2% प्रीमियम देय हो जाने पर कर्ज स्वीकृत हुआ। परिवादी द्वारा अपने जीवन बीमा पॉलिसी नंबर 60148605 मूल्य 15000 रु० पॉलिसी पॉलिसी नंबर 75398906 मूल्य 20000 रु० पॉलिसी 530131951 मूल्य 20000 रु० पॉलिसी नंबर 530282232 मूल्य 15000 रु० और पॉलिसी नंबर 60148261 मूल्य 75000 रु० को कोलेट्रल गारंटी के रूप में परिवादी द्वारा लिए गए लोन के विरुद्ध जमा किया तथा परिवादी इस बात से सहमत है कि परिपक्वता तक नियमित रूप से बीमा के प्रीमियम की धनराशि लिए गए होम लोन को अदा करता रहेगा।
परिवादी ने सेवा शर्तों से सहमत होकर कोलेट्रल मॉर्गेज विपक्षी के पक्ष में लिख दिया विपक्षी के पक्ष
में अपनी जमीन का जो मोहल्ला 52 बीघा लक्ष्मी सागर, जिला-दरभंगा। में स्थित है।
आवेदक को स्वीकृत धनराशि में से दिनांक 31.10.1990 को रुपया 30000 दिनांक 19.08.1991 को 20000 रु० तथा दिनांक 07.12.1992 को 10000 रु० कुल 60000 रु० भुगतान किया गया और विपक्षी ने बंधक की गयी संपत्ति पर माकन बनाया।
आवेदक सेवा शर्तों को पूरा करने में विफल रहा तथा नियमित ढंग से प्रीमियम एवं व्याज का भुगतान नहीं किया।
विपक्षी द्वारा नोटिस दिए जाने के बाद भी परिवादी ने ना तो उसका जबाब दिया और ना ही देय धनराशि का प्रीमियम एवं व्याज का भुगतान किया गया।
परिवादी द्वारा जानबूझ कर सेवा शर्तों का उल्लंघन किया गया जो कि उसने बंध पत्र उल्लेख किया है।
यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी सभी छह पॉलिसी के प्रीमियम का भुगतान 1995 के बाद नहीं किया। जिसके कारण वह लंबित हो गया विपक्षी का यह भी कहना है कि यह कहना सही नहीं है कि परिवादी सभी छह पॉलिसी बैग गायब हो गए है। अपितु सत्य ये है कि सभी बैग पॉलिसी विपक्षी के अभिरक्षण में कोलेट्रल सिक्योरिटी के रूप में रखी गयी है जो कि परिवादी द्वारा लिए गए कर्ज के विरुद्ध है।
विपक्षी का यह भी कथन है कि बीमा नियमावली में ऐसा कोई उपबंध नहीं है जिसमें मृत बीमा राशि को वापस किया जाए। परिवादी के बीमा पॉलिसी के सरेंडर मूल्य को परिवादी द्वारा लिए गए कर्ज देय धनराशि में समाहित करने के लिए प्रयोग कर लिया गया है।
विपक्षी का यह भी कथन है कि सिविल कोर्ट में बंधक वाद लंबित है इस कारण यह मामला इस न्यायालय में चलने योग्य नहीं है, अतः ख़ारिज करने की कृपा करे।
फोरम द्वारा उपभयपक्षों के तर्क को सुना गया तथा अभिलेख का अवलोकन किया गया। उभयपक्षों के तर्क से स्पष्ट है कि इस बिंदु पर कोई विवाद नहीं है कि परिवादी द्वारा विपक्षी बीमा कंपनी से छह पॉलिसी लिया गया। इस बिंदु पर भी कोई विवाद नहीं है कि परिवादी ने लिए गए बीमा पॉलिसी में कुछ के प्रीमियम का भुगतान फरवरी 1995 तक किया। जिसका दस्तावेजी साक्ष्य अभिलेख पर उपलब्ध है। विपक्षी बीमा कंपनी का कथन है कि परिवादी ने लिए गए बीमा पॉलिसी के विरुद्ध होम लोन लिया था। जिसमें विपक्षी पार्टी के द्वारा पॉलिसी बैग को गिरवी के रूप में कोलेट्रल सिक्योरिटी के रूप में बंधक रखा है। विपक्षी बीमा कंपनी के इस कथन से ये स्पष्ट है कि उसने परिवादी के बीमा पॉलिसी बैग को बंधक के रूप में रखा है, लेकिन विपक्षी का यह कहना कि परिवादी द्वारा बीमा पॉलिसी के विरुद्ध परिवादी द्वारा होम लोन लिया गया संदिग्ध प्रतीत होता है, क्यूंकि इस परिपेक्ष्य में विपक्षी ने अपने व्यान तहरीर में कहे गए कथन के आलावा कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। ऐसी परिस्थित में विपक्षी के इस कथन पर फोरम द्वारा विश्वास नहीं किया जा सकता है।
उपभयपक्षों द्वारा कहे गए कथन से इस बात की भी पुष्टि होती है कि परिवादी दवरा लिए गए बिमा पॉलिसी के प्रीमियम का भुगतान किया जाना छोड़ दिया गया।
परिवादी स्वयं इस बात को स्वीकार करता है अभिलेख पर जो दस्तावेजी साक्ष्य परिवादी द्वारा दाखिल किया गया है। उनको देखने से स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा कुछ बीमा पॉलिसी के प्रीमियम फरवरी 1995 तक जमा किया गया। एक बीमा पॉलिसी को जीवित करने हेतु उस पर देय व्याज के साथ प्रीमियम की राशि का भुगतान परिवादी के द्वारा किया गया जिसे उचण्ठ खाते में बीमा कंपनी ने जमा कर लिया।
