Rajasthan

Kota

CC/103/2008

Meena soni - Complainant(s)

Versus

LIC, Kota - Opp.Party(s)

Hemant kishan vijayvargiy

09 Nov 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, झालावाड,केम्प कोटा (राज)।
पीठासीन अधिकारी:-श्री नन्दलाल षर्मा,अध्यक्ष व श्री महावीर तंवर सदस्य।

प्रकरण संख्या-103/2008
    
1    श्रीमति मीना सोनी पत्नि स्व0 श्री चन्द्रमोहन सोनी,निवासी-गोपाल सोनी का मकान,बापू काॅलोनी, कुन्हाडी,कोटा (राज0)।
2    सौरभ सोनी अवयस्क पुत्र स्व0 श्री चन्द्रमोहन सोनी जरिये वली माता श्रीमति मीना सोनी पत्नि स्व0 श्री चन्द्रमोहन सोनी,निवासी-गोपाल सोनी का मकान,बापू काॅलोनी, कुन्हाडी,कोटा (राज0)।
                                                              -परिवादीगण।
                         बनाम  

भारतीय जीवन बीमा निगम,मण्डल कार्यालय प्रथम, कोटा पता- छावनी चैराहा,झालावाड रोड,कोटा (राज0)।
                                                              -विपक्षी।

         परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

उपस्थिति-

1    श्री हेमन्त विजयवर्गीय,अधिवक्ता ओर से परिवादीगण।
2    श्री दिनेष राय द्विवेदी,अधिवक्ता ओर से विपक्षी।                                        
                 
                              निर्णय                     दिनांक 09.11.2015    


यह पत्रावली जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, कोटा में पेष की गई तथा निस्तारण हेतु जिला मंच, झालावाड केम्प, कोटा, को प्राप्त हुई है।

      प्रस्तुत परिवाद ब्वदेनउमत च्तवजमबजपवद ।बज 1986 की धारा 12 के तहत दिनांक 04-10-2007 को परिवादी ने इन अभिवचनों के साथ प्रस्तुत किया है कि विपक्षी से चन्द्रमोहन सोनी ने जीवन बीमा किरण पाॅलिसी प्राप्त की थी जिसकी संख्या 184433779 है जिसकी जोखिम 28-05-2001 से प्रभावी है। पाॅलिसी का बीमाधन मृत्यु लाभ एक लाख रूपये तथा पूर्णावधि हितलाभ 30,880/-रूपये है। आर्थिक विशमता के कारण चन्द्रमोहन सोनी मई 2004 से अगस्त 2005 तक की किष्त राषि अदा नहीं कर सके। विपक्षी द्वारा 25-10-2005 को संपूर्ण प्रीमियम राषि प्राप्त कर पाॅलिसी नियमित कर प्रभावी कर दी। चन्द्र मोहन को अचानक माह जनवरी 2006 में सरदर्द,खुजली और कमजोरीे अनुभव होने पर इलाज करवाया और दिनंाक 21-03-2006 को निधन होने पर क्लेम प्रस्तुत किया जिसे दिनंाक 30-03-2007 को निरस्त कर दिया और निरस्तीकरण का उचित कारण भी नहीं बताया। इस प्रकार विपक्षी ने क्लेम अदा नहीं करके सेवामें कमी की है। परिवादीगण ने विपक्षी से क्लेम की राषि मय क्षतिपूर्ति के दिलाये जाने का अनुतोश चाहा है। 


                                     2

      विपक्षी ने परिवाद का यह जवाब दिया है कि बीमित परिवादी ने नियमानुसार समय पर प्रीमियम अदा नहीं किया जिसके कारण उनके जीवनकाल में पाॅलिसी कालातीत हो गई थी। परिवाद में असत्य कथन अंकित किये गये हैं। विपक्षी ने कोई सेवामें कमी नहीं की है। परिवादीगण कोई अनुतोष प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हंै। परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है। 

     परिवाद के समर्थन में परिवादिनी ने स्वयं का षपथ पत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में म्ग.1 लगायत म्ग.9 दस्तावेज तथा विपक्षी की ओर से जवाब के समर्थन में श्री टी.जी. विजय,उच्च श्रेणी सहायक,का शपथपत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में एक म्गक.1 लगायत म्गक.36 दस्तावेज प्रस्तुत किये हैं।  
    उपरोक्त अभिवचनों के आधार पर बिन्दुवार निर्णय निम्न प्रकार है:-
1    क्या परिवादीगण विपक्षी के उपभोक्ता हैं ?

    परिवादी का परिवाद,षपथ-पत्र तथा प्रस्तुत दस्तावेजात के आधार पर परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता प्रमाणित पाया जाता है। 
2    क्या विपक्षी ने सेवामें कमी की है ?

उभयपक्षों को सुना गया, पत्रावली का अवलोकन किया गया तो स्पश्ट हुआ कि स्व0 चन्द्र मोहन सोनी ने विपक्षी के पास जीवन बीमा पाॅलिसी करवा रखी थी जोखिम की तिथि 28-05-2001 से प्रभावी थी और बीमा धन एक लाख रूपये तथा हितलाभ 30,880/-रूपये था। बीमाधारी चन्द्रमोहन सोनी का दिनंाक 21-03-2006 को निधन हो गया। मृतक सोनी मई 2004 से अगस्त 2005 तक की किष्त अदा नहीं कर पाया। तत्पष्चात् दिनंाक 25-10-2005 को पाॅलिसी त्मअपअम करवाली। विपक्षी के चिकित्सक नरेन्द्र मेहता द्वारा दिनंाक 06-10-2005 को मेडीकल परीक्षण करवाया। इन तथ्यों से विपक्षी भी सहमत है। चन्द्रमोहन की मृत्यु के पष्चात् परिवादीगण ने क्लेम प्रस्तुत किया जो दिनंाक 30-03-2007 को निरस्त कर दिया और निरस्त करने का आधार लिया कि मृतक ने अपने स्वास्थ्य के बारे में सारवान तथ्यों को छुपाया था इन्हीं बिन्दुओं पर उभयपक्षों में मतभेद है। जहाँ परिवादी कहता है कि माह जून 2006 में सिर दर्द,खुजली और कमजोरी महसूस हुई, पूर्ण इलाज कराने के बाद भी मृतक चन्द्रमोहन का जीवन नहीं बचा पाये। वहीं विपक्षी का कहना है कि परिवादी ने अपनी बीमारी का दिनंाक 04-11-2005 को जीवन क्लिनिक में ईलाज करवाया। रिपोर्ट म्ग छब्.16 में ऐसी बीमारी नहीं है जो विपक्षी की दी गई पाॅलिसी में अंकित हो। म्ग छब्.18 हाडौती डायग्नोस्टिक सेण्टर ने भी ऐसी बीमारी का अंकन नहीं किया है जिसका मृतक चन्द्रमोहन को पता हो। इसके अलावा मृतक चन्द्रमोहन ने पाॅलिसी 2001 को करवायी थी और विपक्षी ने जो दस्तावेज पेष किये हैं वे इलाज के 2005 के हैं जो पाॅलिसी करवाने के बाद दो वर्श के बाद के ईलाज के दस्तावेज हैं, हाँ इतना अवष्य है कि बीच में पाॅलिसी लेप्स हो गई इसलिए उसको त्मअपअम किया गया। फिर भी विपक्षी के अधिकृत चिकित्सक ने जाँच की उस जाँच में भी मृतक चन्द्रमोहन की ऐसी कोई बीमारी का अंकन नहीं है 

                                   3

जिससे पाॅलिसी प्रस्ताव में अंकित बीमारी को छुपाया हो। इस सम्बन्ध में विपक्षी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृश्टान्त 1.ब्च्श्र 2015 ;प्प्द्ध च्ंहम 727;छब्द्ध श्रंेचंस ज्ञंनत - ।दतण् टध्ै छमू प्दकपं ।ेेनतंदबम ब्वउचंदल स्जकण् 2.प्प्.;2015द्ध ब्च्श्र .729 ;छब्द्ध ज्ीवउंे डंजीमू ;क्त्ण्द्ध टध्ै ठसनम डववद ब्वउउनदपबंजपवदे ंदक ब्तमकपज च्अजण्स्जकण् से प्रस्तुत प्रकरण में कोई प्रकाष प्राप्त नहीं होता है क्योंकि प्रथम न्यायिक दृश्टान्त व्हीकल की चोरी के सम्बन्ध में है तथा दूसरा न्यायिक दृश्टान्त फर्नीचर के सम्बन्ध में है जबकि प्रस्तुत प्रकरण जीवन बीमा पाॅलिसी से सम्बन्धित है। माननीय राश्ट्रीय आयोग ने अपने निर्णय दिनंाक 15-12-2002 में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि परिवादी ने जानबूझकर सारभूत तथ्यों को छुपाया है जबकि मृतक अषोक धींगरा लीवर की बीमारी से ग्रसित था, वह अस्पताल में ऐडमिट रहा फिर भी सारवान् तथ्यों को छिपाया। 4.छंजपवदंस ब्वदेनउमत त्मककतमेेंस छमू क्मसीप ब्ींदकतंांदजं व्थ् प्छक्प्। टध्ै स्प्ब् में माननीय राश्ट्रीय आयोग ने अपने निर्णय दिनंाक 04-04-2011 में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि मृतक वीरेन्द्र सिंह ने अपने स्वास्थ्य के सन्दर्भ में सारभूत तथ्यों को छुपाया था क्योंकि वह टीबी का मरीज था, टीबी होस्पीटल में दिनंाक 13-02-2005 से 14-03-2005 तक ऐडमिट रहा और ईलाज करवाया।