यह सही है कि बीमा नियमावली के नए संशोधन के अनुसार यदि बीमा पॉलिसी के मृत होने की अवधि दो साल से अधिक हो गया हो तो उसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता लेकिन 2010 के पहले यह अवधि पांच साल तक थी, चूँकि आवेदक द्वारा लिए गए सभी बीमा पॉलिसी 2010 के पहले के है इस नाते दो साल की अवधि इस पर लगी नहीं होती अपितु पांच वर्ष की अवधि इस पर लागु होती है इस सम्बन्ध में परिवादी द्वारा दाखिल दस्तावेजी साक्ष्यों में सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य शाखा प्रबंधक LIC दरभंगा को अपने पॉलिसी को पुनर्जीवित करने के लिए लिखा गया पत्र है। यही मात्र एक ऐसा दस्तावेज है जिससे यह साबित किया जा सकता है कि परिवादी ने पांच साल के अंदर अपने मृत पॉलिसी को पुनः जीवित करने का कोई प्रयास किया की नहीं, यद्पि परिवादी के उक्त पत्र पर कोई तिथि नहीं दिया है जिससे स्पष्ट हो कि वह किस तिथि को लिखा गया लेकिन उक्त पत्र पर बीमा कंपनी के कार्यालय अधीक्षक द्वारा पावती दर्ज किया गया है उससे स्पष्ट है कि वह पत्र दिनांक 05.05.2000 को उसे दिया गया।
ज्ञातव्य हो कि परिवादी ने लिए गए बीमा पॉलिसी में से कुछ का प्रीमियम फरवरी 1995 तक जमा किया है यदि यह भी मान लिया जाये कि उसने समस्त पॉलिसी का प्रीमियम फरवरी 1995 तक जमा किया है लेकिन परिवादी द्वारा बीमा कंपनी के प्रबंधक को लिखे गए पत्र से यह स्पष्ट है कि उसने बीमा कंपनी को दिनांक 05.05.2000 को मृत पॉलिसी को पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया है जो सीमा अवधि बीमा कंपनी द्वारा दिया गया है, उससे अधिक हो जाता है परिवादी द्वारा पांच साल के अवधि के अंदर बीमा को पुनर्जीवित करने के अनुरोध का कोई अन्य साक्ष्य दाखिल नहीं किया है इससे स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा जो भी अनुरोध किया गया। वह पांच साल के बाद किया गया। जो कि बीमा नियामवली के विरुद्ध है। ऐसी स्थिति में इस फोरम द्वारा विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा परिवादी के मृत पॉलिसी को पुनर्जीवित करने का आदेश देना न्याय संगत प्रतीत नहीं होता है।
लेकिन परिवादी द्वारा लिए पॉलिसी में प्रीमियम की धनराशि फरवरी 1995 तक जमा किया गया उक्त धनराशि परिवादी को मिलना न्याय सांगत प्रतीत होता है।
ऐसी स्थिति में विपक्षी बीमा कंपनी को यह आदेश दिया जाता है कि वह छह पॉलिसी में जमा किये गए कुल धनराशि को 8% वार्षिक चक्रवृद्धि व्याज के दर से परिवादी को भुगतान कर दें। यह चक्रवृद्धि व्याज पहले देय प्रीमियम के तिथि से मान्य होगा। इसके अलावा विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा किये गए सेवा शर्तों के उल्लंघन के कारण परिवादी को पहुंची मानसिक एवं आर्थिक पीड़ा के क्षतिपूर्ति के रूप में 20000 रु० का भुगतान करे तथा 10000 रु० वाद खर्च रूप में विपक्षी परिवादी को भुगतान करे। विपक्षी कंपनी को आदेश दिया जाता है कि इस फोरम द्वारा पारित आदेश का अनुपालन आदेश पारित होने के तीन महीने के अंदर सुनिश्चित करे। ऐसा नहीं करने पर आदेश में पारित धनराशि की वसूली विधिक प्रक्रिया द्वारा किया जायेगा ।
विपक्षी के अनुसार ही परिवादी का पॉलिसी बैग लिए गए कर्ज के विरुद्ध गिरवी है। चूँकि विपक्षी द्वारा कोई दस्तावेजी साक्ष्य इस आशय का नहीं लाया गया कि परिवादी ने उक्त पॉलिसी के विरुद्ध होम लोन लिया था। ऐसी स्थिति में विपक्षी बीमा कंपनी को यह भी आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी के छह बीमा पॉलिसी के पॉलिसी बैग की यदि विधिक प्रक्रिया में कही वांछित नहीं हो तो परिवादी
को हस्तगत कर दे। इसके आलावा परिवादी इस फोरम द्वारा किसी अन्य अनुतोष को पाने का अधिकारी नहीं है, परिवाद पत्र को आंशिक रूप से स्वीकृत किया गया। मामले का निष्पादन अंतिम रूप से किया गया।