    उक्त दोनों ही न्यायिक दृश्टान्तों से प्रस्तुत प्रकरण में कोई प्रकाष प्राप्त नहीं होता है क्योंकि न्यायिक दृश्टान्तों में अषोक धींगरा लीवर की बीमारी से ग्रसित था और दूसरे न्यायिक दृश्टान्त में वीरेन्द्र सिंह टीबी का मरीज था, ये दोनों ही बीमारी मृतक को पता थीं जबकि प्रस्तुत प्रकरण में ऐसी कोई स्पश्ट बीमारी नहीं थी जिसका मृतक को पता हो। इसके अलावा न्यायिक दृश्टान्त में मृतक अस्पताल में 10-15 दिन तक एडमिट रहा लेकिन प्रस्तुत प्रकरण में मृतक अस्पताल में एडमिट नहीं रहा। इसके अलावा न्यायिक दृश्टान्तों में मृतक बीमारी के कारण छुट्टी पर रहा लेकिन प्रस्तुत प्रकरण में ऐसा कोई दस्तावेज विपक्षी ने पेष नहीं किया है।

    यह सच है कि इन्ष्योरेंस के काॅण्टेªक्ट गुड फेथ के होते हैं लेकिन दूसरी तरफ यह भी सच है कि बीमित व्यक्ति अपने भविश्य को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए बीमा करवाता है। स्पश्टतः दिखती हुई बीमारी जिसका इलाज अस्पताल में चला हो तब तो मृतक का सारवान तथ्यों का छिपाना माना जा सकता है लेकिन जब ऐसी कोई बीमारी ही न हो जो स्पश्ट रूप से दिखती हो और दो साल बाद यदि अचानक कोई बीमारी दिखती है तो उसे सारवान तथ्यों को जानबूझकर छिपाना नहीं माना जा सकता है। प्रस्तुत प्रकरण में पाॅलिसी वर्श 2001 को करवायी और मृत्यु 2006 में हुई तो रिवाइवल पाॅलिसी 2001 से ही मानी जायेगी। इस प्रकार पाँच वर्श बाद यदि साधारण बीमारी होने के बाद बीमित का निधन हो गया हो तो हमारे विचार से प्रस्तुत प्रकरण में सारवान तथ्यों को छिपाना नहीं माना जायेगा। इस बिन्दु पर परिवादी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृश्टान्त क्छश्र ;त्।श्रद्ध 2004 च्ंहम 1041 स्पमि प्देनतंदबम ब्वतचवतंजपवद व िप्दकपं टध्ै क्पेजतपबज च्मतउंदमदज स्वा ।कंसंज - ।दतण् से प्रकाष प्राप्त

                                 4

होता है क्योंकि इस न्यायिक दृश्टान्त में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि बीमा कम्पनी का यह कत्र्तव्य था कि बीमित द्वारा दी गई जानकारी  का सत्यापन कराये। बीमित की मृत्यु के पष्चात् बीमा कम्पनी को जानकारी नहीं देने का अभिवाक करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और बीमित का पुत्र बीमा पाॅलिसी की राषि पाने का हकदार है। विपक्षी पाॅलिसी करते समय बीमित द्वारा किये गये कथनों का सत्यापन करने के लिए स्वतन्त्र था, उस समय तो सत्यापन नहीं किया और बीमा राषि देने के समय पाॅलिसी करते वक्त के सत्यापन को आज सत्यापित कराना चाहते हैं, यह विपक्षी का सेवादोश प्रमाणित करता है। सामान्यतः बीमित व्यक्ति अपने या उत्तराधिकारी के भविश्य को सुरक्षित करने के लिए बीमा कराता है। मृतक ने 2001 से 2006 तक प्रीमियम अदा किया है और अचानक बीमारी से यदि बीमित का निधन हो गया हो तो परिवार में अर्निंग मेम्बर के निधन के बाद उसकी 29 वर्शीय पत्नि मीना सोनी तथा 4 वर्शीय पुत्र सौरभ सोनी के जीवनयापन के लिए बीमाधन यदि टेक्निक आधार पर इन्कार किया जाता है तो मृतक के वारिसान को रोजी रोटी का सवाल आडे आता है। बीमा की कार्यवाही कल्याणकारी कार्य है। उपरोक्त विवेचन और विष्लेशण के आधार पर हमारे विचार से ऐसी स्थिति में क्लेम से इन्कार करना विपक्षी का स्पश्ट रूप से सेवादोश पाया जाता है। 

3    अनुतोश ?

    प्रार्थी का परिवाद खिलाफ विपक्षी आंषिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है। 
                               आदेष  
       परिणामतः परिवादी का परिवाद खिलाफ अप्रार्थी आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है:-
1    अप्रार्थी प्रार्थी को हितलाभ की राषि 1,00,000/-रूपये (एक लाख रूपये) बीमा राषि क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करें।
2    अप्रार्थी प्रार्थी को 5,000/-रूपये मानसिक और षारीरिक क्षति के और 2,000/-रूपये परिवाद व्यय के अदा करें। 
3    अप्रार्थी आदेषित राषि को निर्णय दिनंाक से दो माह में अदा करना सुनिष्चित करें अन्यथा ताअदाएगी सम्पूर्ण भुगतान 9ः वार्शिक ब्याज दर से ब्याज भी अदा करने के लिए दायित्वाधीन होगा।


       (महावीर तंवर)                           (नन्द लाल षर्मा)  
             सदस्य                                   अध्यक्ष

 

       निर्णय आज दिनंाक 09.11.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 

         (महावीर तंवर)                               (नन्द लाल षर्मा)
            सदस्य                                        अध्यक्ष

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.